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ममता की बंगाल रैली से नदारद कुछ वीआईपी ही मोदी के लिए काफी हैं

    • आईचौक
    • Updated: 19 जनवरी, 2019 11:11 AM
  • 19 जनवरी, 2019 10:42 AM
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कर्नाटक के नाटक का पटाक्षेप भले न हो पाया हो, लेकिन कुमारस्वामी के शपथग्रहण में विपक्ष जिस मजबूती से डटा दिखा वो दुर्लभ ही रहा. फिलहाल तो ममता बनर्जी की रैली में भी लालू प्रसाद की पटना रैली के लक्षण नजर आ रहे हैं.

ममता बनर्जी की कोलकाता में हो रही यूनाइटेड इंडिया रैली से राहुल गांधी और सोनिया गांधी के साथ मायावती ने भी दूरी बना ली है. सबकी अपनी अपनी उलझने हैं और सियासी समीकरण भी. वैसे कांग्रेस और बीएसपी के प्रतिनिधि रैली में मौजूद जरूर रहेंगे.

मेहमानों की लिस्ट तो लंबी है लेकिन राहुल गांधी, सोनिया गांधी और मायावती के होने की बात और होती. वैसे तीनों का एक साथ रहना तो मुमकिन न था, लेकिन मायावती के दूरी बनाने की वजह कांग्रेस के नेताओं से ज्यादा खुद ममता बनर्जी ही लगती हैं. ममता बनर्जी तो मायावती से पहले से ही प्रधानमंत्री पद की दावेदार हैं - और रैली के आयोजन का मकसद भी उसकी के लिए शक्ति प्रदर्शन है.

राहुल-सोनिया के बाद मायावती ने भी पल्ला झाड़ा

ममता बनर्जी की रैली में राहुल गांधी और सोनिया गांधी का प्रतिनिधित्व मल्लिकार्जुन खड़गे और अभिषेेेकमनु सिंघवी करेंगे. कुछ कुछ वैसे ही जैसे ममता भी अपनी जगह प्रतिनिधियों को भेजती रहती हैं. कमलनाथ के शपथग्रहण में ये जिम्मेदारी दिनेश त्रिवेदी को सौंपी गयी थी. मायावती के लिए रैली में निर्धारित सीट पर बैठने की खातिर बीएसपी नेता ने अपने करीबी और भरोसेमंद सतीश चंद्र मिश्रा को कह दिया है.

राहुल गांधी और सोनिया गांधी अगर ममता की रैली में मौजूद होते तो उस राजनीतिक जमघट को एकजुट विपक्ष के तौर पर देखा जाता. मायावती की मौजूदगी भी तीसरे मोर्चे की मजबूती दर्शाती - लेकिन अब जो सीन नजर आ रहा है वो तीसरे मोर्चे से भी कुछ कमजोर ही लग रहा है.

अखिलेश यादव की शिरकत की मंजूरी के बाद मायावती की भी हिस्सेदारी की संभावना लग रही थी. ऐसे में जबकि अखिलेश यादव मायावती को प्रधानमंत्री के रूप में सपोर्ट करने लगे हैं, कोलकाता में क्या रूख अपनाते हैं देखना दिलचस्प होगा.

राहुल और सोनिया गांधी की वजह से तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव भी रैली में शामिल नहीं हो रहे हैं. अब मायावती की तरह केसीआर के लिए भी विकल्प खुला है - देखते हैं आखिर तक क्या लाइन लेते हैं.

ममता बनर्जी की कोलकाता में हो रही यूनाइटेड इंडिया रैली से राहुल गांधी और सोनिया गांधी के साथ मायावती ने भी दूरी बना ली है. सबकी अपनी अपनी उलझने हैं और सियासी समीकरण भी. वैसे कांग्रेस और बीएसपी के प्रतिनिधि रैली में मौजूद जरूर रहेंगे.

मेहमानों की लिस्ट तो लंबी है लेकिन राहुल गांधी, सोनिया गांधी और मायावती के होने की बात और होती. वैसे तीनों का एक साथ रहना तो मुमकिन न था, लेकिन मायावती के दूरी बनाने की वजह कांग्रेस के नेताओं से ज्यादा खुद ममता बनर्जी ही लगती हैं. ममता बनर्जी तो मायावती से पहले से ही प्रधानमंत्री पद की दावेदार हैं - और रैली के आयोजन का मकसद भी उसकी के लिए शक्ति प्रदर्शन है.

