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सियासत

मोदी सरकार के खिलाफ विपक्ष की आवाज तीखी और दमदार होने लगी है!

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 13 अगस्त, 2021 12:57 AM
  • 13 अगस्त, 2021 12:57 AM
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) की सरकार तगड़े विरोध की जो फसल काट रही है, बीज भी उसी ने बोये हैं - तभी तो राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के हमलों को अब शरद पवार (Sharad Pawar) भी एनडोर्स करने लगे हैं.

सात साल बाद संसद से सड़क तक जो नजारा दिखा है, वो पहली बार हुआ है. पहले विपक्ष को विरोध के लिए संघर्ष करना पड़ रहा था - और वो मुखालफत का जश्न मनाने लगा है.

सत्ता पक्ष ने भी विपक्ष को खामोश कराने की कोशिश में अपनी तरफ से कोई कसर बाकी नहीं रखी. कई सांसदों को पूरे सत्र के लिए सस्पेंड भी किया गया, विपक्षी दल चुप नहीं हुए. रणनीति बदलती रही और सरकार के खिलाफ धीरे धीरे आक्रामक होते गये.

जो शरद पवार चीन के मसले पर राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के बयानों के आलोचक रहे, अब वही एनसीपी नेता, कांग्रेस सहित पूरे विपक्ष के साथ खड़े हो गये हैं - ये नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) सरकार के लिए मुश्किलों की मिसाल नहीं तो और क्या है?

विपक्ष को एकजुट होने का मोटिवेशन ममता बनर्जी की पहल से मिला और भरोसा शरद पवार (Sharad Pawar) के सपोर्ट से - और 2014 के बाद से ऐसा पहली बार देखने को मिला है कि राहुल गांधी इतने लंबे वक्त तक संसद से जंतर मंतर और विजय चौक तक विपक्षी नेताओं के मार्च का नेतृत्व कर रहे हैं.

2014 के बाद से विपक्ष के लिए विरोध की जो जमीन ऊसर बनी हुई थी, उसे सत्ताधारी बीजेपी ने ही उपजाऊ बना दिया है. मोदी सरकार ने न सिर्फ किसानों के मुद्दे को लटकाये रखा, बल्कि पेगासस और ऐसे कई मसलों को लटकाये रखा और अब जो कुछ भी झेलना पड़ रहा है, उसके लिए सत्ता पक्ष ही पूरी तरह जिम्मेदार है - राहुल गांधी ने तो बस मौके का ठीक से फायदा उठाया है.

पवार की पावर पॉलिटिक्स

शरद पवार की पावर पॉलिटिक्स का दायरा पहले सिर्फ महाराष्ट्र तक सीमित हुआ करता रहा, लेकिन अब ये दिल्ली तक पहुंच बनाने की कोशिश कर रहा है. शरद पवार इस वक्त विपक्षी दलों के बीच ऐसी अहम कड़ी बन गये हैं जिनके बगैर किसी का भी काम एक कदम नहीं बढ़ पा रहा है.

शरद पवार से संवाद न होने और उनका बयान आने तक कांग्रेस नेतृत्व बेचैन हो जाता है. दिल्ली आकर भी मुलाकात न होने पर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी मायूस होकर लौट जाती हैं.

सात साल बाद संसद से सड़क तक जो नजारा दिखा है, वो पहली बार हुआ है. पहले विपक्ष को विरोध के लिए संघर्ष करना पड़ रहा था - और वो मुखालफत का जश्न मनाने लगा है.

सत्ता पक्ष ने भी विपक्ष को खामोश कराने की कोशिश में अपनी तरफ से कोई कसर बाकी नहीं रखी. कई सांसदों को पूरे सत्र के लिए सस्पेंड भी किया गया, विपक्षी दल चुप नहीं हुए. रणनीति बदलती रही और सरकार के खिलाफ धीरे धीरे आक्रामक होते गये.

