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कांग्रेस के शीर्ष नेता आने वाले विधानसभा चुनाव में सक्रिय क्यों नहीं नजर आते?

    • अशोक भाटिया
    • Updated: 12 मार्च, 2023 08:41 PM
  • 12 मार्च, 2023 08:41 PM
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अब तक कांग्रेस मुक्त भारत का सपना सिर्फ भाजपा का था. लेकिन जिस तरह से कांग्रेस के प्रति विपक्ष का बर्ताव है उसे देख कर लगता है कि यह सपना शायद अब विपक्ष का भी बन गया है. केंद्र से गायब कांग्रेस अब राज्यों के भरोसे ही जिंदा है.लेकिन तमाम क्षेत्रीय पार्टियां अब राज्यों में भी कांग्रेस को हटाने के लिए दाना पानी लेकर चढ़ गई हैं.

इस साल जिन राज्यों में चुनाव होने वाले हैं वहां भाजपा के तीनों शीर्ष नेताओं ने पूरा दम लगाया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा लगातार चुनावी राज्यों का दौरा कर रहे हैं. उनकी रैलियां हो रही हैं और रोड शो हो रहे हैं. अगर सिर्फ कर्नाटक को देखें, जहां अगले महीने चुनाव घोषित होने वाले हैं तो वहां हफ्ते में दो दिन जरूर भाजपा के तीन शीर्ष नेताओं में से किसी एक का कार्यक्रम हो रहा होता है. इसके बरक्स कांग्रेस में पूरी तरह से शांति है. किसी राष्ट्रीय नेता का कोई कार्यक्रम कर्नाटक या किसी अन्य चुनावी राज्य में नहीं हो रहा है. कांग्रेस के जानकार सूत्रों का कहना है कि कांग्रेस की चुनाव रणनीति भाजपा से अलग है. भाजपा में उसके शीर्ष नेता राज्यों का चुनाव लड़वाएंगे, जबकि कांग्रेस में राज्यों के ही नेता चुनाव लड़वाएंगे. कांग्रेस के शीर्ष राष्ट्रीय नेता राज्यों के चुनाव में गेस्ट अपीयरेंस देंगे यानी मेहमान भूमिका निभाएंगे.

राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा की चुनावी रैलियां और रोड शो होंगे लेकिन ऐसा नहीं है कि ये दोनों जी-जान लगा कर पार्टी को चुनाव लड़ाएंगे, जैसे भाजपा के नेता कर रहे हैं. ऐसा लग रहा है कि प्रदेश के नेताओं को ही अपने शीर्ष नेतृत्व पर भरोसा नहीं है. उनको लग रहा है कि राहुल और प्रियंका से ज्यादा करिश्मा या जमीनी पकड़ उनकी है इसलिए उन्हीं को चुनाव लड़ाना चाहिए.

कांग्रेस के जानकार नेताओं के मुताबिक कर्नाटक का चुनाव प्रदेश अध्यक्ष डीक शिवकुमार और पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धरमैया लड़वाएंगे. प्रभारी महासचिव रणदीप सुरजेवाला की भी सीमित भूमिका होगी. राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे कर्नाटक के ही रहने वाले हैं लेकिन चुनाव में वे भी बड़ी भूमिका नहीं निभाने वाले हैं. ध्यान रहे अध्यक्ष बनने के बाद उनके स्वागत कार्यक्रम के अलावा उनकी कोई बड़ी रैली या रोड शो वगैरह नहीं हुआ.

आने वाले वक़्त में कांग्रेस के सामने चुनौतियों का पहाड़ है और इसके पीछे भरपूर कारण भी हैं

वे अपने कुछ करीबियों को टिकट दिलवाएंगे और चुनाव के समय कुछ रैलियां कर देंगे.यदि भाजपा की बात करें तो अपने मोदी मार्च की शुरुआत में बेंगलुरु-मैसूर कॉरिडोर का उद्घाटन करने के बाद फिर से कर्नाटक पहुंच गए . भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह 1 से 3 मार्च के बीच विजया संकल्प यात्रा को हरी झंडी दिखाने के लिए अमित शाह के साथ शामिल रहे.

कर्नाटक विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा की सक्रियाता के साथ ही आम आदमी पार्टी भी तैयारी करने में लगी है. आम आदमी पार्टी ने अपने राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल के लिए 5 मार्च को दावणगेरे में एक रैली आयोजित की थी . वह पार्टी कार्यकर्ताओं को संबोधित कर रोड शो भी कर चुके है . इसके इसके उलट राष्ट्रीय पार्टी अगले साल छत्तीसगढ़ में भी चुनाव हैं और यह तय है कि वहां मुख्यमंत्री भूपेश बघेल चुनाव लड़वाएंगे.

वहां भी चुनाव में राहुल, प्रियंका सिर्फ रैली करने जाएंगे. प्रभारी महासचिव का भी कोई काम नहीं होगा. मध्य प्रदेश में सब कुछ कमलनाथ को सौंप दिया गया है. जो करेंगे कमलनाथ करेंगे. कहीं कहीं थोड़ी भूमिका दिग्विजय सिंह की भी होगी लेकिन बाकी किसी नेता का कोई रोल नहीं है. राजस्थान में प्रदेश नेतृत्व को लेकर कंफ्यूजन है लेकिन यह तय है कि चुनाव में केंद्रीय नेताओं की कोई भूमिका नहीं रहने वाली है.

