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राजस्थान में जसवंत सिंह के बेटे ने कांग्रेस से हाथ मिलाकर क्या पाया?

    • अरविंद मिश्रा
    • Updated: 20 अक्टूबर, 2018 12:56 PM
  • 20 अक्टूबर, 2018 12:53 PM
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आखिर मानवेंद्र सिंह कांग्रेस का हाथ कितना मज़बूत कर सकते हैं? आखिर इस परिवार का मारवाड़ में इतना प्रभाव है जो कांग्रेस को बढ़त दिला सके? क्या मारवाड़ इलाके में जसवंत सिंह का प्रभाव अभी भी कायम है? और अगर प्रभाव है तो कांग्रेस को इस क्षेत्र से कितनी सीटों का फायदा होने की उम्मीद है?

'कमल की फूल हमारी भूल' ये वक्तव्य था भाजपा के दिग्गज और एनडीए सरकार में पूर्व विदेश और वित्तमंत्री रहे जसवंत सिंह के बेटे मानवेंद्र सिंह का. ये बात पिछले महीने राजस्थान के बाड़मेर जिले में अपनी स्वाभिमान रैली के दौरान भाजपा को अलविदा कहते हुए कही थी. और अब राजस्थान के विधानसभा चुनावों से ठीक पहले वो कमल के फूल को भूलकर हाथ के साथ चले आए हैं. यानी उन्होंने कांग्रेस ज्वाइन कर ली है.

मानवेंद्र सिंह वर्ष 2013 के विधानसभा चुनाव में बाड़मेर जिले की शिव सीट से भाजपा विधायक बने थे. ये बात अलग है कि जिस कमल के फूल को वो भूल गए उसे खिलाने में उनके पिताजी का बहुत बड़ा योगदान रहा है. लेकिन भाजपा से कड़वाहट की वज़ह 2014 के लोकसभा चुनाव में राजस्थान के बाड़मेर लोकसभा संसदीय क्षेत्र से जसवंत सिंह को भाजपा द्वारा टिकट नहीं दिया जाना था. टिकट नहीं मिलने के कारण जसवंत सिंह निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़े जिसके कारण उन्हें छह साल के लिए पार्टी से निष्कासित कर दिया गया था. तब से मानवेंद्र सिंह भाजपा से नाराज़ चल रहे थे.

मानवेंद्र सिंह ने कांग्रेस का हाथ थाम लिया है

लेकिन सवाल ये कि आखिर मानवेंद्र सिंह कांग्रेस का हाथ कितना मज़बूत कर सकते हैं? आखिर इस परिवार का मारवाड़ में इतना प्रभाव है जो कांग्रेस को बढ़त दिला सके? क्या मारवाड़ इलाके में जसवंत सिंह का प्रभाव अभी भी कायम है? और अगर प्रभाव है तो कांग्रेस को इस क्षेत्र से कितनी सीटों का फायदा होने की उम्मीद है?

राजस्थान का मारवाड़ क्षेत्र विधानसभा सीटों के लिहाज़ से सबसे बड़ा है. इसमें विधानसभा की कुल 43 सीटें हैं. मारवाड़ को कांग्रेस का गढ़ माना जाता था लेकिन 2013 के विधानसभा चुनाव में यहां से 39 सीटें जीतकर भाजपा ने इसे धराशायी कर दिया था. कांग्रेस को मात्र 3 सीटें ही मिली थीं और 1...

'कमल की फूल हमारी भूल' ये वक्तव्य था भाजपा के दिग्गज और एनडीए सरकार में पूर्व विदेश और वित्तमंत्री रहे जसवंत सिंह के बेटे मानवेंद्र सिंह का. ये बात पिछले महीने राजस्थान के बाड़मेर जिले में अपनी स्वाभिमान रैली के दौरान भाजपा को अलविदा कहते हुए कही थी. और अब राजस्थान के विधानसभा चुनावों से ठीक पहले वो कमल के फूल को भूलकर हाथ के साथ चले आए हैं. यानी उन्होंने कांग्रेस ज्वाइन कर ली है.