जो शरद पवार चीन के मसले पर राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के बयानों के आलोचक रहे, अब वही एनसीपी नेता, कांग्रेस सहित पूरे विपक्ष के साथ खड़े हो गये हैं - ये नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) सरकार के लिए मुश्किलों की मिसाल नहीं तो और क्या है?

विपक्ष को एकजुट होने का मोटिवेशन ममता बनर्जी की पहल से मिला और भरोसा शरद पवार (Sharad Pawar) के सपोर्ट से - और 2014 के बाद से ऐसा पहली बार देखने को मिला है कि राहुल गांधी इतने लंबे वक्त तक संसद से जंतर मंतर और विजय चौक तक विपक्षी नेताओं के मार्च का नेतृत्व कर रहे हैं.

2014 के बाद से विपक्ष के लिए विरोध की जो जमीन ऊसर बनी हुई थी, उसे सत्ताधारी बीजेपी ने ही उपजाऊ बना दिया है. मोदी सरकार ने न सिर्फ किसानों के मुद्दे को लटकाये रखा, बल्कि पेगासस और ऐसे कई मसलों को लटकाये रखा और अब जो कुछ भी झेलना पड़ रहा है, उसके लिए सत्ता पक्ष ही पूरी तरह जिम्मेदार है - राहुल गांधी ने तो बस मौके का ठीक से फायदा उठाया है.

पवार की पावर पॉलिटिक्स

शरद पवार की पावर पॉलिटिक्स का दायरा पहले सिर्फ महाराष्ट्र तक सीमित हुआ करता रहा, लेकिन अब ये दिल्ली तक पहुंच बनाने की कोशिश कर रहा है. शरद पवार इस वक्त विपक्षी दलों के बीच ऐसी अहम कड़ी बन गये हैं जिनके बगैर किसी का भी काम एक कदम नहीं बढ़ पा रहा है.

शरद पवार से संवाद न होने और उनका बयान आने तक कांग्रेस नेतृत्व बेचैन हो जाता है. दिल्ली आकर भी मुलाकात न होने पर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी मायूस होकर लौट जाती हैं.

लालू यादव के जातीय जनगणना की मुहिम को भी धार शरद पवार से मुलाकात के बाद ही मिलती है - और शरद पवार की मौजूदगी भर से कपिल सिब्बल की डिनर पार्टी में चार चांद लग जाते हैं - और उसके आगे राहुल गांधी के ब्रेकफास्ट की तस्वीरें भी फीकी लगने लगती हैं.

राज्य सभा की घटना को लेकर सभापति एम. वैंकैया नायडू के भावुक होने और विपक्षी सदस्यों के व्यवहार पर विक्षोभ व्यक्त करने के बाद भी शरद पवार का जो बयान आया है उसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता.

राहुल गांधी के ममता बनर्जी के बाद विपक्ष के नेतृत्व करने में फ्रंट पर शरद पवार के साथ साथ परदे के पीछे लालू यादव की भी बड़ी भूमिका है

शरद पवार कहते हैं, 'अपने 55 साल के संसदीय जीवन में मैंने ऐसा होते हुए कभी नहीं देखा... जैसा राज्य सभा में महिला सांसदों पर हमले हुए... सांसदों को काबू में करने के लिए 40 से ज्यादा पुरुष और महिलाएं बाहर से बुलाई गईं... ये दर्दनाक है - ये लोकतंत्र पर हमला है.'

कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे के आरोप भी वैसे ही हैं, 'हमारी महिला सदस्य आ रही हैं... घेरा बना लिया जा रहा है... धक्कामुक्की की जा रही है... महिला सदस्यों का अपमान हो रहा है... महिला सांसद सुरक्षित नहीं हैं... ये संसद और लोकतंत्र का अपमान है.'

एनसीपी नेता प्रफुल्ल पटेल और शिवसेना प्रवक्ता संजय राउत भी शरद पवार की बातें ही दोहराते हैं - और मोदी सरकार की मुश्किल ये है कि जब बीजेपी प्रवक्ता संबित पात्रा के एएनआई को दिये बयान बेअसर हो जाते हैं और संसदीय कार्यमंत्री प्रह्लाद जोशी के 'सत्य से परे' बोल देने भर से काम नहीं चलता, तभी तो 8 केंद्रीय मंत्रियों को एक साथ बैठ कर 48 मिनट तक प्रेस कांफ्रेंस करनी पड़ती है - और विपक्ष पर तमाम तरीके के तोहमत लगाने पड़ते हैं.

