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केजरीवाल अब तक 'एकला चलो' ही गाते रहे - कोरस तो पहली बार सुना

    • आईचौक
    • Updated: 07 जून, 2021 07:55 PM
  • 07 जून, 2021 07:55 PM
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अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) के नये राजनीतिक पैंतरे में ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) के बंगाल विजय का साफ असर देखा जा सकता है - प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) के खिलाफ केजरीवाल पहले से ही लड़ते आ रहे हैं - नया बदलाव यही है कि अब वो अकेले नहीं लगते.

अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) की ताजा प्रेस कांफ्रेंस का मकसद और मंशा पिछले लाइव स्ट्रीमिंग जैसी ही लगती है - फर्क बस ये रहा कि दिल्ली के मुख्यमंत्री ने प्रोटोकॉल के उल्लंघन को लेकर किसी के टोकने की गुंजाइश नहीं रखी थी.

अरविंद केजरीवाल पहले वाले की ही तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) को ही संबोधित कर रहे थे - हर एक-दो वाक्य के बाद सर बोलते या प्रधानमंत्री जी बोल रहे थे. मुख्यमंत्रियों की मीटिंग में जब अरविंद केजरीवाल ने अपने हिस्से के भाषण की लाइव स्ट्रीमिंग की थी तो प्रधानमंत्री ने टोकते हुए संयम बनाये रखने की हिदायत दी थी - और लगे हाथ अरविंद केजरीवाल ने भी माफी भी मांग ली थी.

तब अरविंद केजरीवाल ने ऑक्सीजन की कमी को लेकर मोदी सरकार को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश की थी, इस बार अपनी 'घर घर राशन' स्कीम रोक दिये जाने को लेकर हमलावर हैं. मई, 2021 में ही दिल्ली कैबिनेट ने घर घर राशन पहुंचाने का फैसला किया था - और फिर अरविंद केजरीवाल ने बताया था कि आप सरकार 72 लाख राशन कार्ड धारकों के घरों में राशन पहुंचाने जा रही है. स्कीम के तहत हर महीने 10 किलोग्राम मुफ्त राशन दिये जाने का फैसला किया गया है. राशन का आधा केंद्र सरकार की तरफ से और आधा दिल्ली सरकार की तरफ से है.

अरविंद केजरीवाल ने राशन स्कीम के बहाने मोदी सरकार पर बड़ा आरोप लगाते हुए पूछा है क्या आप योजना पर रोक लगाकर राशन माफिया की मदद करना चाह रहे हैं?

अरविंद केजरीवाल की प्रेस कांफ्रेंस को लेकर बीजेपी की तरफ से संबित पात्रा ने जवाबी हमला किया तो काउंटर करने मनीष सिसोदिया आगे आये - फिर मोदी सरकार के बचाव में दिल्ली से सांसद मीनाक्षी लेखी आयीं और दिल्ली सरकार पर ही राजनीति करने का इल्जाम जड़ दिया.

अरविंद केजरीवाल की बातों पर ध्यान दें तो मालूम होता है कि अपने साथ साथ वो देश के दूसरे गैर-बीजेपी मुख्यमंत्रियों के साथ मोदी सरकार के सलूक पर भी सवाल उठा रहे हैं.

अब तक तो यही देखने को मिला है कि विपक्षी खेमे में सबके एक हो जाने पर भी...

अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) की ताजा प्रेस कांफ्रेंस का मकसद और मंशा पिछले लाइव स्ट्रीमिंग जैसी ही लगती है - फर्क बस ये रहा कि दिल्ली के मुख्यमंत्री ने प्रोटोकॉल के उल्लंघन को लेकर किसी के टोकने की गुंजाइश नहीं रखी थी.