राहुल-सोनिया के बाद मायावती ने भी पल्ला झाड़ा

ममता बनर्जी की रैली में राहुल गांधी और सोनिया गांधी का प्रतिनिधित्व मल्लिकार्जुन खड़गे और अभिषेेेकमनु सिंघवी करेंगे. कुछ कुछ वैसे ही जैसे ममता भी अपनी जगह प्रतिनिधियों को भेजती रहती हैं. कमलनाथ के शपथग्रहण में ये जिम्मेदारी दिनेश त्रिवेदी को सौंपी गयी थी. मायावती के लिए रैली में निर्धारित सीट पर बैठने की खातिर बीएसपी नेता ने अपने करीबी और भरोसेमंद सतीश चंद्र मिश्रा को कह दिया है.

राहुल गांधी और सोनिया गांधी अगर ममता की रैली में मौजूद होते तो उस राजनीतिक जमघट को एकजुट विपक्ष के तौर पर देखा जाता. मायावती की मौजूदगी भी तीसरे मोर्चे की मजबूती दर्शाती - लेकिन अब जो सीन नजर आ रहा है वो तीसरे मोर्चे से भी कुछ कमजोर ही लग रहा है.

अखिलेश यादव की शिरकत की मंजूरी के बाद मायावती की भी हिस्सेदारी की संभावना लग रही थी. ऐसे में जबकि अखिलेश यादव मायावती को प्रधानमंत्री के रूप में सपोर्ट करने लगे हैं, कोलकाता में क्या रूख अपनाते हैं देखना दिलचस्प होगा.

राहुल और सोनिया गांधी की वजह से तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव भी रैली में शामिल नहीं हो रहे हैं. अब मायावती की तरह केसीआर के लिए भी विकल्प खुला है - देखते हैं आखिर तक क्या लाइन लेते हैं.

कर्नाटक में ममता बनर्जी और मायावती साथ साथ, लेकिन अब ये नजारा दुर्लभ है.

ममता के मेहमान

ममता बनर्जी की रैली में सिर्फ दो पार्टियां ऐसी हैं जिन्हें न्योता नहीं मिला है - सीपीएम और सीपीआई. वैसे दोनों में से किसी को न तो अपेक्षा रही होगी और न ही कोई दिलचस्पी. न्योता तो पश्चिम बंगाल कांग्रेस के नेताओं को भी नहीं मिला है. राहुल गांधी और सोनिया गांधी के कार्यक्रम रद्द होने के पीछे स्थानीय नेताओं की सलाह ही है. पश्चिम बंगाल कांग्रेस का मानना है कि आम चुनाव में पार्टी राहुल गांधी के नेतृत्व में अकेले दम पर चुनाव लड़ने लायक हो चुकी है.

रैली में शामिल हो रहे कुछ नेता ऐसे भी हैं जो विपक्षी खेमे में अपनी बातों को लेकर चर्चित रहे हैं, जैसे - एमके स्टालिन. स्टालिन ने हाल ही में राहुल गांधी को प्रधानमंत्री पद का असली दावेदार बताया था जिसका काफी विरोध भी हुआ.

रैली में बड़ी मौजूदगी दर्ज कराने वाले नेताओं में अरविंद केजरीवाल भी होंगे. केजरीवाल के साथ ममता की ऐसी दोस्ती है कि वो कांग्रेस नेतृत्व से भी उलझ लेती हैं. खैर, फिलहाल तो कांग्रेस के साथ दिल्ली और पंजाब में सीटों पर समझौते को लेकर भी 'हां-भी, ना-भी' का दौर चल रहा है.

कुछ दिन पहले ममता बनर्जी से कोलकाता जाकर मिलने वाले फारूक अब्दुल्ला तो पहुंचेंगे ही, कर्नाटक के मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी भी घर में मचे बवाल के बावजूद पहुंचेंगे - एहसान का बदला भी तो चुकाना पड़ता है. कर्नाटक में कुमारस्वामी के शपथग्रहण का ही एकमात्र मौका ऐसा रहा जब करीब करीब पूरा विपक्ष साथ खड़ा नजर आया, वरना कोलकाता रैली के लक्षण भी पटना रैली जैसे ही प्रतीत हो रहे हैं.

कर्नाटक के विपक्षी जमावड़े जैसा नमूना न पहले दिखा, न बाद में

विपक्षी खेमे के दो बड़े सूत्रधार और अपने इलाके के सियासी दिग्गज एन. चंद्र बाबू नायडू और शरद पवार भी रैली की शोभा बढ़ाने में कसर बाकी नहीं रखना चाहेंगे.

तृणमूल कांग्रेस की ये रैली कोलकाता के ब्रिगेड परेड ग्राउंड में होनी है - और आयोजन की नींव ही इस बात को लेकर पड़ी थी कि ममता बनर्जी को प्रधानमंत्री पद का सबसे बड़ा दावेदार बताया जा सके.

बीजेपी के खिलाफ जमावड़े से नतीजा क्या?