राज्य सभा में सांसदों और मार्शलों, जिनमें महिला और पुरुष दोनों तरफ से दोनों ही शामिल हैं के बीच हुई नोकझोंक और हाथापाई को लेकर सत्ता पक्ष और विपक्ष के अपने अपने दावे हैं - दावे अपनी जगह हैं और जो वीडियो में नजर आ रहा है वो अलग ही कहानी सुना रहा है.

मुद्दा ये जरूर है कि सच कौन बोल रहा है और कौन झूठ, लेकिन उससे भी महत्वपूर्ण बात ये है कि एजेंडा कौन सेट कर रहा है - और किसे सफाई देनी पड़ रही है.

वेंकैया नायडू कांग्रेस सांसद प्रताप सिंह बाजवा और AAP सांसद संजय सिंह के टेबल पर चढ़ने से काफी दुखी थे, बताया कि लोकतंत्र के मंदिर के अपमान से वो रात भर सो नहीं पाये और ये कहते कहते भावुक भी हो गये. वैसे तो ये सब कार्यवाही खत्म होने के बाद हुआ, लेकिन बाजवा का रूल बुक चेयर पर फेंक देना सभापति के दुखी होने की वजह तो बना ही. हालांकि, बाजवा को कोई अफसोस नहीं रहा, बल्कि बोले कि लोगों की आवाज उठाने के लिए ऐसा वो आगे भी सौ बार करेंगे.

लोक सभा को लेकर भी स्पीकर ओम बिड़ला ने भी सत्ता पक्ष और विपक्ष के नेताओं की एक महत्वपूर्ण मीटिंग बुलायी थी. मीटिंग में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी और अधीर रंजन चौधरी शामिल हुए. स्पीकर ने मीटिंग में कहा कि जिस तरह कुछ सांसदों ने व्यवहार किया, वो ठीक नहीं था... संसद की मर्यादा बनी रहनी चाहिये और सभी दलों को इस बारे में सोचना चाहिये.

राहुल गांधी का सबसे बड़ा आरोप

राज्य सभा की घटना को लेकर कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने संसद भवन के अपने कक्ष में विपक्षी दलों की एक मीटिंग बुलायी थी जिसमें राहुल गांधी के साथ साथ एनसीपी प्रमुख शरद पवार भी शामिल हुए. अधीर रंजन चौधरी, जयराम रमेश और आनंद शर्मा जैसे कांग्रेस नेताओं के अलावा, समाजवादी पार्टी के रामगोपाल यादव, डीएमके के टीआर बालू, आरजेडी के मनोज झा सहित कई अन्य भी नेता शामिल हुए. बाद में विपक्षी नेताओं ने संसद से विजय चौक तक विरोध मार्च भी किया जिसकी अगुवाई करने के साथ साथ राहुल गांधी ने मीडिया से भी बात की - और मोदी सरकार पर गंभीर आरोप भी लगाये.

राहुल गांधी ने भी शरद पवार की बातें दोहराते हुए विपक्षी सांसदों की पिटाई का आरोप लगाया. राहुल गांधी ने मोदी सरकार पर पर 'देश को बेच डालने' और 'देश की आत्मा को बेच डालने' जैसे आरोप भी लगाये.

राहुल गांधी ने कहा, 'मानसून सत्र खत्म हो गया है... हमने पेगासस का मुद्दा उठाया... सरकार से कहा कि इस पर बहस की जाये, सरकार ने डिबेट से मना कर दिया... हमें संसद में नहीं बोलने दिया गया... देश के 60 फीसदी लोगों की आवाज नहीं सुनी गई... राज्य सभा में पहली बार सांसदों की पिटाई की गई... उनसे धक्का-मुक्की की गई.'

