• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
सियासत

तो क्या कांशीराम की बहन स्वर्ण कौर ने मायावती को बेनकाब कर दिया है?

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 16 जून, 2021 02:48 PM
  • 16 जून, 2021 02:48 PM
offline
2022 में होने वाले पंजाब विधानसभा चुनाव से पहले, बसपा सुप्रीमो द्वारा शिरोमणि अकाली दल से गठबंधन के बाद मायावती को लेकर कांशीराम की बहन स्वर्ण कौर ने बड़ा खुलासा किया है. अपने इंटरव्यू में स्वर्ण कौर ने बता दिया है कि मायावती और काशीराम में मूलभूत अंतर क्या था.

साल 1977 वो वक़्त जब भारतीय राजनीति के अंतर्गत कांशीराम किसी परिचय के मोहताज नहीं रह गए थे. ये कहना अतिश्योक्ति नहीं है कि दलितों, शोषितों, वंचितों के बीच जैसी लोकप्रियता कांशीराम की थी साथ ही जिस तरह उनके पास एक सधा हुआ वोटबैंक था हर दल यही चाहता कि किसी तरह कांशीराम अपना समर्थन उसे दे दें. इस समय तक साल भले ही कांशीराम के सितारे बुलंदियों पर रहे हों लेकिन ये साल मायावती के लिए भी कम खास नहीं था. यही वो समय था जब काशीराम के संपर्क में आने के बाद मायावती ने केवल कुशल राजनीतिज्ञ बनने के सपने देखे बल्कि उसे पूरा भी किया.

इस बात को बिल्कुल भी नहीं झुठलाया जा सकता कि आज मायावती जिस मुकाम पर हैं, उसके पीछे यदि दलितों, शोषितों का बड़ा समर्थन है. लेकिन इस तबके बीच मायावती को लोकप्रिय बनाने में कांशीराम की सबसे बड़ी भूमिका है. मगर क्या आज मायावती इस बात को स्वीकार करेंगी? जवाब मायावती ने नहीं बल्कि कांशीराम की बहन स्वर्ण कौर ने दिया है. मायावती को लेकर कांशीराम की बहन स्वर्ण कौर ने बड़ा खुलासा किया है. इस खुलासे से ये बात शीशे की तरह साफ हो गई है कि मायावती और कांशीराम ने भले ही पिछड़ों, शोषितों, दलितों के दम पर अपनी राजनीति चमकाई हो लेकिन दोनों की ही कार्यशैली और विचारधारा में एक बड़ा अंतर है.जिस तरह की बातें कांशीराम की बहन ने की हैं उससे इतना तो साफ हो गया है कि मायावती ने दलितों के कंधों पर बंदूक रखकर सिर्फ और सिर्फ अपने को फायदा पहुंचाया.

ध्यान रहे कि 2022 में होने जा रहे पंजाब विधानसभा चुनावों के मद्देनजर शिरोमणि अकाली दल और बसपा ने हाथ मिला लिया है. सिर्फ चंद वोटों और सीटों के लिए राजनीतिक रूप से दो अलग विचारधारा के लोगों के साथ आने ने बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक रहे कांशीराम की बहन स्वर्ण कौर को आहत किया है.

शिरोमणि अकाली दल से...

साल 1977 वो वक़्त जब भारतीय राजनीति के अंतर्गत कांशीराम किसी परिचय के मोहताज नहीं रह गए थे. ये कहना अतिश्योक्ति नहीं है कि दलितों, शोषितों, वंचितों के बीच जैसी लोकप्रियता कांशीराम की थी साथ ही जिस तरह उनके पास एक सधा हुआ वोटबैंक था हर दल यही चाहता कि किसी तरह कांशीराम अपना समर्थन उसे दे दें. इस समय तक साल भले ही कांशीराम के सितारे बुलंदियों पर रहे हों लेकिन ये साल मायावती के लिए भी कम खास नहीं था. यही वो समय था जब काशीराम के संपर्क में आने के बाद मायावती ने केवल कुशल राजनीतिज्ञ बनने के सपने देखे बल्कि उसे पूरा भी किया.

इस बात को बिल्कुल भी नहीं झुठलाया जा सकता कि आज मायावती जिस मुकाम पर हैं, उसके पीछे यदि दलितों, शोषितों का बड़ा समर्थन है. लेकिन इस तबके बीच मायावती को लोकप्रिय बनाने में कांशीराम की सबसे बड़ी भूमिका है. मगर क्या आज मायावती इस बात को स्वीकार करेंगी? जवाब मायावती ने नहीं बल्कि कांशीराम की बहन स्वर्ण कौर ने दिया है. मायावती को लेकर कांशीराम की बहन स्वर्ण कौर ने बड़ा खुलासा किया है. इस खुलासे से ये बात शीशे की तरह साफ हो गई है कि मायावती और कांशीराम ने भले ही पिछड़ों, शोषितों, दलितों के दम पर अपनी राजनीति चमकाई हो लेकिन दोनों की ही कार्यशैली और विचारधारा में एक बड़ा अंतर है.जिस तरह की बातें कांशीराम की बहन ने की हैं उससे इतना तो साफ हो गया है कि मायावती ने दलितों के कंधों पर बंदूक रखकर सिर्फ और सिर्फ अपने को फायदा पहुंचाया.

