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'इंसानियत, जम्हूरियत और कश्मीरियत' भी कहीं जुमला न बन जाए

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 20 अप्रिल, 2016 06:59 PM
  • 20 अप्रिल, 2016 06:59 PM
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इस बार न तो उन्होंने कोई कटाक्ष किया न ही तल्खी दिखाई. जब भी मौका आया मुफ्ती मोहम्मद सईद और महबूबा मुफ्ती की दिल खोल कर तारीफ की.

छह महीने के भीतर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक बार फिर जम्मू कश्मीर के दौरे पर थे. इन छह महीनों में काफी कुछ बदल चुका था. सूबे के सीएम की कुर्सी पर पिता की जगह बेटी बैठ चुकी थी. शायद इसीलिए, मोदी का मिजाज भी काफी बदला नजर आया. इस बार न तो उन्होंने कोई कटाक्ष किया न ही तल्खी दिखाई. जब भी मौका आया मुफ्ती मोहम्मद सईद और महबूबा मुफ्ती की दिल खोल कर तारीफ की - और एक बार फिर वाजपेयी की बातों को तरक्की की इबारत लिखने का फॉर्मूला बताया.

पिछली बार

पिछले साल नवंबर में प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा से पहले तत्कालीन मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद ने कहा था, "वाजपेयी ने पाकिस्तान की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाया था और हमारे 10 साल शांति से बीते. अगर भारत को बढ़ना है तो बड़े भाई के रूप में उसे छोटे भाई (पाकिस्तान) की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाना होगा."

इसे भी पढ़ें: दिल्ली से समझ नहीं आएगा कश्मीर का मर्ज

तब भी मोदी ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की कही बात 'इंसानियत, जम्हूरियत और कश्मीरियत' का अनुसरण करने की सलाह दी और इसे जम्मू-कश्मीर के विकास का स्तम्भ बताया.

श्रीनगर में मोदी ने राज्य के लिए 80 हजार करोड़ रुपये के पैकेज की घोषणा तो की ही, लगे हाथ तत्कालीन मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद पर भी कटाक्ष किया. सईद की बातों पर सख्ती दिखाते हुए मोदी ने साफ तौर पर कह दिया कि कश्मीर पर उन्हें दुनिया में किसी की सलाह या विश्लेषण की जरूरत नहीं है.

मोदी की ये बात मुफ्ती सईद को नागवार तो गुजरी लेकिन वो खामोश रहे. महबूबा मुफ्ती और पीडीपी नेताओं को ये बात बेहद नागवार गुजरी. सईद की मौत के बाद उनकी बेटी महबूबा मुफ्ती ने करीब तीन महीने की हीलाहवाली के बाद मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने को तैयार हुईं. माना गया कि अपने पिता के साथ हुए व्यवहार को...

छह महीने के भीतर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक बार फिर जम्मू कश्मीर के दौरे पर थे. इन छह महीनों में काफी कुछ बदल चुका था. सूबे के सीएम की कुर्सी पर पिता की जगह बेटी बैठ चुकी थी. शायद इसीलिए, मोदी का मिजाज भी काफी बदला नजर आया. इस बार न तो उन्होंने कोई कटाक्ष किया न ही तल्खी दिखाई. जब भी मौका आया मुफ्ती मोहम्मद सईद और महबूबा मुफ्ती की दिल खोल कर तारीफ की - और एक बार फिर वाजपेयी की बातों को तरक्की की इबारत लिखने का फॉर्मूला बताया.

पिछली बार

पिछले साल नवंबर में प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा से पहले तत्कालीन मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद ने कहा था, "वाजपेयी ने पाकिस्तान की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाया था और हमारे 10 साल शांति से बीते. अगर भारत को बढ़ना है तो बड़े भाई के रूप में उसे छोटे भाई (पाकिस्तान) की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाना होगा."

इसे भी पढ़ें: दिल्ली से समझ नहीं आएगा कश्मीर का मर्ज

तब भी मोदी ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की कही बात 'इंसानियत, जम्हूरियत और कश्मीरियत' का अनुसरण करने की सलाह दी और इसे जम्मू-कश्मीर के विकास का स्तम्भ बताया.

