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नीतीश सरकार में BJP की मंजूरी बगैर कुछ नहीं होने वाला - मेवालाल का इस्तीफा मिसाल है!

    • आईचौक
    • Updated: 20 नवम्बर, 2020 01:53 PM
  • 20 नवम्बर, 2020 01:53 PM
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बिहार सरकार की लगाम बीजेपी (BJP) के हाथ में है, ये पहले से पता है. अब नीतीश कुमार (Nitish Kumar) को लगाम के लोहे का स्वाद भी मिलना शुरू हो गया है - मेवालाल चौधरी (Mewalal Choudhary) का इस्तीफा तो उदाहरण भर है.

मेवालाल चौधरी (Mewalal Choudhary) को इस्तीफा तो देना ही था - और ये तो उनके शपथ लेने के पहले ही तय हो चुका था. अब सरकारी कामकाज है तो देर भी होनी स्वाभाविक है. जिस तरीके से मेवालाल चौधरी ने इस्तीफा दिया है वो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) की सरकार के लिए न तो कोई अनोखी बात है - और न ही शपथ लेने के फौरन बाद इस्तीफे का ये कोई पहला मामला है. दरअसल, नीतीश कुमार के शासन का ये तीसरा मामला है जिसमें एक बार तो जीतनराम मांझी का नाम भी शामिल रहा है.

तेजस्वी यादव चाहें तो मेवालाल चौधरी को इस्तीफा दिलवाने का क्रेडिट परोक्ष रूप से ले भी सकते हैं और अपने समर्थकों में चाहें तो थोड़ी देर के लिए जोश भी भर सकते हैं - क्योंकि शोर को हवा देने में तेजस्वी के पिता लालू यादव का थोड़ा बहुत योगदान तो है ही, लेकिन ऐसा दावा करना आधा ही सही माना जाएगा.

ये रांची जेल में सजा काट रहे लालू यादव ही हैं जो ट्विटर के माध्यम से सार्वजनिक तौर पर याद दिलाये कि जिस मेवालाल चौधरी के खिलाफ बीजेपी ने जांच पड़ताल करवायी उनको नीतीश कुमार ने मंत्री पद की शपथ दिला दी - फिर क्या था बीजेपी ने नीचे से ऊपर तक कोहराम मच गया! जो असर हुआ उसका नतीजा सबके सामने है.

बाकी चीजें अपनी जगह हैं, लेकिन मुद्दे की बात ये है कि नीतीश कुमार की ताजा सरकार में बीजेपी (BJP) की मर्जी के बगैर पत्ता भी नहीं हिलने वाला है - और मेवालाल चौधरी का इस्तीफा इसकी सबसे बड़ी मिसाल है.

सिर मुंड़ाते ही ओले बरसने लगे थे

16 नवंबर को मेवालाल चौधरी ने भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ ही मंत्री पद की शपथ ली थी और अगले ही दिन दैनिक भास्कर ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की. ये रिपोर्ट नीतीश कैबिनेट से कुर्सी पर बैठने के डेढ़ घंटे बाद ही इस्तीफा देने वाले मेवालाल चौधरी से जुड़ी थी.

रिपोर्ट के मुताबिक, मेवालाल चौधरी की विधायक रह चुकीं पत्नी की मौत से जुड़ा एक पत्र मिलने के बाद रिपोर्टर ने मुंगेर के तारापुर के थानेदार से बात की थी. ये पत्र वीआरएस ले चुके आईपीएस अधिकारी...

मेवालाल चौधरी (Mewalal Choudhary) को इस्तीफा तो देना ही था - और ये तो उनके शपथ लेने के पहले ही तय हो चुका था. अब सरकारी कामकाज है तो देर भी होनी स्वाभाविक है. जिस तरीके से मेवालाल चौधरी ने इस्तीफा दिया है वो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) की सरकार के लिए न तो कोई अनोखी बात है - और न ही शपथ लेने के फौरन बाद इस्तीफे का ये कोई पहला मामला है. दरअसल, नीतीश कुमार के शासन का ये तीसरा मामला है जिसमें एक बार तो जीतनराम मांझी का नाम भी शामिल रहा है.

तेजस्वी यादव चाहें तो मेवालाल चौधरी को इस्तीफा दिलवाने का क्रेडिट परोक्ष रूप से ले भी सकते हैं और अपने समर्थकों में चाहें तो थोड़ी देर के लिए जोश भी भर सकते हैं - क्योंकि शोर को हवा देने में तेजस्वी के पिता लालू यादव का थोड़ा बहुत योगदान तो है ही, लेकिन ऐसा दावा करना आधा ही सही माना जाएगा.