ध्यान रहे कि 2022 में होने जा रहे पंजाब विधानसभा चुनावों के मद्देनजर शिरोमणि अकाली दल और बसपा ने हाथ मिला लिया है. सिर्फ चंद वोटों और सीटों के लिए राजनीतिक रूप से दो अलग विचारधारा के लोगों के साथ आने ने बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक रहे कांशीराम की बहन स्वर्ण कौर को आहत किया है.

शिरोमणि अकाली दल से गठबंधन के बाद कांशीराम की बहन स्वर्ण कौर ने मायावती पर गंभीर आरोप लगाए हैं

स्वर्ण कौर ने कहा है कि चाहे वो शिरोमणि अकाली दल सुप्रीमो सुखबीर सिंह बादल हों या फिर मायावती दोनों ही गरीबों को अपने पास फटकने तक नहीं देते. वहीं कांशीराम पर बात करते हुए स्वर्ण कौर ने कहा है कि कांशीराम ने केवल इसलिए शादी नहीं की क्योंकि उनका एकमात्र लक्ष्य दलितों और वंचितों की सेवा करना था.

बताते चलें कि बसपा और शिरोमणि अकाली दल के गठबंधन के बाद कांशीराम की बहन का एक इंटरव्यू हुआ है जिसने न केवल पंजाब बल्कि उत्तर प्रदेश में भी सियासी सरगर्मी को तेज कर दिया है. स्वर्ण कौर का कहना है कि चाहे वो बादल हों या फिर मायावती दोनों ही गरीबों की वास्तविक स्थिति से अंजान हैं. वहीं शिरोमणि अकाली दल और बसपा के गठबंधन पर बात करते हुए स्वर्ण कौर ने कहा है कि यह ऐसी पार्टियों का गठबंधन है जिसके ऊपर करोड़पतियों का नहीं अरबपतियों का शासन है.

स्वर्ण कौर किस हद तक खफा हैं इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उन्होंने ये तक कह दिया है कि जिन गरीबों के लिए बसपा की स्थापना की गई उसे मायावती द्वारा हाई जैक कर लिया गया. स्वर्ण कौर के अनुसार मायावती अपनी सुविधा के लिए दलितों की बेटी वाला टैग लगाती हैं और अब जबकि उनके पास ढेर सारा पैसा आ गया है वो पूरी तरह से गरीबों को भूल बैठी हैं. आज भी देश में ऐसे तमाम गरीब हैं जो दो वक़्त की रोटी के लिए तरसते हैं.

गौरतलब है कि पंजाब में अकालियों की स्थिति बहुत ठीक नहीं है. वहीं बात मायावती की हो तो ये अपने में दुर्भाग्यपूर्ण है कि वो व्यक्ति जिसने 3 बार उत्तर प्रदेश जैसे विशाल राज्य की कमान संभाली उसे 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में जनता ने सिरे से खारिज कर तीसरे पायदान पर भेज दिया. अब जबकि 22 में ही दोबारा चुनाव होने हैं तो राजनीतिक पंडितों का यही तर्क है कि पंजाब में अकालियों से साथ मिलाकर मायावती ने अपनी डूबती नैया को बचाने की कोशिश की है.

बात स्वर्ण कौर और मायावती की कार्यप्रणाली के तहत दिए गए उनके इंटरव्यू की हुई है तो बताते चलें कि स्वर्ण कौर का मानना है कि सिर्फ अपने फायदे के लिये मायावती ने कांशीराम की विचारधारा के साथ धोखा किया और साथ ही उन लोगों को भी पार्टी से अलग किया जो कांशीराम के फॉलोवर थे.

बहरहाल अब जबकि मायावती पर तमाम तरह के गंभीर आरोप और किसी ने नहीं बल्कि स्वयं काशीराम की बहन ने लगाए हैं तो देखना दिलचस्प रहेगा कि ये बयान कैसे और कितने पंजाब के दलितों वंचितों और ग़रीबों को प्रभावित करते हैं. वहीं बात अगर मायावती की हो तो स्वर्ण कौर के इन आरोपों के बाद सामने आना चाहिए और प्रेस कॉन्फ्रेंस कर मीडिया के सामने अपने मन की बात करनी चाहिए.

ये भी पढ़ें -

मायावती की P से ज्यादा पंजाब में दिलचस्पी क्यों - सिर्फ दलित मुद्दा या कुछ और?

KCR बताएं 11 करोड़ों की कारें खरीदना कितना जरूरी, जब कोरोना के खर्चे सामने हैं?

नीतीश कुमार के 'तूफान' की चपेट में आने के बाद 'चिराग' बुझना ही था!

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    अब चीन से मिलने वाली मदद से भी महरूम न हो जाए पाकिस्तान?
  • offline
    भारत की आर्थिक छलांग के लिए उत्तर प्रदेश महत्वपूर्ण क्यों है?
  • offline
    अखिलेश यादव के PDA में क्षत्रियों का क्या काम है?
  • offline
    मिशन 2023 में भाजपा का गढ़ ग्वालियर - चम्बल ही भाजपा के लिए बना मुसीबत!
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