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राहुल गांधी के लिए खतरनाक हो सकता है 'सॉफ्ट हिंदुत्व' से आगे का रास्ता

    • आईचौक
    • Updated: 23 दिसम्बर, 2017 06:41 PM
  • 23 दिसम्बर, 2017 06:41 PM
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कांग्रेस हर दम धर्मनिरपेक्षता की दुहाई देती रही है, लेकिन बीजेपी से टक्कर लेने के लिए अब वो अपना हिंदू एजेंडा भी आगे बढ़ा रही है. क्या राहुल गांधी को पता है नहीं है कि 'सॉफ्ट हिंदुत्व' से आगे का रास्ता कहां जाता है?

कांग्रेस ने हिंदुत्व का यूपी चुनाव में परीक्षण किया था. गुजरात चुनाव में कांग्रेस ने हिंदुत्व के कुछ हल्के हथियार उतारे भी - और उसे उसका अच्छा रिस्पॉन्स भी मिला. अब आगे कहां तक बढ़ना है कांग्रेस को सोच समझ कर फैसला लेना होगा.

यूपी चुनाव के दौरान खाट सभा शुरू करते वक्त भी राहुल गांधी वहां के मंदिर में दर्शन करने गये थे. बाद में हनुमान मंदिर गये तो अरसे बाद गांधी परिवार के किसी के अयोध्या जाने को लेकर सुर्खियां भी बनीं. गुजरात में तो मंदिर मंदिर घूमते नजर आये - कुछ इस तरह कि नवसर्जन यात्रा के रास्ते में आने वाला कोई ऐसा प्रमुख मंदिर नहीं होगा जहां राहुल गांधी ने दर्शन नहीं किये हों.

जल्दबाजी क्यों?

अक्सर देखने को मिलता है जब किसी को नौकरी मिल जाती है, या शादी होती है तो मंदिर-मंदिर दर्शन करने जाते हैं. कई बार तो किसी के लिए कोई और रिश्तेदार या परिवार के सदस्य मन्नत मांग लेते हैं - और बंदा घूम घूम उसे पूरा करता रहता है. भले ही उससे पहले वो कभी मंदिर न गया हो. राहुल गांधी के साथ ऐसा कुछ तो नहीं पता, हां, एक बात उन्होंने खुद बतायी थी कि वो गुजरात के लोगों की भलाई के लिए भगवान से प्रार्थना कर रहे हैं. ताजा दौरे में सबसे पहले राहुल गांधी सोमनाथ मंदिर पहुंचे. पिछली बार जब वो सोमनाथ मंदिर गये तो गैर-हिंदू रजिस्टर में नाम होने पर विवाद हो गया. बाद में कांग्रेस की ओर से सफाई आई कि पार्टी की ओर से मंदिर के रजिस्टर में उसे दर्ज नहीं किया गया था.

मंदिर में शिवभक्त!

बहरहाल, दोबारा कुछ वैसा न हो इसलिए राहुल गांधी बिलकुल शिव भक्त की तरह दर्शन करने मंदिर पहुंचे. राहुल के कंधे पर पूजा की थाल देख कर कुछ लोगों को तो उनमें बाहुबली का किरदार भी नजर आया.

कांग्रेस ने हिंदुत्व का यूपी चुनाव में परीक्षण किया था. गुजरात चुनाव में कांग्रेस ने हिंदुत्व के कुछ हल्के हथियार उतारे भी - और उसे उसका अच्छा रिस्पॉन्स भी मिला. अब आगे कहां तक बढ़ना है कांग्रेस को सोच समझ कर फैसला लेना होगा.

यूपी चुनाव के दौरान खाट सभा शुरू करते वक्त भी राहुल गांधी वहां के मंदिर में दर्शन करने गये थे. बाद में हनुमान मंदिर गये तो अरसे बाद गांधी परिवार के किसी के अयोध्या जाने को लेकर सुर्खियां भी बनीं. गुजरात में तो मंदिर मंदिर घूमते नजर आये - कुछ इस तरह कि नवसर्जन यात्रा के रास्ते में आने वाला कोई ऐसा प्रमुख मंदिर नहीं होगा जहां राहुल गांधी ने दर्शन नहीं किये हों.

जल्दबाजी क्यों?

अक्सर देखने को मिलता है जब किसी को नौकरी मिल जाती है, या शादी होती है तो मंदिर-मंदिर दर्शन करने जाते हैं. कई बार तो किसी के लिए कोई और रिश्तेदार या परिवार के सदस्य मन्नत मांग लेते हैं - और बंदा घूम घूम उसे पूरा करता रहता है. भले ही उससे पहले वो कभी मंदिर न गया हो. राहुल गांधी के साथ ऐसा कुछ तो नहीं पता, हां, एक बात उन्होंने खुद बतायी थी कि वो गुजरात के लोगों की भलाई के लिए भगवान से प्रार्थना कर रहे हैं. ताजा दौरे में सबसे पहले राहुल गांधी सोमनाथ मंदिर पहुंचे. पिछली बार जब वो सोमनाथ मंदिर गये तो गैर-हिंदू रजिस्टर में नाम होने पर विवाद हो गया. बाद में कांग्रेस की ओर से सफाई आई कि पार्टी की ओर से मंदिर के रजिस्टर में उसे दर्ज नहीं किया गया था.