अरविंद केजरीवाल पहले वाले की ही तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) को ही संबोधित कर रहे थे - हर एक-दो वाक्य के बाद सर बोलते या प्रधानमंत्री जी बोल रहे थे. मुख्यमंत्रियों की मीटिंग में जब अरविंद केजरीवाल ने अपने हिस्से के भाषण की लाइव स्ट्रीमिंग की थी तो प्रधानमंत्री ने टोकते हुए संयम बनाये रखने की हिदायत दी थी - और लगे हाथ अरविंद केजरीवाल ने भी माफी भी मांग ली थी.

तब अरविंद केजरीवाल ने ऑक्सीजन की कमी को लेकर मोदी सरकार को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश की थी, इस बार अपनी 'घर घर राशन' स्कीम रोक दिये जाने को लेकर हमलावर हैं. मई, 2021 में ही दिल्ली कैबिनेट ने घर घर राशन पहुंचाने का फैसला किया था - और फिर अरविंद केजरीवाल ने बताया था कि आप सरकार 72 लाख राशन कार्ड धारकों के घरों में राशन पहुंचाने जा रही है. स्कीम के तहत हर महीने 10 किलोग्राम मुफ्त राशन दिये जाने का फैसला किया गया है. राशन का आधा केंद्र सरकार की तरफ से और आधा दिल्ली सरकार की तरफ से है.

अरविंद केजरीवाल ने राशन स्कीम के बहाने मोदी सरकार पर बड़ा आरोप लगाते हुए पूछा है क्या आप योजना पर रोक लगाकर राशन माफिया की मदद करना चाह रहे हैं?

अरविंद केजरीवाल की प्रेस कांफ्रेंस को लेकर बीजेपी की तरफ से संबित पात्रा ने जवाबी हमला किया तो काउंटर करने मनीष सिसोदिया आगे आये - फिर मोदी सरकार के बचाव में दिल्ली से सांसद मीनाक्षी लेखी आयीं और दिल्ली सरकार पर ही राजनीति करने का इल्जाम जड़ दिया.

अरविंद केजरीवाल की बातों पर ध्यान दें तो मालूम होता है कि अपने साथ साथ वो देश के दूसरे गैर-बीजेपी मुख्यमंत्रियों के साथ मोदी सरकार के सलूक पर भी सवाल उठा रहे हैं.

अब तक तो यही देखने को मिला है कि विपक्षी खेमे में सबके एक हो जाने पर भी अरविंद केजरीवाल अलग थलग पड़े रहते हैं, लेकिन हाल फिलहाल जिस तरीके से बारी बारी विपक्षी दलों के मुख्यमंत्री मोदी सरकार पर हमला बोल रहे हैं, अरविंद केजरीवाल के सवाल भी विपक्ष के कॉमन एजेंडे का हिस्सा लगते हैं - मुद्दे की बात ये है कि क्या ये सब अरविंद केजरीवाल अकेले और अपने स्तर पर ही कर रहे हैं या फिर देश के विपक्षी मुख्यमंत्रियों की मुहिम में शामिल होकर? क्या ये ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) की राष्ट्रीय राजनीति में बढ़े हुए कद का नतीजा है?

केजरीवाल पूछ रहे हैं सभी के सवाल!

प्रधानमंत्री मोदी को संबोधित अपनी प्रेस कांफ्रेंस में अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली में घर घर राशन पहुंचाने की प्रस्तावित स्कीम के साथ साथ नाम मुख्यमंत्रियों का अलग से जिक्र कर मोदी सरकार के विरोधी राजनीतिक दलों के शासन वाली राज्यों की सरकार से टकराव का भी आरोप लगाया.

अरविंद केजरीवाल ने इस बार जैसा बड़ा आरोप लगाया है ऐसा बड़े दिनों बाद सुनने को मिला है. हालांकि, बीच बीच में ये भी दोहराते रहे कि वो केंद्र सरकार के साथ टकराव नहीं चाहते, लेकिन ये भी जताते रहे कि वो जो मुद्दा उठा रहे हैं वो आम जनता से जुड़ा है. बुजुर्गों से जुड़ा है. महिलाओं और बच्चों की फिक्र से भरा है. साथ ही, ये भी याद दिलाने की कोशिश किये कि देश के विपक्षी खेमे वाले बाकी मुख्यमंत्री भी ऐसे ही सवाल उठा रहे हैं.

