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बंगाल की बेकाबू चुनावी हिंसा का जिम्‍मेदार असल में निर्वाचन आयोग है

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 15 मई, 2019 06:46 PM
  • 15 मई, 2019 06:45 PM
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पश्चिम बंगाल में जम्मू-कश्मीर जैसे हालात तो कतई नहीं हैं. चुनावी हिंसा में दोनों की आगे नजर आते हैं. पश्चिम बंगाल के पंचायत चुनाव और जम्मू-कश्मीर के निकाय चुनाव में भी हिंसा हुई थी - क्या चुनाव आयोग को ये सब नहीं मालूम?

कोलकाता सड़कों हुई हिंसा की लपटें दिल्ली तक पहुंच रही हैं - और उसकी आंच चुनाव आयोग को भी झुलसाने लगी है. सिर्फ तृणमूल कांग्रेस ही नहीं, बीजेपी भी चुनाव आयोग पर भेदभाव के आरोप लगा रही है. पश्चिम बंगाल में हिंसा का इतिहास तो पहले से ही भविष्यवाणी कर रहा था - और बीच बीच में कई बार झलकियां भी दिखायी दे रही थीं - लेकिन सतर्कता नहीं बरती गयी.

ईश्वरचंद विद्यासागर की मूर्ति तोड़े जाने को लेकर बीजेपी और तृणमूल कांग्रेस दोनों एक दूसरे को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं - और अब वाम दलों की ओर से भी सियासी हमले शुरू हो गये हैं.

बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने रोड शो के दौरान हिंसा को खुद पर जानलेवा हमला बताया है - लेकिन ममता बनर्जी अपने स्टैंड पर कायम हैं. ममता बनर्जी का कहना है कि बीजेपी दफ्तर पर कब्जे में एक मिनट भी नहीं लगेगा.

क्या वास्तव में चुनाव आयोग ये सारा नजारा देख रहा है? अगर देख रहा है तो इस पर काबू पाने से लेकर एहतियाती उपायों की जिम्मेदारी भी तो चुनाव आयोग की ही बनती है. है कि नहीं?

क्या ये हिंसा रोकी नहीं जा सकती थी?

दिल्ली में अमित शाह की प्रेस कांफ्रेंस में निशाने पर ममता बनर्जी और तृणमूल कांग्रेस के साथ साथ चुनाव आयोग भी रहा. कोलकाता की घटना से तमतमाये अमित शाह ने पूछा भी - 'मैं पूछना चाहता हूं कि क्यों चुनाव आयोग चुप बैठा है?'

अब तक चुनाव आयोग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह के मामलों में एक्शन को लेकर विपक्ष के निशाने पर रहा है, लेकिन कोलकाता की घटना के बाद आयोग से अमित शाह और ममता बनर्जी दोनों बराबर खफा नजर आ रहे हैं. ये बात अलग है कि चुनाव आयोग पर अमित शाह और ममता बनर्जी अपने अपने हिसाब से आरोप लगा रहे हैं - लेकिन चुनाव के लिए कानून व्यवस्था की जिम्मेदारी बनती भी तो चुनाव आयोग की ही है. ये सवाल तो उठेगा ही कि आयोग के पर्यवेक्षकों ने हालात का पूर्वानुमान क्यों नहीं लगाया?

अमित शाह तो पहले से ही ममता बनर्जी को आगाह करके गये थे - कोलकाता आ रहा हूं, हिम्मत है तो दीदी गिरफ्तार करें....

कोलकाता सड़कों हुई हिंसा की लपटें दिल्ली तक पहुंच रही हैं - और उसकी आंच चुनाव आयोग को भी झुलसाने लगी है. सिर्फ तृणमूल कांग्रेस ही नहीं, बीजेपी भी चुनाव आयोग पर भेदभाव के आरोप लगा रही है. पश्चिम बंगाल में हिंसा का इतिहास तो पहले से ही भविष्यवाणी कर रहा था - और बीच बीच में कई बार झलकियां भी दिखायी दे रही थीं - लेकिन सतर्कता नहीं बरती गयी.

ईश्वरचंद विद्यासागर की मूर्ति तोड़े जाने को लेकर बीजेपी और तृणमूल कांग्रेस दोनों एक दूसरे को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं - और अब वाम दलों की ओर से भी सियासी हमले शुरू हो गये हैं.

बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने रोड शो के दौरान हिंसा को खुद पर जानलेवा हमला बताया है - लेकिन ममता बनर्जी अपने स्टैंड पर कायम हैं. ममता बनर्जी का कहना है कि बीजेपी दफ्तर पर कब्जे में एक मिनट भी नहीं लगेगा.