मंदिर में शिवभक्त!

बहरहाल, दोबारा कुछ वैसा न हो इसलिए राहुल गांधी बिलकुल शिव भक्त की तरह दर्शन करने मंदिर पहुंचे. राहुल के कंधे पर पूजा की थाल देख कर कुछ लोगों को तो उनमें बाहुबली का किरदार भी नजर आया.

सोमनाथ विवाद से पहले राहुल गांधी के मंदिर में बैठने के तरीके पर भी सवाल उठे थे. एक चुनावी रैली में तो यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने कहा राहुल गांधी मंदिर में ऐसे बैठते हैं जैसे नमाज पढ़ने बैठे हों. योगी ने एक मंदिर पुजारी के टोकने का वाकया भी याद दिलाया. विरोधियों ने जब राहुल गांधी के क्रिश्चियन या एंटी हिंदू का चोला ओढ़ाने की कोशिश की तो रणदीप सूरजेवाला को बताना पड़ा कि वो तो जनेऊधारी भी हैं.

आगे 'कट्टर हिंदुत्व' मोड़ है!

ये सही है कि कांग्रेस के कुछ सीनियर नेता मानने लगे थे कि 2014 में कांग्रेस की बुरी हाल उसकी एंटी हिंदू छवि के कारण हुई, लेकिन क्या उससे उबरने का बस यही तरीका बचा है. कांग्रेस की एंटनी समिति की भी राय तकरीबन यही रही. मान लेते हैं कि लोहा ही लोहे को काटता है, लेकिन जिंदगी का हर फॉर्मूला राजनीति में लागू हो जरूरी तो नहीं. ये सही है कि राहुल के मंदिर दौरे से कांग्रेस को फायदा भी जबरदस्त हुआ है. चुनाव प्रचार के तहत राहुल गांधी ने गुजरात में 27 मंदिरों का दौरा किया था और उनके इलाके में आने वाली 15 सीटें कांग्रेस जीतने में भी कामयाब रही. सोमनाथ भी इन्हीं में से एक है. इतने सब के बावजूद राहुल गांधी अब भी ऐसे दोराहे पर खड़े हैं जहां बीजेपी और असदुद्दीन ओवैसी अलग अलग सवाल पूछ रहे हैं. बीजेपी अयोध्या और राम मंदिर के मसले पर राहुल गांधी का स्टैंड पूछ रही है तो ओवैसी का सवाल है वो मस्जिदों और दरगाहों पर क्यों नहीं जाते? अब सवाल पूछे जा रहे हैं तो जवाब भी देना ही होगा. ध्यान रहे बाकी कामों की तरह कहीं देर न हो जाये.

राहुल गांधी को हिंदुत्व से हटकर कांग्रेस को बीजेपी के वास्तविक विकल्प के तौर पर पेश करना होगा. जिनसे वोट मांगने जा रहे हैं उन्हें बताना होगा कि वो क्या देंगे? पांच साल में वो प्रदेश या देश को कहां तक ले जाएंगे? रोजगार को लेकर उनकी पॉलिसी क्या होगी और ऐसा क्या उपाय करेंगे कि लोगों को रोजगार मिल सके. किसानों की समस्या वो बड़े जोर शोर से उठाते हैं लेकिन ले देकर बात कर्जमाफी पर खत्म हो जाती है. अब सिर्फ कर्जमाफी नहीं उससे आगे की बात बतानी होगी. मोदी 2020 तक किसानों की आय दोगुनी करने की बात करते हैं. राहुल ने अभी तक ऐसी कोई साफ साफ तस्वीर नहीं पेश की है.

दरअसल, सॉफ्ट हिंदुत्व से आगे कट्टर हिंदुत्व ही आता है. कुछ लोगों की राय हो सकती है कि दोनों के बीच मध्यम हिंदुत्व का भी अस्तित्व होता है, लेकिन व्यवहार में वो बेअसर ही साबित होता है.

राहुल गांधी के साथ मुश्किल ये है कि अगर वो भी कट्टर हिंदुत्व की राह पर आगे बढ़ जाते हैं तो कांग्रेस की अपनी पहचान क्या रह जाएगी? चुनावी मैदान में सारे साम-दाम और समीकरणों से ऊपर है - विकल्प. लोग अगर मौजूदा शासन से ऊब जाते हैं फिर भी वोट डालने की बारी आती है तो उसी को देकर फारिग हो जाते हैं. उनके सामने सबसे बड़ा और एक ही सवाल होता है - विकल्प क्या है?

आखिर राहुल गांधी को अचानक प्रो-हिंदू दिखने की होड़ में क्यों शामिल होना पड़ रहा है? क्या राजनीति और चुनाव प्रचार में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नकल करते करते राहुल गांधी 'मंदिर वहीं बनाएंगे...' वाली भूमिका में तो नहीं आने की तैयारी करने लगे हैं. ध्यान रहे - आगे कट्टर हिंदुत्व मोड़ भी है!

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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