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नूर इनायत एक राजकुमारी जिसे जासूसी के लिए मौत मिली!

    • आईचौक
    • Updated: 17 सितम्बर, 2017 12:45 PM
  • 17 सितम्बर, 2017 12:45 PM
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13 सितंबर 1944 की सुबह, नूर इनायत को डकाऊ में तीन अन्य महिलाओं के साथ मार डाला गया. उन्हें जमीन पर घुटने टेककर खड़ा कराया गया और गर्दन के पीछे से गोली मार दी गई थी.

करीब 73 साल पहले जर्मनी में एक युवा भारतीय राजकुमारी को नाजियों ने जासूस बताकर मौत के घाट उतार दिया था. जानते हैं उसका नाम क्या था? उस राजकुमारी का नाम था नूर इनायत खान. अगर आप ये नाम पहली बार सुन रहे हैं तो आपको इतिहास थोड़ा और गौर से पढ़ने की ज़रूरत है.

नूर इनायत खान कौन थी?

मास्को में संगीतकार पिता हजरत इनायत खान और अमेरिकी मां पिरानी अमिना बेगम के घर नूर का जन्म हुआ था. नूर इनायत टीपू सुल्तान के चाचा की वंशज थी. 1914 में प्रथम विश्व युद्ध की शुरुआत ने नूर इनायत के परिवार को रूस से बाहर जाने के लिए मजबूर कर दिया. वो फ्रांस चले गए. वहां नूर ने बच्चों के लिए कहानियां और कविताओं की लेखक बन गईं. साथ ही फ्रांसीसी रेडियो में लगातार योगदान दिया.

लेकिन 1940 में दूसरे विश्व युद्ध ने नूर की जिंदगी को तहस-नहस कर दिया. क्योंकि इस समय जर्मनी, फ्रांस में घुस गया था. जिसकी वजह से खान परिवार ने इंग्लैंड का रूख कर लिया.

नूर का बलिदान हमें जानने की जरुरत है

राजकुमारी का जन्म, लेखक का जीवन और मौत एक जासूस की-

जर्मन सैनिकों के हाथों अपना घर खोने के बाद नूर इनायत ने नाजी शासन को खत्म करने में मदद करने की शपथ ली. 1940 के अंत तक वो Women's Auxiliary Air Force (WAAF) के साथ काम करने लगी थी. जितनी शिद्दत से वो फ्रांस को प्यार करती थी और उसे नाजियों के चंगुल से छुड़ाना चाहती थी, उतना ही प्यार वो भारत से भी करती थी. एक इंटरव्यू में नूर इनायत ने कहा था कि- जैसे ही ये युद्ध खत्म हो जाएगा. उसके बाद वो अपनी जिंदगी भारत की आजादी के लिए काम करने में लगा देंगी.

दुर्भाग्य से वो दिन कभी नहीं आया

WAAF में नूर इनायत को वायरलेस ऑपरेटर के रूप में प्रशिक्षित किया जा रहा था....

करीब 73 साल पहले जर्मनी में एक युवा भारतीय राजकुमारी को नाजियों ने जासूस बताकर मौत के घाट उतार दिया था. जानते हैं उसका नाम क्या था? उस राजकुमारी का नाम था नूर इनायत खान. अगर आप ये नाम पहली बार सुन रहे हैं तो आपको इतिहास थोड़ा और गौर से पढ़ने की ज़रूरत है.

नूर इनायत खान कौन थी?

मास्को में संगीतकार पिता हजरत इनायत खान और अमेरिकी मां पिरानी अमिना बेगम के घर नूर का जन्म हुआ था. नूर इनायत टीपू सुल्तान के चाचा की वंशज थी. 1914 में प्रथम विश्व युद्ध की शुरुआत ने नूर इनायत के परिवार को रूस से बाहर जाने के लिए मजबूर कर दिया. वो फ्रांस चले गए. वहां नूर ने बच्चों के लिए कहानियां और कविताओं की लेखक बन गईं. साथ ही फ्रांसीसी रेडियो में लगातार योगदान दिया.

लेकिन 1940 में दूसरे विश्व युद्ध ने नूर की जिंदगी को तहस-नहस कर दिया. क्योंकि इस समय जर्मनी, फ्रांस में घुस गया था. जिसकी वजह से खान परिवार ने इंग्लैंड का रूख कर लिया.

नूर का बलिदान हमें जानने की जरुरत है

राजकुमारी का जन्म, लेखक का जीवन और मौत एक जासूस की-

जर्मन सैनिकों के हाथों अपना घर खोने के बाद नूर इनायत ने नाजी शासन को खत्म करने में मदद करने की शपथ ली. 1940 के अंत तक वो Women's Auxiliary Air Force (WAAF) के साथ काम करने लगी थी. जितनी शिद्दत से वो फ्रांस को प्यार करती थी और उसे नाजियों के चंगुल से छुड़ाना चाहती थी, उतना ही प्यार वो भारत से भी करती थी. एक इंटरव्यू में नूर इनायत ने कहा था कि- जैसे ही ये युद्ध खत्म हो जाएगा. उसके बाद वो अपनी जिंदगी भारत की आजादी के लिए काम करने में लगा देंगी.