क्या वास्तव में चुनाव आयोग ये सारा नजारा देख रहा है? अगर देख रहा है तो इस पर काबू पाने से लेकर एहतियाती उपायों की जिम्मेदारी भी तो चुनाव आयोग की ही बनती है. है कि नहीं?

क्या ये हिंसा रोकी नहीं जा सकती थी?

दिल्ली में अमित शाह की प्रेस कांफ्रेंस में निशाने पर ममता बनर्जी और तृणमूल कांग्रेस के साथ साथ चुनाव आयोग भी रहा. कोलकाता की घटना से तमतमाये अमित शाह ने पूछा भी - 'मैं पूछना चाहता हूं कि क्यों चुनाव आयोग चुप बैठा है?'

अब तक चुनाव आयोग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह के मामलों में एक्शन को लेकर विपक्ष के निशाने पर रहा है, लेकिन कोलकाता की घटना के बाद आयोग से अमित शाह और ममता बनर्जी दोनों बराबर खफा नजर आ रहे हैं. ये बात अलग है कि चुनाव आयोग पर अमित शाह और ममता बनर्जी अपने अपने हिसाब से आरोप लगा रहे हैं - लेकिन चुनाव के लिए कानून व्यवस्था की जिम्मेदारी बनती भी तो चुनाव आयोग की ही है. ये सवाल तो उठेगा ही कि आयोग के पर्यवेक्षकों ने हालात का पूर्वानुमान क्यों नहीं लगाया?

अमित शाह तो पहले से ही ममता बनर्जी को आगाह करके गये थे - कोलकाता आ रहा हूं, हिम्मत है तो दीदी गिरफ्तार करें. ऐसा अमित शाह ने जाधवपुर में रैली की अनुमति रद्द करने और हेलीकॉप्टर उतारने की इजाजत नहीं मिलने पर कहा था.

मीडिया को कोलकाता की तस्वीर दिखाते अमित शाह

क्या इसके बाद के हालात की पैमाइश जरूरी नहीं थी? या तो आयोग पहले ही एक्शन लेते हुए अमित शाह को जाने ही नहीं देता? अगर अमित शाह का रोड शो रोकना अनुचित रहा तो सुरक्षा इंतजाम पुख्ता होने चाहिये थे.

रोड शो से पहले ही कई जगह टीएमसी कार्यकर्ताओं पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह के पोस्टर फाड़ने के आरोप हैं. फिर भी शाम को 'जय श्रीराम' और 'मोदी-मोदी' के स्लोगन के बीच अमित शाह का रोड शो आगे बढ़ रहा था. जैसे ही रोड शो कलकत्ता यूनिवर्सिटी के गेट के पास पहुंचा तृणमूल छात्र परिषद के कार्यकर्ताओं ने काले झंडे दिखाये. धक्का-मुक्की और झड़पें भी हुईं लेकिन पुलिस ने काबू पा लिया. रोड शो के विद्यासागर कॉलेज के पास पहुंचने पर एक पत्थर फेंका गया. तभी दो बाइक और एक साइकल में आग लगा दी गयी. बीजेपी समर्थक और तृणमूल छात्र परिषद के कार्यकर्ता ऐसे भिड़े कि समाज सुधारक ईश्वर चंद विद्यासागर की मूर्ति टूट गई. पुलिस के लिए कुछ देर कर काबू पाना मुश्किल हो गया था.

अमित शाह का कहना है कि पथराव के दौरान सुरक्षाकर्मियों ने उन्हें बचा लिया. अमित शाह ने कहा कि अगर सीआरपीएफ के लोग नहीं होते उनका बचना मुश्किल था. अमित शाह इस बात से भी खफा हैं कि मीडिया इसे हिंसा बता रहा है, जबकि ये सीधे सीधे हमला था.

बीजेपी को नुकसान ये हुआ है कि नेताओं की रैलियां रद्द करनी पड़ रही हैं. योगी आदित्यनाथ के तीन कार्यक्रम बनाये गये थे, लेकिन वो एक ही रैली कर सके बाकी दो रद्द कर दिये गये. बीजेपी का आरोप है कि स्टेज को तोड़ दिया गया था. मजदूरों को पीटा और डराया गया और रैली के निर्धारित समय तक मंच की मरम्मत करना मुश्किल था.

कोलकाता की घटना पर बयानबाजी के बीच बीजेपी और तृणमूल कांग्रेस दोनों तरफ से एक दूसरे के खिलाफ वीडियो सबूत पेश किये गये हैं. बीजेपी के आईटी सेल के चीफ अमित मालवीय का दावा है कि तृणमूल समर्थकों ने अमित शाह के रोड शो में खलल डाली जिसके बाद हालात बिगड़ते चले गये.

