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Congress और TMC की आपसी जंग में फायदा तो बीजेपी का ही हो रहा है!

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 30 दिसम्बर, 2022 12:54 PM
  • 04 दिसम्बर, 2021 04:44 PM
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सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) और कांग्रेस के खिलाफ ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) की वर्चस्व की लड़ाई चाहे जिस दिशा में बढ़े या नतीजा जो भी हो - एक बात तो साफ लग रही है फायदे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) की बीजेपी ही रहने वाली है - और इसके रुझान भी आने लगे हैं.

कांग्रेस पर ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) और उनकी टीम चौतरफा हमले कर रही है - और राहुल गांधी के आंख की किरकिरी गौतम अडानी का कोलकाता पहुंच कर तृणमूल कांग्रेस नेता से मुलाकात भी उसी का हिस्सा है - और शायद अब तक का सबसे सख्त मैसेज भी.

ममता बनर्जी ने तो राहुल गांधी की विदेश यात्रा पर अभी अभी टिप्पणी की है, उनके भतीजे अभिषेक बनर्जी और चुनावी सलाहकार प्रशांत किशोर तो ये काम काफी दिनों से करते आ रहे हैं - कभी त्रिपुरा की धरती से तो कभी गोवा की जमीन से.

ऊपर से तो ऐसा लगता है जैसे सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) की कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस दोनों की लड़ाई तो एक ही दिशा में बढ़ रही है, जिनके निशाने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) और उनकी भारतीय जनता पार्टी ही है. ऐसा लगता है, अलग अलग ही सही, दोनों तो बीजेपी को ही डैमेज करने की कोशिश कर रहे हैं. ये सही भी है, लेकिन क्या वास्तव में हो भी ऐसा ही रहा है - सबसे बड़ा सवाल भी यही है.

त्रिपुरा से निकाय चुनाव 2021 के नतीजे आये तो थे बीजेपी के पक्ष में, लेकिन जोश तृणमूल कांग्रेस का बढ़ा हुआ है. अगरतला सहित 20 नगर निकायों के 334 वार्डों में बीजेपी को 329 पर जीत मिली है - और तृणमूल कांग्रेस को महज 1 सीट पर. टीएमसी महासचिव अभिषेक बनर्जी का दावा है कि त्रिपुरा में जीरो बैलेंस वाली उनकी पार्टी निकाय चुनाव में 20 फीसदी वोट हासिल कर प्रमुख विपक्षी पार्टी बन गयी है - और ये तो महज शुरुआत है.

ममता बनर्जी की शुरुआती कोशिश त्रिपुरा में नंबर दो बनने की है, लेकिन निकाय चुनावों में लेफ्ट फ्रंट ने तीन इलाकों में जीत के साथ टीएमसी को तीसरे नंबर से ही संतोष करने का मैसेज दिया है. बीजेपी की जीत से तो यही लगता है कि टीएमसी ने बंगाल की ही तरह लेफ्ट के ही वोट काटे हैं. 2018 में बीजेपी...

कांग्रेस पर ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) और उनकी टीम चौतरफा हमले कर रही है - और राहुल गांधी के आंख की किरकिरी गौतम अडानी का कोलकाता पहुंच कर तृणमूल कांग्रेस नेता से मुलाकात भी उसी का हिस्सा है - और शायद अब तक का सबसे सख्त मैसेज भी.

ममता बनर्जी ने तो राहुल गांधी की विदेश यात्रा पर अभी अभी टिप्पणी की है, उनके भतीजे अभिषेक बनर्जी और चुनावी सलाहकार प्रशांत किशोर तो ये काम काफी दिनों से करते आ रहे हैं - कभी त्रिपुरा की धरती से तो कभी गोवा की जमीन से.

ऊपर से तो ऐसा लगता है जैसे सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) की कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस दोनों की लड़ाई तो एक ही दिशा में बढ़ रही है, जिनके निशाने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) और उनकी भारतीय जनता पार्टी ही है. ऐसा लगता है, अलग अलग ही सही, दोनों तो बीजेपी को ही डैमेज करने की कोशिश कर रहे हैं. ये सही भी है, लेकिन क्या वास्तव में हो भी ऐसा ही रहा है - सबसे बड़ा सवाल भी यही है.

