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मोदी सरकार के 9 साल: आर्थिक विकास की लंबी छलांग के बाद भी कुछ बड़ी चुनौतियां

    • ब्रजेश
    • Updated: 18 जून, 2023 05:52 PM
  • 16 जून, 2023 04:43 PM
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भारत के आधे लोग इस साल के अंत तक 30 वर्ष से कम आयु के होंगे. जनसांख्यिकीय लाभांश के लिए हमे दीर्घकालिक निवेश की जरुरत है जो महिलाओं और युवाओं के बीच उच्च बेरोजगारी का समाधान करे. भारत बड़े बदलाव के मुहाने पर है. वैश्विक अनिश्चितताओं के इस अशांत समय में पूरी दुनिया भारत की ओर बड़ी उम्मीद से देख रही है.

पिछले महीने केंद्र की मोदी सरकार ने अपने नौ साल पूरे कर लिए हैं. इस अवधि के दौरान देश की आर्थिक भलाई पर ध्यान देने के साथ कई सुधार लागू किए गए हैं. हालांकि कोरोना, रूस-उक्रेन युद्ध और वैश्विक आर्थिक मंदी ने पूरी दुनिया को हिला कर रख दिया है, फिर भी भारत की अर्थव्यवस्था दुनिया की अच्छी अर्थव्यवस्थाओं में गिनी जा रही है. 'आधार' आज भारत की सबसे विश्वसनीय ‘पहचान मुद्रा’ बन गया और प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण के लिए फिनटेक का व्यापक उपयोग तेजी से हो रहा.

आवास के लिए पीएम आवास योजना, बिजली के लिए सौभाग्य, एलपीजी कनेक्शन के लिए उज्ज्वला, शौचालयों के लिए स्वच्छ भारत अभियान, और चिकित्सा बीमा के लिए आयुष्मान भारत जरूरतमंदों की मदद कर रहा. बैंक खाता न होने की वजह से देश के करोड़ों गरीब परिवार ऐसे थे जो मुख्यधारा के अर्थतंत्र से बाहर थे. लगभग 44 करोड़ लोगों ने प्रधानमंत्री जनधन योजना के तहत अपना खाता खुलवाया है, आज करोड़ों किसानों, महिलाओं, प्रवासियों को सरकार सीधा मदद उनके खातों में पहुंचा रही है.

अपने 9 साल के कार्यकाल में पीएम मोदी ने ऐसा बहुत कुछ कर दिया है जो अविश्वसनीय है

कर सुधार सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकताओं में से एक है. जीएसटी भारत में सबसे बड़ा कर सुधार है जिसकी स्थापना "एक राष्ट्र, एक बाजार, एक कर" की धारणा पर हुई थी नतीजतन, भारत के पास एक मजबूत राजस्व आधार है, जो जीएसटी की शुरुआत के बाद से दूसरी बार 1.50 लाख करोड़ रुपये को पार कर गई है. सितंबर 2021 में नेशनल सिंगल विंडो सिस्टम लॉन्च किया गया, अक्टूबर 2021 में पीएम गति शक्ति व नेशनल लॉजिस्टिक्स पॉलिसी लागू की गई है.

प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (पीएलआई) योजना जैसी पहल 14 प्रमुख क्षेत्रों में निवेश आकर्षित करने में सहायक रही है. इन्हीं नौ वर्षों में सरकार...

पिछले महीने केंद्र की मोदी सरकार ने अपने नौ साल पूरे कर लिए हैं. इस अवधि के दौरान देश की आर्थिक भलाई पर ध्यान देने के साथ कई सुधार लागू किए गए हैं. हालांकि कोरोना, रूस-उक्रेन युद्ध और वैश्विक आर्थिक मंदी ने पूरी दुनिया को हिला कर रख दिया है, फिर भी भारत की अर्थव्यवस्था दुनिया की अच्छी अर्थव्यवस्थाओं में गिनी जा रही है. 'आधार' आज भारत की सबसे विश्वसनीय ‘पहचान मुद्रा’ बन गया और प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण के लिए फिनटेक का व्यापक उपयोग तेजी से हो रहा.

