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समाजवादी दंगल में तो 'बापू' हानिकारक निकले !

    • बालकृष्ण
    • Updated: 17 जनवरी, 2017 01:22 PM
  • 17 जनवरी, 2017 01:22 PM
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पहलवानी के बारे में कहा जाता है कि मुकाबला अगर बराबरी का हो तो नए पहलवान के जीतने की संभावना हमेशा ज्यादा होती है. कारण ये कि उसके दांव पेंच सभी को पता होते हैं. शायद यही वजह रही कि मुलायम राजनीतिक दंगल हार गए.

आमिर खान की मशहूर फिल्म 'दंगल' में एक बड़ा ही मार्मिक दृश्य है जिसे भूल पाना मुश्किल है. महावीर फोगाट बने आमिर खान का बेटी गीता से अहं का टकराव हो जाता है. महावीर को लगता है कि गीता अपने नए कोच से इस कदर प्रभावित हो गई हैं कि उनकी सिखाई हुई बातें गीता को अब बेकार और पुराने ज़माने की लगने लगी हैं. महावीर को इस बात का गुमान था कि जिस गीता को उन्होंने बचपन से पाल पोस कर, पहलवानी के दांव सिखाकर, अखाड़े के लिए तैयार किया वो उनकी हर बात को पत्थर की लकीर मानेगी. लेकिन दिल में पिता के लिए इज्जत होने के बावजूद गीता इसके लिए तैयार नहीं थी. महावीर को लगा कि इससे ज्यादा बदतमीजी भला और क्या हो सकती है कि गीता पहलवानी के दांव के बारे में उन्हीं से बहस करने लगे!

अहं का टकराव इस कदर बढ़ जाता है कि महावीर अपनी बेटी को अखाड़े में उतरने की चुनौती देते हैं. दोनों के बीच रोमांचक मुकाबला होता है. लेकिन अंत में महावीर अपनी बेटी से हार जाते हैं. अपनी हार से सन्न महावीर अखाड़े में चुपचाप खड़े अपनी आंखो में आ रहे आंसू को मुश्किल से रोकने की कोशिश करते हैं. तभी उनकी छोटी बेटी बबीता अपनी बड़ी बहन से जाकर कहती है - "वो पहलवान बुरे नहीं हैं, बस उम्र हो गई है".

 मुलायम नतीजे से पहले ये समझ चुके थे कि अब वो राजनीतिक दंगल हार चुके हैं

सोमवार की दोपहर समाजवादी पार्टी के दफ्तर में खड़े, हारे हुए और हताश मुलायम सिंह, उसी महावीर फोगाट की तरह लग रहे थे. तब तक चुनाव आयोग का फैसला आया भी नहीं था, लेकिन उन्हें अहसास हो गया था कि बाजी हाथ से निकल चुकी है. धरती पुत्र कहे जाने वाले मुलायम की ये दशा देख कर कई कार्यकर्ता रो रहे थे. मुलायम की आंखों में बस आंसू...

आमिर खान की मशहूर फिल्म 'दंगल' में एक बड़ा ही मार्मिक दृश्य है जिसे भूल पाना मुश्किल है. महावीर फोगाट बने आमिर खान का बेटी गीता से अहं का टकराव हो जाता है. महावीर को लगता है कि गीता अपने नए कोच से इस कदर प्रभावित हो गई हैं कि उनकी सिखाई हुई बातें गीता को अब बेकार और पुराने ज़माने की लगने लगी हैं. महावीर को इस बात का गुमान था कि जिस गीता को उन्होंने बचपन से पाल पोस कर, पहलवानी के दांव सिखाकर, अखाड़े के लिए तैयार किया वो उनकी हर बात को पत्थर की लकीर मानेगी. लेकिन दिल में पिता के लिए इज्जत होने के बावजूद गीता इसके लिए तैयार नहीं थी. महावीर को लगा कि इससे ज्यादा बदतमीजी भला और क्या हो सकती है कि गीता पहलवानी के दांव के बारे में उन्हीं से बहस करने लगे!

अहं का टकराव इस कदर बढ़ जाता है कि महावीर अपनी बेटी को अखाड़े में उतरने की चुनौती देते हैं. दोनों के बीच रोमांचक मुकाबला होता है. लेकिन अंत में महावीर अपनी बेटी से हार जाते हैं. अपनी हार से सन्न महावीर अखाड़े में चुपचाप खड़े अपनी आंखो में आ रहे आंसू को मुश्किल से रोकने की कोशिश करते हैं. तभी उनकी छोटी बेटी बबीता अपनी बड़ी बहन से जाकर कहती है - "वो पहलवान बुरे नहीं हैं, बस उम्र हो गई है".

