• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
सियासत

पंजाब में खालिस्तानी विचारधारा एक निश्चित गति से आगे बढ़ रही है

    • हरमीत शाह सिंह
    • Updated: 08 जून, 2022 02:09 PM
  • 08 जून, 2022 02:09 PM
offline
बादल परिवार अपने राजनीतिक करियर के सबसे निचले स्तर पर पहुंचते हुए पंजाब विधानसभा (Punjab Assembly) में सिंगल डिजिट में सिमट चुके हैं. जो दिखाता है कि सिख बहुल प्रदेश (Sikh-majority state) में सिखों के बीच अलग खालिस्तान (Khalistan) का राजनीतिक विचार धीमे से ही सही, लेकिन एक निश्चित गति से आगे बढ़ रहा है.

सिंगर सिद्धू मूसेवाला की हत्या के बाद उसके कई वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं. लेकिन, सिद्धू मूसेवाला के अंतिम संस्कार से पहले कुछ ऐसे भी वीडियो वायरल हुए जो खालिस्तानी विचारधारा का समर्थन करने वाले थे. ये ठीक वैसे ही था, जैसे इस साल की शुरुआत में दीप सिद्धू की एक कार दुर्घटना में हुई मौत के बाद हुआ था. दीप सिद्धू के भी कई वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से शेयर किए गए थे. सिद्धू मूसेवाला के कई इंटरव्यू के उन चुनिंदा हिस्सों को सोशल मीडिया पर शेयर किया जा रहा है. जिनमें मूसेवाला आतंकी जनरैल सिंह भिंडरावाला की सराहना करते नजर आ रहे हैं. इसके साथ ही मूसेवाला का एक गाना भी शेयर किया जा रहा है. जो दिल्ली में हुए किसान आंदोलन के दौरान का है. इसके वीडियो में भिंडरावाला की फुटेज का इस्तेमाल किया गया था.

मूसेवाला की हत्या के बाद उनका एक गाना 'पंजाब, मेरा वतन' फिर से वायरल हो रहा है. इसके वीडियो में श्री दरबार साहिब (स्वर्ण मंदिर) में हुए 1984 के मिलिट्री एक्शन के बाद की तस्वीरों का इस्तेमाल किया गया है. जिसने लोगों के बीच इस वजह से जगह बना ली. क्योंकि, 2020 में कृषि कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन करने वाले आंदोलनकारियों में अधिकतर सिख समुदाय के लोग थे. इससे पहले इंस्टाग्राम और फेसबुक दीप सिद्धू की रील्स से भरे हुए थे. जो पिछले साल 26 जनवरी को लाल किले पर सिख धर्म का प्रतीक 'निशान साहिब' फहराने में शामिल लोगों में सबसे आगे था. फरवरी में होने वाले पंजाब विधानसभा चुनाव की वोटिंग से ठीक पहले वायरल होने वाले इन वीडियो में दीप सिद्धू अपने ट्रेडमार्क भाषण और बातचीत में खालिस्तानी विचारधारा की वकालत करता नजर आता है.

खालिस्तानी विचारों वाली शिरोमणि अकाली दल (मान) के वोट शेयर में काफी इजाफा हुआ है.

खालिस्तान का विचार...

सिंगर सिद्धू मूसेवाला की हत्या के बाद उसके कई वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं. लेकिन, सिद्धू मूसेवाला के अंतिम संस्कार से पहले कुछ ऐसे भी वीडियो वायरल हुए जो खालिस्तानी विचारधारा का समर्थन करने वाले थे. ये ठीक वैसे ही था, जैसे इस साल की शुरुआत में दीप सिद्धू की एक कार दुर्घटना में हुई मौत के बाद हुआ था. दीप सिद्धू के भी कई वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से शेयर किए गए थे. सिद्धू मूसेवाला के कई इंटरव्यू के उन चुनिंदा हिस्सों को सोशल मीडिया पर शेयर किया जा रहा है. जिनमें मूसेवाला आतंकी जनरैल सिंह भिंडरावाला की सराहना करते नजर आ रहे हैं. इसके साथ ही मूसेवाला का एक गाना भी शेयर किया जा रहा है. जो दिल्ली में हुए किसान आंदोलन के दौरान का है. इसके वीडियो में भिंडरावाला की फुटेज का इस्तेमाल किया गया था.

मूसेवाला की हत्या के बाद उनका एक गाना 'पंजाब, मेरा वतन' फिर से वायरल हो रहा है. इसके वीडियो में श्री दरबार साहिब (स्वर्ण मंदिर) में हुए 1984 के मिलिट्री एक्शन के बाद की तस्वीरों का इस्तेमाल किया गया है. जिसने लोगों के बीच इस वजह से जगह बना ली. क्योंकि, 2020 में कृषि कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन करने वाले आंदोलनकारियों में अधिकतर सिख समुदाय के लोग थे. इससे पहले इंस्टाग्राम और फेसबुक दीप सिद्धू की रील्स से भरे हुए थे. जो पिछले साल 26 जनवरी को लाल किले पर सिख धर्म का प्रतीक 'निशान साहिब' फहराने में शामिल लोगों में सबसे आगे था. फरवरी में होने वाले पंजाब विधानसभा चुनाव की वोटिंग से ठीक पहले वायरल होने वाले इन वीडियो में दीप सिद्धू अपने ट्रेडमार्क भाषण और बातचीत में खालिस्तानी विचारधारा की वकालत करता नजर आता है.

खालिस्तानी विचारों वाली शिरोमणि अकाली दल (मान) के वोट शेयर में काफी इजाफा हुआ है.

