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धर्म संसद में राम मंदिर को लेकर RSS का 'धर्म-संकट

    • आईचौक
    • Updated: 02 फरवरी, 2019 04:42 PM
  • 02 फरवरी, 2019 04:42 PM
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अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए संघ प्रमुख मोहन भागवत ने ही कानून बनाने की मांग की थी. अब मंदिर समर्थक उन्हीं से निर्माण शुरू होने की तारीख पूछने लगे हैं - और जवाब है नहीं.

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सामने दोहरी मुश्किल खड़ी हो गयी है. उसे मंदिर समर्थकों को नाराज न होने देने की चुनौती है और मोदी सरकार का बचाव भी करना है. स्थिति ये है कि अयोध्या में मंदिर निर्माण की हसरत रखने वाले धीरे धीरे धीरज खोने लगे हैं.

संघ प्रमुख मोहन भागवत की बातों को संत समाज भी तवज्जो देता है, लेकिन धर्म संसद में उनके भाषण के बाद हंगामा बड़ी चेतावनी है. मोदी सरकार को भी भागवत इसे इशारों में समझाने की कोशिश कर रहे हैं. लगे हाथ कोशिश ये भी है कि मंदिर समर्थकों का जोश भी बना रहे - बीजेपी को आखिर कुर्सी पर बैठाते तो वे ही हैं.

भागवत तारीख बतायें और सुप्रीम कोर्ट सुनाये फैसला

मंदिर समर्थक दो टूक जवाब चाहते हैं. कहीं कोई कोरा आश्वासन नहीं. कहीं कोई कन्फ्यूजन नहीं. एक ही सवाल है - अयोध्या में राम मंदिर कब बनेगा? ये ऐसा सवाल है जिसका जवाब न तो आरएसएस दे पा रहा है - और न ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी या बीजेपी का कोई भी नेता. अमित शाह भी नहीं.

सुप्रीम कोर्ट से मंदिर समर्थकों को तारीख पर तारीख नहीं, बल्कि सीधे सीधे फैसला चाहिये. ठीक उसी तरह, बिना लाग लपेट के - संघ प्रमुख मोहन भागवत के मुंह से वो कोई भी आश्वासन नहीं बल्कि पक्की तारीख सुनना चाहते हैं. हालत ये है कि सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या मसले पर अभी सुनवाई भी नहीं शुरू हो सकी है.

कुंभ में आयोजित स्वामी स्वरूपानंद के परम धर्म संसद के बाद वीएचपी की ओर से भी दो दिनों की धर्म संसद का आयोजन हुआ. स्वामी स्वरूपानंद ने तो पहले ही तारीख बता दी थी - 21 फरवरी, लेकिन जब वीएचपी या संघ की ओर से कोई तारीख नहीं बतायी गयी तो मंदिर समर्थकों का धैर्य जवाब देने लगा. धर्म संसद में संघ प्रमुख मोहन भागवत के कार्यक्रम के दौरान संतों ने हंगामा करना शुरू कर दिया. धर्म संसद में करीब दो दर्जन से ज्यादा संतों ने जोर जोर से खूब नारेबाजी की - 'तारीख बताओ, तारीख बताओ'.

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सामने दोहरी मुश्किल खड़ी हो गयी है. उसे मंदिर समर्थकों को नाराज न होने देने की चुनौती है और मोदी सरकार का बचाव भी करना है. स्थिति ये है कि अयोध्या में मंदिर निर्माण की हसरत रखने वाले धीरे धीरे धीरज खोने लगे हैं.

संघ प्रमुख मोहन भागवत की बातों को संत समाज भी तवज्जो देता है, लेकिन धर्म संसद में उनके भाषण के बाद हंगामा बड़ी चेतावनी है. मोदी सरकार को भी भागवत इसे इशारों में समझाने की कोशिश कर रहे हैं. लगे हाथ कोशिश ये भी है कि मंदिर समर्थकों का जोश भी बना रहे - बीजेपी को आखिर कुर्सी पर बैठाते तो वे ही हैं.

