• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
सियासत

केजरीवाल दिल्ली में मना रहे हैं दिवाली - और नजर लखनऊ पर है!

    • आईचौक
    • Updated: 14 नवम्बर, 2020 06:26 PM
  • 14 नवम्बर, 2020 06:26 PM
offline
अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) के दिल्ली में दिवाली पर कार्यक्रम (Diwali Event) का मकसद तो साफ साफ यूपी विधानसभा चुनाव (UP Election 2022) की तैयारियों का संकेत दे रहा है, लेकिन काम की राजनीति छोड़ राम की राजनीति में क्या वो सफल हो पाएंगे?

उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने के बाद से ही योगी आदित्यनाथ अयोध्या में दिवाली के मौके पर सरकारी दीपोत्सव का आयोजन करा रहे हैं - और लाखों दीयों के साथ ऐसा भव्य इवेंट इस बार भी हुआ है कि गिनीज बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में भी दर्ज हो गया. चूंकि दीपावली की मुख्य पूजा योगी आदित्यनाथ को गोरखपुर के मंदिर में करनी होती है, इसलिए अयोध्या का कार्यक्रम पहले ही सम्पन्न करा लिया जाता है.

योगी आदित्यनाथ की ही तरह - लेकिन दूसरी बार मुख्यमंत्री बनने के बाद अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) ने भी लोगों के साथ दिवाली मनाना शुरू कर दिया है. दिल्ली के अक्षरधाम मंदिर में करीब आधे घंटे के दीपोत्सव कार्यक्रम (Diwali Event) के लिए टीवी चैनलों पर अरविंद केजरीवाल का विज्ञापन पहले से ही दिखायी देने लगा था, लिहाजा उसके राजनीतिक मायने निकाले जाने लगे - क्योंकि विज्ञापन में अरविंद केजरीवाल विशेष रूप से भगवान राम के 14 साल के वनवास का जिक्र कर रहे हैं. ये बहुत हद तक वैसे ही जैसे योगी आदित्यनाथ कह रहे हैं कि अयोध्या में राम मंदिर बनने के इंतजार में सदियां गुजर गयीं.

'आई लव यू दिल्ली...' और '...थैंक यू हनुमान जी' के बाद अब आम आदमी पार्टी नेता अरविंद केजरीवाल की राजनीति में 'जय श्रीराम' की भी गूंज सुनी जाने लगी है - साफ है 2022 में होने जा रहे यूपी विधानसभा चुनावों (P Election 2022) के लिए टीम केजरीवाल तैयारियों में जोर शोर से जुट गयी है.

बेशक, अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली चुनाव में जीत के लिए हनुमान जी का शुक्रिया अदा किया था, लगे हाथ काफी जोर देकर ये भी समझाने की कोशिश की थी कि आगे से 'काम की राजनीति' ही होगी - लेकिन ये क्या अरविंद केजरीवाल तो काम की जगह राम की राजनीति में लग गये हैं!

2022 में AAP भी होगी P के मैदान में

आम अवधारणा तो यही है कि दिल्ली का रास्ता उत्तर प्रदेश होकर गुजरता है, लेकिन आम आदमी पार्टी नेता अरविंद केजरीवाल तो दिल्ली से अयोध्या के रास्ते लखनऊ पहुंचने की कोशिश में लगते हैं - हो सकता है, ऐसी राजनीति के पीछे अरविंद...

उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने के बाद से ही योगी आदित्यनाथ अयोध्या में दिवाली के मौके पर सरकारी दीपोत्सव का आयोजन करा रहे हैं - और लाखों दीयों के साथ ऐसा भव्य इवेंट इस बार भी हुआ है कि गिनीज बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में भी दर्ज हो गया. चूंकि दीपावली की मुख्य पूजा योगी आदित्यनाथ को गोरखपुर के मंदिर में करनी होती है, इसलिए अयोध्या का कार्यक्रम पहले ही सम्पन्न करा लिया जाता है.

