• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
सियासत

राहुल गांधी का 'न्याय' कहीं 70 साल पुरानी राशन वाली पीडीएस स्‍कीम की तरह तो नहीं!

    • अरिंदम डे
    • Updated: 29 मार्च, 2019 03:27 PM
  • 29 मार्च, 2019 03:04 PM
offline
आम चुनाव से पहले वोटरों के मन में कई सवाल होंगे. क्या कांग्रेस बाकी चालू सब्सिडीज़ को बंद कर देगी? देश की जो आर्थिक स्थिति है उसमें कृषि ऋण माफी योजनाए और न्यूनतम आय योजना एक साथ तो चलना मुमकिन नहीं है. अगर बगैर काम किये 6 हज़ार रूपया महीने मिलने लगे तो मनरेगा का क्या होगा?

राहुल गांधी के चुनाव जीतने वाले दांव 'न्याय' में बहुत सारे सवाल छिपे हुए हैं. जैसा पी चिदंबरम ने बताया कि यह एक पायलट प्रोजेक्ट होगा और चरणों में लागू किया जाएगा. यह न्यूनतम रोज़गार गारंटी स्कीम नहीं है. सत्तारूढ़ पार्टी तय करेगी कि किसको और कैसे यह दिया जाएगा. इसमें अभी कोई गाइडलाइन तय नहीं हुई है. कांग्रेस का कहना है कि अर्थनीतिक विशेषज्ञों से सलाह ली जा चुकी है. उनका मानना है कि देश के पास इतना समर्थ मौजूद है जो इस योजना को सफल बना सकता है. याद दिलाना चाहेंगे कि नोटबंदी को भी बहुत सारे अर्थशास्त्रियों ने सही ठहराया था.

न्याय के बारे में बात करते हुए चिदंबरम साहब ने किसान सम्मान योजना को चुनावी जुमला बताया. चलो मान लेते हैं कि न्याय के पीछे कांग्रेस की कोई राजनीतिक मंशा नहीं है. फिर भी किसान सम्मान योजना लागू है, न्याय का तो प्लान भी नहीं बना. अगर न्याय को लागू करना था तो छोटा सा सवाल यह उठता है कि जब पार्टी 10 साल तक सत्ता में थी तब उसको न्यूनतम आय जैसी योजना लागू करने से कौन और क्याें रोक रहा था? शायद गठबंधन की मजबूरियां?

क्या कृषि ऋण माफी योजना और न्यूनतम आय योजना एक साथ चल पाएंगी

कोई भी स्कीम की सफलता या विफलता दो पैरों पर निर्भर करती है- आइडेंटिफिकेशन एंड इम्प्लीमेंटेशन. जिस योजना में देश के जीडीपी का 2% तक खर्च हो सकता है उसमें पहचान और ज़मीन पर लागू करने की प्रक्रिया एकदम फूलप्रूफ होना चाहिए. नहीं तो उसका उदहारण देश को राशन यानी पीडीएस योजना की सूरत में दिख गया है. जो कालाबाजारी के लिए कुख्‍यात रही.

पैसा कहां से आएगा? बहुत मुमकिन है कि आयकर दाताओं से. क्योंकि राहुल गांधी जी जीएसटी दरों में कटौती करना चाहते हैं, और सरकार के पास पैसा उठाने का और कोई रास्ता फिलहाल नहीं दिखता है.

तो मामला यह...

राहुल गांधी के चुनाव जीतने वाले दांव 'न्याय' में बहुत सारे सवाल छिपे हुए हैं. जैसा पी चिदंबरम ने बताया कि यह एक पायलट प्रोजेक्ट होगा और चरणों में लागू किया जाएगा. यह न्यूनतम रोज़गार गारंटी स्कीम नहीं है. सत्तारूढ़ पार्टी तय करेगी कि किसको और कैसे यह दिया जाएगा. इसमें अभी कोई गाइडलाइन तय नहीं हुई है. कांग्रेस का कहना है कि अर्थनीतिक विशेषज्ञों से सलाह ली जा चुकी है. उनका मानना है कि देश के पास इतना समर्थ मौजूद है जो इस योजना को सफल बना सकता है. याद दिलाना चाहेंगे कि नोटबंदी को भी बहुत सारे अर्थशास्त्रियों ने सही ठहराया था.