आवास के लिए पीएम आवास योजना, बिजली के लिए सौभाग्य, एलपीजी कनेक्शन के लिए उज्ज्वला, शौचालयों के लिए स्वच्छ भारत अभियान, और चिकित्सा बीमा के लिए आयुष्मान भारत जरूरतमंदों की मदद कर रहा. बैंक खाता न होने की वजह से देश के करोड़ों गरीब परिवार ऐसे थे जो मुख्यधारा के अर्थतंत्र से बाहर थे. लगभग 44 करोड़ लोगों ने प्रधानमंत्री जनधन योजना के तहत अपना खाता खुलवाया है, आज करोड़ों किसानों, महिलाओं, प्रवासियों को सरकार सीधा मदद उनके खातों में पहुंचा रही है.

अपने 9 साल के कार्यकाल में पीएम मोदी ने ऐसा बहुत कुछ कर दिया है जो अविश्वसनीय है

कर सुधार सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकताओं में से एक है. जीएसटी भारत में सबसे बड़ा कर सुधार है जिसकी स्थापना "एक राष्ट्र, एक बाजार, एक कर" की धारणा पर हुई थी नतीजतन, भारत के पास एक मजबूत राजस्व आधार है, जो जीएसटी की शुरुआत के बाद से दूसरी बार 1.50 लाख करोड़ रुपये को पार कर गई है. सितंबर 2021 में नेशनल सिंगल विंडो सिस्टम लॉन्च किया गया, अक्टूबर 2021 में पीएम गति शक्ति व नेशनल लॉजिस्टिक्स पॉलिसी लागू की गई है.

प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (पीएलआई) योजना जैसी पहल 14 प्रमुख क्षेत्रों में निवेश आकर्षित करने में सहायक रही है. इन्हीं नौ वर्षों में सरकार ने 10 सरकारी बैंकों का बड़े बैंकों में विलय किया है. यह विलय भारतीय बैंकों को पूंजी पर्याप्तता और बड़े आकार का लाभ प्रदान कर रहा, जो कि अधिकांश विदेशी बैंकों के पास है. बैंकिंग क्षेत्र के लिए रीकैपिटलाइजेशन एंड रिफॉर्म तथा इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड जैसे बड़ेकदम लिए गए हैं. अन्तर्राष्ट्रीय एजेंसी पीडब्लूसी के सर्वे के अनुसार भारत वर्ष 2040 तक दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा बैंकिंग हब हो सकता है.

भाग्य की रेखाओं की तरह सड़के तरक्की का रास्ता होती हैं, देश में पहली बार प्रतिदिन 37 किमी नेशनल हाईवे 6 से 12 लेन के बनाये जा रहे. सड़क निर्माण पर 2014 तक सालाना 10,000 करोड़ रुपये खर्च होता था, आज एनडीए के दौरान बढ़कर 15,000 करोड़ रुपये हो गया है. भारत को पिछले साल रिकॉर्ड 84 अरब डॉलर का विदेशी निवेश प्राप्त हुआ. बिजनेस वर्ल्ड कॉम्पिटीटीवनेस रैंकिंग में भारत की वैश्विक रैंकिंग में लगातार सुधार हो रहा है.

जब एनडीए सरकार ने 26 मई, 2014 को सत्ता संभाली, तो भारत का सकल घरेलू उत्पाद 20 खरब अमेरिकी डॉलर के बराबर था, जो आज 37.3 खरब डॉलर है. प्रति व्यक्ति आय जो 2014 में 1,573.9 डॉलर थी, अब 2023 में 2,601 डॉलर के करीब है. देश के मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की गतिविधियों में काफी तेजी आयी है. परचेजिंग मैनेजर इंडेक्स (पीएमआई) अप्रैल 2023 में 13 साल के उच्चतम स्तर 62 पर पहुंच गया था. जून 2010 के बाद पीएमआई की यह सबसे मजबूत ग्रोथ है.