इसी तरह हरियाणा में सब कुछ भूपेंदर सिंह हुड्डा के हवाले हैं. उनके अलावा किसी नेता का कोई मतलब नहीं रहने वाला है. लगभग सभी राज्यों की स्थिति यही है. पार्टी अधिवेशन समाप्त होने के तुरंत बाद राहुल गांधी के कर्नाटक जाने की उम्मीद थी, लेकिन पदाधिकारियों ने कहा कि उन्हें समय लग सकता है. इससे पहले उनकी यात्रा 30 जनवरी को भारत जोड़ो यात्रा के समापन के बाद फरवरी में होने की उम्मीद थी.

वहीं, पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कथित तौर पर स्वास्थ्य कारणों का हवाला देकर प्रचार करने में असमर्थता व्यक्त की है. कार्नाटक कांग्रेस के नेताओं को AICC महासचिव प्रियंका गांधी के जमीन पर अधिक सक्रिय होने की उम्मीद थी, फरवरी की शुरुआत में उनकी यात्रा की योजना कई बार बनाई गई थी, लेकिन यह भी रद्द कर दी गई.

केपीसीसी के कार्यकारी अध्यक्ष सलीम अहमद ने कहा, 'राष्ट्रीय नेताओं के यहां जल्द आने की उम्मीद नहीं है क्योंकि अभी पार्टी शिवकुमार और सिद्धारमैया के नेतृत्व में चल रही प्रजाधवानी यात्राओं पर ध्यान केंद्रित कर रही है. जैसा कि हमने राष्ट्रीय नेताओं और विशेष रूप से राहुल की भागीदारी का अनुरोध किया है, यात्रा और उनके लिए कार्यक्रमों पर चर्चा की जा रही है.’

वहीं, पार्टी को कांग्रेस कार्य समिति (सीडब्ल्यूसी), केंद्रीय चुनाव समिति (सीईसी) के गठन सहित कई लंबित कार्यों को पूरा करना बाकी है, जो विधानसभा चुनावों के लिए उम्मीदवार को अंतिम रूप देंगे. केपीसीसी के कार्यकारी अध्यक्ष आर धननारायण ने कहा कि राष्ट्रीय नेतृत्व राज्य के चुनाव अभियान की रूपरेखा तैयार कर सकता है.

सीईसी का गठन कुछ दिनों में होने की उम्मीद है, जिसके बाद पार्टी उम्मीदवारों की पहली सूची (लगभग 150 उम्मीदवारों) की घोषणा करेगी, जबकि 11 मार्च से पहले इसकी उम्मीद है. हालांकि, राष्ट्रीय नेताओं की अनुपस्थिति ने कैडर के मनोबल को बढ़ाने में मदद नहीं की है, क्योंकि कई लोगों को डर है कि आलाकमान का निष्क्रिय दृष्टिकोण कांग्रेस को कमजोर करते हुए भाजपा को बढ़त दे सकता है.

गौरतलब है कि अब तक कांग्रेस मुक्त भारत का सपना सिर्फ भाजपा का था. लेकिन जिस तरह से कांग्रेस के प्रति विपक्ष का बर्ताव है उसे देख कर लगता है कि यह सपना शायद अब विपक्ष का भी बन गया है. केंद्र से गायब कांग्रेस अब राज्यों के भरोसे ही जिंदा है. लेकिन तमाम क्षेत्रीय पार्टियां अब राज्यों में भी कांग्रेस को हटाने के लिए दाना पानी लेकर चढ़ गई हैं.

कांग्रेस के साथ सबसे बड़ी समस्या है कि वह ‘मुंगेरी लाल के हसीन सपनों’ में जीती है. जहां उसे सब कुछ अपने लिए अच्छा ही अच्छा नज़र आता है. कांग्रेस के आलाकमान को लगता है कि जमीन पर कांग्रेस अभी बरगद की तरह अपनी जड़े जमाए हुए है. लेकिन उसे शायद पता नहीं की उसकी स्थिति आज जमीन पर लगे उस पौधे की तरह हो गई है जिसे अगर जल्द जीत का पानी नहीं मिला तो वह हार की तपिश से कभी भी सूख जाएगा.

कांग्रेस के साथ सबसे बड़ी समस्या है कि वह हर जगह बडे़ भाई की भूमिका में रहना चाहती है, जबकि असलियत में उसकी स्थिति मंझले भाई की भी नहीं है.वैसे ही कांग्रेस से दिल्ली छीनने वाली आम आदमी पार्टी अब उससे पंजाब, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गुजरात और गोवा भी छीनना चाहती है. ध्यान रहे कि अगर उत्तर प्रदेश छोड़ दिया जाए तो बाकि के सभी राज्यों में कांग्रेस दूसरे या पहले नंबर की पार्टी होती है.

पर इन राज्यों में अब जिस तरह से ‘आप’ अपनी बढ़त बना रही है, वह दिन दूर नहीं जब कांग्रेस यहां तीसरे नंबर का पार्टी बन जाएगी. महाराष्ट्र में एनसीपी और शिवसेना उसकी चलने नहीं देते. दक्षिण भारत के राज्यों में भी कांग्रेस अब धीरे-धीरे नीचे खिसकती जा रही है. बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, दक्षिण भारत के तमाम राज्य. हर जगह कांग्रेस तीसरे नंबर की पार्टी बन चुकी है.

ऐसे में वह उम्मीद करती है कि आगामी चुनावों में नेतृत्व की डोर उसके हाथों में रहे, जो किसी को स्वीकार नहीं है. ममता बनर्जी, शरद पवार, अरविंद केजरीवाल, चंद्रशेखर राव जैसे कई नेताओं ने पहले ही बता दिया है कि विपक्ष की किलेबंदी में कांग्रेस जरूर होगी, लेकिन सिपाही की भूमिका में. सेनापति की भूमिका में नहीं. हालांकि कांग्रेस सेनापति की भूमिका से नीचे कुछ नहीं चाहती है, इसीलिए वह आज हर राज्य में अकेली पड़ती जा रही है.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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