ये रांची जेल में सजा काट रहे लालू यादव ही हैं जो ट्विटर के माध्यम से सार्वजनिक तौर पर याद दिलाये कि जिस मेवालाल चौधरी के खिलाफ बीजेपी ने जांच पड़ताल करवायी उनको नीतीश कुमार ने मंत्री पद की शपथ दिला दी - फिर क्या था बीजेपी ने नीचे से ऊपर तक कोहराम मच गया! जो असर हुआ उसका नतीजा सबके सामने है.

बाकी चीजें अपनी जगह हैं, लेकिन मुद्दे की बात ये है कि नीतीश कुमार की ताजा सरकार में बीजेपी (BJP) की मर्जी के बगैर पत्ता भी नहीं हिलने वाला है - और मेवालाल चौधरी का इस्तीफा इसकी सबसे बड़ी मिसाल है.

सिर मुंड़ाते ही ओले बरसने लगे थे

16 नवंबर को मेवालाल चौधरी ने भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ ही मंत्री पद की शपथ ली थी और अगले ही दिन दैनिक भास्कर ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की. ये रिपोर्ट नीतीश कैबिनेट से कुर्सी पर बैठने के डेढ़ घंटे बाद ही इस्तीफा देने वाले मेवालाल चौधरी से जुड़ी थी.

रिपोर्ट के मुताबिक, मेवालाल चौधरी की विधायक रह चुकीं पत्नी की मौत से जुड़ा एक पत्र मिलने के बाद रिपोर्टर ने मुंगेर के तारापुर के थानेदार से बात की थी. ये पत्र वीआरएस ले चुके आईपीएस अधिकारी अमिताभ कुमार दास ने बिहार के डीजीपी को लिखी है और मेवालाल चौधरी की पत्नी की मौत की जांच एसआईटी से कराने की मांग की है.

मेवालाल चौधरी की पत्नी नीता चौधरी भी विधायक रह चुकी हैं और 2019 में उनकी गैस सिलिंडर ब्लास्ट में मौत हो गयी थी. रिपोर्ट के मुताबिक, थानेदार से बातचीत के ठीक 22 मिनट बाद रिपोर्ट के पास एक फोन आया - "मंत्रीजी के बारे में कुछ इन्क्वायरी कर रहे थे?" फोन करने वाले ने खुद को मंत्री मेवालाल का पीए बताया. जाहिर है थानेदार ने रिपोर्टर से बात खत्म होते ही मंत्री के पीए को सूचना दी होगी.

मेवालाल चौधरी को उनके सारे समर्थक अभी बधाई भी नहीं दे पाये थे. गुलदस्ते के फूल और लड्डू के डिब्बे भी धरे के धरे रह गये - यहां तक कि दरवाजे पर लगे विधायक वाले नेम प्लेट की जगह मंत्री वाले से बदला भी नहीं गया था और मेवालाल चौधरी को इस्तीफा देना पड़ गया.

72 घंटे के मंत्री मेवालाल चौधरी का घर जो डेढ़ घंटे ही कुर्सी पर बैठ पाये

नीतीश कुमार की कैबिनेट के मेवालाल चौधरी तीसरे साथी हैं जिनको इस कदर बेआबरू होकर सियासी कूचे से निकलना पड़ा है. 2005 में ठीक ऐसे ही जीतनराम मांझी को फर्जी डिग्री घोटाले के आरोप के चलते शपथ लेने के घंटे भर के भीतर ही पद छोड़ना पड़ा था. तीन साल बाद ही 2008 में परिवहन मंत्री आरएन सिंह को विजिलेंस ब्यूरो की चार्जशीट के चलते ऐसी ही परिस्थितियों का सामना करना पड़ा था.

मेवालाल चौधरी जेडीयू नेता आरसीपी सिंह के करीबी बताये जाते हैं और समझा जाता है कि नीतीश कुमार ने जातीय समीकरणों को साधने के मकसद से मेवालाल चौधरी को कैबिनेट में शामिल किया था. ऐसा भी नहीं कि मेवालाल चौधरी के बारे में ये सब छिपी हुई बातें हैं या फिर विधानसभा चुनाव के उम्मीदवार के तौर पर हलफनामे में कोई चीज छिपायी गयी है, लेकिन लगता है नीतीश कुमार ने सब हल्के में ले लिया था - और कुछ देर के लिये भूल गये कि बहुत कुछ उनके हाथ से निकल चुका है और खुद मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे रहने के बावजूद बीजेपी की मर्जी के बगैर पत्ता भी नहीं हिलने वाला है.

