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मदर टेरेसा की सेवा और कुछ सवाल

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 24 फरवरी, 2015 09:22 PM
  • 24 फरवरी, 2015 09:22 PM
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मोहन भागवत ने बड़ी बात कह दी. सेवा यदि सोद्देश्य है तो उसका मूल्य कम हो जाता है. अच्छी बात है. बल्कि बहुत अच्छी बात है. निश्चित रूप से सेवा का मूल्य भी निर्धारित होना चाहिए.

मोहन भागवत ने बड़ी बात कह दी. "सेवा यदि सोद्देश्य है तो उसका मूल्य कम हो जाता है". अच्छी बात है. बल्कि बहुत अच्छी बात है. निश्चित रूप से सेवा का मूल्य भी निर्धारित होना चाहिए.
सवाल सेवा का है. सेवा के साथ मेवा सहज तौर पर जुड़ जाता है. सेवा क्या है? सेवा कर्म है. मेवा क्या है? मेवा फल है. कर्म करने से फल मिलता है, तो सेवा करने से मेवा भी मिलेगी. अगर सेवा करने पर मेवा मिले तो क्या करना चाहिए?  सेवा छोड़ देनी चाहिए. या हमें यूं ही सेवा करते रहना चाहिए. ऐसी सेवा कब तक की जा सकती है? क्या बगैर मेवा के सेवा में मोटिवेशन बना रह सकता है? सवाल तो ये भी वाजिब है.
सवाल मदर टेरेसा की सेवा पर उठा है. उनकी सेवा के पीछे के मकसद पर सवाल हुआ है. मदर टेरेसा ने खुद लिखा है, "वह 10 सितम्बर 1946 का दिन था जब मैं अपने वार्षिक अवकाश पर दार्जिलिंग जा रही थी. उसी समय मेरी अन्तरात्मा से आवाज़ उठी थी कि मुझे सब कुछ त्याग कर देना चाहिए और अपना जीवन गॉड एवं दरिद्र नारायण की सेवा में समर्पित कर देना चाहिए."
भागवत के सपोर्ट में मीनाक्षी लेखी सबूत भी खोज निकाला है. नवीन चावला की किताब पेश करते हुए लेखी कहती हैं, "मदर टेरेसा ने साक्षात्कार के दौरान कहा था कि कई लोग मुझे सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में भ्रमित करते हैं, मैं सामाजिक कार्यकर्ता नहीं हूं. मैं जीसस की सेवा में हूं - और मेरा काम ईसाइयत का विस्तार करना और लोगों को इससे जोड़ना है."  लगे हाथ लेखी साफ भी कर देती हैं कि जिस लेखक की किताब की वो बात कर रही हैं वो कोई और नहीं बल्कि वही शख्स हैं जिसे कांग्रेस का वफादार माना जाता है.
सेवा का मकसद क्या होना चाहिए? सेवा की मंजिल क्या हो? जब हम किसी की सेवा करते हैं तो उसे क्या मिलता है? हम जिसकी सेवा करते हैं उसे खुशी मिलती है. क्या उसकी खुशी से हमें भी खुशी मिलती है? जब हर क्रिया की प्रतिक्रिया होती है तो उसकी खुशी से हमे खुशी क्यों नहीं मिल सकती? तो क्या सेवा की मंजिल खुशी है? क्या खुशी के लिए हम सेवा नहीं कर सकते? बगैर मकसद के क्या मंजिल पाई जा सकती है?
क्या 'घर-वापसी' सेवा के दायरे में आता है? क्या 'घर-वापसी' बगैर मकसद की सेवा है? क्या 'लव-जिहाद' भी सेवा के दायरे में आता है? अगर ये सब...