दुर्भाग्य से वो दिन कभी नहीं आया

WAAF में नूर इनायत को वायरलेस ऑपरेटर के रूप में प्रशिक्षित किया जा रहा था. 1943 तक उन्होंने स्पेशल ऑपरेशन एक्जीक्यूटिव के एफ (फ्रांस) सेक्शन को ज्वाइन कर लिया था. एफ सेक्शन ब्रिटिश विश्व युद्ध संगठन द्वितीय का हिस्सा था. यहां से उन्हें कब्जे वाले इलाके में विशेष वायरलेस ऑपरेटर के रूप में प्रशिक्षित करने के लिए भेजा दिया गया था.

यहां उनके बारे में उनके वरिष्ठों की राय बहुत अच्छी नहीं थी. उन्होंने नूर इनायत को "अस्थिर", "ज्यादा दिमाग नहीं लगाने वाली", "बच्चों जैसी", "कोमल", "हथियारों डरने वाली", "अनाड़ी", और "शारीरिक रूप से उसकी नौकरी के लिए अनुपयुक्त" कहा था.

आजादी की लड़ाई में एक ये गुमनाम नाम भी याद कर लेना चाहए

क्या उसने उन्हें गलत साबित किया!

एफ सेक्शन में ब्रिटिश खुफिया अधिकारी वेरा एटकिंस ने माना कि नूर इनायत की प्रतिबद्धता शक-ओ-शुबहा से परे थी. यहां नूर इनायत को 'नोरा बेकर' के नाम से जाना जाता था. एटकिन्स को पता था कि- नोरा स्वभाव से ही "खबरी" की काबिलियत रखती थी.

शैडो नाईट्स: दी सीक्रेट वार अगेन्सट हिटलर नामक किताब में लिखा है कि- "नूर इनायत को अब अपने काम में ऊब होने लगी थी. वो कुछ क्रांतिकारी करने के लिए आतुर हो रही थी. कुछ ऐसा जिसमें और ज्यादा बलिदान की गुंजाइश हो." यही कारण है कि एटकिंस को जैसे ही मेजर फ्रांसिस एल्फ्रेड सुटिल की मांग हुई, उन्होंने सीधा नूर का नाम आगे कर दिया. नूर को नाजियों के कब्जे वाले फ्रांस के हिस्से में वायरलेस ऑपरेटर के काम के लिए भेज दिया गया.

प्रथम विश्व युद्द और द्वितीय विश्व युद्द में एक वायरलेस ऑपरेटर का काम मूल रूप से "लंदन और सर्किट के बीच के लिंक को बनाए रखने" का होता था. उन्हें सीक्रेट मैसेज का आदान-प्रदान करना होता था. जैसे- "तोड़फोड़ करने का प्लान या फिर सेनानियों के लिए किसी जगह हथियार की जरूरत है." इसलिए इस दौरान वायरलेस ऑपरेटर बहुत डरे हुए होते थे.

सुनने में ये काम भले ही बड़ा रोचक और रोमांच से भरपूर लग रहा हो. लेकिन ये खतरे से खाली नहीं होता था. जब तक कोई वायरलेस ऑपरेटर मिशन पर होता तब तक उसे चौकन्ना और हर समय तैयार रहना होता था. जहां भी हों वहां से भागने के लिए तैयार रहना भी होता था.

नूर इनायत एक नई पहचान के साथ फ्रांस भेजा गया था: (जेनी मेरी रेनियर) Jeanne-Marie Renier. जेनी मेरी रेनियर के रूप में नूर का काम एक बच्चों की पेशेवर नर्स का था. लेकिन मिशन के लिए रवाना से पहले नूर के मन में थोड़ी झिझक पैदा होने लगी. लेकिन अंत में नूर ने मैदान-ए-जंग में जाने का ही फैसला किया. नाजियों के कब्जे वाले फ्रांस में काम करने के शुरू होने के कुछ सप्ताह बाद नूर को एक डबल एजेंट ने जर्मन को बेच दिया.

तीस की उम्र और काम !

"लिबेरेट!" ये उनके अंतिम शब्द थे-

नूर इनायत वायरलैस ऑपरेटर के रूप में अपना काम बड़ी ही सफाई से कर रही थी. साथ ही वो बड़ी चालाकी से समय-समय पर अपनी जगह और अपना लुक बदल लेती थी. लेकिन एक लाख फ्रैंक के लिए उनके किसी अपने ने ही पीठ में छुरा मार दिया और नूर की कहानी खत्म कर दी. नाज़ियों द्वारा पकड़ लिए जाने के बाद नूर इनायत को अन्य गिरफ्तार एजेंटों के साथ डकाऊ शिविर में स्थानांतरित किया गया. उन्हें 'बेहद खतरनाक' माना गया और पूरे समय जंजीरों से बांध कर रखा जाता. यही नहीं उनसे जानकारी निकालने के लिए उनपर तरह-तरह के अत्याचार किए जाते.

लेकिन जब वो नहीं टूटी तो उन्हें मौत के घाट उतार दिया गया. 13 सितंबर 1944 की सुबह, नूर इनायत को डकाऊ में तीन अन्य महिलाओं के साथ मार डाला गया. उन्हें जमीन पर घुटने टेककर खड़ा कराया गया और गर्दन के पीछे से गोली मार दी गई थी.

किंवदंती यह है कि अपनी आखिरी के सांस के साथ नूर की जुबान से "लिबेरेट" शब्द निकला था जिसका अर्थ होता है "आजादी." वह सिर्फ तीस साल की थी.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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