अरविंद केजरीवाल ने प्रधानमंत्री मोदी से पूछा कि अगर देश में पिज्जा और बर्गर या स्मार्टफोन की होम डिलीवरी हो रही है - तो फिर राशन की होम डिलीवरी क्यों नहीं हो सकती?

केजरीवाल 'एकला चलो' अभियान पर हैं या विपक्ष के मोदी विरोधी मुहिम का हिस्सा

सवालिया लहजे में ही अरविंद केजरीवाल ने मोदी सरकार पर राशन माफिया का साथ देने का भी आरोप लगाया है. अपने बारे में अरविंद केजरीवाल ने दावा किया कि वो राशन माफिया से तब से लड़ रहे हैं जब वो दिल्ली का मुख्यमंत्री बनने के बारे में भी नहीं सोचे थे. अरविंद केजरीवाल ने ये भी दावा किया कि ये राशन माफिया कई बार उन पर हमले किये थे जब वो एक एनजीओ के लिए काम कर रहे थे.

अरविंद केजरीवाल ने प्रधानमंत्री मोदी के नाम अपने संबोधन में कहा, 'ये ठीक नहीं है... अगर आप राशन माफिया के साथ खड़े होंगे, तो गरीबों का साथ कौन देगा?'

केजरीवाल ने प्रधानमंत्री मोदी को याद दिलाया कि कैसे पूरा देश भारी संकट के दौर से गुजर रहा है - और बोले, 'ये वक्त एक-दूसरे का हाथ पकड़कर मदद करने का है... ये वक्त एक-दूसरे से झगड़ने का नहीं है - लोगों को लगने लगा है कि इतनी मुसीबत के समय भी केंद्र सरकार सबसे झगड़ रही है.'

दिल्ली के मुख्यमंत्री ने उदाहरण भी पेश किये, 'आप ममता दीदी से झगड़ रहे हैं... झारखंड सरकार से झगड़ रहे हैं... आप लक्षद्वीप के लोगों से झगड़ रहे हैं... महाराष्ट्र सरकार से लड़ रहे हैं... दिल्ली के लोगों से लड़ रहे हैं... किसानों से लड़ रहे हैं... लोग इस बात से बहुत दुखी हैं सर - ऐसे देश कैसे चलेगा?'

बीच बीच में बड़े ही सोफियाने तरीके और अदब के साथ केजरीवाल नसीहतें भी दिये जा रहे थे - 'हम सब आपके ही हैं... हम सब भारतवासी हैं... ऐसे में हम सब आपस में लड़ेंगे तो कोरोना से कैसे जीतेंगे? हमें आपस में लड़ना नहीं है - हम सबको मिलकर कोरोना से लड़ना है.'

केंद्र की मोदी सरकार के खिलाफ दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के तेवर तो पहले जैसे ही हैं - 'वो परेशान करते रहे हम काम करते रहे' टाइप, लेकिन आक्रामक रवैये में अकेलेपन की जगह एक सामूहिकता का भाव देखा जा सकता है. पहले अरविंद केजरीवाल सिर्फ अपनी राजनीति और दिल्ली की बातें किया करते थे, लेकिन अब वो देश के दूसरे विपक्षी दलों के साथियों का मसला भी उछाल रहे हैं - और ऐसा पहली बार महसूस किया जा रहा है.

क्या ये बीजेपी पर पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस की जीत का असर है?

