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क्या नीतीश और मोदी के बीच की दूरियां मिट रही हैं ?

    • अशोक उपाध्याय
    • Updated: 23 नवम्बर, 2016 05:45 PM
  • 23 नवम्बर, 2016 05:45 PM
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नोटबंदी के मुद्दे पर जब सारा विपक्ष एक सुर में बोल रहा है तो प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के घोर विरोधी बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इस फैसले का खुलकर समर्थन कर रहे हैं. क्‍योंकि...

नोटबंदी के फैसले पर न केवल पूरा विपक्ष सरकार के खिलाफ सदन से लेकर सड़क तक विरोध कर रहा है बल्कि भाजपा के कुछ सहयोगी दल भी इसके खिलाफ बोलना प्रारंभ कर चुके हैं. पर प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के घोर विरोधी बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इस फैसले का खुलकर समर्थन कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि "प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अब ऐसे शेर की सवारी कर रहे हैं, जो उनके गठबंधनों को नुकसान पहुंचा सकता है, लेकिन उनके इस कदम के पक्ष में जोरदार समर्थन है, और हमें उस समर्थन का सम्मान करना चाहिए."

बाकी विपक्ष से अलग क्‍या नीतीश कुमार जनता के मूड को ज्‍यादा बेहतर समझ पा रहे हैं ?

नरेंद्र मोदी को जब भाजपा प्रधान मंत्री का उम्मीदवार बनाने का मार्ग प्रशस्त कर रही थी तो यह नीतीश कुमार को नहीं भाया.  वो राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन छोड़ कर बाहर आ गए. पिछले वर्ष के बिहार विधान सभा चुनाव में मोदी और नीतीश ने एक दूसरे पर अवांछनीय शब्दों का प्रयोग किया.  पर अब जब नीतीश ने मोदी के इस निर्णय का समर्थन किया तो लोग आश्चर्यचकित रह गए. आखिर क्या कारण है कि नीतीश कुमार, मोदी के इस निर्णय के समर्थन में आ गए हैं? राजनीतिक गलियारों में जो चर्चाएं हैं वो कुछ इस तरह हैं:

ये भी पढ़ें- मैं अंग्रेजों के जमाने का कलेक्टर हूं, नीतीश बाबू से पूछिए...

नीतीश...

नोटबंदी के फैसले पर न केवल पूरा विपक्ष सरकार के खिलाफ सदन से लेकर सड़क तक विरोध कर रहा है बल्कि भाजपा के कुछ सहयोगी दल भी इसके खिलाफ बोलना प्रारंभ कर चुके हैं. पर प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के घोर विरोधी बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इस फैसले का खुलकर समर्थन कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि "प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अब ऐसे शेर की सवारी कर रहे हैं, जो उनके गठबंधनों को नुकसान पहुंचा सकता है, लेकिन उनके इस कदम के पक्ष में जोरदार समर्थन है, और हमें उस समर्थन का सम्मान करना चाहिए."

बाकी विपक्ष से अलग क्‍या नीतीश कुमार जनता के मूड को ज्‍यादा बेहतर समझ पा रहे हैं ?

नरेंद्र मोदी को जब भाजपा प्रधान मंत्री का उम्मीदवार बनाने का मार्ग प्रशस्त कर रही थी तो यह नीतीश कुमार को नहीं भाया.  वो राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन छोड़ कर बाहर आ गए. पिछले वर्ष के बिहार विधान सभा चुनाव में मोदी और नीतीश ने एक दूसरे पर अवांछनीय शब्दों का प्रयोग किया.  पर अब जब नीतीश ने मोदी के इस निर्णय का समर्थन किया तो लोग आश्चर्यचकित रह गए. आखिर क्या कारण है कि नीतीश कुमार, मोदी के इस निर्णय के समर्थन में आ गए हैं? राजनीतिक गलियारों में जो चर्चाएं हैं वो कुछ इस तरह हैं:

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नीतीश लोगों का मन भाप गए हैंअभी तक जो भी सर्वेक्षण इस विषय पर कराये गए हैं उनके अनुसार ज्यादातर लोग लोग नोटबंदी का समर्थन करते हुए दिख रहें हैं. कुछ ही लोग  इसका विरोध कर रहे हैं. जनभावना को समझते हुए नीतीश ने भी इसका समर्थन करने में ही अपनी भलाई समझी.