भागवत तारीख बतायें और सुप्रीम कोर्ट सुनाये फैसला

मंदिर समर्थक दो टूक जवाब चाहते हैं. कहीं कोई कोरा आश्वासन नहीं. कहीं कोई कन्फ्यूजन नहीं. एक ही सवाल है - अयोध्या में राम मंदिर कब बनेगा? ये ऐसा सवाल है जिसका जवाब न तो आरएसएस दे पा रहा है - और न ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी या बीजेपी का कोई भी नेता. अमित शाह भी नहीं.

सुप्रीम कोर्ट से मंदिर समर्थकों को तारीख पर तारीख नहीं, बल्कि सीधे सीधे फैसला चाहिये. ठीक उसी तरह, बिना लाग लपेट के - संघ प्रमुख मोहन भागवत के मुंह से वो कोई भी आश्वासन नहीं बल्कि पक्की तारीख सुनना चाहते हैं. हालत ये है कि सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या मसले पर अभी सुनवाई भी नहीं शुरू हो सकी है.

कुंभ में आयोजित स्वामी स्वरूपानंद के परम धर्म संसद के बाद वीएचपी की ओर से भी दो दिनों की धर्म संसद का आयोजन हुआ. स्वामी स्वरूपानंद ने तो पहले ही तारीख बता दी थी - 21 फरवरी, लेकिन जब वीएचपी या संघ की ओर से कोई तारीख नहीं बतायी गयी तो मंदिर समर्थकों का धैर्य जवाब देने लगा. धर्म संसद में संघ प्रमुख मोहन भागवत के कार्यक्रम के दौरान संतों ने हंगामा करना शुरू कर दिया. धर्म संसद में करीब दो दर्जन से ज्यादा संतों ने जोर जोर से खूब नारेबाजी की - 'तारीख बताओ, तारीख बताओ'.

अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र नाथ गिरि मंदिर निर्माण पर सही स्थिति स्पष्ट नहीं करने को लेकर संघ और मोदी सरकार दोनों से नाराज बताये जा रहे हैं. नरेंद्र नाथ गिरि साफ शब्दों में कह चुके हैं कि मंदिर निर्माण न संघ से होगा और न ही सरकार से हो पाएगा.

मंदिर निर्माण की जगह मंत्रोचार की तारीख

तारीख को लेकर मंदिर समर्थक दो धड़ों में बंटे हुए लगते हैं. एक धड़ा मंदिर निर्माण की तारीख घोषित कर चुका है. यहां तक कह चुका है कि जरूरत पड़ी तो गोली भी खाएंगे. दूसरा तबका अभी इतना ही भरोसा दिला पा रहा है कि मंदिर बन कर रहेगा और वहीं बनेगा. इसके लिए इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच के फैसले की याद दिलाते हुए कहा जा रहा है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले में भी मुहर उसी पर लगेगी.

सारी बातें अपनी जगह ठीक हैं, लेकिन मंदिर बनेगा कब और वो तारीख कौन सी होगी?

तारीख पक्की है!

स्वामी स्वरूपानंद अपनी ओर से 21 फरवरी की तारीख पक्की कर चुके हैं. ये तारीख भी विश्व हिंदू परिषद की धर्म संसद से पहले ही आ गयी थी. ये बात संतों के उस धड़े को नागवार गुजर रही है जिसमें संघ प्रमुख मोहन भागवत भी खड़े हैं. मोहन भागवत दूसरे धड़े को आगाह भी कर रहे हैं - 'एक कार सेवा से राम मंदिर निर्माण नहीं होगा. दम है तो कारसेवा करो. अगर दम नहीं है तो सम्मानजनक तरीके से वापस जा सकते हैं.' बताते हैं कि मंदिर निर्माण के लिए ताकत भी संघ ही देगा और अयोध्या में सिर्फ भव्य राम मंदिर बनेगा.

एक तारीख तो मोहन भागवत ने भी बतायी है लेकिन वो मंदिर निर्माण की नहीं है. मोहन भागवत कहते हैं, '6 अप्रैल को एक करोड़ लोग मंदिर के लिए मंत्रोच्चार करेंगे.'

