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Maharashtra Political Crisis: कारण जो शिवसेना को भाजपा से दूर रहने को मज़बूर करते हैं!

    • अरविंद मिश्रा
    • Updated: 25 जून, 2022 01:14 PM
  • 25 जून, 2022 01:14 PM
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महाराष्ट्र में सरकार बचाना उद्धव ठाकरे के लिए बड़ी चुनौती है. यदि शिंदे ने बगावत की है तो इसका जिम्मेदार भारतीय जनता पार्टी को बताया जा रहा है. अगर आज भाजपा और शिवसेना एक दूसरे के दुश्मन बने हैं तो ये यूं ही नहीं है. इसके पीछे जो कारण हैं वो कई मायनों में खासे दिलचस्प हैं.

महाराष्‍ट्र में शिवसेना के बागी नेता एकनाथ शिंदे की बगावत के बाद, सियासी संकट के बादल बरकरार है. बागी रुख अख्तियार किए एकनाथ शिंदे की अगुवाई वाले गुट की ताकत भी लगातार बढ़ती जा रही है. ठीक इसके विपरीत वर्तमान मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की स्थिति लगातार कमजोर होती जा रही है. एक ओर जहां एकनाथ शिंदे महाविकास अघाड़ी का साथ छोड़ने के लिए तत्पर हैं. वहीं दूसरी ओर उद्धव ठाकरे इसमें बने रहने के लिए हर दांव-पेंच आजमा रहे हैं. लेकिन यह सवाल कि आखिर क्यों उद्धव ठाकरे महा विकास अघाड़ी में बने रहना चाहते हैं और भाजपा से दूर रहना चाहते हैं? क्यों शिवसेना जो कभी भाजपा के पुराने सहयोगियों में एक थी, अब इससे इतनी नफरत करने लगी? भाजपा और शिवसेना के रिश्तों में खटास की शुरुआत 2019 महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद शुरू हुई थी. जब दोनों दल साथ में चुनाव तो लड़े लेकिन चुनाव परिणाम आने के बाद शिवसेना ने कांग्रेस और एनसीपी के साथ मिलकर महा विकास अघाड़ी गठबंधन बनाया और उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री बन गए. उस चुनाव में भाजपा को 105, शिवसेना को 56, एनसीपी को 54 और कांग्रेस को 44 सीटें मिली थी.

चाहे वो एकनाथ शिंदे हों या फिर उद्धव ठाकरे दोनों ही नेता एक दूसरे पर कई गंभीर आरोप लगा रहे हैं

भाजपा ने बड़े भाई को छोटा भाई बना दिया:

साल 1989 की बात है जब दोनों दल हिंदुत्व के नाम पर आधिकारिक तौर पर एक साथ आए और साथ में चुनाव लड़ा. 1990 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में शिवसेना को 15.94 प्रतिशत वोट के साथ 52 सीटें और भाजपा को 10.71 प्रतिशत वोट के साथ 42 सीटें प्राप्त हुई थी. और अब बात 2019 के विधानसभा चुनाव की जब भाजपा को 25.75 प्रतिशत वोट के साथ 105 सीटें मिली और शिवसेना को 16.41 प्रतिशत वोट के साथ 56 सीटें मिली.

यानी इस बीच भाजपा के वोट...

महाराष्‍ट्र में शिवसेना के बागी नेता एकनाथ शिंदे की बगावत के बाद, सियासी संकट के बादल बरकरार है. बागी रुख अख्तियार किए एकनाथ शिंदे की अगुवाई वाले गुट की ताकत भी लगातार बढ़ती जा रही है. ठीक इसके विपरीत वर्तमान मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की स्थिति लगातार कमजोर होती जा रही है. एक ओर जहां एकनाथ शिंदे महाविकास अघाड़ी का साथ छोड़ने के लिए तत्पर हैं. वहीं दूसरी ओर उद्धव ठाकरे इसमें बने रहने के लिए हर दांव-पेंच आजमा रहे हैं. लेकिन यह सवाल कि आखिर क्यों उद्धव ठाकरे महा विकास अघाड़ी में बने रहना चाहते हैं और भाजपा से दूर रहना चाहते हैं? क्यों शिवसेना जो कभी भाजपा के पुराने सहयोगियों में एक थी, अब इससे इतनी नफरत करने लगी? भाजपा और शिवसेना के रिश्तों में खटास की शुरुआत 2019 महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद शुरू हुई थी. जब दोनों दल साथ में चुनाव तो लड़े लेकिन चुनाव परिणाम आने के बाद शिवसेना ने कांग्रेस और एनसीपी के साथ मिलकर महा विकास अघाड़ी गठबंधन बनाया और उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री बन गए. उस चुनाव में भाजपा को 105, शिवसेना को 56, एनसीपी को 54 और कांग्रेस को 44 सीटें मिली थी.

