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कश्मीर में कांग्रेस के साथ जो हुआ वो राहुल गांधी को और निराश कर सकता है!

    • आईचौक
    • Updated: 01 जून, 2019 06:43 PM
  • 01 जून, 2019 06:43 PM
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जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस को दूसरे नंबर पर सबसे ज्यादा वोट मिले, लेकिन उसे एक भी सीट नहीं मिली. Lok Sabha Election 2019 में यहां के वोटरों का गणित बहुत ही दिलचस्प रहा है.

Lok Sabha Election 2019 Results ने कई राज्यों में चौंका दिया है. भाजपा के प्रचंड बहुमत के अलावा कई राज्यों में अलग तरह के नतीजों ने विशेषज्ञों को भी सोचने पर मजबूर कर दिया है. पश्चिम बंगाल, नॉर्थ ईस्ट के साथ-साथ जम्मू कश्मीर में भी इसी तरह के नतीजे आए हैं. जम्मू-कश्मीर में वोटिंग प्रतिशत के हिसाब से देखें तो भाजपा के बाद कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी निकली है, लेकिन फिर भी उसकी जगह NC को सीटें मिल गईं. जहां एक ओर नैशनल कॉन्फ्रेंस (NC) ने और भाजपा ने तीन-तीन सीटें जीती हैं वहीं कांग्रेस को एक भी सीट नहीं मिली. कश्मीर में भाजपा का वोट प्रतिशत 46.39 रहा था और NC का 8%, लेकिन उसके एवज में कांग्रेस का वोट प्रतिशत 28.47% था. पर फिर भी कांग्रेस को एक भी सीट नहीं मिली. यहां पॉलिटिक्स या नतीजों में हेर-फेर नहीं बल्कि पूरी तरह से उम्मीदवार और सीट का ही योगदान है. NC के मुकाबले कांग्रेस को 4 गुना ज्यादा वोट मिले, लेकिन कांग्रेस की सीटों का गणित कुछ ऐसा रहा कि इतने वोटों के बाद भी वो जम्मू-कश्मीर में अपना स्थान नहीं बना पाई.

ये बदलाव असल में तीन क्षेत्रों के आधार पर हुआ है. कश्मीर, जम्मू और लद्दाक. इन तीनों में वोटरों की मानसिकता, वोटिंग का असर, हिंसा, सीट पर चुनाव लड़ रहा दावेदार सब कुछ असर डालता है और इसीलिए नतीजे बहुत अलग रहे हैं.

वोटरों की उपस्थिति...

जम्मू क्षेत्र में दो सीटें हैं उधमपुर और जम्मू. इसमें 37.33 लाख वोटरों में से 26.59 लाख वोटरों ने वोट दिए यानी वोटर टर्नआउट 71.22% रहा. इसके अलावा, लद्दाक की सिंगल सीट पर 1.75 लाख वोटरों में से 1.26 लाख ने वोट दिया यानी 72.25% वोटर टर्नआउट. ये दोनों ही इलाके अलगाववादियों और हिंसा से दूर हैं. यही कारण है कि अलगाववादियों के चुनाव बहिष्कार की बात को यहां नजरअंदाज किया गया और ज्यादा से ज्यादा लोगों ने वोट दिया. कश्मीर घाटी में तीन सीटें हैं अनंतनाग, बारामुल्ला औऱ श्रीनगर. इसमें 40.1 लाख वोटरों में से सिर्फ 7.67 लाख ने वोट दिया यानी वोटर टर्नआउट 19.13% रहा.

Lok Sabha Election 2019 Results ने कई राज्यों में चौंका दिया है. भाजपा के प्रचंड बहुमत के अलावा कई राज्यों में अलग तरह के नतीजों ने विशेषज्ञों को भी सोचने पर मजबूर कर दिया है. पश्चिम बंगाल, नॉर्थ ईस्ट के साथ-साथ जम्मू कश्मीर में भी इसी तरह के नतीजे आए हैं. जम्मू-कश्मीर में वोटिंग प्रतिशत के हिसाब से देखें तो भाजपा के बाद कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी निकली है, लेकिन फिर भी उसकी जगह NC को सीटें मिल गईं. जहां एक ओर नैशनल कॉन्फ्रेंस (NC) ने और भाजपा ने तीन-तीन सीटें जीती हैं वहीं कांग्रेस को एक भी सीट नहीं मिली. कश्मीर में भाजपा का वोट प्रतिशत 46.39 रहा था और NC का 8%, लेकिन उसके एवज में कांग्रेस का वोट प्रतिशत 28.47% था. पर फिर भी कांग्रेस को एक भी सीट नहीं मिली. यहां पॉलिटिक्स या नतीजों में हेर-फेर नहीं बल्कि पूरी तरह से उम्मीदवार और सीट का ही योगदान है. NC के मुकाबले कांग्रेस को 4 गुना ज्यादा वोट मिले, लेकिन कांग्रेस की सीटों का गणित कुछ ऐसा रहा कि इतने वोटों के बाद भी वो जम्मू-कश्मीर में अपना स्थान नहीं बना पाई.

ये बदलाव असल में तीन क्षेत्रों के आधार पर हुआ है. कश्मीर, जम्मू और लद्दाक. इन तीनों में वोटरों की मानसिकता, वोटिंग का असर, हिंसा, सीट पर चुनाव लड़ रहा दावेदार सब कुछ असर डालता है और इसीलिए नतीजे बहुत अलग रहे हैं.

