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बापू खादी से नमो खादी: कहीं ये राजनैतिक विरासत की लड़ाई तो नहीं?

    • अरविंद मिश्रा
    • Updated: 14 जनवरी, 2017 09:27 AM
  • 14 जनवरी, 2017 09:27 AM
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मोदी पहले से ही जोर-शोर से खादी को प्रमोट कर रहे थे, लेकिन इसपर अब राजनीति शुरू हो गई है. तो क्या ये महज इत्तेफाक है या फिर राजनैतिक विरासत की लड़ाई ?

जब भी हम खादी का जिक्र करते हैं तो हमारे जहन में दो चीजें उभर कर आती हैं एक खद्दर और दूसरा राष्ट्रपिता महात्मा गांधी. ये तो लाजिमी है कि खादी का जिक्र आने पर महात्मा गांधी को याद किया जाएगा और गांधी जी का जिक्र आने पर खादी बरबस ही याद आ जाएगी.

भारत की आजादी की लड़ाई में अहिंसा का मार्ग चुनने वाले बापू ने देश को एक डोर में बांधने के लिए खादी का सहारा लिया था. बापू ने खादी को घर-घर में प्रचलित कर दिया था. आलम तो यहां तक था कि लोगों ने विदेशी कपड़ों की होली जलाकर बापू की स्वदेशी खादी को अपनाया था.

ये भी पढ़ें- हंगामा है क्यों बरपा अगर मोदी ने कैलेंडर में बापू की जगह ली है!!!

बात सन 1920 की है जब बापू ने खादी को घर-घर पहुंचाने और लोगों को स्वदेशी अपनाने के लिए प्रेरित किया था और बापू खादी से ही बने कपड़े पहनते थे और उसके लिए वह खुद चरखा लेकर सूत कातते थे. लेकिन बापू चले गए और छोड़ गए तो केवल खादी, समय के साथ साथ खादी का फैशन धीरे-धीरे खत्म होने लगा और उसे फिर से ट्रेंड में लाने के लिए आगे आए देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी.

 खादी ग्रामोद्योग के कैलेंडर और डायरी में मोदी की फोटो

पिछले कुछ वर्षों को दौरान श्री नरेंद्र मोदी ने खादी को लोकप्रिय बनाने और इसे एक जन आंदोलन का रूप देने में कोई कसर नहीं छोड़ी है. जब प्रधानमंत्री आरएसएस तथा भाजपा संगठन के लिए काम कर रहे थे तब से वे नियमित रूप से खादी पहनते हैं.

फिलहाल तो एक नया विवाद खादी...

जब भी हम खादी का जिक्र करते हैं तो हमारे जहन में दो चीजें उभर कर आती हैं एक खद्दर और दूसरा राष्ट्रपिता महात्मा गांधी. ये तो लाजिमी है कि खादी का जिक्र आने पर महात्मा गांधी को याद किया जाएगा और गांधी जी का जिक्र आने पर खादी बरबस ही याद आ जाएगी.

भारत की आजादी की लड़ाई में अहिंसा का मार्ग चुनने वाले बापू ने देश को एक डोर में बांधने के लिए खादी का सहारा लिया था. बापू ने खादी को घर-घर में प्रचलित कर दिया था. आलम तो यहां तक था कि लोगों ने विदेशी कपड़ों की होली जलाकर बापू की स्वदेशी खादी को अपनाया था.

ये भी पढ़ें- हंगामा है क्यों बरपा अगर मोदी ने कैलेंडर में बापू की जगह ली है!!!

बात सन 1920 की है जब बापू ने खादी को घर-घर पहुंचाने और लोगों को स्वदेशी अपनाने के लिए प्रेरित किया था और बापू खादी से ही बने कपड़े पहनते थे और उसके लिए वह खुद चरखा लेकर सूत कातते थे. लेकिन बापू चले गए और छोड़ गए तो केवल खादी, समय के साथ साथ खादी का फैशन धीरे-धीरे खत्म होने लगा और उसे फिर से ट्रेंड में लाने के लिए आगे आए देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी.