मानवेंद्र सिंह वर्ष 2013 के विधानसभा चुनाव में बाड़मेर जिले की शिव सीट से भाजपा विधायक बने थे. ये बात अलग है कि जिस कमल के फूल को वो भूल गए उसे खिलाने में उनके पिताजी का बहुत बड़ा योगदान रहा है. लेकिन भाजपा से कड़वाहट की वज़ह 2014 के लोकसभा चुनाव में राजस्थान के बाड़मेर लोकसभा संसदीय क्षेत्र से जसवंत सिंह को भाजपा द्वारा टिकट नहीं दिया जाना था. टिकट नहीं मिलने के कारण जसवंत सिंह निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़े जिसके कारण उन्हें छह साल के लिए पार्टी से निष्कासित कर दिया गया था. तब से मानवेंद्र सिंह भाजपा से नाराज़ चल रहे थे.

मानवेंद्र सिंह ने कांग्रेस का हाथ थाम लिया है

लेकिन सवाल ये कि आखिर मानवेंद्र सिंह कांग्रेस का हाथ कितना मज़बूत कर सकते हैं? आखिर इस परिवार का मारवाड़ में इतना प्रभाव है जो कांग्रेस को बढ़त दिला सके? क्या मारवाड़ इलाके में जसवंत सिंह का प्रभाव अभी भी कायम है? और अगर प्रभाव है तो कांग्रेस को इस क्षेत्र से कितनी सीटों का फायदा होने की उम्मीद है?

राजस्थान का मारवाड़ क्षेत्र विधानसभा सीटों के लिहाज़ से सबसे बड़ा है. इसमें विधानसभा की कुल 43 सीटें हैं. मारवाड़ को कांग्रेस का गढ़ माना जाता था लेकिन 2013 के विधानसभा चुनाव में यहां से 39 सीटें जीतकर भाजपा ने इसे धराशायी कर दिया था. कांग्रेस को मात्र 3 सीटें ही मिली थीं और 1 सीट निर्दलीय ने जीती थी. यही नहीं जसवंत सिंह के गृह जिले बाड़मेर में 7 विधानसभा सीटों में से भाजपा को 6 सीटें मिली थीं लेकिन भाजपा को ये जीत तब मिली थी जब जसवंत सिंह भाजपा में थे. इस बार भाजपा को काफी मंहगा पड़ सकता है क्योंकि भाजपा के 23 विधायकों में 14 मारवाड़ इलाके से ही जीत कर आये थे. दूसरे शब्दों में कहें तो भाजपा का सबसे बड़ा कोर वोट बैंक राजपूत मारवाड़ में ही है. यही नहीं अगर मारवाड़ के मतदाताओं की भावनाएं जोर मार गईं, तो ये सीटें भाजपा की मुट्ठी से फिसल भी सकती हैं. मतलब साफ़ है मानवेंद्र सिंह का कांग्रेस में जाने से राजपूत वोट कांग्रेस में जा सकता है. वहीं जसवंत सिंह मुस्लिमों के साथ अच्छे रिश्ते के कारण राजपूतों के साथ मुस्लिमों के वोट भी कांग्रेस को मिल सकते हैं.

चूंकि राजस्थान में पिछले 20 सालों के इतिहास में सत्तासीन पार्टी लगातार दूसरी बार चुनकर नहीं आई है ऐसे में राजस्थान के इतिहास बनाम इतिहास रचने की जंग के बीच कांग्रेस और भाजपा में जोर आज़माइश जारी है. लेकिन इस जंग में मानवेंद्र सिंह कांग्रेस के लिए कितना बड़ा वरदान साबित होंगे ये तो 11 दिसम्बर को तय होगा जब चुनावों के नतीजों का ऐलान होगा.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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