खालिस्तान का विचार सेलिब्रिटीज के कंधों पर

इस साल की शुरुआत में विवादित एक्टर दीप सिद्धू के अंतिम संस्कार पर फतेहगढ़ साहिब में सिख समुदाय के लोगों की अभूतपूर्व लामबंदी नजर आई थी. पंजाब में एक दशक से अधिक समय में सिखों की यह छठवीं सामूहिक सभा थी. जिसमें बड़ी संख्या में लोग जुटे थे. 31 मई को मानसा में सिद्धू मूसेवाला के अंतिम संस्कार में कम भीड़ नही थी. कहा जा सकता है कि सिद्धू मूसेवाला के अंतिम संस्कार में मातम मनाने वालों की भीड़ एक समुद्र की तरह नजर आ रही थी. वहीं, दीप सिद्धू की कार एक्सीडेंट में मौत के बाद उसके वायरल वीडियो और फतेहगढ़ साहिब में उसके अंतिम संस्कार के बीच पंजाब ने एक नई सरकार को चुनने के लिए वोट दिया.

सच कहां छिपा है?

दरअसल, सच छिपा हुआ है चुनाव परिणाम में. आम आदमी पार्टी ने एकतरफा तरीके से विधानसभा चुनाव जीता था. अंदरूनी कलह से घिरी कांग्रेस के हाथ से सत्ता छिन गई. और, बादल परिवार का शिरोमणि अकाली दल, जो कभी सिख मुद्दों के चैंपियन होने का दावा करता था. उसे अब तक की सबसे बुरी हार का सामना करना पड़ा. लेकिन, यहां ध्यान देने की जरूरत चुनाव परिणाम की डिटेल पर है. एक अलग सिख देश यानी खालिस्तान की मांग करने वाली दो मुखर आवाजों में से एक सिमरनजीत सिंह मान की पार्टी चुनाव लड़ती है. जबकि, दूसरी आवाज दल खालसा केवल खालिस्तान के लिए प्रचार करती है. और, चुनावी प्रक्रिया का हिस्सा नहीं बनती है.

77 साल के एक भूतपूर्व आईपीएस और पूर्व सांसद एमपी मान खुद भी चुनाव हारते हैं. और, उनके साथ ही पंजाब में चुनाव लड़ रहे शिरोमणि अकाली दल (मान) के 80 अन्य उम्मीदवार भी हार जाते हैं. लेकिन, मान की पार्टी के टोटल वोट शेयर में एक बड़ा अंतर दर्ज किया जाता है. चुनाव आयोग की ओर से जारी किये गए आंकड़ों के अनुसार, मान की शिरोमणि अकाली दल (मान) को 2022 में 3,86,176 वोट मिलते हैं. जो 2017 में 49,260 वोट ही पाती है. पांच साल पहले सिखों के लिए खालिस्तान की मांग करने वाली पार्टी 54 सीटों पर चुनाव लड़ती है. और, एक भी जीत नहीं पाती. उस समय पार्टी का वोट शेयर 0.32 फीसदी रहता है.

2012 के विधानसभा चुनाव में शिरोमणि अकाली दल (मान) को 57 सीटों पर 39,106 वोट मिलते हैं. और, उसका वोट शेयर 0.28 फीसदी रहता है. वहीं, बादल परिवार अपने राजनीतिक करियर के सबसे निचले स्तर पर पहुंचते हुए पंजाब विधानसभा में सिंगल डिजिट में सिमट चुके हैं. जो दिखाता है कि सिख बहुल प्रदेश में सिखों के बीच अलग खालिस्तान का राजनीतिक विचार धीमे से ही सही, लेकिन एक निश्चित गति से आगे बढ़ रहा है. पूरे पंजाब में मान की पार्टी का वोट शेयर उछलकर 2.48 फीसदी पर आ गया है. और, ये उछाल उस भावनात्मक लहर के मद्देनजर हो सकता है. जो दीप सिद्धू की मौत से बनी थी. क्योंकि, दीप सिद्धू ने शिरोमणि अकाली दल (मान) का समर्थन किया था.

80 के करीब उम्र वाले मान खुद युवा सिख मतदाताओं के बीच एक नेता के तौर पर भले ही आकर्षक ना नजर आएं. लेकिन, वह जिस विचारधारा का प्रतिनिधित्व करते हैं, राज्य में उसकी जमीन काफी उपजाऊ लगती है. पंजाब में अकाली और कांग्रेस के खिलाफ बहुस्तरीय असंतोष ने आम आदमी पार्टी को सत्ता में पहुंचा दिया. भगवंत मान सरकार इस असंतोष को पूरी तरह से दूर कर सकती है. नहीं तो, बादल परिवार के अकाली दल के पतन से उपजे खालिस्तान के विचार को पीछे धकेलना सत्तारूढ़ दल आम आदमी पार्टी के लिए मुश्किल भरा हो सकता है. क्योंकि, आर्थिक, कृषि और धार्मिक मामलों पर पहले से ही गहरी निराशा लोगों में भरी हुई है. अब 23 जून को होने वाले संगरूर लोकसभा के उपचुनाव पर सबकी नजरे हैं.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    अब चीन से मिलने वाली मदद से भी महरूम न हो जाए पाकिस्तान?
  • offline
    भारत की आर्थिक छलांग के लिए उत्तर प्रदेश महत्वपूर्ण क्यों है?
  • offline
    अखिलेश यादव के PDA में क्षत्रियों का क्या काम है?
  • offline
    मिशन 2023 में भाजपा का गढ़ ग्वालियर - चम्बल ही भाजपा के लिए बना मुसीबत!
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