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अब और कितना लजवायेंगे ये नेता ?

    • प्रीति अज्ञात
    • Updated: 21 दिसम्बर, 2017 05:08 PM
  • 21 दिसम्बर, 2017 05:08 PM
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किसी की राष्ट्रीयता पर उंगली उठाने से पहले नेता जी को ये सोचना चाहिए कि बाकी की चारों उंगलियां उनके खुद की तरफ इशारा कर रही होती हैं.

विराट-अनुष्का अपनी मेहनत से जमा की गई कमाई को जब चाहें, जहां चाहें खर्च करें! आप होते कौन हैं उनको राष्ट्र प्रेम और राष्ट्रद्रोह का लाइसेंस देने वाले? पहले यह भी तो स्पष्ट करें कि- "आपने देश के लिए अब तक क्या-क्या किया है? आख़िर इतना बचकानापन दिखाते समय आप सोच क्या रहे थे, कि इस चाटुकारिता भरे, अनर्गल वक्तव्य से "सरदार बहुत खुश होगा? शाबाशी देगा?"

बेहतर होगा कि आप इस बात पर स्वयं को ही उम्र भर धिक्कारते रहें कि आप जैसे लोग आम जनता के गाढ़े पसीने की कमाई को वर्षों से अज़गर की तरह निगल रहें हैं और उस पर भी जब मुंह खोलते हैं तो 'विष-वमन' ही करते नज़र आते हैं. संभव है कि इस आत्ममंथन के बाद आप और आप जैसे कुछ लोग 'देशप्रेम' की सही परिभाषा आम भारतीयों की आंखों में पढ़ सकें!

अनुष्का विराट की देश के बाहर शादी करने से ऐसी क्या आफ़त आन पड़ी कि आपने समझदारी की सारी दीवारें एक साथ फांद लीं? मने हद ही हो गई! फिर भी यदि आपका राष्ट्रप्रेम आहत हो ही चुका है, तो इन विषयों पर चर्चा कर पूरा फुटेज लीजिए-

* सर्वप्रथम तो अपने टाइप (भयंकर भस्मासुर सोच वाले) के लोगों के सामने सावधानी का बिगुल बजाइए, क्योंकि उन सबके बच्चे विदेशों में पढ़ रहे हैं. कितनी लज्जास्पद बात है कि हमारे देश की संपत्ति मुओं ने विदेशी कॉलेज में लगा दी! भारतीय शिक्षाप्रणाली की भावनाओं को भी इससे जबरदस्त धक्का पहुंचा है. अब इसे और कितने अटैक दिलवाओगे, भई? रवीश की रिपोर्ट ने पहले ही शर्मिंदा कर रक्खा है शिक्षा व्यवस्था को. अब और कितना लजवायेंगे?

* उन मुस्टंडों को भी लानत भेजिए जो इलाज़ के बहाने सरकारी ख़र्च पर सैर सपाटा करने फुर्र हो जाते हैं. ये राष्ट्रीय चिकित्सकों का कितना घोर अपमान है. ये रुपया तो उनके ख़ाते में जाना चाहिए था.

जिनके घर शीशे के होते हैं...

विराट-अनुष्का अपनी मेहनत से जमा की गई कमाई को जब चाहें, जहां चाहें खर्च करें! आप होते कौन हैं उनको राष्ट्र प्रेम और राष्ट्रद्रोह का लाइसेंस देने वाले? पहले यह भी तो स्पष्ट करें कि- "आपने देश के लिए अब तक क्या-क्या किया है? आख़िर इतना बचकानापन दिखाते समय आप सोच क्या रहे थे, कि इस चाटुकारिता भरे, अनर्गल वक्तव्य से "सरदार बहुत खुश होगा? शाबाशी देगा?"

बेहतर होगा कि आप इस बात पर स्वयं को ही उम्र भर धिक्कारते रहें कि आप जैसे लोग आम जनता के गाढ़े पसीने की कमाई को वर्षों से अज़गर की तरह निगल रहें हैं और उस पर भी जब मुंह खोलते हैं तो 'विष-वमन' ही करते नज़र आते हैं. संभव है कि इस आत्ममंथन के बाद आप और आप जैसे कुछ लोग 'देशप्रेम' की सही परिभाषा आम भारतीयों की आंखों में पढ़ सकें!