स्वच्छ छवि को और मजबूत करना चाहते हैं हालाँकि उनका और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल का सम्बन्ध बहुत अच्छा है पर उन्होंने आम आदमी दल के प्रमुख से ठीक उल्टा स्टैंड लिया है. लोगों का मानना है की केजरीवाल ने नोटबंदी पर अपने स्टैंड से अपनी भ्रस्टाचार विरोधी क्षवि को चोट पहुचाया है पर इसका समर्थन कर के नीतीश कुमार ने अपने मिस्टर क्लीन वाली क्षवि को और निखारा है.

भाजपा का दरवाजा खुला रखना चाहते हैं हाल के दिनों में नीतीश कुमार केंद्र सरकार पर हमला करने में संयम बरतते हैं. हालांकि उनके सहयोगी कांग्रेस एवं राजद ने भारतीय सेना  के पाकिस्तान में किये गए सर्जिकल स्ट्राइक पर कई सवाल उठाये पर नीतीश ने ऐसा नहीं किया. इस मुद्दे पर वो केंद्र के साथ खड़े दिखे. नोटबंदी पर भी नरेंद्र मोदी को समर्थन करने वाले वो विपक्ष के सबसे बड़े नेता हैं. ऐसा माना जा रहा है की विविन्न मुद्दों पर केंद्र को समर्थन दे कर नीतीश कुमार ने भाजपा एवं जद यू के बीच दूरियां कम कर ली है.

लालू को नियंत्रण में रखना चाहते हैं ऐसा माना जा रहा है की नीतीश कुमार का लालू यादव से सम्बन्ध असहज हो गया है. यही कारण है की वो इस मुद्दे पर खुल कर नरेंद्र मोदी  के साथ आ गए हैं. नीतीश कुमार कहा कि मोदी के फैसले के पीछे भावना सही है इसलिए इसका सम्मान किया जाना चाहिए. पर उनके सहयोगी लालू प्रसाद यादव ने  केंद्र सरकार के इस फैसले को काले धन पर सर्जिकल स्ट्राइक नहीं बल्कि फर्जिकल स्ट्राइक बताया है. राजनीतिक समीक्षाकों के माननाहै की नीतीश लालू को ये सन्देश देना चाहते हैं कि उनके लिए और भी दरवाजे खुले हुए हैं और वे अपने मुख्यमंत्री पद के लिए केवल उन पर आश्रित नहीं हैं.

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सेक्युलर - समाजवादी ब्रिगेड को भी नाराज नहीं कर रहे

नोटबंदी पर नीतीश कुमार से अलग रुख अख्तियार करते हुए पार्टी नेता शरद यादव ने इसे 'अनियोजित और अदूरदर्शी' फैसला बताकर उसकी आलोचना की. उन्होंने कहा कि आपातकाल के दौरान जबरन नसबंदी की वजह से जैसे कांग्रेस का पतन हुआ था, उसी तरह भाजपा सत्ता से बाहर हो जाएगी. नोटबंदी के 15 वे दिन विपक्ष के 14 पार्टियों ने  संसद भवन के बाहर धरना दिया इसमें जद यू  भी शामिल थी. मतलब नीतीश कुमार कि पार्टी नोटबंदी पर विरोधियों एवं  सर्मथकों दोनों के ही साथ नजर आ रही है. मतलब कि वो किसी को भी नाराज नहीं कर रही.

मोदी ने बिहार विधान सभा चुनाव में  बोला था कि  जदयू मतलब 'जनता का दमन और उत्पीड़न' है. उसके जबाब में नीतीश कुमार ने कहा था कि  बीजेपी का मतलब- बड़का झूठा पार्टी. अब लगता है कि 'जनता का दमन और उत्पीड़न' एवं "बड़का झूठा पार्टी" में दूरियां कम हो रहीं हैं. पर क्या वो फिर से एक साथ आ पाएंगे? इसका जबाब तो समय ही दे पायेगा. पर अगर शिवसेना को हफ्ता वसूल पार्टी कहने के बाद भाजपा उसके साथ मिल के सरकार चला सकती है तो जदयू एवं भाजपा भी एक साथ आ सकते हैं.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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