• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
सियासत

खट्टर की खटारा चल निकली, फडनवीस फंस गए!

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 30 अक्टूबर, 2019 07:53 PM
  • 30 अक्टूबर, 2019 07:53 PM
offline
हरियाणा में मनोहर लाल खट्टर अस्थिर होने के बावजूद सरकार बनाने में कामयाब रहे जबकि महाराष्ट्र में भाजपा के स्टार प्रचारक देवेंद्र फडनवीस अब तक कुर्सी को लेकर संघर्ष कर रहे हैं. बात सही है राजनीति में न तो कुछ पूर्व नियोजित होता है न ही पूर्व निर्धारित.

राजनीति में कुछ भी पूर्व नियोजित या फिर पूर्व निर्धारित नहीं होता. भाग्य के मेहरबान होने भर की देर है. कब रंक, राजा बन जाए और प्रसिद्धि के अलावा यश और वैभव हासिल कर ले. ये सिवाए ईश्वर के कोई नहीं जानता. भाग्य कैसे इंसान को रंक से राजा या फिर राजा को रंक बनाता है उदाहरण के जरिये समझना हो तो हम हाल में संपन्न हुए दो राज्यों हरियाणा और महाराष्ट्र के चुनावों का अवलोकन कर सकते हैं. हरियाणा में मनोहर लाल खट्टर भाजपा का चेहरा थे. जबकि महाराष्ट्र की कमान देवेंद्र फडणवीस के हाथों में थी. बात अगर चुनावों से पहले की हो तो जैसे हाव भाव या ये कहें कि जैसे तेवर थे, लग रहा था कि वो महाराष्ट्र में जो विजय रथ देवेंद्र फडणवीस ने सजाया है उसे वही ले जाएंगे. जबकि हरियाणा में खट्टर की हालत पतली थी. पार्टी के वरिष्ठ नेताओं में शुमार खट्टर के लिए कुछ भी स्थिर नहीं था. पार्टी के अन्दर ही एक बड़ा वर्ग ऐसा भी था जिसने खट्टर की जीत पर ही संशय लगा दिया था. चुनाव बाद जो परिणाम आए वो कई मायनों में चौकाने वाले थे. सब कुछ अस्थिर होने के बावजूद खट्टर की खटारा चल निकली जबकि फडनवीस अपने ही चक्रव्यू में फंस कर रह गए.

फडनवीस के मुकाबले खट्टर के तारे बुलंदियों पर हैं. उन्हें जो फायदा भाग्य ने पहुंचाया है वो हमारे सामने है

चूंकि खट्टर पर भाग्य दोबारा मेहरबान हुआ है और उन्होंने दूसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली है तो चर्चा की शुरुआत खट्टर से ही की जाए. मनोहर लाल खट्टर के पिछले कार्यकाल और उनकी कार्यप्रणाली दोनों पर अगर नजर डाली जाए तो ऐसा कुछ नहीं था जिसे देखकर ये कहा जा सकता था कि वो कमाल करेंगे. बात अगर लोकप्रियता के दायरे में हो तो भी खट्टर के विषय में यही माना जाता रहा है कि नीतियों के कारण हरियाणा की जनता उन्हें पसंद नहीं करती है.

एक नेता की पहचान...

राजनीति में कुछ भी पूर्व नियोजित या फिर पूर्व निर्धारित नहीं होता. भाग्य के मेहरबान होने भर की देर है. कब रंक, राजा बन जाए और प्रसिद्धि के अलावा यश और वैभव हासिल कर ले. ये सिवाए ईश्वर के कोई नहीं जानता. भाग्य कैसे इंसान को रंक से राजा या फिर राजा को रंक बनाता है उदाहरण के जरिये समझना हो तो हम हाल में संपन्न हुए दो राज्यों हरियाणा और महाराष्ट्र के चुनावों का अवलोकन कर सकते हैं. हरियाणा में मनोहर लाल खट्टर भाजपा का चेहरा थे. जबकि महाराष्ट्र की कमान देवेंद्र फडणवीस के हाथों में थी. बात अगर चुनावों से पहले की हो तो जैसे हाव भाव या ये कहें कि जैसे तेवर थे, लग रहा था कि वो महाराष्ट्र में जो विजय रथ देवेंद्र फडणवीस ने सजाया है उसे वही ले जाएंगे. जबकि हरियाणा में खट्टर की हालत पतली थी. पार्टी के वरिष्ठ नेताओं में शुमार खट्टर के लिए कुछ भी स्थिर नहीं था. पार्टी के अन्दर ही एक बड़ा वर्ग ऐसा भी था जिसने खट्टर की जीत पर ही संशय लगा दिया था. चुनाव बाद जो परिणाम आए वो कई मायनों में चौकाने वाले थे. सब कुछ अस्थिर होने के बावजूद खट्टर की खटारा चल निकली जबकि फडनवीस अपने ही चक्रव्यू में फंस कर रह गए.