श्रीनगर में मोदी ने राज्य के लिए 80 हजार करोड़ रुपये के पैकेज की घोषणा तो की ही, लगे हाथ तत्कालीन मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद पर भी कटाक्ष किया. सईद की बातों पर सख्ती दिखाते हुए मोदी ने साफ तौर पर कह दिया कि कश्मीर पर उन्हें दुनिया में किसी की सलाह या विश्लेषण की जरूरत नहीं है.

मोदी की ये बात मुफ्ती सईद को नागवार तो गुजरी लेकिन वो खामोश रहे. महबूबा मुफ्ती और पीडीपी नेताओं को ये बात बेहद नागवार गुजरी. सईद की मौत के बाद उनकी बेटी महबूबा मुफ्ती ने करीब तीन महीने की हीलाहवाली के बाद मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने को तैयार हुईं. माना गया कि अपने पिता के साथ हुए व्यवहार को लेकर महबूबा खासी नाराज थीं.

इसे भी पढ़ें: मुफ्ती से कई गुना ज्यादा हैं महबूबा की चुनौतियां, लेकिन...

तब तो पीडीपी के सीनियर लीडर तारिक हमीद कर्रा ने खुलेआम अपनी नाराजगी जताई थी, "मोदी सिकंदर की तरह काम कर रहे हैं और ताकत के जोर से दिल जीतना चाहते हैं."

एक अखबार से बातचीत में कर्रा ने यहां तक कह डाला, "वाजपेयी की नीति हाथ मिलाने की थी, लेकिन मोदी का रवैया हाथ मरोड़ने वाला है."

अबकी बार

कटरा में भी मोदी ने वाजपेयी और उनकी बातों को वैसे ही याद किया जैसे पिछली बार किया था. मोदी ने कहा, "वाजपेयीजी उन चुनिंदा नेताओं में हैं जिनका सम्मान है." मोदी जम्मू-कश्मीर में वाजपेयी के प्रति सम्मान की बात कर रहे थे. इस बार मोदी बात बात पर मुफ्ती की तारीफ करते दिखे. मोदी बोले, "आज उम्मीदों का दिन है. हालांकि, मैं मुफ्ती साहब की कमी महसूस कर रहा हूं. उनका हमेशा मानना था कि भारते के आगे बढ़ने के लिए जम्मू कश्मीर का विकास जरूरी है. उन्होंने जम्मू और श्रीनगर के बीच खाई को पाटने का सपना देखा."

मुफ्ती के सपनों के लिए अटल फॉर्मूला...

इस बार महबूबा भी खुले दिल से मोदी का स्वागत करती नजर आईं. कटरा की सभा में महबूबा ने कहा, "मेरे पिताजी ने कई मौकों पर कहा कि जब उन्होंने नरेंद्र मोदी से हाथ मिलाया - तो दरअसल, वो भारत के उन करोड़ों लोगों से हाथ मिला रहे थे, जिन्होंने मोदी जी के नेतृत्व में अपना भरोसा जताया."

हालांकि, महबूबा ने कश्मीर के दिल में दर्द की भी बात की. महबूबा ने कहा, "हमें जख्मों पर मरहम लगाने की जरूरत है ताकि कश्मीर के नौजवान भी देश के बाकी हिस्सों के युवाओं की तरह तरक्की कर सकें."

'इंसानियत, जम्हूरियत और कश्मीरियत'. वाजपेयी की बाकी बातों का हो न हो मोदी इसका बार बार जिक्र जरूर करते हैं - शायद इसलिए लिए कि ये उनके तुकबंदी भरे तीन शब्दों वाले फॉर्मूले में आसानी से फिट भी बैठते हैं.

लेकिन अब प्रधानमंत्री को इस बात का भी ख्याल रखना होगा कि 'इंसानियत, जम्हूरियत और कश्मीरियत' कहीं 'कसमें, वादे प्यार वफा' वाले जुमले जैसे न लगने लगें. 'है कि नहीं?'

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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