योगी आदित्यनाथ की ही तरह - लेकिन दूसरी बार मुख्यमंत्री बनने के बाद अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) ने भी लोगों के साथ दिवाली मनाना शुरू कर दिया है. दिल्ली के अक्षरधाम मंदिर में करीब आधे घंटे के दीपोत्सव कार्यक्रम (Diwali Event) के लिए टीवी चैनलों पर अरविंद केजरीवाल का विज्ञापन पहले से ही दिखायी देने लगा था, लिहाजा उसके राजनीतिक मायने निकाले जाने लगे - क्योंकि विज्ञापन में अरविंद केजरीवाल विशेष रूप से भगवान राम के 14 साल के वनवास का जिक्र कर रहे हैं. ये बहुत हद तक वैसे ही जैसे योगी आदित्यनाथ कह रहे हैं कि अयोध्या में राम मंदिर बनने के इंतजार में सदियां गुजर गयीं.

'आई लव यू दिल्ली...' और '...थैंक यू हनुमान जी' के बाद अब आम आदमी पार्टी नेता अरविंद केजरीवाल की राजनीति में 'जय श्रीराम' की भी गूंज सुनी जाने लगी है - साफ है 2022 में होने जा रहे यूपी विधानसभा चुनावों (P Election 2022) के लिए टीम केजरीवाल तैयारियों में जोर शोर से जुट गयी है.

बेशक, अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली चुनाव में जीत के लिए हनुमान जी का शुक्रिया अदा किया था, लगे हाथ काफी जोर देकर ये भी समझाने की कोशिश की थी कि आगे से 'काम की राजनीति' ही होगी - लेकिन ये क्या अरविंद केजरीवाल तो काम की जगह राम की राजनीति में लग गये हैं!

2022 में AAP भी होगी P के मैदान में

आम अवधारणा तो यही है कि दिल्ली का रास्ता उत्तर प्रदेश होकर गुजरता है, लेकिन आम आदमी पार्टी नेता अरविंद केजरीवाल तो दिल्ली से अयोध्या के रास्ते लखनऊ पहुंचने की कोशिश में लगते हैं - हो सकता है, ऐसी राजनीति के पीछे अरविंद केजरीवाल की नजर केंद्र की सत्ता की सीढ़ी पर हो.

आम आदमी पार्टी ने अपनी तरफ से उत्तराखंड में एक सर्वे कराया गया था. आप के मुताबिक, उत्तराखंड के सर्वे में 62 फीसदी लोगों ने अपनी राय जाहिर की थी कि आम आदमी पार्टी को राज्य में चुनाव लड़ना चाहिये. उसके बाद अरविंद केजरीवाल कह चुके हैं कि आम आदमी पार्टी 2022 में होने जा रहे उत्तराखंड विधानसभा की सभी सीटों पर चुनाव लड़ेगी.

2022 में उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के साथ साथ पंजाब और गोवा में भी विधानसभा के चुनाव होने हैं. 2017 में हुए पंजाब और गोवा विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी पूरी ताकत के साथ मैदान में कूदी थी, लेकिन कहीं बात नहीं बनी. पंजाब को लेकर तो अरविंद केजरीवाल ने कहा भी और दिल्ली की तरह खूंटा गाड़ कर बैठे भी लेकिन चुनाव नतीजे आने के बाद जैसे तैसे खड़ा होना भी मुश्किल होने लगा.

यूपी चुनाव की तैयारी और उत्तराखंड की घोषणा को देखते हुए ये तो मान कर ही चलना चाहिये कि आम आदमी पार्टी पंजाब में तो चुनाव लड़ेगी ही. वैसे चुनाव लड़ने के ऐलान का क्या है. कहने को तो रेवाड़ी की रैली में भी अरविंद केजरीवाल ने घोषणा की थी कि उनकी पार्टी 2019 में हरियाणा की सभी विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ेगी. सभी तो नहीं, मगर कुछ सीटों पर चुनाव लड़े भी, लेकिन दिल्ली से कोई छोटा मोटा नेता भी प्रचार के लिए नहीं पहुंचा. वैसे भी दिल्ली की लड़ाई के आगे हरियाणा में हाथ आजमाने का कोई मतलब भी नहीं रहा.

गोवा से लेकर गुजरात तक विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी का प्रदर्शन पंजाब से भी घटिया रहा है. 2019 के आम चुनाव में तो आप उम्मीदवार को दिल्ली की ज्यादातर संसदीय सीटों पर कांग्रेस ने धक्का देकर तीसरे नंबर पर पहुंचा दिया था.

अरविंद केजरीवाल का काम की राजनीति से राम की राजनीति की तरफ शिफ्ट होना क्या गुल खिलाएगा?