न्याय के बारे में बात करते हुए चिदंबरम साहब ने किसान सम्मान योजना को चुनावी जुमला बताया. चलो मान लेते हैं कि न्याय के पीछे कांग्रेस की कोई राजनीतिक मंशा नहीं है. फिर भी किसान सम्मान योजना लागू है, न्याय का तो प्लान भी नहीं बना. अगर न्याय को लागू करना था तो छोटा सा सवाल यह उठता है कि जब पार्टी 10 साल तक सत्ता में थी तब उसको न्यूनतम आय जैसी योजना लागू करने से कौन और क्याें रोक रहा था? शायद गठबंधन की मजबूरियां?

क्या कृषि ऋण माफी योजना और न्यूनतम आय योजना एक साथ चल पाएंगी

कोई भी स्कीम की सफलता या विफलता दो पैरों पर निर्भर करती है- आइडेंटिफिकेशन एंड इम्प्लीमेंटेशन. जिस योजना में देश के जीडीपी का 2% तक खर्च हो सकता है उसमें पहचान और ज़मीन पर लागू करने की प्रक्रिया एकदम फूलप्रूफ होना चाहिए. नहीं तो उसका उदहारण देश को राशन यानी पीडीएस योजना की सूरत में दिख गया है. जो कालाबाजारी के लिए कुख्‍यात रही.

पैसा कहां से आएगा? बहुत मुमकिन है कि आयकर दाताओं से. क्योंकि राहुल गांधी जी जीएसटी दरों में कटौती करना चाहते हैं, और सरकार के पास पैसा उठाने का और कोई रास्ता फिलहाल नहीं दिखता है.

तो मामला यह है कि जीडीपी का 2% खर्च, उधर बैलेंस ऑफ पेमेंट डेफिसिट कमोबेश 3% का, अब शायद यह जुमला जैसे लगने लगा है. अगर कांग्रेस पार्टी इतनी ही सीरियस थी तो न्याय की रुपरेखा तय करने के लिए उनके पास 4 साल से ज़्यादा का समय था. 'चौकीदार चोर है' फ्लॉप हो जाने के बाद तक इंतज़ार समझ में नहीं आया.

बहुत सारे सवालों के जवाब नहीं मिले- आम चुनाव से पहले वोटरों के मन में कई सवाल होंगे. क्या कांग्रेस बाकी चालू सब्सिडीज़ को बंद कर देगी? डीजल, खाद, बीज, फ़ूड सब्सिडी? पूरी रुपरेखा क्या मैनिफेस्टो में मिलेगी? क्या चालू सामाजिक योजनाएं बंद कर दी जायेंगी? क्या कृषि ऋण माफी योजनाएं बंद हो जाएंगी? देश की जो आर्थिक स्थिति है उसमें कृषि ऋण माफी योजनाएं और न्यूनतम आय योजना एक साथ तो चलना मुमकिन नहीं है. अगर बगैर काम किये 6 हज़ार रूपया महीने मिलने लगे तो मनरेगा का क्या होगा?

हां यह है कि न्याय जैसी योजना देश में अभूतपूर्व और सामाजिक बदलाव ला सकती है. लेकिन वही इम्प्लीमेंटेशन एंड आइडेंटिफिकेशन एकदम वाटर प्रूफ होना चाहिए. ध्यान में रखना ज़रूरी होगा कि देश की लगभग सभी सामाजिक योजनाएं इस कमी के चलते पूरी तरह कारगर नहीं हो पाई हैं. 1950 के दशक से जब सरकार ने राशन या पीडीएस को सामाजिक न्याय के नीति के तरह अपनाया था. तो आगे चलकर वह कालाबाजारी के लिए कुख्‍यात हो गई. 70 के दशक में कांग्रेस की सरकारों के खिलाफ इस पर नारे कहे जाने लगे. 'खा गई शक्‍कर, पी गई तेल... ये देखो इंदिरा का खेल...'.

ये भी पढ़ें-

ये न्यूनतम आय गारंटी योजना नहीं आर्थिक क्रांति का आइडिया है

'अंबानी' जैसों की दौलत में हुआ इजाफा सोचने पर मजबूर करता है

GST घटाकर सस्ते हुए घरों से कितना फायदा?


इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    अब चीन से मिलने वाली मदद से भी महरूम न हो जाए पाकिस्तान?
  • offline
    भारत की आर्थिक छलांग के लिए उत्तर प्रदेश महत्वपूर्ण क्यों है?
  • offline
    अखिलेश यादव के PDA में क्षत्रियों का क्या काम है?
  • offline
    मिशन 2023 में भाजपा का गढ़ ग्वालियर - चम्बल ही भाजपा के लिए बना मुसीबत!
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