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अफगानिस्तान, बांग्लादेश, पाकिस्तान, कश्‍मीर... कितना समान है गैर-मुस्लिमों को निशाना बनाना!

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 19 अक्टूबर, 2021 02:14 PM
  • 19 अक्टूबर, 2021 02:14 PM
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कश्मीर में प्रवासी हिंदू मजदूरों को निशाना बनाने वाले आतंकियों पर इतनी हैरत किस बात की. चाहे वो अफगानिस्तान हो या फिर बांग्‍लादेश और पाकिस्तान गैर मुस्लिमों को निशाना बनाने के मामले में कई चीजें हैं जो कॉमन हैं। बाकी इसी मॉडल पर काम कर तालिबान अफगानिस्तान में सत्ता सुख भोग रहा है.

अभी बीते दिन ही निर्देशक सुजीत सरकार की फ़िल्म आई है नाम है सरदार उधम सिंह. फ़िल्म का बैकड्रॉप जलियांवाला नरसंहार और उधम सिंह का अंग्रेजों से उस नरसंहार का बदला लेना है. जैसा ट्रीटमेंट फ़िल्म को सुजीत ने अपने निर्देशन से और फ़िल्म विक्की कौशल ने अपनी एक्टिंग स्किल्स से दिया है, फ़िल्म अवार्ड विनिंग और भारतीय सिनेमा के लिहाज से फ़िल्म मील का पत्थर है. यूं तो फ़िल्म में कम ही डायलॉग हैं लेकिन जितने हैं वो न केवल प्रभावी बल्कि झकझोर कर रख देने वाले हैं. फ़िल्म का एक सीन है जो तत्कालीन पंजाब के लेफ्टिनेंट गवर्नर माइकल फ्रांसिस ओ ड्वायर और कर्नल रेजिनाल डायर के बीच फिल्माया गया है. इसमें ड्वायर अपने सहयोगी कर्नल डायर को 13 अप्रैल 1919 को अमृतसर के जलियांवाला बाग में प्रदर्शन कर रहे प्रदर्शनकारियों को सख्त से सख्त सजा देने की बात करता है. साथ ही ड्वायर ये भी कहता है कि सजा कुछ ऐसी हो जो लोगों के बीच डर का संचार करे और ये डर कुछ ऐसा हो कि लोग अंग्रेज हुक़ूक़त के खिलाफ सिर उठाने से पहले कम से कम दो बार सोचें. डायर आर्डर का पालन करता है और फिर वो होता है जिसके बारे में शायद ही कभी किसी ने सोचा हो.

एक तरफ फ़िल्म का ये सीन है. दूसरी तरफ जम्मू और कश्मीर की मौजूदा स्थिति है. जहां ड्वायर की भूमिका में आतंकी हैं और डर का कारोबार बदस्तूर चलता रहे निशाने पर गैर कश्मीरी मजदूर हैं. हालिया दिनों में कश्मीर की स्थिति दिल दहला देने वाली है. बाहरी लोगों पर हमले बढ़े हैं और आतंकियों के निशाने पर गैर कश्मीरी मजदूर हैं. बता दें कि जम्मू कश्मीर में बिहार से आए दो मजदूरों की हत्या से घाटी से मजदूरों का पलायन शुरू हो गया है. मजदूरों की बड़ी संख्या ऐसी है जो मारे डर के जम्मू रवाना होने को मजबूर है.

कश्मीर में जो आतंकी अब गैर कश्मीरी मजदूरों के साथ कर रहे हैं वो दिल को दहला कर...