नीतीश सरकार में जेडीयू कोटे से बनाये गये मंत्रियों को उनकी जातीय पृष्ठभूमि के हिसाब से चयन किया गया है - मेवालाल चौधरी को कुशवाहा होने के नाते शामिल किया गया ताकि 4.5 फीसदी वोटर निराश न हों कि उनके वोट के बदले कुछ नहीं मिला. इसी तरह विजय चौधरी को भूमिहार होने के नाते, मंगल पांडे ब्राह्मण वोट बैंक की खातिर, विजेंद्र यादव यादव होने के चलते और शीला मंडल ईबीसी कोटे से मंत्री बनायी गयी हैं.

दी प्रिंट वेबसाइट ने एक बीजेपी नेता के हवाले से बताया है कि पार्टी को मेवालाल चौधरी को मंत्री बनाये जाने की जानकारी तब मिली जब शपथग्रहण से पहले जेडीयू की लिस्ट सामने आयी. गुमनाम बीजेपी नेता ने वेबसाइट को बताया कि कुछ ही देर बाद बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा को तथ्यों के साथ पूरी जानकारी उपलब्ध करायी गयी.

जाहिर है बीजेपी नेतृत्व का संदेश मिलने के बाद ही नीतीश कुमार ने मेवालाल चौधरी को तलब किया होगा. 18 नवंबर की शाम मेवालाल चौधरी मुख्यमंत्री आवास 1, अणे मार्ग सफाई देने पहुंचे थे और ये सब बीजेपी की आपत्ति से अवगत कराने के लिए ही हो रहा था. सूत्रों के हवाले से खबर है कि मेवालाल चौधरी इस्तीफे के लिए मान तो गये लेकिन कार्यभार ग्रहण करने के बाद. नीतीश कुमार की मंजूरी मिलने के बाद मेवालाल चौधरी ने वैसा ही किया जैसा तय हुआ था.

बीजेपी चाह कर भी कैसे चुप रह पाती

लालू यादव के ट्विटर हैंडल से मेवालाल चौधरी को लेकर नीतीश कुमार का नाम लेकर सीधे बीजेपी पर हमला बोला गया था. लालू यादव ने अपने ट्वीट में उस खबर का स्क्रीनशॉट भी शेयर किया था जिसमें बीजेपी नेता सुशील कुमार मोदी मेवालाल चौधरी को गिरफ्तार करने की मांग कर रहे थे. लालू यादव ने याद दिलाया कि बीजेपी वाले कल तक मेवालाल को खोज रहे थे और अब मेवा मिलने पर धारण किये हुए हैं.

सुशील मोदी फिलहाल डिप्टी सीएम न बनाये जाने और फिर आचार समिति का अध्यक्ष बनाये जाने को लेकर खबरों में हैं, लेकिन ये वाकया तब का है जब नीतीश कुमार महागठबंधन सरकार के मुख्यमंत्री हुआ करते थे और सुशील मोदी विपक्ष के नेता. दरअसल, सुशील मोदी ने ही बिहार के तत्कालीन गवर्नर रामनाथ कोविंद (मौजूदा राष्ट्रपति) को पत्र लिख कर मेवालाल चौधरी के वाइस चांसलर रहते नियुक्तियों में धांधली की जांच कराने की मांग की थी. जून, 2016 में राज्यपाल की तरफ से सुशील मोदी, आनंद सिंह, मिथिलेश कुमार सिंह और जीतन राम मांझी की शिकायत पर पटना हाईकोर्ट के जस्टिस महफूज आलम के नेतृत्व में एक जांच कमेटी बना दी. नवंबर, 2016 में ने आरोपों को सही पाते हुए कानूनी कार्रवाई की सिफारिश की थी.

बिहार के स्पेशल विजिलेंस ब्यूरो के केस दर्ज कर लेने पर सुशील मोदी ने मेवालाल चौधरी की गिरफ्तारी की मांग की. 2017 में मेवालाल चौधरी भूमिगत हो गये और तब तक सामने नहीं आये जब तक कि उनको अग्रिम जमानत नहीं मिल गयी - हालांकि, जेडीयू ने सस्पेंड कर दिया था.

अब भला कैसे मुमकिन था कि जिस बीजेपी ने जिस व्यक्ति की गिरफ्तारी की मांग की हो, उसके अदालत से बरी हुए बगैर अपनी ही साझा सरकार में मंत्री बने रहने देती? मेवालाल चौधरी को इसी राजनीतिक दबाव के चलते नीतीश कुमार भी नहीं बचा पाये और इस्तीफा देना पड़ा है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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