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पेट्रोल-डीजल के दाम पर नाराजगी है या नेतागिरी पर?

    • विकास त्रिपाठी
    • Updated: 10 सितम्बर, 2018 02:28 PM
  • 10 सितम्बर, 2018 02:27 PM
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पंजाब देश के उन राज्यों में है जंहा पेट्रोल डीजल पर सबसे ज्यादा टैक्स है. आखिर कांग्रेस अपने राज्यों में टैक्स कम करके आम आदमी को कोई राहत क्यों नहीं देती. वो केंद्र सरकार पर जिस फ्यूल लूट का आरोप लगा रही है उतना या उससे ज्यादा वो अपने शासित राज्यों में आम आदमी से वसूल रही है.

पिछले कुछ समय से पेट्रोल डीजल के दाम लगातार बढ़ रहे हैं और हर दिन इनके दाम नये रिकार्ड छू रहे हैं. महाराष्ट्र के परभणी में तो पेट्रोल 92 रूपये पहुंच गया. दिल्ली में भी पेट्रोल सारे रिकार्ड तोड़कर 80 रूपये पर बिक रहा है. सरकार पर चारों तरफ से विपक्षी दलों का हमला हो रहा है. तेल के इन बढ़े दामों और तेल की लूट के विरोध में कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने 10 सितंबर को भारत बंद बुलाया है.

तमाम मांगों और दबाव के बावजूद भी सरकार टैक्स में कोई कटौती करने को तैयार नही है. पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान और वित्त मंत्री अरूण जेटली तक इसका कारण बाहरी फैक्टर बता रहे हैं और सभी से संयम रखने की सलाह दे रहे हैं.

कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों नें 10 सितंबर को भारत बंद बुलाया है

आइये जानें क्या है इस तेल के खेल का गणित

दरअसल भारत अपनी जरूरत का 80 प्रतिशत तेल आयात करता है. औसतन लगभग 5 मिलियन बैरल तेल रोज आयाता होता है. जून 2010 से पेट्रोल और अक्टूबर 2014 से डीजल को डीरेगुलेट कर दिया गया, यानी तेल कंपनियां अंतर्राष्ट्रीय कीमत के अनुसार दाम घटा बढ़ा सकेंगी और इसमें सरकार का हस्तक्षेप नहीं होगा. चूंकि अंतर्राष्ट्रीय मार्केट में तेल की कीमत डॉलर में होती है तो जब भी रूपये की कीमत डॉलर के मुकाबले गिरती है तो उतना ही तेल खरीदेने के लिए ज्यादा पैसा चुकाना होता है. अब जो तेल बाजार में बिकता है उसकी कीमत में कई फैक्टर शामिल होते हैं. तेल एक निश्चित मूल्य पर डीलरों को मिलता है. उस तेल पर केंद्र सरकार का उत्पाद कर, फिर राज्य सरकार का बिक्री कर, डीलर को मिलने वाला कमीशन, इन सबको जोड़कर अंत में तेल का मार्केट मूल्य तय होता है. इसमे केंद्र का उत्पाद कर देश के हर हिस्से में एक जैसा होता है लेकिन राज्यों का बिक्री कर हर राज्य में अलग-अलग होता है, इसलिये हर राज्य में तेल की कीमत अलग होती है.

पिछले कुछ समय से पेट्रोल डीजल के दाम लगातार बढ़ रहे हैं और हर दिन इनके दाम नये रिकार्ड छू रहे हैं. महाराष्ट्र के परभणी में तो पेट्रोल 92 रूपये पहुंच गया. दिल्ली में भी पेट्रोल सारे रिकार्ड तोड़कर 80 रूपये पर बिक रहा है. सरकार पर चारों तरफ से विपक्षी दलों का हमला हो रहा है. तेल के इन बढ़े दामों और तेल की लूट के विरोध में कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने 10 सितंबर को भारत बंद बुलाया है.

