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जीत के जोश से भरपूर ममता बनर्जी का अब नया रूप देखने को मिलेगा

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 17 मई, 2017 10:40 PM
  • 17 मई, 2017 10:40 PM
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ममता की पार्टी तृणमूल कांग्रेस ने पश्चिम बंगाल के सात में से चार नगर निगमों में जीत हासिल कर अपना इरादा जता दिया है - और यही वजह है कि टीएमसी को अब गुजरे जमाने के वाम मोर्चा के रूप में देखा जाने लगा है.

लगातार जीत के साथ ही ममता बनर्जी भी अब उस पायदान पर पहुंच चुकी हैं जहां से बीजेपी अपने हर विरोधी को ललकार रही है. बीजेपी ने असम और यूपी के बाद दिल्ली का एमसीडी चुनाव जीता तो सियासी सेंसक्स में उसके शेयरों में जबरदस्त उछाल देखने को मिली. पश्चिम बंगाल निकाय चुनाव जीतने के बाद तो ममता बनर्जी भी उसी पोजीशन में जा पहुंची हैं.

नगर निकायों में भी जीत

2016 के विधानसभा चुनाव में असम में बीजेपी और पश्चिम बंगाल में टीएमसी की जीत हुई. ये नतीजे दोनों ही पार्टियों के लिए बराबर अहमियत रखते थे. ममता बनर्जी का दोबारा सत्ता में आना भी उतना ही महत्वपूर्ण था जितना बीजेपी की असम में सरकार बनाना.

जिस तरह बीजेपी ने यूपी चुनाव जीत कर अपनी ताकत दिखाई, उसी तरह ममता ने हाल के उपचुनावों में बीजेपी सहित सभी दलों को पछाड़ कर अपना दबदबा कायम किया.

और अब - पश्चिम बंगाल में 14 मई को हुए नगर निकायों के चुनाव में ममता की पार्टी तृणमूल कांग्रेस ने सात में चार निगमों में जीत हासिल कर अपना इरादा जता दिया है. यही वजह है कि टीएमसी को अब गुजरे जमाने के वाम मोर्चा के रूप में देखा जाने लगा है.

जीत ने बढ़ाया ममता का जोश

ताजा चुनाव की खास बात ये है कि पिछले तीन दशक में मिरिक जैसे पहाड़ी इलाके में जीतने वाली टीएमसी मुख्यधारा की पहली गैर-पहाड़ी पार्टी बन गयी है.

न टोपी न टीका...

यूपी चुनावों से आगे बढ़ते हुए पश्चिम बंगाल नगर निकाय चुनाव में बीजेपी ने 10 मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया था - लेकिन दोमकल और रायगंज में जीरो बैलेंस देखने को मिला. बीजेपी ने तीन निगमों में उम्मीदवार उतारे थे और वो सिर्फ पांच सीटों पर जीत दर्ज करा सकी.

चुनावी रैलियों में ममता बीजेपी की खिलाफ हमलावर और बहुत गुस्से...

लगातार जीत के साथ ही ममता बनर्जी भी अब उस पायदान पर पहुंच चुकी हैं जहां से बीजेपी अपने हर विरोधी को ललकार रही है. बीजेपी ने असम और यूपी के बाद दिल्ली का एमसीडी चुनाव जीता तो सियासी सेंसक्स में उसके शेयरों में जबरदस्त उछाल देखने को मिली. पश्चिम बंगाल निकाय चुनाव जीतने के बाद तो ममता बनर्जी भी उसी पोजीशन में जा पहुंची हैं.

नगर निकायों में भी जीत

2016 के विधानसभा चुनाव में असम में बीजेपी और पश्चिम बंगाल में टीएमसी की जीत हुई. ये नतीजे दोनों ही पार्टियों के लिए बराबर अहमियत रखते थे. ममता बनर्जी का दोबारा सत्ता में आना भी उतना ही महत्वपूर्ण था जितना बीजेपी की असम में सरकार बनाना.

जिस तरह बीजेपी ने यूपी चुनाव जीत कर अपनी ताकत दिखाई, उसी तरह ममता ने हाल के उपचुनावों में बीजेपी सहित सभी दलों को पछाड़ कर अपना दबदबा कायम किया.

और अब - पश्चिम बंगाल में 14 मई को हुए नगर निकायों के चुनाव में ममता की पार्टी तृणमूल कांग्रेस ने सात में चार निगमों में जीत हासिल कर अपना इरादा जता दिया है. यही वजह है कि टीएमसी को अब गुजरे जमाने के वाम मोर्चा के रूप में देखा जाने लगा है.

जीत ने बढ़ाया ममता का जोश

ताजा चुनाव की खास बात ये है कि पिछले तीन दशक में मिरिक जैसे पहाड़ी इलाके में जीतने वाली टीएमसी मुख्यधारा की पहली गैर-पहाड़ी पार्टी बन गयी है.

न टोपी न टीका...

यूपी चुनावों से आगे बढ़ते हुए पश्चिम बंगाल नगर निकाय चुनाव में बीजेपी ने 10 मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया था - लेकिन दोमकल और रायगंज में जीरो बैलेंस देखने को मिला. बीजेपी ने तीन निगमों में उम्मीदवार उतारे थे और वो सिर्फ पांच सीटों पर जीत दर्ज करा सकी.

