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मेघालय चुनाव में विधानसभा फिर त्रिशंकु होने के आसार

    • अशोक भाटिया
    • Updated: 26 फरवरी, 2023 02:28 PM
  • 26 फरवरी, 2023 02:28 PM
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मेघालय में विधानसभा चुनाव लेकर राजनीतिक तापमान अपने चरम पर है. भाजपा, कांग्रेस, टीएमसी के अलावा सभी क्षेत्रीय दल अपने अपने पैंतरे आजमा चुकी है. लेकिन, पिछली बार की तरह इस चुनाव में भी कोई स्‍पष्ट जनादेश मिलने की उम्मीद कम ही है.

मेघालय में भले ही मौसम अभी काफी सर्द है, लेकिन विधानसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक तापमान चढ़ने लगा है. सियासी दलों में आरोप-प्रत्यारोप का ग्राफ बढ़ने लगा है. इस बार जहां एनपीपी को अपना किला बचाना है, वहीं भाजपा, कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस भी ताल ठोक रही हैं. भ्रष्टाचार बड़ा मुद्दा बना है और इसे लेकर पार्टियां एक-दूसरे पर हमलावर हैं. यहां विधानसभा की कुल 60 सीटें हैं और मतदान 27 फरवरी को होना है. 36 महिलाओं सहित कुल 375 उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं. राज्य में चुनाव होने में बमुश्किल तीन दिन शेष हैं, कोई पार्टी स्पष्ट विजेता के रूप में नहीं दिखाई दे रही है. ऐसे में यहां एक बार फिर से त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति बन सकती है और विधायकों की खरीद-फरोख्त देखने को मिल सकती है.

'मेघों के आलय' अर्थात मेघालय में अन्य अनेक अन्य जिज्ञासाएं भी हैं जो राज्य विधानसभा चुनाव को विशेष रूप से रेखांकित करती हैं. अलग-अलग राजनीतिक विचारधाराओं को मानने वाले, केंद्रीय गृह मंत्री, अमित शाह और तृणमूल कांग्रेस के नेता अभिषेक बनर्जी कभी भी एक स्वर में नहीं बोलने के लिए जाने जाते हैं. फिर भी दोनों यहां ऐसा इसलिए कर रहे हैं क्योंकि उनके राजनीतिक हित जुड़े हुए हैं. आश्चर्य नहीं कि उन्होंने अपनी बंदूकें एक ही राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी-मुख्यमंत्री, कोनरैड के. संगमा पर तान रखी हैं तथा भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए उन पर निशाना साधा है.

जैसा कि शाह द्वारा मुख्यमंत्री के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप लगाये जाने से स्पष्ट है, यह पूर्ववर्ती राजनीतिक सहयोगियों के चुनावी संघर्ष में एक-दूसरे के खिलाफ होने का मामला है. नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) के लिए, जिसके नेता संगमा भाजपा से ताल्लुक रखते हैं, ने मेघालय डेमोक्रेटिक अलायंस बनाया, जिसने यूनाइटेड डेमोक्रेटिक पार्टी, पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी, हिल स्टेट पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी और एक निर्दलीय विधायक के साथ मिलकर इस पहाड़ी राज्य की सरकार चलाई.

दूसरी ओर, तृणमूल नेता अभिषेक बनर्जी ने मुख्यमंत्री, संगमा पर सीबीआई और...

मेघालय में भले ही मौसम अभी काफी सर्द है, लेकिन विधानसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक तापमान चढ़ने लगा है. सियासी दलों में आरोप-प्रत्यारोप का ग्राफ बढ़ने लगा है. इस बार जहां एनपीपी को अपना किला बचाना है, वहीं भाजपा, कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस भी ताल ठोक रही हैं. भ्रष्टाचार बड़ा मुद्दा बना है और इसे लेकर पार्टियां एक-दूसरे पर हमलावर हैं. यहां विधानसभा की कुल 60 सीटें हैं और मतदान 27 फरवरी को होना है. 36 महिलाओं सहित कुल 375 उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं. राज्य में चुनाव होने में बमुश्किल तीन दिन शेष हैं, कोई पार्टी स्पष्ट विजेता के रूप में नहीं दिखाई दे रही है. ऐसे में यहां एक बार फिर से त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति बन सकती है और विधायकों की खरीद-फरोख्त देखने को मिल सकती है.