चाहे वो एकनाथ शिंदे हों या फिर उद्धव ठाकरे दोनों ही नेता एक दूसरे पर कई गंभीर आरोप लगा रहे हैं

भाजपा ने बड़े भाई को छोटा भाई बना दिया:

साल 1989 की बात है जब दोनों दल हिंदुत्व के नाम पर आधिकारिक तौर पर एक साथ आए और साथ में चुनाव लड़ा. 1990 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में शिवसेना को 15.94 प्रतिशत वोट के साथ 52 सीटें और भाजपा को 10.71 प्रतिशत वोट के साथ 42 सीटें प्राप्त हुई थी. और अब बात 2019 के विधानसभा चुनाव की जब भाजपा को 25.75 प्रतिशत वोट के साथ 105 सीटें मिली और शिवसेना को 16.41 प्रतिशत वोट के साथ 56 सीटें मिली.

यानी इस बीच भाजपा के वोट में 15 प्रतिशत का इज़ाफ़ा हुआ जबकि शिवसेना का वोट शेयर 1 प्रतिशत भी नहीं बढ़ा. अर्थात भाजपा ने बड़े भाई को छोटा बना दिया जो कि शिवसेना को खटक रहा था.

भाजपा ने सरकार में ढाई-ढाई साल के भागीदारी के फॉर्मूले को नहीं निभाया:

2019 के विधानसभा चुनाव के परिणाम आने के बाद से ही शिवसेना का कहना था कि भाजपा के साथ ढाई-ढाई साल के मुख्यमंत्री बनाने का वादा हुआ था लेकिन भाजपा को 105 सीटें मिलने के बाद वह पलट गया. वादे के अनुसार ढाई साल भाजपा का और ढाई साल शिवसेना का मुख्यमंत्री बनना तय हुआ था. शिवसेना का आरोप था कि इस फॉर्मूले के फेल होने के बाद ही उसने एनसीपी और कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाया.

केंद्रीय एजेंसियों द्वारा शिवसेना के नेताओं और उसके परिवार को परेशान करने का आरोप:

शिवसेना का आरोप है कि सरकार बनने के बाद भाजपा ने उनके नेताओं और परिवार के खिलाफ केंद्रीय एजेंसियों द्वारा जानबूझकर परेशान किया जाने लगा. महाराष्ट्र के कैबिनेट मंत्री और शिवसेना नेता आदित्य ठाकरे ने केंद्रीय एजेंसियां पर भाजपा की 'प्रचार मशीनरी' होने का आरोप लगाया था. शिवसेना सांसद संजय राउत ने भी आरोप लगाया था कि भाजपा शासित केंद्र पार्टी नेताओं को केंद्रीय एजेंसियों का इस्तेमाल कर परेशान कर रहा है

शिवसेना के प्रति केंद्र के बर्ताव पर प्रश्नचिन्ह:

महाराष्ट्र की सरकार राज्यपाल के बर्ताव पर भी पक्षपात का आरोप लगाया. बात 2020 की है जब महाराष्ट्र की महा विकास अघाड़ी ने राज्यपाल के कोटे से विधान परिषद के लिए 12 खाली पड़े पदों के लिए राज्यपाल कोश्यारी को चार नामों की सिफारिश की थी लेकिन उन्होंने नामों पर बहुत दिनों तक कोई फैसला नहीं लिया तो अघाड़ी के नेताओं ने कोश्यारी पर नामांकन को लेकर राजनीति करने का आरोप लगाए. अंत में जब मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से फोन पर बात की तब फाइल को मंज़ूरी मिली.

हिंदुत्व और सेक्युलरिज्म का तड़का- शिवसेना का नया प्रयोग:

शिवसेना की छवि शुरुआत से ही कट्टर हिंदुत्व की रही है लेकिन जब से वह भाजपा से अलग हुई उसकी हिंदुत्व की छवि पर प्रश्नचिन्ह लगने लगे. चाहे वो सिटिज़न अमेंडमेंट एक्ट हो या फिर हनुमान चालीसा पढ़ने का मामला, शिवसेना की प्रतिक्रिया सॉफ्ट सेक्युलरिज्म की तरफ इशारा था. इसके जवाब में शिवसेना को अनेक बार खंडन भी करना पड़ा और उसे बोलना भी पड़ा कि उसने हिंदुत्व को नहीं छोड़ा है, शायद ये इसलिए भी क्योंकि आने वाले चुनावों में इसका खामियाज़ा शिवसेना को भुगतना पड़ सकता है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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