जवाब में तृणमूल कांग्रेस की ओर से भी कई वीडियो जारी किये गये हैं. टीएमसी नेता डेरेक ओ ब्रायन ने भी ट्विटर पर वीडियो पोस्ट कर कहा है कि अमित शाह के रोड शो के दौरान बीजेपी के 'गुंडे' उत्पात मचा रहे थे.

ये सारे वीडियो अलग अलग ऐंगल से शूट किये गये हैं - और ये सही हैं कि नहीं इस बात का पता भी जांच से ही चलेगा. फिलहाल तो ये राजनीतिक बयानबाजी का वीडियो वर्जन ही प्रतीत हो रहे हैं जिन्हें अपने अपने हिसाब से पेश किया गया है.

ईश्वरचंद विद्यासागर की मूर्ति तोड़े जाने पर बवाल

अमित शाह का आरोप है कि ईश्वरचंद विद्यासागर की प्रतिमा तृणमूल कांग्रेस के 'गुंडों' ने तोड़ा है. तृणमूल कांग्रेस का आरोप है कि मूर्ति बीजेपी समर्थकों ने तोड़ी है. ममता बनर्जी इस घटना को बंगाल के लोगों की भावना से जोड़ने की कोशिश कर रही हैं.

बीजेपी नेताओें का दिल्ली में धरना

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री बनर्जी मूर्ति तोड़ने का आरोप बीजेपी पर लगा रही हैं और उनका कहना है कि वोटिंग के वक्त गड़बड़ी के लिए बुलाये गये ये बाहरी लोग हैं जो इसके लिए जिम्मेदार है.

ईश्वरचंद विद्यासागर की मूर्ति तोड़े जाने के खिलाफ सीपीएम कार्यकर्ताओं ने कोलकाता में प्रदर्शन किया है. सीपीएम के जनरल सेक्रटरी सीताराम येचुरी ने कहा कि कोलकाता में ऐसा कैसे हो सकता है, ये पता लगाने के लिए जांच की जानी चाहिए.

ममता बनर्जी ने घटनास्थल का दौरा भी किया है. मौके पर वो कुछ दूर तक पैदल चल कर गयीं. ममता ने बोलीं, 'ये पूरी तरह से दुर्भाग्‍यपूर्ण है. ये कॉलेज पर पूरी तरह से सुनियोजित हमला है. बीजेपी को विद्यासागर की प्रतिमा तोड़ने की इंच दर इंच कीमत चुकानी पड़ेगी.'

ममता बनर्जी कलकत्‍ता यूनिवर्सिटी भी पहुंची और कहा, 'इस अपमान को मैं सहन नहीं करूंगी. कुछ नहीं करने के अपमान में जीने से अच्‍छा मर जाना है. इस तरह की घटनाएं नक्‍सली आंदोलन के दौरान भी नहीं हुई थी. हम उन्‍हें नहीं छोड़ेंगे.'

घटना के विरोध में ममता बनर्जी ने सोशल मीडिया पर अपनी डीपी बदल ली है - और लोगों से भी ऐसा कर विरोध जताने की अपील की है.

ममता ने प्रोफाइल में लगायी ईश्वरचंद विद्यासागर की तस्वीर

तमाम इशारे थे, फिर एहतियाती उपाय क्यों नहीं?

लेफ्ट शासन की बात छोड़ दें तब भी ऐसे तमाम वाकये हैं जो पश्चिम बंगाल में हिंसा का संकेत दे रहे थे. पंचायत चुनाव में हुई हिंसा तो ममता बनर्जी की ही सरकार की बात है. पश्चिम बंगाल में पांव जमाने को लेकर बीजेपी कितनी शिद्दत से सक्रिय रही है किसी से छिपा नहीं है. चुनावों बीजेपी के उम्मीदवार भले जीत पाने में असफल रहे हैं लेकिन बीजेपी का उत्साह तो 2014 के वोट शेयर से ही बढ़ा हुआ है.

2014 के आम चुनाव में बीजेपी का वोट शेयर 17.02 फीसदी रहा जो कांग्रेस के 9.58 फीसदी से ज्यादा रहा. वाम मोर्चे का वोट शेयर 29.71 फीसदी रहा जबकि तृणमूल कांग्रेस का 39.05 फीसदी रहा. बीजेपी का जोश इसलिए बढ़ने लगा क्योंकि सीटें भले ही उसे दो मिलीं जो कांग्रेस की चार से आधी थीं लेकिन वोट शेयर डबल से कुछ ही कम रहा. वाम मोर्चा ने सीटें तो दो ही जीतीं लेकिन वोट शेयर बीजेपी के दो गुणा से कुछ ही कम रहा. बीजेपी की नजर लेफ्ट का वोट शेयर हासिल करने पर लगातार टिकी रही है.