अब तक विपक्षी खेमे में अरविंद केजरीवाल के साथ अछूतों जैसा ही व्यवहार होता रहा है. अगर कभी राहुल गांधी और अरविंद केजरीवाल के बीच संपर्क हुआ भी है तो ममता बनर्जी के दबाव में ही संभव हो सका है, लेकिन उनकी लाख कोशिशों के बावजूद केजरीवाल को एकजुट विपक्ष का हिस्सा नहीं बनने दिया गया है. लगता है बंगाल में ममता बनर्जी की हैट्रिक के बाद विपक्षी खेमे में अरविंद केजरीवाल को भी अपने लिए कोई कोना नजर आने लगा है.

प्रधानमंत्री के खिलाफ गैर-बीजेपी मुख्यमंत्रियों की लामबंदी

झारखंड के मुख्यमंत्री ने ट्विटर के माध्यम से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर जब अपने मन की बात करने और मुख्यमंत्रियों की बात न सुनने का आरोप लगाया था तो आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगनमोहन रेड्डी ने देश के लिए खतरनाक बता डाला था - और देखने में आया कि प्रधानमंत्री मोदी के पक्ष और विपक्ष में मुख्यमंत्री दो हिस्सों में बंटे नजर आये थे.

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी हेमंत सोरेन की तरफ मुख्यमंत्रियों को मीटिंग में नहीं बोलने देने का आरोप लगाया था. ममता बनर्जी ने तो प्रधानमंत्री के साथ पहले से तय संवाद में पश्चिम बंगाल के जिलाधिकारियों को भी शामिल नहीं होने दिया था. ममता बनर्जी का कहना रहा कि जब वो खुद मीटिंग में मौजूद हैं तो जिलाधिकारियों के पास कौन सी ज्यादा जानकारी होगी जो वो देंगे. ये भी तब की बात है जब कई विपक्षी दलों के शासन वाले राज्यों के जिलाधिकारी प्रधानमंत्री के साथ कोविड 19 को लेकर हुई मीटिंग में शामिल हुए थे.

2021 के विधानसभा चुनावों के नतीजे आने के बाद देश का राजनीतिक समीकरण काफी बदल चुका है. ध्यान देने वाली बात ये है कि बीजेपी को सिर्फ बंगाल के चुनाव में ही शिकस्त नहीं मिली है, पार्टी के ब्रांड मोदी की छवि पर भी बुरा प्रभाव पड़ा है - हाल में आये कई सर्वे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता में गिरावट दर्ज की गयी है.

हाल तो ये हो चला है कि और तो और बीजेपी के ही यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी देश की सबसे पावरफुल जोड़ी मोदी-शाह को भी आंख दिखाने लगे हैं - कहने की जरूरत नहीं कि बीजेपी नेतृत्व इस वक्त बड़े संकट के दौर से गुजर रहा है और फिलहाल संघ के सामने भी सबसे बड़ी फिक्र इसी बात को लेकर है.

पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी ही नहीं, केरल में पिनराई विजयन ने भी जबरदस्त वापसी की है और तमिलनाडु में भी बीजेपी विरोधी एमके स्टालिन मुख्यमंत्री बन गये हैं. 2014 के बाद बीते सात साल में ऐसा पहला मौका है जब बीजेपी को बचाव की मुद्रा में आना पड़ा है क्योंकि जिस परसेप्शन मैनेजमेंट की बदौलत बीजेपी नेतृत्व देश के बहुमत के दिलों में राज कर रहा था - कोरोना संकट के दौरान अस्पतालों में बेड से लेकर ऑक्सीजन और जरूरी दवाओं तक के लिए जद्दोजहद झेलने के बाद आम जनमानस काफी निराश महसूस कर रहा है.

देखा जाये तो केंद्र में सत्ताधारी बीजेपी नेतृत्व को न तो कांग्रेस के हमलों से कोई परेशानी है और न ही विपक्षी खेमे के मुख्यमंत्रियों के एकजुट होने की किसी भी कवायद से - अगर डरने वाली कोई बात है तो लोगों में मन में बीजेपी को लेकर बदल रही धारणा और ये बात ही मोदी-शाह के लिए सबसे खतरनाक है!

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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