चुनावी रैलियों में ममता बीजेपी की खिलाफ हमलावर और बहुत गुस्से में नजर आईं. उनके गुस्से की एक वजह बीजेपी नेता श्यामपदा मंडल का वो बयान भी रहा जिसमें उन्होंने कहा था - समझ में नहीं आता कि वो महिला हैं या पुरुष.

सोनिया गांधी से मुलाकात करने दिल्ली पहुंची ममता ने केंद्र में सत्ताधारी बीजेपी पर विपक्षी नेताओं के खिलाफ 'बदले की राजनीति' करने का इल्जाम लगाया है.

विपक्ष पर विपत्ति और बीजेपी का फायदा?

कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया के बुलावे पर ममता बनर्जी जब 16 मई को दिल्ली पहुंची तो पी. चिदंबरम और लालू प्रसाद से जुड़े ठिकानों पर छापे पड़ रहे थे. खास बात ये रही कि 16 मई 2014 को ही लोक सभा चुनाव के नतीजे आये थे - और उसकी तीसरी बरसी पर ये छापे मारे जा रहे थे. विपक्ष ने आरोप लगाया है कि मोदी सरकार नाकामियों पर उठने वाले सवालों से ध्यान हटाने के लिए ये काम करवाया.

हाल फिलहाल देखें तो विपक्ष पर जैसे विपत्तियों का पहाड़ टूट पड़ा है. चिदंबरम के यहां छापों से पहले कांग्रेस नेता शशि थरूर एक बार फिर सवालों के घेरे में आ गये जब एक टीवी चैनल ने अपनी रिपोर्ट में सुनंना पुष्कर की मौत की परिस्थितियों पर कई सवाल उठाये. अरविंद केजरीवाल की पार्टी में उठापटक तख्तापलट तक पहुंच चुकी थी, टीम केजरीवाल ने अपने तरीके से मामले को हैंडल किया लेकिन दिल्ली के मुख्यमंत्री अब तक खामोश हैं. नवीन पटनायक की बीजेपी में अलग ही घमासान मचा हुआ है. जबसे बीजेपी ने ओडिशा में राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक की है, बीजेडी के नेता भगवा लहराने के लिए कुलांचे भर रहे हैं. यहां तक कि बिजयंत जे पांडा को बीजेडी के प्रवक्ता पद से हटा दिया गया है. बीएसपी से निकाले जाने के बाद नसीमुद्दीन सिद्दीकी ने मायावती पर गंभीर इल्जाम लगाये हैं.

तकरीबन सारी विपक्षी पार्टियां इन सब के पीछे बीजेपी का ही हाथ बता रहे हैं. अब सवाल ये है कि क्या विपक्ष की इन बढ़ी मुसीबतों से बीजेपी को कोई फायदा होने वाला है? लालू के एक ट्वीट से जिसमें उन्होंने बीजेपी को नये पार्टनर के लिए मुबारकवाद दिया था, ऐसे संकेत समझे गये. समझा गया कि लालू का इशारा नीतीश और बीजेपी के बीच बढ़ते नजदीकियों की ओर है. हालांकि, बाद में लालू ने सफाई देकर स्थिति को संभालने की कोशिश की. अरुणाचल प्रदेश और उत्तराखंड में बीजेपी नेताओं की सक्रियता देखने के बाद ही दिल्ली में भी ऐसी आशंका जतायी गयी.

फिलहाल बीजेपी के लिए जंग का मैदान राष्ट्रपति चुनाव है. वैसे तो बीजेपी के लिए अपनी पसंद के उम्मीदवार को राष्ट्रपति पद पर बिठाने में कोई खास मुश्किल नहीं देखी जा रही है, फिर भी जैसे मामूली सर्जरी भी रिस्क फ्री नहीं होती, आशंका तो बीजेपी को भी होगी ही. खासकर तब जब पूरा विपक्ष एकजुट हो कर बीजेपी को कड़ी टक्कर देने की तैयारी कर रहा हो.

तबीयत बिगड़ने पर सोनिया गांधी को अस्पताल में भर्ती कराया गया था और वहीं से उन्होंने ममता से फोन पर बात की थी. सोनिया ने ममता को राष्ट्रपति चुनाव में कॉमन उम्मीदवार पर आम राय बनाने की कोशिशों के तहत ही ममता से मुलाकात की.

सोनिया से मुलाकात के बाद ममता ने बीजेपी को टारगेट किया, "कई लोगों को निशाना बनाया जा रहा है. लालूजी, मायावती, अखिलेश यादव, नवीन पटनायक, चिदंबरम, केजरीवाल और हमारी पार्टी को भी. ये उचित नहीं है."

सोनिया और ममता की मुलाकात भले ही राष्ट्रपति चुनाव के संदर्भ में हुई हो, लेकिन इसका निमित्त इतना ही भर नहीं है. विधानसभा चुनाव में अपने खिलाफ जाने के बाद भी ममता को सोनिया से अब भी काफी अपेक्षा है. बंगाल में बीजेपी के बढ़ते कदमों को रोकने के लिए ममता को सोनिया की मदद की महती दरकार है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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