दिल्ली विधानसभा चुनावों से सत्ता में वापसी के बाद आम आदमी पार्टी ने नये सिरे से अंगड़ाई लेना शुरू किया. चुनाव में हनुमान चालीसा पढ़ने का असर देख कर चुनाव नतीजे आने के साथ ही अरविंद केजरीवाल भारत माता की जय के नारों के साथ साथ वंदे मातरम् भी बोलने लगे. आम तौर पर बीजेपी के राजनीतिक विरोधियों को ये दोनों ही स्लोगन पसंद नहीं आते. अरविंद केजरीवाल के इस राजनीतिक टर्न को उनके धर्मनिर्पेक्षता से हिंदुत्व की राजनीति की तरफ बढ़ते देखा जाने लगा है. दिल्ली के अक्षरधाम मंदिर में दिवाली आयोजन का विज्ञापन भी तो यही इशारा कर रहा है.

अरविंद केजरीवाल के हिंदुत्व के चोला ओढ़ने की कोशिश के साथ ही साथ, दिल्ली सरकार के कई फैसलों को राष्ट्रवादी विचारधारा से भी जोड़ कर देखा जाता है. कन्हैया कुमार के खिलाफ देशद्रोह का केस चलाने की मंजूरी देने की तरह ही जेएनयू के एक और पूर्व छात्र उमर खालिद के खिलाफ भी दिल्ली दंगों के मामले में केजरीवाल सरकार का वैसा ही फैसला ही देखा गया है.

लंबे लॉकडाउन के बाद अनलॉक होने पर जब 5 अगस्त को अयोध्या में राम मंदिर के लिए भूमि पूजन की तैयारियां हो रही थीं तो अरविंद केजरीवाल की बातों से लगा कि वो पूजा में शामिल होना चाहते थे. पूछे जाने पर बोले भी थे कि न्योता नहीं मिला है - मतलब, न्योता का इंतजार रहा ही होगा. वैसे भूमि पूजन के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ मुख्यमंत्री के रूप में सिर्फ योगी आदित्यनाथ ही मौजूद थे.

यूपी में AAP के लिए कितनी संभावना है

2017 जब अरविंद केजरीवाल पंजाब और गोवा विधानसभा चुनावों को लेकर हद से ज्यादा उत्साहित और सक्रिय नजर आ रहे थे, तभी उत्तर प्रदेश चुनाव को लेकर कोई दिलचस्पी नहीं दिखाने को लेकर सवाल पूछा गया था. अरविंद केजरीवाल ने तब बताया था कि आप के पास यूपी में बैंडविथ नहीं है. तब तो यही लगा था कि अरविंद केजरीवाल के बैंडविथ का मतलब संगठन और बाकी संसाधनों से हो सकता है. समझने वाली एक बात ये भी रही कि आम आदमी पार्टी के के पास उत्तर प्रदेश से सबसे बड़ा चेहरा अरविंद केजरीवाल के बेहद करीबी और भरोसेमंद संजय सिंह को तब पंजाब का प्रभारी बनाया गया था. नये मिशन को देखते हुए तब्दीलियां भी निश्चित तौर पर हुई ही होंगी.

उत्तर प्रदेश में आम चुनाव के दौरान बहुत ही बुरे अनुभव के बावजूद कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी संसद में CAA विधेयक लाये जाने के वक्त से ही 2022 की तैयारियों में जुटी हुई हैं. बाद में लॉकडाउन के दौरान प्रवासी मजदूरों के लिए बसे भेजे जाने से लेकर हाथरस गैंगरेप की घटना तक उनके तेवर बरकरार देखे गये हैं.

यूपी में सबसे पिछले पायदान पर होने के बावजूद प्रियंका गांधी और प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू की अगुवाई में कांग्रेस सत्ताधारी बीजेपी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से सीधे सीधे टक्कर ले रही है, जबकि मायावती की बीएसपी और अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी कभी परशुराम की मूर्ति लगाने को लेकर तो कभी सूबे की कानून व्यवस्था की स्थिति को लेकर थोड़ी बहुत सक्रियता दिखाते हैं - हालांकि, वो भी रस्मअदायगी भर ही नजर आता है. अखिलेश यादव की पार्टी तो यूपी के उपचुनावों में भी मौजूदगी का अहसास कराती आ रही है, लेकिन मायावती की बीएसपी का प्रदर्शन यूपी से अच्छा तो बाहर ही लग रहा है. बीएसपी तो बिहार चुनाव में भी एक सीट जीतने में कामयाब रही है.