अनुष्का विराट की देश के बाहर शादी करने से ऐसी क्या आफ़त आन पड़ी कि आपने समझदारी की सारी दीवारें एक साथ फांद लीं? मने हद ही हो गई! फिर भी यदि आपका राष्ट्रप्रेम आहत हो ही चुका है, तो इन विषयों पर चर्चा कर पूरा फुटेज लीजिए-

* सर्वप्रथम तो अपने टाइप (भयंकर भस्मासुर सोच वाले) के लोगों के सामने सावधानी का बिगुल बजाइए, क्योंकि उन सबके बच्चे विदेशों में पढ़ रहे हैं. कितनी लज्जास्पद बात है कि हमारे देश की संपत्ति मुओं ने विदेशी कॉलेज में लगा दी! भारतीय शिक्षाप्रणाली की भावनाओं को भी इससे जबरदस्त धक्का पहुंचा है. अब इसे और कितने अटैक दिलवाओगे, भई? रवीश की रिपोर्ट ने पहले ही शर्मिंदा कर रक्खा है शिक्षा व्यवस्था को. अब और कितना लजवायेंगे?

* उन मुस्टंडों को भी लानत भेजिए जो इलाज़ के बहाने सरकारी ख़र्च पर सैर सपाटा करने फुर्र हो जाते हैं. ये राष्ट्रीय चिकित्सकों का कितना घोर अपमान है. ये रुपया तो उनके ख़ाते में जाना चाहिए था.

जिनके घर शीशे के होते हैं नेताजी वो पर्दे लगाकर कपड़े बदलते हैं!

* और हजूर उन्हें तो क़तई माफ़ न करना जो दुबई के खजूर खा-खाकर ताड़ हुए जा रहे. वैसे यहां बाक़ी ड्राई फ्रूट्स और मशरूम का ज़िक्र भी बनता है न! पिलीज़ हिसाब लगाइए, हमारे किसानों का इससे अब तक कितना नुक़सान हुआ. भारतीय अन्न-संपदा को छोड़ ये विदेशी भोजन टूंग रहे! तौबा-रे-तौबा!

* अंतर्राष्ट्रीय खेलों के प्रतिनिधिमंडल में कुल जमा चार खिलाड़ियों के साथ चालीस मुफ्तखोरों का जो जत्था जाता है, उनका ख़र्च कौन-सा एटीएम उगलता है? इसकी भी अब थाने में रपट लिखानी होगी कि अपने देश के होकर ये लोग बाहर शॉपिंग करते हैं और वो बिल भी सरकार की जेब में सरका देते हैं.

* कभी चुनाव के नाम पर बर्बाद हुई राशि की चिंता भी कर लिया कीजिए, इनसे सौ गांव बस सकते हैं.

ये लिखते समय हमारे ह्रदय में अमिताभ की आवाज़ गूंज रही है. मन बेहद भावुक हो उठा है, वरना और उदाहरण भी मस्तिष्क के सेरिब्रल हेमिस्फियर में लगातार परिक्रमा कर रहे हैं. थोड़ी लिखी, पूरी समझियेगा.

अरे हां, अमिताभ वाली जो बात गूंज रही थी, वो ये थी-

"जाओ पहले उस आदमी के साइन लेकर आओ, जिसने मेरे हाथ पर ये लिख दिया था कि मेरा बाप चोर है. उसके बाद तुम जिस काग़ज़ पर कहोगे मैं साइन कर दूंगा". इस संवाद से तर्कशक्ति बढ़ने की औषधि प्राप्त होती है.

विराट-अनुष्का को ढेर सारी शुभकामनाएं! आप भी दे ही दीजिए :) सुनने में आया है कि उनके रिसेप्शन में हमारे प्रधानमंत्री जी भी जा रहे. क्या पता, आपको भी निमंत्रण आये और सारा मलाल दूर हो जाए!

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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