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मुंबई बदली, मगर नहीं बदली मुंबई लोकल की सूरत !

    • अभिनव राजवंश
    • Updated: 30 सितम्बर, 2017 12:13 PM
  • 30 सितम्बर, 2017 12:13 PM
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जिस सिटी को वर्ल्डक्लास बनाए की बात की जाती है, वहां के लाइफलाइन की यह स्थिति हुक्मरानों की नियत पर कई सवाल खड़े करती हैं.

मुंबई में रेलवे स्टेशन के फुटओवर ब्रिज पर भगदड़ के कारण 22 लोगों की मौत हो गई. जबकि 35 से ज्यादा लोग घायल हो गए. घटना शुक्रवार सुबह परेल और एलफिंस्टन रोड रेलवे स्टेशन के बीच ओवर ब्रिज पर हुई. बताया जा रहा है कि बारिश के कारण ओवर ब्रिज पर फिसलन थी और यह हादसा रेलिंग का हिस्सा टूटने से हुआ. अब भले ही आज हुई दुर्घटना या भगदड़ का कारण कुछ भी रहा हो. लेकिन इस ओवर ब्रिज के जो हालात हैं उसमें इस तरह के हादसों की सम्भावना हमेशा ही बनी रहती है.

मुंबई हादसा

हालांकि अगर बात करें परेल और एल्फिंस्टन रोड इलाके की तो कभी टेक्सटाइल्स मिल्स के लिए जाना जाने वाला यह इलाका आज मुंबई के बड़े बिज़नेस हब के रूप में जाना जाता है. इस इलाके में आपको बड़े-बड़े बिल्डिंग्स के अलावा देश के नामी अस्पतालों में से एक टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल तक मिल जायेंगे. हालांकि भले ही स्टेशन के बाहर का इलाका बड़े बदलाओं के दौर से गुजर रहा है. लेकिन स्टेशन के अंदर शायद ही कुछ बदला है. अंग्रेजों के शासनकाल में सन् 1877 में बनाया गया परेल स्टेशन, आज भारत के आज़ादी के सदी बीत जाने के बाद भी इस स्टेशन की स्थिति कमोबेश वैसी ही है जैसा इसे अंग्रेज बना कर गए थे.

परेल और एल्फिंस्टन के स्टेशन मुंबई के अतिव्यस्त स्टेशन में शुमार हैं. इन स्टेशनों से मुख्य तौर पर वर्ली, प्रभादेवी, महालक्ष्मी के अलावा टाटा, वाडिया और गांधी हॉस्पिटल के जानेवाले लोगों का आना जाना होता हैं. केवल इन दो स्टेशनों पर लगभग डेढ़ से दो लाख लोग रोजाना सफर करते हैं. लेकिन इन दो स्टेशन को जोड़ने का जिम्मा आज भी एक संकरी ओवर ब्रिज के ऊपर ही हैं. भीड़-भाड़ के दौरान इस ब्रिज को पार करने में तो बीस मिनट तक का समय लग जाता हैं.

यह स्थिति केवल इन दो स्टेशन की नहीं बल्कि कमोबेश मुंबई लोकल के अधिकतर स्टेशनों की हैं. आज भी मुंबई...

मुंबई में रेलवे स्टेशन के फुटओवर ब्रिज पर भगदड़ के कारण 22 लोगों की मौत हो गई. जबकि 35 से ज्यादा लोग घायल हो गए. घटना शुक्रवार सुबह परेल और एलफिंस्टन रोड रेलवे स्टेशन के बीच ओवर ब्रिज पर हुई. बताया जा रहा है कि बारिश के कारण ओवर ब्रिज पर फिसलन थी और यह हादसा रेलिंग का हिस्सा टूटने से हुआ. अब भले ही आज हुई दुर्घटना या भगदड़ का कारण कुछ भी रहा हो. लेकिन इस ओवर ब्रिज के जो हालात हैं उसमें इस तरह के हादसों की सम्भावना हमेशा ही बनी रहती है.

मुंबई हादसा

हालांकि अगर बात करें परेल और एल्फिंस्टन रोड इलाके की तो कभी टेक्सटाइल्स मिल्स के लिए जाना जाने वाला यह इलाका आज मुंबई के बड़े बिज़नेस हब के रूप में जाना जाता है. इस इलाके में आपको बड़े-बड़े बिल्डिंग्स के अलावा देश के नामी अस्पतालों में से एक टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल तक मिल जायेंगे. हालांकि भले ही स्टेशन के बाहर का इलाका बड़े बदलाओं के दौर से गुजर रहा है. लेकिन स्टेशन के अंदर शायद ही कुछ बदला है. अंग्रेजों के शासनकाल में सन् 1877 में बनाया गया परेल स्टेशन, आज भारत के आज़ादी के सदी बीत जाने के बाद भी इस स्टेशन की स्थिति कमोबेश वैसी ही है जैसा इसे अंग्रेज बना कर गए थे.

परेल और एल्फिंस्टन के स्टेशन मुंबई के अतिव्यस्त स्टेशन में शुमार हैं. इन स्टेशनों से मुख्य तौर पर वर्ली, प्रभादेवी, महालक्ष्मी के अलावा टाटा, वाडिया और गांधी हॉस्पिटल के जानेवाले लोगों का आना जाना होता हैं. केवल इन दो स्टेशनों पर लगभग डेढ़ से दो लाख लोग रोजाना सफर करते हैं. लेकिन इन दो स्टेशन को जोड़ने का जिम्मा आज भी एक संकरी ओवर ब्रिज के ऊपर ही हैं. भीड़-भाड़ के दौरान इस ब्रिज को पार करने में तो बीस मिनट तक का समय लग जाता हैं.

यह स्थिति केवल इन दो स्टेशन की नहीं बल्कि कमोबेश मुंबई लोकल के अधिकतर स्टेशनों की हैं. आज भी मुंबई लोकल के ज्यादातर स्टेशनों की हालत बदत्तर ही हैं. यह स्थिति तब हैं जब मुंबई की तकरीबन 70-75 लाख जनता रोजाना इन ट्रेनों में सफर करती हैं. लोकल के ज्यादातर स्टेशनों के इंफ्रास्ट्रक्चर को अभी तक भी मुंबई के बढ़ती जरूरतों के हिसाब से नहीं बदला गया. आज भी मुंबई के ज्यादातर स्टेशन अंग्रेजों द्वारा बनाये गए इंफ्रास्ट्रक्चर पर ही चल रहें हैं.

सुरक्षा के लिहाज से भी देखें तो मुंबई लोकल की सुरक्षा भगवान भरोसे ही दिखती है. मुंबई रेलवे पुलिस के आकड़ों के अनुसार जनवरी 2016 से जुलाई 2017 के बिच 3880 लोगों की अलग-अलग तरह की दुर्घटनाओं में मौत हुई हैं. इनमें से 1,126 लोगों की मौत तो केवल लाइन क्रॉस करने के दौरान हुई है.

वाकई जिस सिटी को वर्ल्डक्लास बनाए की बात की जाती है, वहां के लाइफलाइन की यह स्थिति हुक्मरानों की नियत पर कई सवाल खड़े करती हैं. आज जिस जगह पर दुर्घटना हुई, उस जगह पर पिछले तीन चार सालों से दुर्घटना होने की आशंका जताई जाती रही थी. लेकिन जिम्मेदार लोगों इसे लेकर कुछ विशेष करते नहीं दिखे. तो क्या हमारे हुक्मरान ऐसे ही किसी हादसे की बाट जोह रहे थे?

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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