त्रिपुरा से निकाय चुनाव 2021 के नतीजे आये तो थे बीजेपी के पक्ष में, लेकिन जोश तृणमूल कांग्रेस का बढ़ा हुआ है. अगरतला सहित 20 नगर निकायों के 334 वार्डों में बीजेपी को 329 पर जीत मिली है - और तृणमूल कांग्रेस को महज 1 सीट पर. टीएमसी महासचिव अभिषेक बनर्जी का दावा है कि त्रिपुरा में जीरो बैलेंस वाली उनकी पार्टी निकाय चुनाव में 20 फीसदी वोट हासिल कर प्रमुख विपक्षी पार्टी बन गयी है - और ये तो महज शुरुआत है.

ममता बनर्जी की शुरुआती कोशिश त्रिपुरा में नंबर दो बनने की है, लेकिन निकाय चुनावों में लेफ्ट फ्रंट ने तीन इलाकों में जीत के साथ टीएमसी को तीसरे नंबर से ही संतोष करने का मैसेज दिया है. बीजेपी की जीत से तो यही लगता है कि टीएमसी ने बंगाल की ही तरह लेफ्ट के ही वोट काटे हैं. 2018 में बीजेपी ने भी लेफ्ट के साथ बंगाल वाली ममता बनर्जी की कहानी दोहराते हुए 25 साल से चले आ रहे लाल झंडे से ऊपर जाकर भगवा फहरा दिया था.

पश्चिम बंगाल की जीत के बाद तृणमूल कांग्रेस की टीम ने सबसे पहले त्रिपुरा का ही रुख किया था और ये ममता बनर्जी के लिए बंगाल से बाहर पहला चुनावी फीडबैक है, जिसमें दो स्पष्ट राजनीतिक संदेश भी देखे जा सकते हैं.

पहला, ये कि तृणमूल कांग्रेस राज्यों में मौजूदा विपक्ष को ही ज्यादा नुकसान पहुंचा रही है - और दूसरा ये कि तृणमूल कांग्रेस की महत्वाकांक्षी विस्तार योजना आखिरकार बीजेपी को ही फायदा पहुंचा रही है.

त्रिपुरा चुनाव के नतीजे ममता बनर्जी और उनकी टीम के अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस एक्सटेंशन प्लान का पहला और एक बहुत ही छोटा सा नमूना है - और जिस तरह का प्लान ममता बनर्जी मुंबई जाकर शरद पवार से डिस्कस कर चुकी हैं, लब्लोलुआब बिलकुल यही है.

कांग्रेस-टीएमसी की लड़ाई में बीजेपी को शुद्ध मुनाफा

शरद पवार से मुलाकात में कांग्रेस की कमजोरियां समझाते हुए तृणमूल कांग्रेस महासचिव अभिषेक बनर्जी ने बताया कि देश में ऐसी 250 लोक सभा सीटें हैं जिन पर बीजेपी और कांग्रेस के बीच सीधी टक्कर है - और ध्यान देने वाली बात ये है कि ममता बनर्जी और शरद पवार दोनों इस बात पर सहमत हैं कि बीजेपी ऐसी सीटों पर आसानी से कांग्रेस पर बढ़त हासिल कर सकती है.

ममता बनर्जी जब तक बीजेपी के वोट शेयर में हिस्सेदार नहीं बन पातीं, कांग्रेस को डैमेज करके भी कुछ नहीं हासिल होने वाला

जरा सोचिये ममता बनर्जी ऐसी ही सीटों पर तृणमूल कांग्रेस के उम्मीदवारों को उतार देती हैं, भले ही वे सभी 250 सीटों पर न हों - सीधा नुकसान तो कांग्रेस को ही होगा. और कांग्रेस के नुकसान का बीजेपी को शुद्ध लाभ के अलावा कोई और मतलब तो है नहीं.

1. टीएमसी जैसे राजनीतिक दल ही तो कांग्रेस के असली दुश्मन हैं: जो काम पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी पहले ही कर चुकी हैं, चाहती हैं कि महाराष्ट्र में शरद पवार भी बिलकुल वैसा ही करें. शरद पवार से मुलाकात में ममता बनर्जी ने यही समझाने की कोशिश की कि वो कांग्रेस को किनारे कर एनसीपी और शिवसेना को मजबूत बनायें.