फडनवीस के मुकाबले खट्टर के तारे बुलंदियों पर हैं. उन्हें जो फायदा भाग्य ने पहुंचाया है वो हमारे सामने है

चूंकि खट्टर पर भाग्य दोबारा मेहरबान हुआ है और उन्होंने दूसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली है तो चर्चा की शुरुआत खट्टर से ही की जाए. मनोहर लाल खट्टर के पिछले कार्यकाल और उनकी कार्यप्रणाली दोनों पर अगर नजर डाली जाए तो ऐसा कुछ नहीं था जिसे देखकर ये कहा जा सकता था कि वो कमाल करेंगे. बात अगर लोकप्रियता के दायरे में हो तो भी खट्टर के विषय में यही माना जाता रहा है कि नीतियों के कारण हरियाणा की जनता उन्हें पसंद नहीं करती है.

एक नेता की पहचान या तो उसका भाषण होता है या फिर उसका बयान. यदि इस सांचे में भी खट्टर को डाला जाए तो जो नतीजे हमारे सामने आते हैं, वो चौकाने वाले हैं. शायद ही कभी ऐसा वक़्त आया हो जब भाषणों के लिहाज से खट्टर ने किसी को प्रभावित किया हो. बात क्योंकि भाषणों के अलावा बयानों पर हुई है तो हमारे लिए ये बताना भी बेहद जरूरी है कि पूर्व में जिस तरह के बयान हरियाणा के वर्तमान मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने दिए हैं वो न सिर्फ अतार्किक थे. बल्कि कई बार तो आलोचकों ने यहां तक कह दिया कि खट्टर जिस तरह के बयान देते हैं वो एक राज्य के मुख्यमंत्री को शोभा नहीं देता.

इतनी अस्थिरता होने के बावजूद न सिर्फ खट्टर ने जीत दर्ज की है बल्कि लगातार दूसरी बार उन्होंने हरियाणा के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेकर अपने आलोचकों के मुंह पर ताला जड़ा है.

हैरान करने वाली बात ये है कि इतनी लोकप्रियता के बावजूद अभी तब देवेंद्र फडनवीस महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री नहीं बन पाए हैं

ये तो बात हो गई लगातार दूसरी बार हरियाणा के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर विराजे मनोहर लाल खट्टर की अब आते हैं देवेंद्र फडनवीस पर. जैसा कि हम बता चुके हैं चुनाव से पहले यही माना जा रहा था कि फडनवीस महाराष्ट्र में कुछ बड़ा करिश्मा करेंगे मगर अब जबकि परिणाम हमारे सामने हैं, सारी की सारी कवायद धरी की धरी रह गई है. फडनवीस को अपने दूसरे कार्यकाल के लिए अलग अलग मोर्चों पर तमाम जटिल चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है.

शुरुआत में जैसे रुझान थे और जिस तरह के समीकरण बने थे माना यही जा रहा था कि महाराष्ट्र में भाजपा के पोस्टर बॉय होने और अपनी क्लीन छवि के कारण चुनाव बाद देवेंद्र फडनवीस बड़ी ही आसानी के साथ राज्य के मुख्यमंत्री बनेंगे मगर जो पेंच महाराष्ट्र में भाजपा और शिव सेना के बीच फंसा है उसने अगर सबसे ज्यादा किसी को परेशान किया है तो वो और कोई नहीं बल्कि महाराष्ट्र में भाजपा के स्टार प्रचारक और किसी हीरो सरीखी छवि रखने वाले देवेंद्र फडनवीस हैं.

ये वाकई अपने आप में खासा दिलचस्प है कि जिस फडनवीस को लेकर भाजपा और आलाकमान बेफिक्र था वही फडनवीस आज महाराष्ट्र की सियासत में  अपनी पार्टी और अपनी ही पार्टी के सहयोगी दल शिव सेना से दो दो हाथ कर रहे हैं. यानी जो सुलूक महाराष्ट्र में देवेंद्र फडनवीस के साथ हुआ है कहा यही जा सकता है कि उनकी सारी खूबियां और गुड बॉय की छवि  धरी की धरी रह गई हैं.

बहरहाल बात का सार बस इतना है कि जरूरी नहीं कि हर बार बुद्धि ही कीर्ति दे कई मौके आते हैं जब भाग्य बलवान होता है. व्यक्ति के जीवन में भाग्य कितना बड़ा ओल अदा कर सकता है मनोहर लाल खट्टर के रूप में उदाहरण हमारे सामने हैं जिनकी जिंदगी में इन दिनों सब मनोहर है और जिनकी पांचों अंगुलियां घी और सिर कढ़ाई में है.

ये भी पढ़ें -

भाजपा-शिवसेना के बीच सत्‍ता का संघर्ष सबसे घातक मोड़ पर...

महाराष्ट्र को 'कर्नाटक' बना दिया बीजेपी ने

शिवसेना का 50-50 फार्मूला मतलब बीजेपी से जितना ज्‍यादा मिल जाए


इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    अब चीन से मिलने वाली मदद से भी महरूम न हो जाए पाकिस्तान?
  • offline
    भारत की आर्थिक छलांग के लिए उत्तर प्रदेश महत्वपूर्ण क्यों है?
  • offline
    अखिलेश यादव के PDA में क्षत्रियों का क्या काम है?
  • offline
    मिशन 2023 में भाजपा का गढ़ ग्वालियर - चम्बल ही भाजपा के लिए बना मुसीबत!
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