 खादी ग्रामोद्योग के कैलेंडर और डायरी में मोदी की फोटो

पिछले कुछ वर्षों को दौरान श्री नरेंद्र मोदी ने खादी को लोकप्रिय बनाने और इसे एक जन आंदोलन का रूप देने में कोई कसर नहीं छोड़ी है. जब प्रधानमंत्री आरएसएस तथा भाजपा संगठन के लिए काम कर रहे थे तब से वे नियमित रूप से खादी पहनते हैं.

फिलहाल तो एक नया विवाद खादी को लेकर खड़ा हुआ. खादी विलेज इंडस्ट्रीज कॉर्पोरेशन यानी केवीआईसी के इस साल के कैलेंडर और डायरी पर गांधी जी के बजाय मोदी जी चर्खा चलाते दिखे. इसका तुरंत विरोध शुरू हो गया इस आरोप के साथ कि मोदी गांधी जी की जगह लेने की कोशिश कर रहे है. हालांकि, प्रधानमंत्री मोदी पिछले कुछ दिनों से खादी को काफी बढ़ावा दिया है लेकिन मन में एक सवाल उठना लाज़िमी है की क्या मोदी गांधी की विरासत हथियाने की कोशिश कर रहे हैं?

कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने ट्वीट किया कि ‘‘मंगलयान प्रभाव.’’ उनके कहने का यह आशय था कि मोदी केवीआईसी के प्रोत्साहन का श्रेय लेने का प्रयास कर रहे हैं जिस तरह उन्होंने कथित तौर पर भारत के मंगलयान के मंगल ग्रह पर पहुंचने के बाद लिया था.

कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा कि खादी और गांधीजी हमारे इतिहास, स्वावलंबन और संघर्ष के प्रतीक हैं. गांधी जी की तस्वीर हटाना पवित्र को अपवित्र करने का पाप है.

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा कि चरखे के महान प्रतीक और महात्मा गांधी की जगह अब मोदी बाबू ने ले ली है. खादी केवीआईसी 2017 के कलैंडर और डायरी में मोदी ने महात्मा गांधी की जगह ले ली. गांधीजी राष्ट्रपिता हैं, मोदीजी क्या हैं?

भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा ने कहा कि एक गैरजरूरी मुद्दे को बेवजह तूल दिया जा रहा है. ‘यह गलत है’. कांग्रेस और गांधी परिवार पर निशाना साधते हुए भाजपा प्रवक्ता ने कहा कि राष्ट्रपिता के चित्र के संबंध में उनका प्यार केवल करेंसी नोटों तक ही सीमित है और इतने वर्षों तक उन्होंने गांधी के नाम का दुरूपयोग ही किया.

हालांकि PMO ने कहा कि विवाद गैरजरूरी है क्योंकि केवीआईसी में ऐसा कोई नियम नहीं है कि इसके डायरी और कलैंडर में केवल गांधीजी की तस्वीर होनी चाहिए.

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अगर हम राजनैतिक विरासत की इस लड़ाई पर नजर डालें तो नेहरू, इंदिरा की विरासत को दरकिनार करने की कोशिश पहले भी नजर आती रही है. मोदी सरकार ने अपनी इस नीति के तहत आंबेडकर पर जोरशोर से कार्यक्रम किए. वल्लभ भाई पटेल की याद में स्टैच्यू ऑफ यूनिटी की योजना बनाई. बीजेपी का 'जेपी की जयंती' बड़े पैमाने पर मनाने का भी प्रोग्राम है. नेहरू संग्रहालय की काया-पलट करने की योजना तो जग ज़ाहिर है ही. इससे पहले इंदिरा आवास योजना का नाम बदलकर प्रधानमंत्री आवास योजना कर दिया गया था.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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