तमाम मांगों और दबाव के बावजूद भी सरकार टैक्स में कोई कटौती करने को तैयार नही है. पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान और वित्त मंत्री अरूण जेटली तक इसका कारण बाहरी फैक्टर बता रहे हैं और सभी से संयम रखने की सलाह दे रहे हैं.

कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों नें 10 सितंबर को भारत बंद बुलाया है

आइये जानें क्या है इस तेल के खेल का गणित

दरअसल भारत अपनी जरूरत का 80 प्रतिशत तेल आयात करता है. औसतन लगभग 5 मिलियन बैरल तेल रोज आयाता होता है. जून 2010 से पेट्रोल और अक्टूबर 2014 से डीजल को डीरेगुलेट कर दिया गया, यानी तेल कंपनियां अंतर्राष्ट्रीय कीमत के अनुसार दाम घटा बढ़ा सकेंगी और इसमें सरकार का हस्तक्षेप नहीं होगा. चूंकि अंतर्राष्ट्रीय मार्केट में तेल की कीमत डॉलर में होती है तो जब भी रूपये की कीमत डॉलर के मुकाबले गिरती है तो उतना ही तेल खरीदेने के लिए ज्यादा पैसा चुकाना होता है. अब जो तेल बाजार में बिकता है उसकी कीमत में कई फैक्टर शामिल होते हैं. तेल एक निश्चित मूल्य पर डीलरों को मिलता है. उस तेल पर केंद्र सरकार का उत्पाद कर, फिर राज्य सरकार का बिक्री कर, डीलर को मिलने वाला कमीशन, इन सबको जोड़कर अंत में तेल का मार्केट मूल्य तय होता है. इसमे केंद्र का उत्पाद कर देश के हर हिस्से में एक जैसा होता है लेकिन राज्यों का बिक्री कर हर राज्य में अलग-अलग होता है, इसलिये हर राज्य में तेल की कीमत अलग होती है.

अब जरा देश के कुछ राज्यों में पेट्रोल पर बिक्री कर पर नजर डालें

अब जरा दिल्ली में 3 सितंबर को बिकने वाले पेट्रोल का ब्रेक अप देखें

यानी दिल्ली में 27 प्रतिशत कर होने की वजह से दिल्ली राज्य सरकार को लगभग 17 रूपये एक लीटर पेट्रोल की बिक्री से मिलते हैं. अब महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और पंजाब जैसे राज्य जहां वैट ज्यादा है वो 1 लीटर की बिक्री से और भी ज्यादा कमाते हैं.

जब भी रूपये की कीमत डॉलर के मुकाबले गिरती है तो तेल खरीदेने के लिए उतना ही ज्यादा पैसा चुकाना होता है

पेट्रोल-डीजल के दामों में इतनी बढ़ोत्तरी क्यों हुई?

अब सवाल उठता है कि हाल के दिनों में पेट्रोल-डीजल के दामों में इतनी बढ़ोत्तरी क्यों हुई. इस दौरान ना ही केंद्र सरकार ने टैक्स बढ़ाया और ना  राज्य सरकारों नें. दरअसल रूपये की कीमत डॉलर के मुकाबले गिरने से भारत महंगे कीमत पर तेल खरीद रहा है और कीमत आम उपभोक्ता चुका रहा है.

दरअसल केंद्र और राज्य सरकारों के लिए पेट्रोलियम पदार्थों की बिक्री उनकी आय का एक बहुत बड़ा सोर्स है. केंद्र सरकार ने 2013-14 में 88,600, 2014-15 में 1,05,653, 2015-16 में 1,85,958, 2016-17 में 2,53,254 और 2017-18 में 2,01,592 करोड़ रूपये कमाये. राज्य सरकारें भी वैट के जरिये कई हजार करोड़ हर साल हासिल करती हैं.

कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने तेल की महंगाई के विरोध में जो भारत बंद बुलाया है, अब जरा उसकी हकीकत समझने की कोशिश करते हैं. उन दो बड़े राज्यों की बात करते हैं जहां पर कांग्रेस सरकार में है, कर्नाटक और पंजाब.