विश्व बैंक के ईज ऑफ डूइंग बिजनेस 2020 सर्वेक्षण के अनुसार, भारत पहले ही 14 स्थानों की छलांग लगाकर विश्र्व में 63वां स्थान हासिल कर चुका है, जो की पिछले नौ सालों में सबसे ऊपर है. 'लॉजिस्टिक्स परफॉर्मेंस इंडेक्स' (एलपीआई) में भारत अब 139 देशों में 38 वें स्थान पर है. जहाँ ये वर्ष 2014 में 54 वें नंबर पर था . भारत 'ट्रेड फैसिलिटेशन रैंकिंग' में 2018 में 146 वें से 2021 में 68 वें स्थान पर है. जिनेवा स्थित वर्ल्ड इकॉनमिक फोरम द्वारा प्रकाशित ग्लोबल कॉम्पेटिटिवनेस रिपोर्ट इंडेक्स में भारत 37वें स्थान पर है जहां ये वर्ष 2014 में 60वें स्थान पर था.

सेंटर फॉर इकोनॉमिक्स एंड बिजनेस रिसर्च ने भविष्यवाणी की है कि भारत 2035 तक 10 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बन जाएगा. व्यापारिक निर्यात पिछले वित्तीय वर्ष में रिकॉर्ड 400 बिलियन डॉलर से अधिक हो गया. जबकि वैश्विक व्यापार में भारत का योगदान 2% से भी कम है अर्थात मेक इन इंडिया अभियान अर्थव्यवस्था को अपेक्षित सहयोग नहीं दे पा रहा. यहाँ तक बांग्लादेश की तुलना में, हमारी लागत 40% से 50% अधिक है.

वियतनाम ने पिछले एक दशक में, विनिर्माण क्षेत्र को सकल घरेलू उत्पाद में दोगुना से अधिक कर दिया है. हमारी शिक्षा कौशल आधारित नहीं है जिसकी निजी क्षेत्र को सबसे जयदा आवश्यकता है. लगभग 54% भारतीय युवा वर्तमान में बेरोजगार हैं क्योंकि विनिर्माण क्षेत्र की वृद्धि स्थिर है, और इन युवाओं में सेवा क्षेत्र में भाग लेने के लिए विशेष कौशल की कमी है. स्किल इंडिया मिशन के बाउजूद आज विश्वविद्यालय से अच्छी डिग्री लिए युवा पुलिस कांस्टेबल तक के लिए आवेदन कर रहे हैं.

सरकार के लिए महंगाई के मोर्चे पर चुनौतियां कम नहीं हैं. कुछ समय से कई खाद्य वस्तुओं की कीमतें लगातार बढ़ी रही हैं. भारत का विदेशी मुद्रा भंडार घट रहा है. रुपये की कीमत लगातार गिर रही और 2014 के 65 रुपये के मुकाबले आज 83 रुपये है. सभी नीतियों पर रेवड़ी संस्कृति हावी है, यह भी देश का दुर्भाग्य है कि आज़ादी के 75 साल बाद भी देश की आर्थिक नीतियां भारतीय मतदाता को आकर्षित करने पर जयदा ध्यान देती हैं न कि दीर्घकालिक आर्थिक लाभ को ध्यान में रखकर.

भारत के आधे लोग इस साल के अंत तक 30 वर्ष से कम आयु के होंगे. जनसांख्यिकीय लाभांश के लिए हमे दीर्घकालिक निवेश की जरुरत है जो महिलाओं और युवाओं के बीच उच्च बेरोजगारी का समाधान करे. भारत बड़े बदलाव के मुहाने पर है. वैश्विक अनिश्चितताओं के इस अशांत समय में पूरी दुनिया भारत की ओर बड़ी उम्मीद से देख रही है. भारत के पास आराम करने का समय नहीं है. हम एक लंबा सफर तय कर चुके हैं, लेकिन यात्रा अभी खत्म नहीं हुई है.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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