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अखंड भारत का सपना दिखाकर उल्टी राह पकड़ते भाजपा शासित राज्य...

    • RITK RAJPUT
    • Updated: 13 दिसम्बर, 2022 01:11 PM
  • 13 दिसम्बर, 2022 01:11 PM
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महाराष्ट्र और कर्नाटक सरकार के बीच राज्य की सीमाओं को लेकर विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा. जैसे हालात हैं असली परेशानी अखंड भारत का सपना देख रहे पीएम मोदी और भाजपा के लिए है. स्थिति यदि ऐसी रही तो सपना शायद ही कभी पूरा हो पाए.

महाराष्ट्र और कर्नाटक सरकार के बीच राज्य की सीमाओं को लेकर विवाद काफी लंबे समय से चलता आ रहा है. और हाल ही में अपनी मांगो को लेकर, प्रदर्शनकारियों ने दोनों राज्य की सीमाओं को पार करती बसों पर पथराव करा, जिसके चलते बसों की आवाजाही बंद कर दी गई है. जिससे जनजीवन बुरी तरह प्रभावित हुआ है.

कर्नाटक और महाराष्ट्र के बीच का सीमा विवाद ख़त्म होने का नाम ही नहीं ले रहा

विवाद क्या है?

विवाद महाराष्ट्र और कर्नाटक के सीमा विवाद को लेकर है. जिसमें बेलगाम, खानपुर, निप्पनी, कारवार, नंदगाड़, समेत 509 गांवों को आते है. दोनो राज्य अपने-अपने दावे यही करते आए है कि, यह इलाके उनके राज्य में आते है . और इसी के चलते 2006 से अभी तक मामला सुप्रीम कोर्ट में अटका है.

इतिहास?

1956 में राज्यों के पुनर्गठन से पहले बेलगाम महाराष्ट्र के अधीन आता था.परंतु 1956 के बाद बेलगाम के साथ कई इलाके कर्नाटक में शामिल हो गए .इसके बाद विवाद और बड़ा,और विवाद को देखते हुए केंद्र सरकार के द्वारा एक आयोग का गठन किया गया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड पूर्व मुख्य न्यायाधीश मेहर चंद महाजन को आयोग का अध्यक्ष बनाया गया, आयोग का काम राज्यों के सीमा विवाद को सुलझाना था. जांच के बाद आयोग का फैसला आया और फैसले में बेलगाम समेत 247 गांव कर्नाटक राज्य को सौंपे गए, वही महाराष्ट्र सरकार को 262 गांव मिले.

महाराष्ट्र के आरोप

आयोग का फैसला महाराष्ट्र सरकार को पक्षपात पूर्ण लगा, इसलिए महाराष्ट्र सरकार ने 2006 में सुप्रीम कोर्ट का रुख किया, और आज तक केस कोर्ट में चल रहा है. महाराष्ट्र का कहना है कि बेलगाव में ज्यादा आबादी मराठी भाषी लोगों की है. और वहां के लोग सुरक्षित महसूस नहीं करते है, इसलिए यह क्षेत्र महाराष्ट्र सरकार के अधीन आना...

महाराष्ट्र और कर्नाटक सरकार के बीच राज्य की सीमाओं को लेकर विवाद काफी लंबे समय से चलता आ रहा है. और हाल ही में अपनी मांगो को लेकर, प्रदर्शनकारियों ने दोनों राज्य की सीमाओं को पार करती बसों पर पथराव करा, जिसके चलते बसों की आवाजाही बंद कर दी गई है. जिससे जनजीवन बुरी तरह प्रभावित हुआ है.

कर्नाटक और महाराष्ट्र के बीच का सीमा विवाद ख़त्म होने का नाम ही नहीं ले रहा

विवाद क्या है?

विवाद महाराष्ट्र और कर्नाटक के सीमा विवाद को लेकर है. जिसमें बेलगाम, खानपुर, निप्पनी, कारवार, नंदगाड़, समेत 509 गांवों को आते है. दोनो राज्य अपने-अपने दावे यही करते आए है कि, यह इलाके उनके राज्य में आते है . और इसी के चलते 2006 से अभी तक मामला सुप्रीम कोर्ट में अटका है.

इतिहास?

1956 में राज्यों के पुनर्गठन से पहले बेलगाम महाराष्ट्र के अधीन आता था.परंतु 1956 के बाद बेलगाम के साथ कई इलाके कर्नाटक में शामिल हो गए .इसके बाद विवाद और बड़ा,और विवाद को देखते हुए केंद्र सरकार के द्वारा एक आयोग का गठन किया गया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड पूर्व मुख्य न्यायाधीश मेहर चंद महाजन को आयोग का अध्यक्ष बनाया गया, आयोग का काम राज्यों के सीमा विवाद को सुलझाना था. जांच के बाद आयोग का फैसला आया और फैसले में बेलगाम समेत 247 गांव कर्नाटक राज्य को सौंपे गए, वही महाराष्ट्र सरकार को 262 गांव मिले.

महाराष्ट्र के आरोप

आयोग का फैसला महाराष्ट्र सरकार को पक्षपात पूर्ण लगा, इसलिए महाराष्ट्र सरकार ने 2006 में सुप्रीम कोर्ट का रुख किया, और आज तक केस कोर्ट में चल रहा है. महाराष्ट्र का कहना है कि बेलगाव में ज्यादा आबादी मराठी भाषी लोगों की है. और वहां के लोग सुरक्षित महसूस नहीं करते है, इसलिए यह क्षेत्र महाराष्ट्र सरकार के अधीन आना चाहिए.

दोनों राज्यों के विवाद में बीजेपी की चिंताए?

अखंड भारत के नैरेटिव पर निगेटीव असर - बीजेपी और आरएसएस दोनों के द्वारा देश में अखंड भारत के नारे और बहस से लगातार एक माहौल बनाने की कोशिश की जा रही है. परंतु महाराष्ट्र और कर्नाटक के बीच सीमा विवाद ने बीजेपी की चिंताए बढ़ा दी है.

विपक्ष द्वारा सीमा विवाद एक मुद्दा बनाना - अगर विपक्ष इसे मुद्दा बनाता है तो, बीजेपी की केंद्र सरकार के लिए एक चुनौती होगी. की वो किसके पक्ष में रहती है क्यों की दोनों राज्यों में बीजेपी की ही सरकार है, और अगर केंद्र सरकार न्यूट्रल रहने की कोशिश करती है, तो विपक्ष जनता तक यहीं मैसेज पहुंचाने के लिए तत्पर पर रहेंगी की केंद्र सरकार अपना क्लियर स्टैंड रखे.

कर्नाटक में आगामी विधानसभा चुनाव - बीजेपी नहीं चाहती कि राज्य में भाषा और सीमा विवाद जैसे लोकल मुद्दे चुनाव में हावी हो, बीजेपी हमेशा राज्यों के चुनावों में भी राष्ट्रीय मुद्दों को भुनाती आई

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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