राहुल गांधी पूछ रहे थे विपक्ष के नेता दिल की बात क्यों नहीं रख सकते - और फिर उनकी आवाज ऊंची हो जा रही थी, 'हिंदुस्तान का प्रधानमंत्री देश को बेच रहा है... दो तीन उद्योगपतियों को हिंदुस्तान की आत्मा बेच रहा है.'

आरजेडी सांसद मनोज झा ने कहा, 'हम यहां इसलिए आये हैं क्योंकि संसद में नहीं बोलने दिया गया... हम बेरोजगारी, महंगाई का मुद्दा उठाना चाहते थे, लेकिन विपक्ष की आवाज को दबाया गया.'

ऐसी बैठकों में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते देखे जा रहे शिवसेना नेता संजय राउत बोले, 'हमने लोकतंत्र की हत्या होते देखी... राज्य सभा में जिस तरह से प्राइवेट लोगों ने मार्शल की ड्रेस में आकर हमारे सांसदों पर हमला करने की कोशिश की - ये मार्शल नहीं थे, संसद में मार्शल लॉ लगाया गया था.'

ब्रेकफास्ट और डिनर के आगे क्या है

एक चीज तो साफ साफ नजर आने लगी है. राहुल गांधी ब्रेकफास्ट मीट से मिली एनर्जी की बदौलत सड़क पर भी विपक्ष को साथ लेकर चलने लगे हैं - और राहुल गांधी की इस मुहिम में सीधे सीधे शरद पवार धुरी बने हुए लगते हैं. हो सकता है ममता बनर्जी कुछ देर के लिए नेपथ्य में चली गयी नजर आ रही हों, लेकिन जातीय जनगणना पर बहस छेड़ कर लालू प्रसाद यादव भी परदे के पीछे से गोटियां सेट करने की कोशिश में जोर शोर से जुटे हुए हैं.

राहुल गांधी के ब्रेकफास्ट और कपिल सिब्बल के बर्थडे के बहाने बुलायी गयी डिनर पार्टी के बाद - सोनिया गांधी के मोर्चा संभालने की भूमिका तैयार की जाने लगी है. सोनिया गांधी को ऐसा करते पिछली बार जीएसटी सेशन और राष्ट्रपति चुनाव से पहले देखा गया था.

बताया जा रहा है कि सोनिया गांधी विपक्षी नेताओं के साथ एक वर्चुअल बैठक करने की तैयारी कर रही हैं. मीटिंग में शरद पवार की मौजूदगी के साथ साथ ममता बनर्जी और उद्धव ठाकरे, एमके स्टालिन और हेमंत सोरेन को भी न्योता भेजे जाने की खबर मिली है. ये मीटिंग 20 अगस्त को होनी निश्चित हुई है.

ऐसा लगता है जैसे बिहार चुनाव के दौरान लालू यादव ने कांग्रेस को महागठबंधन में शामिल करने के साथ ही तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री पद का चेहरा बता कर सर्वमान्य नेता के तौर पर प्रोजेक्ट किया था, विपक्षी खेमे में राहुल गांधी को भी सोनिया गांधी वैसे ही पेश करने की सोच रही हैं. अब तक तो यही देखने को मिला है कि राहुल गांधी की तरफ से बुलायी जाने वाली विपक्ष की बैठकों से वे नेता दूरी बना लेते हैं जो कपिल सिब्बल के बुलावे को मिस नहीं करते.

कांग्रेस और ट्विटर के बीच छिड़े सोशल मीडिया वार को लेकर भी खास अपडेट आया है - ट्विटर ने राहुल गांधी का अकाउंट तो वैसे ही रखा है, कांग्रेस और पार्टी के कुछ नेताओं के अकाउंट भी लॉक कर दिये गये हैं.

कांग्रेस की तरफ से हैशटैग #मैं_भी_Rahul से मुहिम चलाने के बाद कांग्रेस नेताओं ने अपने प्रोफाइल में नाम बदल कर Rahul Gandhi लिखना शुरू कर दिया है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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