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6 वजहें, कर्नाटक सरकार तो गिरनी ही चाहिए

    • अनुज मौर्या
    • Updated: 08 जुलाई, 2019 06:24 PM
  • 08 जुलाई, 2019 06:24 PM
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जिस तरह से कर्नाटक में सालभर पहले सरकार बनी थी, नज़र आ रहा था कि ये नाटक ज्यादा दिन चलेगा नहीं. और अब कर्नाटक की सियासत में जो हो रहा है, उसे देखकर तो यही लग रहा है कि इस नाटक का अंत आ चुका है.

कर्नाटक में सियासी संकट उस मोड़ पर आ पहुंचा है, जब पूरा राज्य हैरानी भरी निगाहों से सरकार की ओर देख रहा है. पहले तो कांग्रेस और भाजपा के करीब 14 विधायकों ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया. इस स्थिति से बाहर निकलने के लिए कुमारस्वामी ने अपनी पार्टी के बागी विधायकों को मंत्रीपद का ऑफर दिया और वापस पार्टी में शामिल होने की अपील की. अभी कर्नाटक की सियासत से एक मुसीबत खत्म भी नहीं हुई थी कि कांग्रेस के सभी मंत्रियों ने इस्तीफा दे दिया. फिर क्या था, कुछ ही देर बार जेडीएस के भी सभी मंत्रियों ने इस्तीफा दे दिया. अब हो सकता है कि दोबारा से कैबिनेट का गठन हो. वहीं दूसरी ओर, डर ये भी है कि सरकार ना गिर जाए, जिसकी उम्मीदें कुछ ज्यादा ही लग रही हैं.

वैसे अगर कर्नाटक में जेडीएस और कांग्रेस के गठबंधन वाली सरकार गिर भी जाती है तो कोई हैरानी की बात नहीं होनी चाहिए. ऐसा इसलिए क्योंकि इन दोनों ने मजबूरी में गठबंधन किया. गठबंधन की नीयत ही सही नहीं थी. दोनों पार्टियों का मकसद कर्नाटक में सरकार बनाना नहीं था, बल्कि वह तो चाहते थे कि बस भाजपा की सरकार ना बने. इसीलिए तो दोनों पार्टियों ने चुनाव भी अलग-अलग लड़ा था. दोनों को उम्मीद थी कि उन्हें बहुमत मिल जाएगा, लेकिन कर्नाटक में त्रिशंकु विधानसभा बन गई. किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला. हालांकि, भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी, लेकिन बहुमत ना होने की वजह से सरकार नहीं बना सकी. अब आप ही सोचिए, जो सरकार सिर्फ दूसरे को जीतने नहीं देने के मकसद से सत्ता में आई हो, उसका गिरना तो तय ही था. वैसे भी, करीब 13 महीने पुरानी इस सरकार की ओर से अब तक कई ऐसी बातें सामने आ चुकी हैं, जो साफ करती रहीं कि जेडीएस और कांग्रेस की आपस में बिल्कुल नहीं पट रही है.

जिस तरह से कर्नाटक में सालभर पहले सरकार बनी थी, नज़र आ रहा था कि ये नाटक ज्यादा दिन चलेगा...

कर्नाटक में सियासी संकट उस मोड़ पर आ पहुंचा है, जब पूरा राज्य हैरानी भरी निगाहों से सरकार की ओर देख रहा है. पहले तो कांग्रेस और भाजपा के करीब 14 विधायकों ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया. इस स्थिति से बाहर निकलने के लिए कुमारस्वामी ने अपनी पार्टी के बागी विधायकों को मंत्रीपद का ऑफर दिया और वापस पार्टी में शामिल होने की अपील की. अभी कर्नाटक की सियासत से एक मुसीबत खत्म भी नहीं हुई थी कि कांग्रेस के सभी मंत्रियों ने इस्तीफा दे दिया. फिर क्या था, कुछ ही देर बार जेडीएस के भी सभी मंत्रियों ने इस्तीफा दे दिया. अब हो सकता है कि दोबारा से कैबिनेट का गठन हो. वहीं दूसरी ओर, डर ये भी है कि सरकार ना गिर जाए, जिसकी उम्मीदें कुछ ज्यादा ही लग रही हैं.