अभी बीते दिन ही निर्देशक सुजीत सरकार की फ़िल्म आई है नाम है सरदार उधम सिंह. फ़िल्म का बैकड्रॉप जलियांवाला नरसंहार और उधम सिंह का अंग्रेजों से उस नरसंहार का बदला लेना है. जैसा ट्रीटमेंट फ़िल्म को सुजीत ने अपने निर्देशन से और फ़िल्म विक्की कौशल ने अपनी एक्टिंग स्किल्स से दिया है, फ़िल्म अवार्ड विनिंग और भारतीय सिनेमा के लिहाज से फ़िल्म मील का पत्थर है. यूं तो फ़िल्म में कम ही डायलॉग हैं लेकिन जितने हैं वो न केवल प्रभावी बल्कि झकझोर कर रख देने वाले हैं. फ़िल्म का एक सीन है जो तत्कालीन पंजाब के लेफ्टिनेंट गवर्नर माइकल फ्रांसिस ओ ड्वायर और कर्नल रेजिनाल डायर के बीच फिल्माया गया है. इसमें ड्वायर अपने सहयोगी कर्नल डायर को 13 अप्रैल 1919 को अमृतसर के जलियांवाला बाग में प्रदर्शन कर रहे प्रदर्शनकारियों को सख्त से सख्त सजा देने की बात करता है. साथ ही ड्वायर ये भी कहता है कि सजा कुछ ऐसी हो जो लोगों के बीच डर का संचार करे और ये डर कुछ ऐसा हो कि लोग अंग्रेज हुक़ूक़त के खिलाफ सिर उठाने से पहले कम से कम दो बार सोचें. डायर आर्डर का पालन करता है और फिर वो होता है जिसके बारे में शायद ही कभी किसी ने सोचा हो.

एक तरफ फ़िल्म का ये सीन है. दूसरी तरफ जम्मू और कश्मीर की मौजूदा स्थिति है. जहां ड्वायर की भूमिका में आतंकी हैं और डर का कारोबार बदस्तूर चलता रहे निशाने पर गैर कश्मीरी मजदूर हैं. हालिया दिनों में कश्मीर की स्थिति दिल दहला देने वाली है. बाहरी लोगों पर हमले बढ़े हैं और आतंकियों के निशाने पर गैर कश्मीरी मजदूर हैं. बता दें कि जम्मू कश्मीर में बिहार से आए दो मजदूरों की हत्या से घाटी से मजदूरों का पलायन शुरू हो गया है. मजदूरों की बड़ी संख्या ऐसी है जो मारे डर के जम्मू रवाना होने को मजबूर है.

कश्मीर में जो आतंकी अब गैर कश्मीरी मजदूरों के साथ कर रहे हैं वो दिल को दहला कर रख देने वाला है

क्या जम्मू रेलवे स्टेशन. क्या स्थानीय बस अड्डे जिस तरह गरीब मजलूमों को आतंकियों द्वारा अपने टारगेट पर लिया जा रहा कहीं का भी रुख कीजिये मंजर भयावह हैं. इन स्थानों पर मजदूरों का हुजूम है. तमाम मजदूर ऐसे हैं जिनकी आप बीती उस व्यक्ति का भी दिल पिघला कर मोम कर देगी जो अपने आपको पत्थर दिल कहता है. यहां आपको मजबूर औरतें दिखेंगी भूख प्यास से तड़पते बच्चे दिखेंगे जो डंके की चोट पर इस बात की तस्दीख कर रहे हैं कि आतंकी अपने कुटिल मंसूबों में कामयाब हो गए हैं.

गैर कश्मीरी मजदूरों और उनके परिवारों में आतंकियों का खौफ किस हद तक व्याप्त है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि अपने साथियों की हत्या के बाद मजदूरों ने कसम खा ली है कि अब वो कभी भी लौटकर कश्मीर घाटी नहीं जाएंगे. मजदूरों के मुताबिक न केवल उन्हें आतंकवादियों द्वारा अपने टारगेट पर लिया जा रहा है बल्कि उन्हें जल्द से जल्द कश्मीर छोड़ने की धमकी भी दी जा रही है.

कोढ़ में खाज क्या है इसका अंदाजा इससे भी लगाया जा सकता है कि हालिया दिनों में मीडिया में कई ऐसे मजदूरों की भी फुटेज चली है जो ईंट के भट्ठों में काम करते थे और जिनकी बकाया धनराशि का भुगतान भट्ठा मालिकों द्वारा नहीं किया गया. इन मजदूरों के पास जीवन का संकट और खाने पीने के लाले दोनों ही हैं. कश्मीर के मौजूदा घटनाक्रम पर यदि गौर करें एक बात जो शीशे की तरह साफ होती है वो ये कि गैर कश्मीरियों के बीच डर का संचार कर रहे आतंकियों को आम कश्मीरियों का खुला संरक्षण प्राप्त है.