बड़ी मुश्किल है

प्रयागराज कुंभ मेले में ही वीएचपी द्वारा बुलाई गयी धर्मसंसद में अयोध्या में गैर विवादित जमीन के लिए मोदी सरकार द्वारा कोर्ट में दी गयी अर्जी का स्वागत तो हुआ, लेकिन मंदिर निर्माण में देरी पर सरकार के खिलाफ गुस्से को स्वाभाविक भी बताया गया. साथ ही, ये मजबूरी भी समझायी गयी कि मंदिर निर्माण भी बीजेपी के सत्ता में रहते ही संभव है.

धर्म संसद में भागवत अयोध्या में मंदिर उसी जगह बनेगा इस बात पर तो जोर दे रहे थे, लेकिन बाकी बातें वैसी ओजपूर्ण नहीं लगीं जैसी कि हुआ करती हैं. भागवत की बातों में एक बड़ी उलझन भी नजर आ रही थी. बातें भी कुछ ऐसी ही थीं -

1. 'जिस शब्दों में और जिस भावना से राम मंदिर निर्माण का प्रस्ताव यहां आया है, उस प्रस्ताव का अनुमोदन करने के लिए मुझे कहा नहीं गया है, लेकिन उस प्रस्ताव का संघ के सर संघचालक के नाते मैं संपूर्ण अनुमोदन करता हूं.'

2. 'सरकार को हमने कहा कि तीन साल तक हम आपको नहीं छेड़ेंगे. उसके बाद राम मंदिर है. सरकार में मंदिर और धर्म के पक्षधर हैं. न्यायालय से जल्द निर्णय की व्यवस्था के लिए अलग पीठ बन गई, लेकिन कैसी कैसी गड़बड़ियां करके उसे निरस्त किया गया, आप जानते हैं.'

मंदिर के दोराहे पर खड़ा संघ...

3. 'इस बार चुनाव हैं और मंदिर बनाने वालों को चुनना पड़ेगा. देश हिन्दुओं का है और दूसरे देशों के सताए हिन्दूओं को नागरिकता देने वाला नियम बनाने वाली ये सरकार है.'

4. 'मंदिर बनने के साथ-साथ हमें यह भी देखना चाहिए कि मंदिर कौन बनाएगा और मंदिर केवल वोटरों को खुश करने के लिए नहीं बनाएंगे. राजनीतिक उठापटक कुछ भी हो. जनता का मन है कि राम मंदिर बनेगा. तो बनेगा ही बनेगा. तीन-चार महीने में निर्णय हो गया तो हो गया, वरना चार महीने बाद बनना शुरू हो जाएगा.'

5. 'हम सरकार के लिए कठिनाई नहीं पैदा करनी बल्कि मदद करनी है. भव्य राम मंदिर बनेगा, हम सकरात्मक सोचेंगे, निराशा मन में मत लाएं. सनातन धर्म के विजय का काल आया है.'

ये सब कहने के साथ ही मोहन भागवत ने मोदी सरकार को सख्त लहजे में चेताया भी. मोहन भागवत ने कहा कि हमारी मांग है कि राम जन्मभूमि स्थल पर एक भव्य राम मंदिर बनाया जाए. यह देखना सरकार के लिए है कि वे यह कैसे सुनिश्चित करते हैं. यदि वे ऐसा करते हैं, तो उन्हें भगवान राम का आशीर्वाद मिलेगा.

जनता का जोश कहीं कम न पड़े इसलिए दो शब्द उनके पक्ष में भी कहे, 'ये मामला निर्णायक दौर में है. मंदिर बनने के किनारे पर है, इसलिए हमें सोच समझकर कदम उठाने पड़ेंगे. हम जनता में जागरण तो करते रहें और चुप न बैठें, जनता में प्रार्थना, आवेश और जरूरत पड़ी तो आक्रोश भी जगाते रहें.’

देखा जाये तो मंदिर निर्माण की मांग जोर भी तभी से पकड़ी है जब से मोहन भागवत ने इसके लिए कानून बनाने की मांग की है - और अब ये मांग ही संघ और बीजेपी के गले की हड्डी बनता जा रहा है. बीजेपी को मंदिर एजेंडे के बूते दिल्ली की कुर्सी पर बिठाने वाला संघ लगता है खुद ही उलझ कर रह गया है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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