मोहन भागवत ने बड़ी बात कह दी. "सेवा यदि सोद्देश्य है तो उसका मूल्य कम हो जाता है". अच्छी बात है. बल्कि बहुत अच्छी बात है. निश्चित रूप से सेवा का मूल्य भी निर्धारित होना चाहिए.
सवाल सेवा का है. सेवा के साथ मेवा सहज तौर पर जुड़ जाता है. सेवा क्या है? सेवा कर्म है. मेवा क्या है? मेवा फल है. कर्म करने से फल मिलता है, तो सेवा करने से मेवा भी मिलेगी. अगर सेवा करने पर मेवा मिले तो क्या करना चाहिए?  सेवा छोड़ देनी चाहिए. या हमें यूं ही सेवा करते रहना चाहिए. ऐसी सेवा कब तक की जा सकती है? क्या बगैर मेवा के सेवा में मोटिवेशन बना रह सकता है? सवाल तो ये भी वाजिब है.
सवाल मदर टेरेसा की सेवा पर उठा है. उनकी सेवा के पीछे के मकसद पर सवाल हुआ है. मदर टेरेसा ने खुद लिखा है, "वह 10 सितम्बर 1946 का दिन था जब मैं अपने वार्षिक अवकाश पर दार्जिलिंग जा रही थी. उसी समय मेरी अन्तरात्मा से आवाज़ उठी थी कि मुझे सब कुछ त्याग कर देना चाहिए और अपना जीवन गॉड एवं दरिद्र नारायण की सेवा में समर्पित कर देना चाहिए."
भागवत के सपोर्ट में मीनाक्षी लेखी सबूत भी खोज निकाला है. नवीन चावला की किताब पेश करते हुए लेखी कहती हैं, "मदर टेरेसा ने साक्षात्कार के दौरान कहा था कि कई लोग मुझे सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में भ्रमित करते हैं, मैं सामाजिक कार्यकर्ता नहीं हूं. मैं जीसस की सेवा में हूं - और मेरा काम ईसाइयत का विस्तार करना और लोगों को इससे जोड़ना है."  लगे हाथ लेखी साफ भी कर देती हैं कि जिस लेखक की किताब की वो बात कर रही हैं वो कोई और नहीं बल्कि वही शख्स हैं जिसे कांग्रेस का वफादार माना जाता है.
सेवा का मकसद क्या होना चाहिए? सेवा की मंजिल क्या हो? जब हम किसी की सेवा करते हैं तो उसे क्या मिलता है? हम जिसकी सेवा करते हैं उसे खुशी मिलती है. क्या उसकी खुशी से हमें भी खुशी मिलती है? जब हर क्रिया की प्रतिक्रिया होती है तो उसकी खुशी से हमे खुशी क्यों नहीं मिल सकती? तो क्या सेवा की मंजिल खुशी है? क्या खुशी के लिए हम सेवा नहीं कर सकते? बगैर मकसद के क्या मंजिल पाई जा सकती है?
क्या 'घर-वापसी' सेवा के दायरे में आता है? क्या 'घर-वापसी' बगैर मकसद की सेवा है? क्या 'लव-जिहाद' भी सेवा के दायरे में आता है? अगर ये सब सेवा है, तो क्या सोद्देश्य नहीं है? जो भी हो, सवाल तो बनता है.
सवाल मदर टेरेसा की मौत के सालों बाद उठा है. इस मुल्क में सवाल पूछने का हर किसी को हक है. फिर भी हम थोड़ा संयम बरतते हैं. सवाल पूछते हैं पर गुजरे हुए को बख्श देते हैं. जहां तक सवालों का सवाल है, केजरीवाल का कोई सानी नहीं. पर इस सवाल पर वह सिर्फ इतना कहते हैं, "मदर टेरेसा पवित्र आत्मा थीं. उन्हें तो बख्श दो."
सवाल तो उठाए ही जा सकते हैं. हर सवाल पर सवाल उठाए जा सकते हैं. मदर टेरेसा की सेवा पर मुझे कुछ नहीं कहना. मोहन भागवत की सेवा पर मुझे कुछ नहीं कहना. महात्मा गांधी की सेवा पर भी कुछ नहीं कहना. किसी तरह की स्वयं-सेवा पर भी कुछ नहीं कहना. खुश रहो अहले वतन हम तो कार-सेवा करते हैं!

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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