वैसे अगर कर्नाटक में जेडीएस और कांग्रेस के गठबंधन वाली सरकार गिर भी जाती है तो कोई हैरानी की बात नहीं होनी चाहिए. ऐसा इसलिए क्योंकि इन दोनों ने मजबूरी में गठबंधन किया. गठबंधन की नीयत ही सही नहीं थी. दोनों पार्टियों का मकसद कर्नाटक में सरकार बनाना नहीं था, बल्कि वह तो चाहते थे कि बस भाजपा की सरकार ना बने. इसीलिए तो दोनों पार्टियों ने चुनाव भी अलग-अलग लड़ा था. दोनों को उम्मीद थी कि उन्हें बहुमत मिल जाएगा, लेकिन कर्नाटक में त्रिशंकु विधानसभा बन गई. किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला. हालांकि, भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी, लेकिन बहुमत ना होने की वजह से सरकार नहीं बना सकी. अब आप ही सोचिए, जो सरकार सिर्फ दूसरे को जीतने नहीं देने के मकसद से सत्ता में आई हो, उसका गिरना तो तय ही था. वैसे भी, करीब 13 महीने पुरानी इस सरकार की ओर से अब तक कई ऐसी बातें सामने आ चुकी हैं, जो साफ करती रहीं कि जेडीएस और कांग्रेस की आपस में बिल्कुल नहीं पट रही है.

जिस तरह से कर्नाटक में सालभर पहले सरकार बनी थी, नज़र आ रहा था कि ये नाटक ज्यादा दिन चलेगा नहीं.

1- नतीजों से पहले ही बेग के बयान से शुरू हो गई थी तू-तू, मैं-मैं

कर्नाटक विधानसभा चुनाव के नतीजे आने से पहले ही कांग्रेस और जेडीएस के तनातनी शुरू हो गई थी. कांग्रेस के लोकप्रिय मुस्लिम चेहरे रोशन बेग ने एक विवादित बयान दे दिया था, जिसके बाद जेडीएस और कांग्रेस के बीच एक जुबानी जंग सी हुई. दोनों ने ही बेग के बयान पर सवाल उठाया और कारण बताओ नोटिस तक दे दिया गया. बेग ने कहा था- कांग्रेस को मुस्लिमों को हल्के में नहीं लेना चाहिए, वह कांग्रेस के वोट बैंक नहीं है, अगर जरूरत पड़ी तो मुस्लिम अपना समर्थन भाजपा को भी दे सकते हैं. बाद में उन्हें कांग्रेस से निष्कासित कर दिया गया, जिस पर बेग कहते हैं कि मुझे सच बोलने की सजा मिली.

2- जब कुमारस्वामी ने दी थी मुख्यमंत्री पद छोड़ने की धमकी

कर्नाटक के सामाजिक कल्याण मंत्री सी पुत्तरंगा शेट्टी ने कहा था- आप जो भी कहें, सिर्फ सिद्धारमैया ही मेरे मुख्यमंत्री हैं... मैं किसी और की उस पद पर कल्पना भी नहीं कर सकता. यूं तो एचडी देवगौड़ा ने साफ कहा था कि गठबंधन में वैचारिक मतभेद होते हैं, लेकिन कुमारस्वामी को ये बात काफी बुरी लगी थी. वैसे भी, जिस सरकार में आप मंत्री हैं, उसी के प्रमुख यानी मुख्यमंत्री को अपना मुख्यमंत्री नहीं समझना विवाद तो पैदा करता ही है.

सिद्धारमैया ने भी अपने विधायकों को ये कहकर नहीं समझाया कि इस तरह के बयान सार्वजनिक रूप से नहीं दिए जाते हैं, बल्कि उन्होंने भी विधायक की बातों का समर्थन करते हुए कहा कि अगर वह और 5 साल मुख्यमंत्री रहते तो विकास कार्यों को पूरा कर देते. इस पर कुमारस्वामी ने कहा साफ कह दिया था कि कांग्रेस के विधायक अपनी सीमा लांघ रहे हैं, जिन पर कांग्रेस नेताओं को लगाम लगानी चाहिए. उन्होंने तो मुख्यमंत्री पद तक छोड़ने की धमकी दे दी थी.

3- कांग्रेस नेता बोले- 'सिद्धारमैया बन सकते हैं मुख्यमंत्री'

एक कार्यक्रम में पार्टी कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए सिद्धारमैया ने कहा था कि कि अगर लोगों की मर्जी हुई तो वह फिर से मुख्यमंत्री बन जाएंगे. उनके इस बतान पर कुमारस्वामी ने कहा था कि लोकतंत्र में कोई भी व्यक्ति मुख्यमंत्री बन सकता है. कांग्रेस के एक नेता ने तो उन परिस्थितियों का भी वर्णन कर दिया, जिसमें सिद्धारमैया मुख्यमंत्री बन सकते हैं. कर्नाटक के कृषि मंत्री शिवशंकर रेड्डी ने कहा कि अगर दोनों पार्टियां एक साथ बैठकर पार्टी में कुछ बदलाव करना तय करती हैं तो सिद्धारमैया फिर से मुख्यमंत्री बन सकते हैं. उन्होंने ये भी कहा कि कांग्रेस ने चुनाव सिद्धारमैया के नेतृत्व में लड़ा है, लेकिन बहुमत नहीं मिलने की वजह से वह मुख्यमंत्री नहीं बन सके.