'मेघों के आलय' अर्थात मेघालय में अन्य अनेक अन्य जिज्ञासाएं भी हैं जो राज्य विधानसभा चुनाव को विशेष रूप से रेखांकित करती हैं. अलग-अलग राजनीतिक विचारधाराओं को मानने वाले, केंद्रीय गृह मंत्री, अमित शाह और तृणमूल कांग्रेस के नेता अभिषेक बनर्जी कभी भी एक स्वर में नहीं बोलने के लिए जाने जाते हैं. फिर भी दोनों यहां ऐसा इसलिए कर रहे हैं क्योंकि उनके राजनीतिक हित जुड़े हुए हैं. आश्चर्य नहीं कि उन्होंने अपनी बंदूकें एक ही राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी-मुख्यमंत्री, कोनरैड के. संगमा पर तान रखी हैं तथा भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए उन पर निशाना साधा है.

जैसा कि शाह द्वारा मुख्यमंत्री के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप लगाये जाने से स्पष्ट है, यह पूर्ववर्ती राजनीतिक सहयोगियों के चुनावी संघर्ष में एक-दूसरे के खिलाफ होने का मामला है. नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) के लिए, जिसके नेता संगमा भाजपा से ताल्लुक रखते हैं, ने मेघालय डेमोक्रेटिक अलायंस बनाया, जिसने यूनाइटेड डेमोक्रेटिक पार्टी, पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी, हिल स्टेट पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी और एक निर्दलीय विधायक के साथ मिलकर इस पहाड़ी राज्य की सरकार चलाई.

दूसरी ओर, तृणमूल नेता अभिषेक बनर्जी ने मुख्यमंत्री, संगमा पर सीबीआई और ईडी की चौकीदारी करने का आरोप लगाया है, जो कथित तौर पर राज्य के खजाने की कीमत पर अपने परिवार को समृद्ध कर रहे हैं. तृणमूल नेता अपनी पार्टी के प्रमुख प्रचारकों में से एक हैं जो इस राज्य में प्रमुख विपक्षी संगठन है.भले ही भाजपा एनपीपी पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाती है, लेकिन वह एक ऐसे तथ्य को भूल जाती है, जिसके कारण उसे दूसरा विचार रखना चाहिए था. इसने एनपीपी के ऐसे छल-कपट को कैसे नजरअंदाज कर दिया या पहले इसे गठबंधन से बाहर निकलने से कैसे रोका. जैसा कि आने वाले चुनावों की बारीकियों पर नजर डालने से स्पष्ट होता है, एनपीपी को प्रमुख गठबंधन सहयोगी होने का फायदा है जो चुनाव अभियान में स्पष्ट दिखाई दे रहा है.

भाजपा सभी 60 सीटों पर चुनाव लड़ रही है. कभी राज्य में एक मजबूत राजनीतिक इकाई रही कांग्रेस भी 60 सीटों पर चुनाव लड़ रही है. हालांकि तृणमूल प्रमुख विपक्षी दल है, लेकिन उसके उम्मीदवार 56 निर्वाचन क्षेत्रों में ही चुनाव लड़ रहे हैं.

मेघालय में मुख्य राजनीतिक खिलाड़ी के रूप में उभरने की कोशिश में, भाजपा ने कोनरैड संगमा के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप लगाये हैं. यह उनके मुख्यमंत्री कार्यकाल के दौरान राज्य के विकास में कमी के साथ जुड़ा हुआ है. अगर भारतीय रिजर्व बैंक की रिपोर्ट को माना जाये, तो मेघालय देश में सबसे धीमी गति से विकसित होने वाला राज्य रहा है, स्वयं शाह ने तर्क दिया है. लेकिन यह फिर से एनपीपी और अन्य के साथ बनाई गई गठबंधन सरकार में उनकी पार्टी भाजपा की ही भूमिका पर केंद्रित है.

उत्तर पूर्वी राज्यों के बीच सीमा विवाद एक संवेदनशील मुद्दा है, भाजपा के चुनावी वायदों में असम के साथ सीमा विवाद सुलझाना शामिल है, जिसमें भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार है. सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सीमा पर स्थायी चौकियां भगवा चुनाव घोषणापत्र में हैं. भ्रष्टाचार के सभी मामलों की जांच के लिए सर्वोच्च न्यायालय के एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक विशेष टास्क फोर्स भाजपा के चुनाव घोषणापत्र का हिस्सा है. भगवा पार्टी के प्रचारकों ने पड़ोसी राज्य असम से तुलना करते हुए राज्य की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली को मजबूत करने की ओर इशारा किया है, जहां पांच मेडिकल कॉलेज बनाए गये हैं, जबकि मेघालय में पांच दशकों से कोई मेडिकल कॉलेज नहीं है.