बिहार चुनाव में भी आम आदमी पार्टी के हाथ आजमाने की चर्चा रही, क्योंकि नीतीश कुमार का दिल्ली आकर अपने खिलाफ चुनाव प्रचार किया जाना अरविंद केजरीवाल को बिलकुल भी अच्छा नहीं लगा था - वो भी अमित शाह के साथ साझा रैली. हालांकि, उसी इलाके में आम आदमी पार्टी ने जीत का रिकॉर्ड भी बनाया था.

दिल्ली के अलावा अरविंद केजरीवाल की पार्टी को अब तक सबसे बड़ी चुनावी सफलता पंजाब में ही मिल पायी है. दिल्ली विधानसभा चुनावों की पहली पारी के तत्काल बात 2014 में ही आप को पंजाब से लोक सभा की चार सीटें मिल गयी थीं. फिलहाल राज्य सभा में दिल्ली की बदौलत आप के तीन सांसद अपनी मौजूदगी दर्ज करा ेरहे हैं.

ये सही है कि अरविंद केजरीवाल की सत्ता में वापसी कराने में पूर्वांचल के लोगों का बड़ा योगदान रहा है. दिल्ली के बाद यूपी से जुड़े आप विधायकों के गृह जनपदों में जाकर सम्मानित करने की तैयारी की गयी थी - लेकिन कोरोना ने चौपट कर दिया. लखनऊ में अभी संजय सिंह की भेंट मुलाकात जोर पकड़ ही रही थी कि कोरोना वायरस के चलते लॉकडाउन हो गया और बाकी बातें छोड़ कर अरविंद केजरीवाल को दिल्ली तक सिमट कर रह जाना पड़ा. कोरोना ने तो दिल्ली को इतना परेशान किया कि केजरीवाल अमित शाह के इशारों पर नाचते नजर आये.

2020 के दिल्ली विधानसभा चुनावों की तरह ही यूपी में भी अरविंद केजरीवाल को प्रधानमंत्री मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की फौज से जूझना होगा. बताने के लिए अरविंद केजरीवाल के पास दिल्ली सरकार के काम भी होंगे, लेकिन दिल्ली और यूपी की राजनीति में बड़ा फासला है. दिल्ली चुनाव में तो अरविंद केजरीवाल अपने राजनीतिक विरोधियों के जाति और धर्म की बेड़ियों में जकड़ने की कोशिशों के बावजूद सफल रहे, लेकिन यूपी में वही सिक्का चल पाएगा, संभावना न के बराबर है.

यूपी की राजनीति ऐसी है कि 'काम बोलता है' के नारे के 'कारनामा बोलता है' में बदलते देर नहीं लगती. अभी अभी बिहार चुनाव में भी अरविंद केजरीवाल ने गौर किया ही होगा कि बेरोजगारी की मुश्किलें झेलने के बावजूद लोगों ने किस तरह वोट देते वक्त जाति और धर्म को ही तरजीह दी - वरना, मायावती को एक और असदुद्दीन ओवैसी भी भला पांच सीटें कहां जीत पाते.

वैसे तो अरविंद केजरीवाल और राहुल गांधी की राजनीति में कोई मुकाबला ही नहीं है, लेकिन राहुल गांधी के सॉफ्ट हिंदुत्व की तरह अरविंद केजरीवाल के हिंदुत्व की राजनीति को लेकर आशंका तो नतीजे आने तक बनी ही रहेगी.

इन्हें भी पढ़ें :

Arvind Kejriwal ने अमित शाह को क्या अपना राजनीतिक गुरु मान लिया है!

Arvind Kejriwal को समझ लेना चाहिए- चुनाव जीतने और सरकार चलाने का फर्क

Coronavirus को छोड़िए, केजरीवाल के हाथ से दिल्ली का कंट्रोल भी फिसलने लगा है


इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    अब चीन से मिलने वाली मदद से भी महरूम न हो जाए पाकिस्तान?
  • offline
    भारत की आर्थिक छलांग के लिए उत्तर प्रदेश महत्वपूर्ण क्यों है?
  • offline
    अखिलेश यादव के PDA में क्षत्रियों का क्या काम है?
  • offline
    मिशन 2023 में भाजपा का गढ़ ग्वालियर - चम्बल ही भाजपा के लिए बना मुसीबत!
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