मीटिंग में शरद पवार की चुप्पी बताती है कि वो ऐसा नहीं करने वाले हैं, लेकिन अगर ममता बनर्जी के हिसाब से चलते तो कांग्रेस को हटाते ही बीजेपी एक्शन में आ जाती. वैसे भी देवेंद्र फडणवीस और चंद्रकांत पाटिल खुल कर बोलने लगे हैं कि उद्धव ठाकरे सरकार ज्यादा दिनों की मेहमान नहीं है.

एनसीपी के साथ तो कांग्रेस का गठबंधन था ही, लेकिन शिवसेना के साथ सोनिया गांधी ने सरकार में शामिल होने की मंजूरी तभी दी थी जब मालूम हुआ कि ऐसा न होने की सूरत में सत्ता का हिस्सेदार बनने के मकसद से विधायक फटाफट पाला बदल लेंगे. अगर ममता बनर्जी के मुताबिक ऐसी कोई कोशिश हुई तो विधायकों को जहां ज्यादा संभावना दिखेगी चले जाएंगे.

ज्यादा संभावना तो यही है कि कांग्रेस के हटते ही बीजेपी सरकार की संभावना अचानक से बढ़ जाएगी और कांग्रेस विधायक भी ऑपरेशन लोटस को हाथों हाथ लेना चाहेंगे - मतलब, साफ है फायदे में बीजेपी रहेगी और घाटे में कांग्रेस.

2. हर जगह निशाने पर तो कांग्रेस ही है: तृणमूल कांग्रेस और एनसीपी की ही तरह आंध्र प्रदेश में वाईएसआर कांग्रेस का उदय हुआ है - कांग्रेस नेता रहे वाईएसआर रेड्डी के बेटे जगनमोहन रेड्डी फिलहाल आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं और करीब करीब हर मौके पर मोदी सरकार के सपोर्ट में खड़े नजर आते हैं.

संसद के शीतकालीन सत्र के पहले ही दिन कांग्रेस की तरफ से विपक्षी दलों की मीटिंग बुलायी गयी थी, जिसकी अध्यक्षता राहुल गांधी ने की. हैरानी की बात ये रही कि विपक्ष की मीटिंग से शिवसेना और JMM जैसे दो दल नदारद रहे, जबकि दोनों ही क्रमशः महाराष्ट्र और झारखंड में कांग्रेस को सरकार में साझीदार बनाये हुए हैं.

बंगाल से बाहर तृणमूल कांग्रेस के विस्तार मिशन पर निकलीं ममता बनर्जी पहले कांग्रेस को रास्ते हटाने और बाद में उसकी जगह लेने की स्कीम पर तेजी से काम कर रही हैं - और जिन राज्यों पर फोकस कर रही हैं, करीब करीब सभी में कांग्रेस को नुकसान और बीजेपी का फायदा नजर आ रहा है.

A. गोवा में टीएमसी नंबर 2 की लड़ाई में: गोवा में बीजेपी की सरकार है और प्रमुख तौर पर एक साथ, लेकिन अलग अलग, तीन राजनीतिक दल चैलेंज कर रहे हैं - टीएमसी, आम आदमी पार्टी और कांग्रेस. अब तक गोवा में भी कांग्रेस ही प्रमुख विपक्षी दल रही है, लेकिन अब उसमें ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल दोनों हिस्सेदारी चाह रहे हैं - ऐसा होने पर फायदे में तो बीजेपी ही रहेगी.

B. हरियाणा में बीजेपी के लिए आगे का रास्ता साफ है: हरियाणा में ममता बनर्जी ने अशोक तंवर को तृणमूल कांग्रेस के लिए हायर किया है. अशोक तंवर कांग्रेस में राहुल गांधी की मनपसंद टोली का हिस्सा रहे हैं. करीब पांच साल तक अशोक तंवर हरियाणा कांग्रेस के अध्यक्ष रह चुके हैं और पूरे कार्यकाल पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा गुट के साथ जोर आजमाइश होती रही. चुनाव से पहले सोनिया गांधी ने अशोक तंवर को पहले पीसीसी अध्यक्ष पद से और बवाल करने पर कांग्रेस से ही बाहर कर दिया.