कर्नाटक में सरकार बनने के बाद सरकार ने किसानों का कर्ज माफ कर दिया. जिससे सरकार पर लगभग 35 हजार करोड़ का बोझ पड़ा. इस बोझ की भरपाई करने के लिए सरकार ने पेट्रोल पर टैक्स 30 से बढ़ाकर 32 प्रतिशत और डीजल पर 19 प्रतिशत से बढ़ाकर 21 प्रतिशत कर दिया. सरकार का कहना था कि किसानों की कर्ज माफी और प्रदेश के विकास के लिए पैसे की जरूरत है और सरकार के पास इसके अलावा कोई चारा नहीं है. पंजाब देश के उन राज्यों में है जंहा पेट्रोल डीजल पर सबसे ज्यादा टैक्स है. आखिर कांग्रेस अपने राज्यों में टैक्स कम करके आम आदमी को कोई राहत क्यों नहीं देती. वो केंद्र सरकार पर जिस फ्यूल लूट का आरोप लगा रही है उतना या उससे ज्यादा वो अपने शासित राज्यों में आम आदमी से वसूल रही है.

यही नहीं, तमिलनाडू, केरल, तेलंगाना जैसे विपक्षी पार्टियों द्वारा शासित राज्यों में भी सरकारें तेल पर केंद्र के बराबर या उससे ज्यादा पैसा टैक्स के रूप में वसूल रही हैं. लेकिन ये सभी पार्टियां केंद्र सरकार पर निशाना साध रही हैं.

पंजाब देश के उन राज्यों में है जंहा पेट्रोल डीजल पर सबसे ज्यादा टैक्स है

दरअसल चाहे राज्य हो या केंद्र, पेट्रोलियम पदार्थों की बिक्री से मिलने वाले कर का इस्तेमाल सरकार तमाम विकास और वेलफेयर योजनाओं को फाइनेंस करने के लिए करती है. और कर में कटौती से सरकार की आय कम होती है और किसी भी सरकार के लिए आय ना होने पर खर्च करना संभव नहीं हो सकता.

दरअसल यूपीए सरकार के दौरान 2004 से 2014 के बीच जब पेट्रोल और डीजल के दाम डिरेग्यूलेटेड नहीं थे, तब सरकार तेल पर सब्सिडी देती थी. इस दौरान सरकार को लगभग 8,53,628 करोड़ रूपये की अंडर रिकवरी हुई. यानी जिस मूल्य पर सरकार अंतर्राष्ट्रीय बाजार से खरीदती है और जिस मूल्य पर भारतीय बाजार में बेचती है उसके बीच का अंतर. इसका एक बड़ा हिस्सा घाटे के रूप में दर्ज होता है. इससे सरकार का राजकोषीय घाटा बढ़ता है. राजकोषीय घाटे बढ़ने से महंगाई बढ़ती है. इस मंहगाई को नियंत्रित करने के लिए सरकार बैंकों के लोन रेट बढ़ाती है. लोन रेट बढ़ने से प्राइवेट इंवेस्टमेंट कम होता है जिससे देश की विकास दर और रोजगार के अवसर पर असर पड़ता है. इसलिये एक हद तक तेल के दाम भारत जैसे देश के विकास में अहम भूमिका निभाते हैं. इसलिये चाहे केंद्र सरकार हो या राज्य सरकार तमाम आलोचनाओं के बाद भी इनपे कर कम नहीं करतीं.

2012 में जब तेल के दाम बढ़े थे और अन्य सामानों के दाम बढ़ने से महंगाई बढ़ी थी, तो उस वक्त के गृहमंत्री और कांग्रेस के नेता चिदंबरम ने कहा था कि आम आदमी 15 रूपये की पानी की बोतल और 20 रूपये की आइसक्रीम खरीद सकते हैं तो मंहगाई की दुहाई क्यों देते हैं. आज वही कांग्रेस तेल के दामों को लेकर भारत बंद कर रही है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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