 मुलायम नतीजे से पहले ये समझ चुके थे कि अब वो राजनीतिक दंगल हार चुके हैं

सोमवार की दोपहर समाजवादी पार्टी के दफ्तर में खड़े, हारे हुए और हताश मुलायम सिंह, उसी महावीर फोगाट की तरह लग रहे थे. तब तक चुनाव आयोग का फैसला आया भी नहीं था, लेकिन उन्हें अहसास हो गया था कि बाजी हाथ से निकल चुकी है. धरती पुत्र कहे जाने वाले मुलायम की ये दशा देख कर कई कार्यकर्ता रो रहे थे. मुलायम की आंखों में बस आंसू नहीं आया पर दिल का दर्द एकदम छलक आया. उन्हें भी लगता था कि अखिलेश यादव अपने नए कोच रामगोपाल के इस कदर दीवाने हो गए हैं कि उनकी नहीं सुन रहे हैं. उन्हें भी गुमान था कि जिस अखिलेश यादव को उन्होंने बचपन से लेकर आज तक सियासत के सारे दांव-पेंच सिखाए वो उनकी बात काट ही नहीं सकता. सबक सिखाने के लिए उन्होंने भी अखिलेश को अखाड़े में चुनौती तो दे दी, लेकिन अब चित्त होकर किनारे पड़े हैं. अखाड़े की धूल चाट रहे मुलायम सिंह यादव समाजवादी पार्टी दफ्तर के बाहर नारों की आवाज सुनकर हैरान हैं. इन नारों के बोल तो कुछ बदले हुए हैं! जिंदगी भर उन्होंने सुना था - "जिसका जलवा कायम है, उसका नाम मुलायम है". अब आवाज़ें आ रही है - "जिसका जलवा कायम है, उसका बाप मुलायम है".

पहलवानी में लंबे चौड़े कद का बहुत महत्व होता है. लेकिन मुलायम की खासियत यह थी कि वो छोटे से कद के होने के बावजूद अपने से लंबे चौड़े पहलवानों को धराशाई कर देते थे. पहलवानी के अखाड़े से सियासत की रिंग में आने के पर भी मुलायम सिंह यादव का ये हुनर बरकरार रहा.

ये भी पढ़ें- अखिलेश को सर्वेसर्वा बनाने की ये है 'मुलायम' रणनीति!

चौधरी चरण सिंह उनके बारे में कहते थे कि मुलायम छोटे कद के बड़े नेता हैं. लेकिन मुलायम को शायद यह पसंद ही नहीं था कि कोई उन्हें छोटे कद का कहे. चरण सिंह ने उन्हें उत्तर प्रदेश की राजनीति में जड़ जमाने में काफी मदद की थी. लेकिन उन्होंने चौधरी चरण सिंह की ही राजनीतिक विरासत पर कब्जा कर लिया और उनके बेटे अजीत सिंह को किनारे धकेल दिया.

राजनीतिक हैसियत के हिसाब से चन्द्रशेखर, पी सिंह, सोनिया गांधी, ममता बनर्जी, यूपीए - 1 के समय प्रकाश करात और  लालू यादव - सब के सब कद्दावर थे. लेकिन छोटे से मुलायम सिंह ने ऐसे बड़े-बड़े दांव चले कि ये सब अपने-अपने समय चारों खाने चित हो गए थे. सबको छकाते- गिराते हुए मुलायम सिंह यादव 25 सालों तक अपनी साइकल तेजी से भगाते रहे.  मुलायम सिंह को लगने लगा कि वो सियासत की दंगल के सबसे शातिर पहलवान हैं.

लगता है कि पहलवानी के शौकीन होने के बावजूद मुलायम सिंह यादव ने दंगल फिल्म नहीं देखी. पहलवानी के बारे में कहा जाता है कि मुकाबला अगर बराबरी का हो तो नए पहलवान के जीतने की संभावना हमेशा ज्यादा होती है. उसकी वजह यह है पुराने शातिर पहलवान के दांव-पेंच समय के साथ लोग समझ जाते हैं. दंगल फिल्म में अपनी बेटी को मुकाबले के लिए तैयार कराते समय महावीर फोगाट गीता को नुस्खा बताते हैं कि जिन मुकाबलों में वो हारी है उसकी सीडी बनाकर उसे ध्यान से देखे. समझ जाएगी कि वो कहाँ चूक जाती है और दूसरा पहलवान गलती कब करता है. लेकिन मुलायम के दांव समझने के लिए बेटे अखिलेश को सीडी देखने की जरूरत नहीं थी. वह नए पहलवान जरुर थे लेकिन अनाड़ी नहीं.

महावीर फोगाट ने अपनी पूरी जान इस बात में लगाई थी कि बेटी जीते. मगर मुलायम सिंह यादव गुरु की भूमिका में होने के बजाय, बेटे के खिलाफ खुद उसे हराने अखाड़े में कूद गए. नतीजा सामने है.

हर कोई मानेगा कि पहलवान तो मुलायम भी बुरे नहीं थे. न अखाड़े की कुश्ती में, न सियासत के दंगल में. लेकिन उन्हें कौन समझाए कि दंगल में उम्र भी कोई चीज होती है!  मुलायम ने जिंदगी भर दुनिया को जो समझाया, अब बेटे ने उन्हें समझा दिया है. नए और छोटे पहलवान को हमेशा कच्चा और कमजो़र समझने की गलती मत करो बापू ! ये तो सेहत के लिए हानिकारक है.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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