वोटरों की उपस्थिति...

जम्मू क्षेत्र में दो सीटें हैं उधमपुर और जम्मू. इसमें 37.33 लाख वोटरों में से 26.59 लाख वोटरों ने वोट दिए यानी वोटर टर्नआउट 71.22% रहा. इसके अलावा, लद्दाक की सिंगल सीट पर 1.75 लाख वोटरों में से 1.26 लाख ने वोट दिया यानी 72.25% वोटर टर्नआउट. ये दोनों ही इलाके अलगाववादियों और हिंसा से दूर हैं. यही कारण है कि अलगाववादियों के चुनाव बहिष्कार की बात को यहां नजरअंदाज किया गया और ज्यादा से ज्यादा लोगों ने वोट दिया. कश्मीर घाटी में तीन सीटें हैं अनंतनाग, बारामुल्ला औऱ श्रीनगर. इसमें 40.1 लाख वोटरों में से सिर्फ 7.67 लाख ने वोट दिया यानी वोटर टर्नआउट 19.13% रहा.

जम्मू-कश्मीर में वोटरों के गणित ने कांग्रेस को हारी हुई पार्टी बना दिया.

पार्टियां जिन्होंने इन सीटों पर उम्मीदवार खड़े किए...

भाजपा के उम्मीदवार सभी 6 सीटों पर थे. कांग्रेस ने इसमें से 5 सीटों पर ही उम्मीदवार खड़े किए थे. श्रीनगर सीट कांग्रेस ने छोड़ दी थी क्योंकि NC अध्यक्ष फारुख अब्दुल्ला यहां से चुनाव लड़ते हैं. NC ने अपने कैंडिडेट सिर्फ तीन सीटों पर ही रखे. ये घाटी की तीन सीटें थीं. यही हाल पीडीपी का भी था. अब बारामुल्ला और अनंतनाग में कांग्रेस, भाजपा, पीडीपी और एनसी चारों पार्टियों के उम्मीदवार थे. क्षेत्रीय पार्टियों ने जम्मू की दो सीटों पर कांग्रेस के दो उम्मीदवारों को समर्थन देने की बात कही. इसी के साथ, लद्दाक के एक निर्दलीय उम्मीदवार को सपोर्ट करने की बात भी तय हो गई.

ये तय रणनीति थी. कांग्रेस के पास लद्दाक और जम्मू में समर्थक थे और भाजपा के पास भी, लेकिन क्षेत्रिय पार्टियों के समर्थक अधिकतर कश्मीर घाटी में ही थे.

वोटों की गिनती जो असर डालती है...

जम्मू और लद्दाक में बहुत से वोट पड़े. कुल जम्मू-कश्मीर में 35.52 लाख वोट थे और उसमें से 27.85 लाख (78.4%) वोट इन्हीं दो क्षेत्रों से आए थे. क्योंकि यहां क्षेत्रीय पार्टियां नहीं थीं इसलिए यहां सीधे वोट भाजपा और कांग्रेस के बीच में बंट गए. कांग्रेस को कश्मीर से 10.11 लाख वोट मिले और इसमें से 9.43 लाख इन्हीं दो जगहों से आए. भाजपा के वोट इन्हीं दो क्षेत्रों पर आधारित थे और घाटी में भाजपा को बहुत कम वोट मिले हैं. भाजपा कुल जम्मू-कश्मीर से 16.48 लाख वोट में से 16.25 लाख जम्मू और लद्दाक से मिले हैं यानी 98.61% वोट मिले हैं.

कश्मीर में ये टक्कर सिर्फ दो क्षेत्रीय पार्टियों के बीच ही था. यहां पर कुल 7.67 लाख वोट पड़े थे और इसमें से 2.8 लाख यानी 36.53% वोट एनसी को मिले और पीडीपी को 1.2 लाख वोट मिले और यही कारण है कि एनसी को सभी तीन सीटें मिलीं. कांग्रेस को यहां पर सिर्फ 8.87% वोट मिले और भाजपा को सिर्फ 2.96% वोट.

भाजपा को यहां अधिकतर कश्मीरी पंडितों के वोट मिले हैं जो घाटी के बाहर रह रहे हैं. या फिर वो वोटर जो कश्मीरी पंडित हैं और वापस कश्मीर घाटी में आ गए हैं. कुल कश्मीरी पंडितों के 11,648 वोट थे और भाजपा को घाटी में 22,750 वोट मिले हैं. यानी आधे वोट कश्मीरी पंडितों के ही हैं.

यानी ये समझा जा सकता है कि भाजपा की पहुंच अभी भी कश्मीरी घाटी में नहीं बैठ पाई है और वहां भी कश्मीरी हिंदुओं के वोट ही उन्हें मिल रहे हैं. क्षेत्रीय पार्टियों के अन्य जगह पर न होने की बातें तो मानी जा सकती हैं, लेकिन शायद अगर इन पार्टियों ने अपने कैंडिडेट जम्मू और लद्दाक में उतारे होते तो भाजपा और कांग्रेस के वोट कट सकते थे. पर इन कारणों से हुआ ये कि कांग्रेस को दूसरे नंबर पर ज्यादा वोट मिलने के बाद भी उसे एक भी सीट नहीं मिल पाई.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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