गौरतलब है कि दक्षिण कश्मीर के कुलगाम में अभी बीते दिन ही आतंकवादियों ने बिहार से आए दो मजदूरों को उनके घर में घुसकर गोली मार दी और उनकी हत्या कर दी और एक अन्य को घायल कर दिया. यदि कश्मीर पुलिस की मानें तो जम्मू कश्मीर में गैर स्थानीय लोगों पर यह तीसरा बड़ा आतंकी हमला है. पूर्व में बिहार के एक रेहड़ी वाले और उत्तर प्रदेश के एक बढ़ई की भी आतंकियों द्वारा गोली मारकर हत्या की गई थी.

आतंकी संगठन लश्कर ए तैयबा के फ्रंट यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ने इस भीषण हत्या की जिम्मेदारी ली थी और साफ संदेश दे दिया था कि गैर कश्मीरी फौरन से पहले घाटी को छोड़ दें. कश्मीर में अब तक गैर कश्मीरियों या ये कहें कि यूपी और बिहार के मजदूरों के साथ जितने भी मामले हुए उनमें जो एक बात निकल कर सामने आ रही है वो ये कई आतंकी नहीं चाहते कि कोई बाहर वाला उनके बीच रहे और कमाए खाए.

कश्मीर में जो हो रहा है और जिस तरह से टारगेट किलिंग हो रही है और विशेषकर जिस तरह इसमें छोटे तबकों को निशाना बनाया जा रहा है ये कुछ कुछ वैसा ही है जैसा अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान में हो रहा है.

जी हां ऐसा बिल्कुल नहीं है कि डर का सहारा लेकर या उसे हथियार बनाकर अपनी अपनी दुकानें चलाने वाले ड्वायर और डायर सिर्फ हिंदुस्तान में और हिंदुस्तान में भी जम्मू कश्मीर में बैठे हैं. इनका साम्राज्य अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश सब जगह है. जैसे कश्मीर में यूपी बिहार के हिंदुओं की हत्या हो रही है वैसे ही अफगानिस्तान में सिखों को मारा जा रहा है. पाकिस्तान और बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिंदुओं के गले पर छुरियां चलाई जा रही हैं.

अल्पसंख्यकों के लिए आतंकियों का तालिबानी राज वाला एजेंडा कैसा है गर जो इसकी कल्पना करनी हो तो अभी बीते दिन ही बांग्लादेश की उस घटना का अवलोकन करिये जिसमें जमात ए इस्लामी द्वारा दुर्गा पूजा के फौरन बाद से ही हिंदुओं को निशाने पर लिया जा रहा है. बांग्लादेश के रंगपुर में घटी घटना में 65 से ज्यादा हिंदुओं के घरों में आग लगा दी गयी है. जिसमें 20 घर राख के ढेर में तब्दील हो गए हैं.

वो तमाम लोग जिन्हें बांग्लादेश की घटना मामूली लग रही है उन्हें इस बात का भी खास ख्याल रखना चाहिए कि रंगपुर में हुई इस घटना से पहले बांग्लादेश 4 हिंदुओं की हत्या का साक्षी बन चुका है. वहीं 60 लोग बांग्लादेश में हुई इस हिंसा में घायल हैं. आज बांग्लादेश में जो कुछ भी हो रहा है इसकी वजह आतंक का वो बीज है जिसका जिम्मेदार सिर्फ और सिर्फ पाकिस्तान है.

बहरहाल बात आतंक के साए में कश्मीर में पलायन करते गैर कश्मीरियों की हुई है तो हम भी बस ये कहकर अपने द्वारा कही गई तमाम बातों को विराम देंगे कि कश्मीर में प्रवासी मजदूरों को निशाना बनाने वाले आतंकी कहीं अफगानिस्तान मॉडल पर तो काम नहीं कर रहे. हमने ऐसा क्यों कहा इसकी वजह बस इतनी है कि अभी हाल फिलहाल में हमने अफगानिस्तान में तालिबानी आतंकियों को भी कुछ ऐसा ही करते देखा.

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