5 जनवरी को ममता बनर्जी का बर्थडे था - और शुभकामना देते देते पश्चिम बंगाल बीजेपी अध्यक्ष दिलीप घोष ने एक ऐसी बात कह डाली जो बीजेपी में शायद ही किसी ने सोचा हो. दिलीप घोष ने कहा, ‘हम चाहते हैं कि वो स्वस्थ रहें ताकि अच्छा काम कर सकें. उनका सेहतमंद रहना जरूरी है, क्योंकि अगर किसी बंगाली के प्रधानमंत्री बनने की संभावनाएं हैं तो उनमें वही एक ऐसी हैं.' हो सकता है ऊपर से डांट पड़ी, बाद में दिलीप घोष ने बताया कि वो मजाक कर रहे थे.

संयोग कुछ ऐसा हो चला है कि ममता बनर्जी की रैली, बीजेपी की रैली से ठीक एक दिन पहले हो रही है. बीजेपी की तैयारी तो ममता की रैली से पहले ही बिगुल बजाने की रही, लेकिन ममता सरकार की अनुमति नहीं मिलने से बीजेपी को रथयात्रा कार्यक्रम रद्द करना पड़ा. फिर बीजेपी ने कोर्ट की शरण में जाना पड़ा. अब तो कोर्ट से बीजेपी को अनुमति भी मिल चुकी है - जिसमें शर्तें भी लागू हैं.

अब तक तय कार्यक्रम के मुताबिक बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह 20 जनवरी को माल्दा से रैली की शुरुआत करेंगे. अगले दिन 21 जनवरी को बीरभूम और 22 जनवरी को 24 परगना में कार्यक्रम होगा जिसके बाद नादिया में एक रैली भी होगी. कार्यक्रम तो अमित शाह की ही तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भी है, लेकिन अभी तय नहीं है.

मुश्किल ये है कि स्वाइन फ्लू होने के कारण अमित शाह दिल्ली के एम्स में भर्ती हैं. बीजेपी की ओर से बताया गया है कि उनकी सेहत में सुधार हो रहा है - और जल्द ही डिस्चार्ज होने की उम्मीद है.

अगस्त, 2017 लालू प्रसाद ने पटना में ऐसी ही रैली की थी जिसे नाम दिया था 'भाजपा भगाओ देश बचाओ'. मायावती ने ममता बनर्जी की रैली का भी मकसद बिलकुल वैसा ही है. लालू प्रसाद ने रैली की तैयारियां बड़े ही मुश्किलों भरे दौर में किया था. रैली पटना में होनी थी और लालू प्रसाद को लगातार रांची में रह कर कोर्ट की तारीख पर मौजूद रहना होता था. फिलहाल तो लालू प्रसाद जेल में सजा काट रहे हैं - लेकिन आने वाले आम चुनाव को देखते हुए मुलाकातियों की लिस्ट काफी लंबी बतायी जा रही है. ममता बनर्जी ने लालू प्रसाद की रैली में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया. लालू की रैली में भी राहुल और सोनिया गांधी नहीं पहुंचे थे - और मायावती भी गच्चा दे गयीं. तब मायावती समाजवादी पार्टी के साथ तालमेल को लेकर मंथन के दौर से गुजर रही थीं.

ममता की रैली में एक खास मौजूदगी भी संभावित है. 22 साल तक अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री गेगांग अपांग भी रैली में शामिल हो सकते हैं. बीजेपी छोड़ चुके गेगांग अपांग ने अमित शाह को भेजे अपने इस्तीफे में लिखा है, ‘मैं ये देखकर निराश हूं कि मौजूदा भाजपा राजधर्म के सिद्धान्तों का पालन नहीं कर रही है बल्कि एक ऐसा मंच बन गयी है जो सत्ता चाहता है. ये ऐसे नेतृत्व की सेवा कर रही है जिसे लोकतांत्रिक फैसलों के विकेन्द्रीकरण से घृणा है.’

ममता बनर्जी की रैली में जुटने वाले विपक्षी खेमे के नेताओं का उद्देश्य भी आने वाले चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जोरदार टक्कर देने की तैयारी है. विपक्षी नेताओं का ये जमावड़ा भी तीसरे मोर्चे की होने वाले बाकी आयोजनों जैसा है, लेकिन बड़ा फर्क ये है कि इसमें प्रधानमंत्री पद के दावेदार कम और उनके समर्थक ज्यादा हैं. तीसरे मोर्चे के नाम पर आम चुनाव से पहले हर बार होने वाले ऐसे आयोजन बेनतीजा ही खत्म होते रहे हैं - और इस बार भी बहुत कुछ अलग नहीं लग रहा है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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