2014 में तृणमूल कांग्रेस ने 34 सीटें जीती थीं और इस बार पूरे 42 जीतने की कोशिश है - क्योंकि राष्ट्रीय राजनीति में ममता बनर्जी की हैसियत इसी बात से तय होनी है. बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने बीजेपी के लिए 22 सीटों का लक्ष्य रखा है.

1. बीजेपी की रथयात्रा : ममता बनर्जी की सरकार ने 2018 में बीजेपी को रथयात्रा की इजाजत नहीं दी. बीजेपी को सुप्रीम कोर्ट जाना पड़ा और वहां सिर्फ रैली की इजाजत मिली. बीजेपी की रथयात्रा को लेकर जो रवैया ममता सरकार के अफसरों ने अपनाया था उसके लिए फटकार भी सुननी पड़ी थी.

2. ममता के तेवर : विपक्षी नेताओं की कोलकाता रैली में ममता बनर्जी ने मंच से ही कह दिया था कि वो बीजेपी नेताओं के हेलीकॉप्टर उतरने नहीं देंगी. बाद में हुआ भी ऐसा ही. कभी कोई नेता झारखंड के रास्ते पहुंच रहा था तो कभी किसी और तरीके से.

3. मोदी की रैली में भगदड़ : ममता बनर्जी की कोलकाता रैली बड़े आराम से हुई, लेकिन कुछ ही दिन बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैली में भगदड़ हो गयी. ठाकुर नगर में मोदी मटुआ समुदाय को लेकर आयोजित रैली में मोदी भाषण दे रहे थे तभी अशांति के संकेत मिल रहे थे. मोदी ने कई बार अपील भी की - आखिरकार जल्दी से अपना भाषण समेट कर मोदी को रैली खत्म करनी पड़ी थी.

4. बनारस में भी जिक्र : जब प्रधानमंत्री मोदी अपने नामांकन के लिए वाराणसी गये हुए थे, वहां भी कार्यकर्ताओं से बातचीत में उन्होंने पश्चिम बंगाल की हालत की चर्चा की. मोदी ने कहा था कि कार्यकर्ता जब घर से निकलता है तो मां को बोल कर जाता है कि वो बीजेपी का काम करने जा रहा है. साथ ही ये भी बता देता है कि अगर शाम तक नहीं लौटा तो भाई को भेज देना.

5. बाहर से लोगों को बुलाने की धमकी: कभी ममता बनर्जी की करीबी रहीं पूर्व आईपीएस भारती घोष ने तृणमूल कार्यकर्ताओं को आगाह किया था कि वे नहीं माने तो वो यूपी से लोगों को बुलवा कर ठीक कर देंगी.

6. ममता की चेतावनी : ममता बनर्जी अब भी धमकी दे रही हैं कि अगर बीजेपी के लोग नहीं माने तो वो एक मिनट में दिल्ली में उनके दफ्तर पर कब्जा कर लेंगी.

7. अमित शाह की चुनौती : अमित शाह ने अपने रोड शो से पहले ही ममता सरकार को चेता दिया था कि वो कोलकाता पहुंच रहे हैं वे चाहें तो गिरफ्तार कर लें.

अमित शाह के पिछले दौरे में भी उनके काफिले को निशाना बनाया गया था. बीते दिनों की घटनाओं और बयानबाजी पर गौर किया जाये तो मालूम होता है कि ये सब एक ही तरफ इशारा कर रहे हैं.

सवाल है कि क्या इन इशारों को चुनाव आयोग अलर्ट के तौर पर नहीं लेता? अगर इशारों को नहीं समझता तो क्या एक घटना के बाद उससे बड़ी घटना की आशंका क्यों नहीं होती?

वैसे भी देश के बाकी हिस्सों के मुकाबले पश्चिम बंगाल में हुए हर चुनाव में हिंसा की घटनाएं ज्यादा ही हुई हैं - अगर इस मामले में पश्चिम बंगाल की टक्कर किसी और सूबे से है तो वो है जम्मू-कश्मीर. अगर देश भर में शांतिपूर्ण चुनाव के लिए चुनाव आयोग बधाई का पात्र है तो पश्चिम बंगाल को लेकर भी पूरी जिम्मेदारी आयोग की ही बनती है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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