अब भला अशोक तंवर तृणमूल कांग्रेस के लिए बीजेपी या मनोहरलाल खट्टर सरकार में साझीदार दुष्यंत चौटाला के इलाके में कुछ कर तो पाएंगे नहीं, लिहाजा कांग्रेस से ही बहला फुसला कर अपनी अलग टीम तैयार करेंगे - और होगा ये कि कांग्रेस कमजोर होगी, बीजेपी फायदे में रहेगी. अगले विधानसभा चुनाव तक ये भी हो सकता है कि कांग्रेस इतनी कमजोर हो जाये कि बीजेपी को गठबंधन पार्टनर की भी फिक्र खत्म हो जाये.

C. असम की भी कहानी अलग नहीं है: असम में बीजेपी की सरकार है और इसी साल हुए चुनाव में कांग्रेस का प्रदर्शन काफी घटिया रहा. ममता बनर्जी ने महिला कांग्रेस की अध्यक्ष रहीं सुष्मिता देव को टीएमसी में शामिल कर अपने कोटे से राज्य सभा भेज दिया है. सुष्मिता देव तो फायदे में रहीं, लेकिन एक्सचेंज ऑफर के लिए क्या है उनके पास, भला कहां से समर्थक जुटाएंगी. पहले तो कांग्रेस को खाली करेंगी जिसे हिमंता बिस्वा सरमा मुख्यमंत्री बनने से पहले ही करीब करीब निपटा चुके हैं, बची खुची सफाई सुष्मिता देव कर देंगी - और बीजेपी बल्ले बल्ले करने लगेगी.

ममता-अडानी मुलाकात में राहुल गांधी और बीजेपी के लिए मैसेज

जिस अडानी (और हां, साथ में अंबानी भी) का नाम लिये बिना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ कांग्रेस सांसद राहुल गांधी का एक भी भाषण या बयान पूरा नहीं हो पाता या ट्वीट अधूरा लगता है, ममता बनर्जी की मुलाकात मुंह चिढ़ाने जैसी ही है - और ये ममता बनर्जी की तरफ से बाकी उद्योग जगत के लिए भी खास संदेश लिये हुए है.

पहला मतलब तो यही कि अगर किन्हीं विशेष परिस्थितियों में अंबानी और अडानी का मौजूदा व्यवस्था से मन भर जाता है और लगता है कि कांग्रेस तो उनके खिलाफ ही है, तो बिलकुल भी निराश होने की जरूरत नहीं है.

गौतम अडानी से मुलाकात कर ममता बनर्जी ने ये संदेश देने की भी कोशिश की है कि देश के दूसरे उद्योगपतियों के सामने भी तृणमूल कांग्रेस ही विकल्प बन सकती है, न कि कांग्रेस. बाकी उद्योगपति तो जैसा भी सोचते हों, लेकिन हाल ही में नंबर दो पर पहुंचे गौतम अडानी और मुकेश अंबानी के अलावा भी कारोबार जगह को निराश होने की जरूरत नहीं है.

न्‍यूज एजेंसी PTI के मुताबिक, ममता बनर्जी और अडानी की ये मुलाकात करीब डेढ़ घंटे चली. अभी तो यही माना जा रहा है कि दोनों की मीटिंग में पश्चिम बंगाल में निवेश को लेकर बातचीत हुई है - और टाटा को सिंगूर से भगाने के लिए लड़ने वाली ममता बनर्जी की राजनीति में ये नया परिवर्तन ही लगता है. अडानी ने ट्विटर पर मुलाकात की तस्वीर शेयर करते हुए अगले साल अप्रैल में होने वाले बंगाल ग्‍लोबल बिजनेस समिट में शामिल होने की बात भी कही है.

ममता और अडानी की मुलाकात की तस्वीर को लेकर यूथ कांग्रेस अध्यक्ष श्रीनिवास बीवी ने तृणमूल कांग्रेस के चुनावी सलाहकार प्रशांत किशोर को टारगेट किया है, 'कम से कम सेठ जी तो दूसरा ढूंढ लेते.'

ठीक पहले, प्रशांत किशोर ने कांग्रेस को लेकर ट्विटर पर लिखा था, कांग्रेस का विचार और उसकी जगह मजबूत विपक्ष के लिए काफी महत्वपूर्ण है, लेकिन 10 साल में 90 फीसदी चुनाव हारने के बाद कांग्रेस के पास नेतृत्व का कोई दैवीय अधिकार नहीं मिला हुआ है - विपक्ष के नेतृत्व का फैसला लोकतांत्रिक तरीके से होने दिया जाये.'

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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