तृणमूल के चुनावी घोषणापत्र में भी सीमा विवाद की जगह है. भले ही यह खुद को एनपीपी द्वारा किसी बाहरी व्यक्ति को टैग किए जाने से रोकने में व्यस्त है, लेकिन सत्ता में आने पर इसने असम के साथ सीमा समझौते को खत्म करने का वायदा किया है.राज्य में अवैध कोयला खनन की समस्या है. भाजपा के घोषणापत्र में एक टास्क फोर्स को इसकी जांच करने और वैज्ञानिक कोयला खनन शुरू करने का वायदा किया गया है. मुकुल संगमा के नेतृत्व वाली तृणमूल की मेघालय इकाई ने मुख्यमंत्री कोनरैड संगमा पर नरम और निष्प्रभावी होने का आरोप लगाया है. पिछले साल पुलिस फायरिंग में मेघालय के 5 लोगों और असम के एक फॉरेस्ट गार्ड की मौत से हालात और बिगड़ गये हैं.

मुकुल संगमा ने अपने चुनावी भाषण में एनपीपी पर रिमोट से चलने का आरोप लगाया था. उन्होंने यह कहकर अपने विवाद को रेखांकित किया कि असम के साथ सीमा विवाद के दौरान यह देखा गया था कि राज्य सरकार की विफलता के कारण उसे जमीन दी गई है.

इससे भी अधिक गंभीर आरोप लगाये जा रहे है. इसने आरोप लगाया कि एनपीपी नेतृत्व को असम से निर्देशित किया जा रहा है. आखिरकार, एनपीपी के साथ, भाजपा भी मेघालय डेमोक्रेटिक अलायंस का हिस्सा थी. एनपीपी के कथित भ्रष्टाचार, जिस पर भाजपा ने आंखें मूंद लीं, को तृणमूल ने भुगतान के रूप में माना है.

भाजपा के दावों को खारिज करते हुए एनपीपी 57 सीटों पर चुनाव लड़ रही है. यह पिछले पांच वर्षों में राज्य का विकास करने का दावा करता है. इसका मानव विकास अन्य उत्तर पूर्वी राज्यों और पश्चिम बंगाल की तुलना में अधिक होने का दावा किया गया है, जो अभिषेक बनर्जी को बचाव करने को मजबूर करता है. देश में बहुत कम राजनीतिक दल हैं जो धर्म को राजनीति से मिलाने में भाजपा जितने माहिर हैं. लेकिन मेघालय एक ईसाई बहुल राज्य है और भाजपा पर इस धर्म के खिलाफ होने का आरोप लगाया जा रहा है, ऐसा आरोप जिसका उत्तर भाजपा के पास नहीं है.

एक बात आश्चर्यजनक है कि 2024 में अपना प्रधानमंत्री देने का सपना देखना वाली कांग्रेस पार्टी दिशाहीन नजर आ रही है. यह अकल्पनीय है कि जो पार्टी 2018 में 22 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी, उसका अब निवर्तमान विधानसभा में कोई विधायक नहीं है. उसके सभी विधायक अलग हो गए हैं. सबसे बड़ा झटका मुकुल संगमा ने दिया, जो 2010 से 2018 के बीच आठ साल तक मुख्यमंत्री रहे. संगमा 11 अन्य कांग्रेस विधायकों के साथ नवंबर 2021 में पश्चिम बंगाल की सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गए. हालांकि, कांग्रेस पार्टी ने मेघालय की सभी सीटों पर चुनाव लड़ने के अपने फैसले की घोषणा कर दी है, लेकिन मुकुल संगमा के बाहर निकलने के बाद पार्टी नेतृत्वहीन और दिशाहीन नजर आती है. कांग्रेस पार्टी केवल चुनाव लड़ने का रस्म कर रही है. जबकि संगमा के आगमन के साथ तृणमूल कांग्रेस राज्य में एक गंभीर खिलाड़ी के रूप में उभरी है. यहां तक कि कांग्रेस नेताओं को भी लगता है कि मेघालय में सत्ता में उनकी वापसी एक चमत्कार होगा.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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