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कांग्रेस की जीत पर केजरीवाल की खुशी कुछ कहती है!

    • करुणेश कैथल
    • Updated: 12 मई, 2016 04:59 PM
  • 12 मई, 2016 04:59 PM
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मुख्यमंत्री बनने के बाद से कई उल्टे-सीधे बयान और अपने काम में दिलचस्पी न रखते हुए विपक्षियों पर लगातार हमलावर रूख के कारण अरविन्द केजरीवाल ने जनता के दिल में बनाई हुई एक खास ईमानदार पहचान खो दी. अब केजरीवाल में भी लोगों को एक परिपक्व और जनता को ठगने वाला राजनीतिज्ञ मात्र दिखने लगा है.

जनता के बीच अपने को वैसे समय में कांग्रेस का कट्टर विरोधी बनाना जिस समय में देश में कांग्रेस के खिलाफ लहर चल रही थी, अरविन्द केजरीवाल का मास्टर स्ट्रोक था. केजरीवाल का यही दांव कई सियासी दिग्गजों पर भारी पड़ा. ऐसा लग रहा था मानो लोग कांग्रेस पार्टी से बिल्कुल तंग आ चुके थे और एक नया ईमानदार चेहरा तलाश रहे थे. अरविन्द केजरीवाल ने बड़ी ही चालाकी से उस मौके को भांपा और उसका भरपूर फायदा उठाया.

 

चाहे वो दिग्विजय सिंह हों, कपिल सिब्बल हों, शीला दीक्षित हों, राहुल गांधी हों या फिर खुद सोनिया गांधी हों, केजरीवाल के एक-एक दांव के आगे सभी बिल्कुल निष्क्रिय दिखाई पड़ रहे थे. इसका नतीजा भी विधानसभा चुनाव में देखने को मिला. जनता ने पूर्ण बहुमत के साथ अरविन्द केजरीवाल को दिल्ली के मुख्यमंत्री पद पर आसीन कर दिया. लेकिन मुख्यमंत्री पद पर आसीन होने के बाद जो बदलाव केजरीवाल में देखने को मिला शायद दिल्ली की जनता ने ऐसा कभी नहीं सोचा होगा.

ये भी पढ़ें- ‘हुआ-हुआ राजनीति’ के जाल में फंसती जा रही बीजेपी

हालांकि केजरीवाल पर कांग्रेस के विरोधी होने के बावजूद उसके समर्थक होने का दावा सियासी दिग्गजों व जानकारों की तरफ से लगातार किया जा रहा था. इसके कई कारण थे. जिसमें मुख्य रूप से अरविन्द केजरीवाल की पत्नी की दिल्ली की पूर्व सीएम शीला दीक्षित से अच्छे संबंध का हवाला दिया जा रहा था. दूसरा कारण यह भी था कि...

जनता के बीच अपने को वैसे समय में कांग्रेस का कट्टर विरोधी बनाना जिस समय में देश में कांग्रेस के खिलाफ लहर चल रही थी, अरविन्द केजरीवाल का मास्टर स्ट्रोक था. केजरीवाल का यही दांव कई सियासी दिग्गजों पर भारी पड़ा. ऐसा लग रहा था मानो लोग कांग्रेस पार्टी से बिल्कुल तंग आ चुके थे और एक नया ईमानदार चेहरा तलाश रहे थे. अरविन्द केजरीवाल ने बड़ी ही चालाकी से उस मौके को भांपा और उसका भरपूर फायदा उठाया.

 

चाहे वो दिग्विजय सिंह हों, कपिल सिब्बल हों, शीला दीक्षित हों, राहुल गांधी हों या फिर खुद सोनिया गांधी हों, केजरीवाल के एक-एक दांव के आगे सभी बिल्कुल निष्क्रिय दिखाई पड़ रहे थे. इसका नतीजा भी विधानसभा चुनाव में देखने को मिला. जनता ने पूर्ण बहुमत के साथ अरविन्द केजरीवाल को दिल्ली के मुख्यमंत्री पद पर आसीन कर दिया. लेकिन मुख्यमंत्री पद पर आसीन होने के बाद जो बदलाव केजरीवाल में देखने को मिला शायद दिल्ली की जनता ने ऐसा कभी नहीं सोचा होगा.

ये भी पढ़ें- ‘हुआ-हुआ राजनीति’ के जाल में फंसती जा रही बीजेपी

हालांकि केजरीवाल पर कांग्रेस के विरोधी होने के बावजूद उसके समर्थक होने का दावा सियासी दिग्गजों व जानकारों की तरफ से लगातार किया जा रहा था. इसके कई कारण थे. जिसमें मुख्य रूप से अरविन्द केजरीवाल की पत्नी की दिल्ली की पूर्व सीएम शीला दीक्षित से अच्छे संबंध का हवाला दिया जा रहा था. दूसरा कारण यह भी था कि चुनाव से पहले जिस शीला दीक्षित को जेल भिजवाने की बात केजरीवाल जनता में बोलते रहते थे, उन्हीं के साथ कई पार्टियों में एक-साथ हंसते-बोलते देखे गए.

मुख्यमंत्री बनने के बाद से कई उल्टे-सीधे बयान और अपने काम में दिलचस्पी न रखते हुए विपक्षियों पर लगातार हमलावर रूख के कारण अरविन्द केजरीवाल ने जनता के दिल में बनाई हुई एक खास ईमानदार पहचान खो दी. केजरीवाल भी उसी गलती को दोहरा बैठे जो अन्य पार्टियों के घमंडी नेता करते हैं. अब केजरीवाल में भी लोगों को एक परिपक्व और जनता को ठगने वाला राजनीतिज्ञ मात्र दिखने लगा है.

खैर, यह तो आने वाला वक्त बताएगा कि अरविन्द केजरीवाल सही हैं या गलत. फिलहाल कांग्रेस के प्रति उनके नरम व प्यार वाले रूख को देखकर जनता भी अवाक रह गई है. मामला था उत्तराखंड में हरीश रावत सरकार की साख के बचने या जाने का, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने मुहर लगाते हुए हरीश रावत को उत्तराखंड की सत्ता संभालने के निर्देश दे दिए.

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जैसे ही यह फैसला कांग्रेस के पक्ष में आया. दिल्ली के सीएम व आप पार्टी के संयोजक अरविन्द केजरीवाल ने एक के बाद एक ताबरतोड़ ट्वीट कर पीएम मोदी पर हमला बोलना शुरू कर दिया, जैसे मानों यह कांग्रेस की नहीं बल्कि आम आदमी पार्टी की जीत हुई हो.

 

कांग्रेस की जीत पर केजरीवाल की ऐसी खुशी मानो कुछ कहना चाह रही है. मानो केजरीवाल यह कह रहे हों कि कांग्रेस की जीत में ही मेरी जीत है. कयास यह भी लगाए जा रहे हैं कि आने वाले दिनों में जिस तरह से भाजपा के खिलाफ सारी पार्टियां एकजुट होने की जुगत में लगी है, केजरीवाल भी किसी पार्टी का समर्थन कर सकते हैं.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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