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केंद्रीय विद्यालय पिटाई कांडः आखिर वे दलितों से चिढ़े हुए क्यों हैं

    • सरोज कुमार
    • Updated: 20 अक्टूबर, 2016 10:30 PM
  • 20 अक्टूबर, 2016 10:30 PM
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मुजफ्फरपुर के केंद्रीय विद्यालय के वायरल वीडियो में बुरी तरह मारपीट के शिकार छात्र ने आरोप लगाया है कि उसके नंबर अच्छे आते थे, इस वजह से आरोपी छात्र उससे चिढ़ते थे.

मुजफ्फरपुर के केंद्रीय विद्यालय में एक 16 वर्षीय छात्र का बुरी तरह पिटे जाने का वायरल वीडियो तो आपने देख ही लिया होगा. अब पीड़ित छात्र का पत्र भी वायरल हो चुका है. क्या आपने उसे पढ़ा?

वह लिखता है, “वह (आरोपी) कक्षा में पीछे बैठता है, जहां आसानी से नकल हो सकती है. मैं हमेशा आगे की बेंच पर बैठता हूं. नकल करने के बावजूद उसके नंबर बहुत खराब आते हैं, जबकि मेरे हमेशा अच्छे नंबर आते हैं. इसी बात से उसे मेरे साथ नाराजगी है. और जब उसे पता चला कि मैं दलित हूं तो उसने मुझे प्रताड़ित करना शुरू कर दिया.”

पत्र के मजमून से यही लग रहा है कि अब गैर-दलित हजम नहीं कर पा रहे हैं कि आखिर तमाम अभावों और संघर्ष के बावजूद दलित आगे कैसे बढ़ रहे हैं! दलितों के उत्पीड़न की हालिया वजहों में यह सबसे बड़ी वजह बनकर उभरी है.

इसे भी पढ़ें: जाति की राजनीति के सियासी गिद्ध!

आंकड़े भी साफ जाहिर कर रहे हैं कि अवसर मिलने के साथ ही दलित बाकियों से काफी बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं. साक्षरता दर को ही ले लीजिए. भारतीय जनगणना के मुताबिक सन् 1961 में दलितों की साक्षरता दर जहां 10.27 ही थी, वह 544 फीसदी बढ़कर 2011 में 66.10 फीसदी हो गई, जबकि देश की कुल साक्षरता दर में महज 161 फीसदी की वृद्धि हुई है. यानी स्टार्टिंग प्वाइंट पर दलितों को पढ़ने से रोका-दबाया गया पर मौका मिलते ही वे रफ्तार पकड़ चुके हैं. वहीं 2001 के मुकाबले 2011 में दलितों की साक्षरता दर में 90 फीसदी वृद्धि हुई है तो देश के कुल साक्षरता में महज 14 फीसदी.

मुजफ्फरपुर के केंद्रीय विद्यालय में एक 16 वर्षीय छात्र का बुरी तरह पिटे जाने का वायरल वीडियो तो आपने देख ही लिया होगा. अब पीड़ित छात्र का पत्र भी वायरल हो चुका है. क्या आपने उसे पढ़ा?

वह लिखता है, “वह (आरोपी) कक्षा में पीछे बैठता है, जहां आसानी से नकल हो सकती है. मैं हमेशा आगे की बेंच पर बैठता हूं. नकल करने के बावजूद उसके नंबर बहुत खराब आते हैं, जबकि मेरे हमेशा अच्छे नंबर आते हैं. इसी बात से उसे मेरे साथ नाराजगी है. और जब उसे पता चला कि मैं दलित हूं तो उसने मुझे प्रताड़ित करना शुरू कर दिया.”

पत्र के मजमून से यही लग रहा है कि अब गैर-दलित हजम नहीं कर पा रहे हैं कि आखिर तमाम अभावों और संघर्ष के बावजूद दलित आगे कैसे बढ़ रहे हैं! दलितों के उत्पीड़न की हालिया वजहों में यह सबसे बड़ी वजह बनकर उभरी है.

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आंकड़े भी साफ जाहिर कर रहे हैं कि अवसर मिलने के साथ ही दलित बाकियों से काफी बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं. साक्षरता दर को ही ले लीजिए. भारतीय जनगणना के मुताबिक सन् 1961 में दलितों की साक्षरता दर जहां 10.27 ही थी, वह 544 फीसदी बढ़कर 2011 में 66.10 फीसदी हो गई, जबकि देश की कुल साक्षरता दर में महज 161 फीसदी की वृद्धि हुई है. यानी स्टार्टिंग प्वाइंट पर दलितों को पढ़ने से रोका-दबाया गया पर मौका मिलते ही वे रफ्तार पकड़ चुके हैं. वहीं 2001 के मुकाबले 2011 में दलितों की साक्षरता दर में 90 फीसदी वृद्धि हुई है तो देश के कुल साक्षरता में महज 14 फीसदी.

 देश में पढ़ और बढ़ रहे हैं दलित

इसी तरह सांख्यिकी एवं कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय के मुताबिक 2013-14 में दलितों का प्राइमरी, अपर प्राइमरी और सेकंडरी स्कूलों में दाखिले का दर देश के कुल दर से क्रमशः 11, 4 और 3 फीसदी ज्यादा रहा है.

इसके अलावा जनगणना 2011 के मुताबिक कॉलेज में पढ़ने वाले दलित युवाओं में 187 फीसदी वृद्धि हुई है जबकि बाकी जातियों में महज 119 फीसदी. इससे जाहिर है कि दलित पढ़ाई के मामले में बाकियों को पीछे छोड़ चुके हैं.

इसे भी पढ़ें: अति पिछड़ों और दलितों के सहारे बिहार में बीजेपी का मिशन-185

इसके विपरीत योजना आयोग के मुताबिक 2011-12 में ग्रामीण क्षेत्र में दलितों की 32 फीसदी और शहरी में 22 फीसदी आबादी गरीबी रेखा से नीचे थी, जबकि सवर्णों की क्रमशः 16 और 8 फीसदी आबादी ही. दलितों की आय भी बाकियों से काफी कम थी. जाहिर है, दलित अभाव और संघर्ष से जूझते हुए आगे बढ़ रहे हैं.

वहीं एनसीआरबी के मुताबिक साल 2014 में 2013 के मुकाबले दलितों पर अत्याचार के अपराध 19 फीसदी बढ़ गए थे. हरियाणा जैसे राज्य में तो यह 68 फीसदी बढ़ गया था. जाहिर है, दलित अभावों में जूझते आगे बढ़ रहे हैं तो उन पर हमले भी लगातार जारी हैं.

अब केंद्रीय विद्यालय कांड के दो आरोपी छात्रों को निलंबित और गिरफ्तार किया जा चुका है. इस कांड के आरोपियों पर ताकत की हनक सिर चढ़कर बोल रही थी क्योंकि आरोपियों के पिता स्थानीय तौर पर ताकतवर अपराधी हैं.

लेकिन सवाल यही है कि क्या हम इस तरह की घटनाओं की जड़ को समझने और उसे दूर करने की जहमत उठाएंगे. तो महोदय! दलितों से जलना-चिढ़ना छोड़िए और खुद में झांकिए कि आप कहां फिसल रहे हैं.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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