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भाजपा के पूर्व मुख्यमंत्री नहीं छोड़ पा रहे सरकारी बंगले का मोह

    • अमित अरोड़ा
    • Updated: 31 जुलाई, 2018 11:43 AM
  • 31 जुलाई, 2018 11:43 AM
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भाजपा के पूर्व मुख्यमंत्रियों ने अपने सरकारी बंगलों में कायम रहने की इच्छा जताई जिसे शिवराज ने खुशी-खुशी पूरा कर दिया. परिणाम यह निकला की तीनों भाजपा नेताओं को बंगले की सुविधा मिलती रहेगी पर कांग्रेस के दिग्विजय सिंह को इस सुविधा से हाथ धोना पड़ा.

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपने विशेषाधिकार का प्रयोग करते हुए राज्य के चार में से तीन पूर्व मुख्यमंत्रियों को अपने सरकारी बंगलों में बने रहने की अनुमति दे दी है. उच्चतम न्यायालय के आदेश के अनुसार राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह, उमा भारती, कैलाश जोशी और बाबूलाल गौर को अपने सरकारी बंगले खाली करने थे. भाजपा के पूर्व मुख्यमंत्रियों ने अपने सरकारी बंगलों में कायम रहने की इच्छा जताई जिसे शिवराज ने खुशी-खुशी पूरा कर दिया. परिणाम यह निकला की तीनों भाजपा नेताओं को बंगले की सुविधा मिलती रहेगी पर कांग्रेस के दिग्विजय सिंह को इस सुविधा से हाथ धोना पड़ा.

बंगले का मोह नहीं छोड़ पा रहे ये पूर्व मुख्यमंत्री

धीरे-धीरे भारत का आम नागरिक अपने अधिकारों के प्रति सजग होता जा रहा है. उसने राजनेताओं के हर कदम को बड़ी बारीकी से देखना शुरू कर दिया है. पूर्व की तरह अब नेताओं की जमात, जनता को इतनी आसानी से मूर्ख नहीं बना सकती है. जनता समझने लगी है कि उनके लिए क्या सही और क्या गलत. अपने फायदे और नुकसान का अंतर उसे ज्ञात होने लगा है. नेताओं की जवाबदेही भी दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है. अब लोग अपने जनप्रतिनिधियों से जनता से जुड़े प्रश्न बेझिझक होकर पूछते है.  

एक तरफ जहां नागरिकों में सजगता बढ़ती जा रही है तो दूसरी ओर देश की न्यायपालिका भी राजनेताओं की फिजूलखर्ची पर सख़्त होती जा रही है. वर्तमान स्थिति में भाजपा के पूर्व मुख्यमंत्रियों का सरकारी बंगला न खाली करना अवश्य ही मध्य प्रदेश की जनता की आंखों में खटकेगा. विदेशों में वहां के प्रधानमंत्री, वरिष्ठ मंत्रीगण सार्वजनिक परिवाहन का प्रयोग करते हुए प्रायः  दिखते हैं. अपने निजी खर्चों को वहां के जन-प्रतिनिधि, सरकार के खाते में नहीं डालते हैं. इसके विपरीत भारत के...

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपने विशेषाधिकार का प्रयोग करते हुए राज्य के चार में से तीन पूर्व मुख्यमंत्रियों को अपने सरकारी बंगलों में बने रहने की अनुमति दे दी है. उच्चतम न्यायालय के आदेश के अनुसार राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह, उमा भारती, कैलाश जोशी और बाबूलाल गौर को अपने सरकारी बंगले खाली करने थे. भाजपा के पूर्व मुख्यमंत्रियों ने अपने सरकारी बंगलों में कायम रहने की इच्छा जताई जिसे शिवराज ने खुशी-खुशी पूरा कर दिया. परिणाम यह निकला की तीनों भाजपा नेताओं को बंगले की सुविधा मिलती रहेगी पर कांग्रेस के दिग्विजय सिंह को इस सुविधा से हाथ धोना पड़ा.

बंगले का मोह नहीं छोड़ पा रहे ये पूर्व मुख्यमंत्री

धीरे-धीरे भारत का आम नागरिक अपने अधिकारों के प्रति सजग होता जा रहा है. उसने राजनेताओं के हर कदम को बड़ी बारीकी से देखना शुरू कर दिया है. पूर्व की तरह अब नेताओं की जमात, जनता को इतनी आसानी से मूर्ख नहीं बना सकती है. जनता समझने लगी है कि उनके लिए क्या सही और क्या गलत. अपने फायदे और नुकसान का अंतर उसे ज्ञात होने लगा है. नेताओं की जवाबदेही भी दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है. अब लोग अपने जनप्रतिनिधियों से जनता से जुड़े प्रश्न बेझिझक होकर पूछते है.  

एक तरफ जहां नागरिकों में सजगता बढ़ती जा रही है तो दूसरी ओर देश की न्यायपालिका भी राजनेताओं की फिजूलखर्ची पर सख़्त होती जा रही है. वर्तमान स्थिति में भाजपा के पूर्व मुख्यमंत्रियों का सरकारी बंगला न खाली करना अवश्य ही मध्य प्रदेश की जनता की आंखों में खटकेगा. विदेशों में वहां के प्रधानमंत्री, वरिष्ठ मंत्रीगण सार्वजनिक परिवाहन का प्रयोग करते हुए प्रायः  दिखते हैं. अपने निजी खर्चों को वहां के जन-प्रतिनिधि, सरकार के खाते में नहीं डालते हैं. इसके विपरीत भारत के जन-प्रतिनिधि आज के समय भी स्वयं को किसी राजा रजवाड़े से कम नहीं मानते. शायद यही कारण है की भाजपा के पूर्व मुख्यमंत्री अपना बंगला मोह नहीं छोड़ पा रहे हैं.

इन पूर्व मुख्यमंत्रियों को याद होना चाहिए था कि बंगला न खाली करने के मुद्दे पर उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की कितनी बेइज्जती हुई थी. हाल की इस घटना से भी इन्होंने कोई सीख लेना सही नहीं समझा. शायद उन्हें यह उम्मीद होगी कि वह चुप-चाप अपने-अपने बंगलों में बने रहेंगे और किसी को कुछ पता नहीं चलेगा. यह सोच इन नेताओं की लिए गलत साबित होने वाली है. आज सोशल मीडिया और मोबाइल क्रांति के समय कोई बात किसी से छुप नहीं सकती है. नैतिकता न सही मध्य प्रदेश के आगामी विधान सभा चुनावों को ध्यान में रखकर ही इन नेताओं को थोड़ा संयम दिखाना चाहिए था. जब विधानसभा चुनाव में यह बंगले बहस के विषय बनेगें तभी इन पूर्व मुख्यमंत्रियों को समझ आएगी.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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