4- रोते हुए बोले कुमारस्वामी- 'रोज CM पद पर मेरा आखिरी दिन बताते हैं लोग'

ये बात इसी साल अप्रैल महीने की है, जब कुमारस्वामी चुनाव प्रचार कर रहे थे. जनता को संबोधित करते-करते वह भावुक हो गए और अपने आंसू रोक नहीं पाए. रैली में वह बोले की मेरे बारे में मीडिया में लगातार कहा जा रहा है कि ये मेरा मुख्यमंत्री की तरह आखिरी दिन है. मेरे बारे में गलत खबरें फैलाई जा रही हैं. दरअसल, उनका इशारा उन विवादों पर था जो जेडीएस और कांग्रेस के बीच पैदा हो गए थे. जिनकी वजह से गठबंधन की सरकार के गिरने की आशंकाएं जताई जा रही थीं. तब तो सरकार नहीं गिरी, लेकिन अब गिरने की नौबत आ चुकी है.

कुमारस्वामी जनता के सामने भावुक हो गए और खुद के आंसू नहीं रोक पाए.

5- 'मैं विषकांत बन गया हूं, आप खुश हैं लेकिन मैं खुश नहीं हूं !'

पिछले साल जुलाई में बेंगलुरु में एक कार्यक्रम के दौरान भी कुमारस्वामी रो पड़े थे. उन्होंने कहा था- 'आप मेरा मान-सम्मान रखने के लिए गुलदस्ते के साथ खड़े हैं, क्योंकि आपका भाई सीएम बन गया है और आप सभी खुश हैं, लेकिन मैं नहीं हूं. मुझे गठबंधन सरकार का दर्द पता है. मैं विषकांत बन गया और इस सरकार के दर्द को निगल लिया.' वीडियो सामने आने के बाद साफ हो गया था कि गठबंधन की सरकार में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा था.

6- सिद्धारमैया ने दी गठबंधन तोड़ने की सलाह

हाल ही में सिद्धारमैया ने राहुल गांधी से मुलाकात के दौरान ये सुझाव भी किया था कि कर्नाटक में कांग्रेस के भविष्य के लिए गठबंधन तोड़ देना चाहिए. उनका तर्क था कि जेडीएस के लोग कांग्रेस विधायकों को काम नहीं करने दे रहे हैं, ऐसे में साथ काम करना मुश्किल हो रहा है. उनकी इस सलाह पर न तो राहुल गांधी ने ध्यान दिया, ना ही कांग्रेस के बाकी वरिष्ठ नेताओं ने. अब नतीजा ये हुआ कि 14 विधायक इस्तीफा दे चुके हैं. कांग्रेस और जेडीएस के सभी मंत्रियों ने भी इस्तीफा दे दिया है. ये कहना गलत नहीं होगा कि खुद सिद्धारमैया ही इस सरकार को गिराना चाहते थे, जो अब होता हुआ नजर आ रहा है. कर्नाटक में आए सियासी संकट के बाद जब डैमेज कंट्रोल के लिए कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल बेंगलुरु पहुंचे तो वहां पर भी सिद्धारमैया ने कहा कि जेडीएस से संबंध तोड़ लिया जाए. उन्होंने ये भी कहा कि ये बात आलाकमान को भी बता दी गई है और ऐसे स्थिति में सरकार को बचाया नहीं जा सकता.

कर्नाटक को इस सियासी संकट से बचाने के लिए एक आखिरी रास्ता यही था कि कांग्रेस नेतृत्व की ओर से कर्नाटक की राजनीति में हस्तक्षेप किया जाए. लेकिन खुद कांग्रेस के अध्यक्ष राहुल गांधी ही इस्तीफा लिए घूम रहे हैं, तो कर्नाटक में कांग्रेस को कौन समझाएगा. नतीजा सबके सामने है. कांग्रेस के करीब 10 विधायक पहले ही इस्तीफा देकर मुंबई के होटल में जाकर बैठे हैं और अब कांग्रेस के सभी मंत्रियों ने इस्तीफा देकर कुमारस्वामी की मुश्किल और बढ़ा दी है. ये सब कांग्रेस की अंतर्कलह को दुनिया के सामने रखने के लिए काफी है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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