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मुलायम की ‘अमर’ गाथा, राजनीति में भाईचारा!

    • स्वाति अर्जुन
    • Updated: 18 मई, 2016 07:31 PM
  • 18 मई, 2016 07:31 PM
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यूपी चुनावों के मद्देनजर मुलायम ने अमर सिंह और बेनी प्रसाद वर्मा को लाकर सिर्फ अगड़ी और पिछड़ी जाति के मतदाताओं को अपनी तरफ करने का ट्रंप कार्ड खेला है बल्कि आजम को भी कड़ा संदेश दिया है.

पिछले साल 22 नवंबर को जब समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव के जन्मदिन के मौके पर उन्हें सबसे पहले केक खिलाते हुए अमर सिंह की तस्वीरें सामने आयीं, तभी ये लगभग तय हो गया था कि वे नेता जी के दिल के रास्ते जल्द ही पार्टी में वापसी करेंगे, इंतजार था तो सिर्फ सही समय और मौके का.

उसी समारोह में अमर सिंह और मुलायम सिंह यादव ने कैमरे के सामने कृष्ण और अर्जुन के समान हाथ में चक्र और तीर-धनुष लेकर मीडिया के सामने फोटो भी खिंचवाई थी, जिससे ये भी साफ़ हो गया था कि पार्टी में आने के बाद दोनों की भूमिका पौराणिक कथाओं के किन महानायकों पर आधारित होगी.

...और आगामी उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले पार्टी में वापसी से अच्छा और सटीक समय भला क्या हो सकता है. अमर सिंह के साथ कांग्रेस सरकार में मंत्री रह चुके और समाजवादी पार्टी के पूर्व नेता बेनी प्रसाद वर्मा की भी पार्टी में वापसी हुई है. इन दोनों को पार्टी ने राज्यसभा का उम्मीदवार बनाया है.

लेकिन इस वापसी ने एक साथ कई पुराने और नए समीकरणों को लेकर हलचल मचा दी है. छह साल पहले जब अमर सिंह को पार्टी से बाहर किया गया था तब इसकी वजह उनकी आजम खान के साथ अनबन थी, पार्टी से निकाले जाने के बाद अमर सिंह कमोबेश हाशिये पर चले गए. न उनकी अपनी पार्टी लोकमंच चल पायी न ही अजीत सिंह की पार्टी लोकदल में लोकमंच का विलय करने पर ही उनका कुछ फायदा हुआ.

मुलायम के दिल में रहने वाले अमर सिंह अब उनकी पार्टी में भी आ रहे हैं

दूसरी तरफ़ आज़म खान का कद पार्टी में लगातार बढ़ता रहा और गाहे-बगाहे वे अपने तेवर और बयानों के कारण सुर्खियां भी बटोरते रहे. जबकि एक अवसरवादी नेता की पहचान बना चुके...

पिछले साल 22 नवंबर को जब समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव के जन्मदिन के मौके पर उन्हें सबसे पहले केक खिलाते हुए अमर सिंह की तस्वीरें सामने आयीं, तभी ये लगभग तय हो गया था कि वे नेता जी के दिल के रास्ते जल्द ही पार्टी में वापसी करेंगे, इंतजार था तो सिर्फ सही समय और मौके का.

उसी समारोह में अमर सिंह और मुलायम सिंह यादव ने कैमरे के सामने कृष्ण और अर्जुन के समान हाथ में चक्र और तीर-धनुष लेकर मीडिया के सामने फोटो भी खिंचवाई थी, जिससे ये भी साफ़ हो गया था कि पार्टी में आने के बाद दोनों की भूमिका पौराणिक कथाओं के किन महानायकों पर आधारित होगी.

...और आगामी उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले पार्टी में वापसी से अच्छा और सटीक समय भला क्या हो सकता है. अमर सिंह के साथ कांग्रेस सरकार में मंत्री रह चुके और समाजवादी पार्टी के पूर्व नेता बेनी प्रसाद वर्मा की भी पार्टी में वापसी हुई है. इन दोनों को पार्टी ने राज्यसभा का उम्मीदवार बनाया है.

लेकिन इस वापसी ने एक साथ कई पुराने और नए समीकरणों को लेकर हलचल मचा दी है. छह साल पहले जब अमर सिंह को पार्टी से बाहर किया गया था तब इसकी वजह उनकी आजम खान के साथ अनबन थी, पार्टी से निकाले जाने के बाद अमर सिंह कमोबेश हाशिये पर चले गए. न उनकी अपनी पार्टी लोकमंच चल पायी न ही अजीत सिंह की पार्टी लोकदल में लोकमंच का विलय करने पर ही उनका कुछ फायदा हुआ.

मुलायम के दिल में रहने वाले अमर सिंह अब उनकी पार्टी में भी आ रहे हैं

दूसरी तरफ़ आज़म खान का कद पार्टी में लगातार बढ़ता रहा और गाहे-बगाहे वे अपने तेवर और बयानों के कारण सुर्खियां भी बटोरते रहे. जबकि एक अवसरवादी नेता की पहचान बना चुके बेनी प्रसाद वर्मा केंद्र में मंत्री भी रहे लेकिन कहा जाता है कि वे कभी पूरी तरह कांग्रेसी नहीं बन पाए. मुलायम से दूरी के दौरान वे उन्हें आरएसएस का एजेंट तक कह चुके थे लेकिन अब वे कहते हैं कि वे और मुलायम बड़े और छोटे भाई हैं.

ऐसा माना जा रहा है कि अमर सिंह की वापसी से आजम खान और राम गोपाल यादव खुश नहीं है लेकिन वे कुछ कर सकने की हालत में भी नहीं है. रामगोपाल ने किसी नाराजगी से इंकार किया और आजम ने इसे मालिक का फैसला करार दिया. इन सबके बीच मुलायम ने जहां अपने दो पुराने दोस्तों को गले लगाया है वहीं उन्होंने एक बड़ा दांव खेलते हुए विधानसभा चुनावों के दौरान अगड़ी और पिछड़ी जाति के वोट को साधने का काम किया है. अमर सिंह जहां बीजेपी के राजनाथ सिंह का जवाब हो सकते हैं तो वहीं बेनी प्रसाद वर्मा जेडीयू की उन कोशिशों को नाकाम कर सकते हैं जहां नीतीश की पार्टी कुर्मी या कोरी जाति की वोट पर सेंध मारने की तैयारी में थी.

उत्तर प्रदेश के चुनावों में जाति सबसे बड़ा फैक्टर है और यहां के छोटे-छोटे चुनाव में भी जाति सबसे अहम रोल निभाती है. मुलायम ने समय की नजाकत समझते हुए न सिर्फ अगड़ी और पिछड़ी जाति के मतदाताओं को अपनी तरफ करने का ट्रंप कार्ड खेला है बल्कि दो पुराने दोस्तों को साथ लाकर उन्होंने आजम खान को भी एक कड़ा संदेश दिया है. 

चुनावों में अभी वक्त लेकिन उसकी आहट साफ़ सुनाई दे रही है, आने वाले दिनों में सभी राजनैतिक दल किस तरह पुराने समीकरणों को डंप और नए समीकरणों को मंच पर लेकर आते हैं ये देखना बेहद दिलचस्प होगा.

तब तक के लिए यही कहा जा सकता है कि ये दुनिया एक रंगमंच है, जहां हर कोई एक लिखी हुई स्क्रिप्ट पर सिर्फ़ अभिनय कर रहा है.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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