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कर्नाटक की सत्ता और भाजपा के बीच की दूरियां कम हो रही हैं !

    • अनुज मौर्या
    • Updated: 03 जुलाई, 2019 02:11 PM
  • 03 जुलाई, 2019 02:11 PM
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लोकसभा चुनाव के बाद से ही कर्नाटक की राजनीति में उठापटक जारी है. इसी बीच हाल ही में 2 विधायकों ने इस्तीफा देकर सियासी गलियारे में एक नई बहस छेड़ दी है. बहस इस बात की कि क्या अब कर्नाटक की सरकार गिरने के कगार पर है?

लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की करारी हार के बाद पार्टी अपने बुरे दौर से गुजर रही है. पहले राहुल गांधी ने हार की जिम्मेदारी लेते हुए अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया और फिर उनके बाद एक-एक कर के बहुत सारे कांग्रेस के नेताओं ने पार्टी का हाथ छोड़ दिया है. लोकसभा चुनाव के बाद से ही कर्नाटक की राजनीति में भी उठापटक जारी है. हाल ही में 2 विधायकों ने इस्तीफा देकर सियासी गलियारे में एक नई बहस छेड़ दी है. बहस इस बात की कि क्या अब कर्नाटक की सरकार गिरने के कगार पर है? वैसे कर्नाटक का गणित है ही कुछ ऐसा कि ये सवाल तभी से लोगों के जेहन में घूम रहा है, जब से भाजपा ने लोकसभा चुनाव में प्रचंड बहुमत से जीत हासिल की है.

कर्नाटक में 78 सीटें कांग्रेस ने जीती थीं, जबकि 37 सीटें जेडीएस ने जीतीं. वहीं भाजपा के पास 105 सीटें हैं. राज्य की 2 सीटें निर्दलीयों ने जीतीं, जिन्होंने जेडीएस के नेतृत्व वाली कुमारस्वामी सरकार को अपना समर्थन दिया हुआ है. इसके अलावा एक सीट बसपा ने जीती है और एक अन्य के खाते में गई है. कर्नाटक चुनाव तो सभी पार्टियों ने अलग-अलग ही लड़ा था, लेकिन भाजपा को रोकने के लिए चुनाव के बाद कांग्रेस और जेडीएस ने हाथ मिला लिया. यही वजह थी कि सबसे बड़ी पार्टी की रूप में उभरने के बावजूद बहुमत के जादुई आंकड़े 113 से पीछे रही भाजपा सरकार नहीं बना सकी. खैर, अब कांग्रेस के दो विधायक इस्तीफा दे चुके हैं और गठबंधन के पास अब दो निर्दलीय विधायकों समेत कुल 115 सीटें हैं. यानी बहुमत से महज 2 अधिक, वो भी निर्दलीयों की बदौलत.

कर्नाटक में कांग्रेस के विधायक रमेश जरकीहोली और आनंद सिंह ने इस्तीफा दे दिया है.

क्यों दिया इन 2 विधायकों ने इस्तीफा?

यूं तो लोकसभा चुनाव के बाद से ही कर्नाटक में सियासी हलचल तेज हो गई है, लेकिन अब कांग्रेस के दो विधायकों...

लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की करारी हार के बाद पार्टी अपने बुरे दौर से गुजर रही है. पहले राहुल गांधी ने हार की जिम्मेदारी लेते हुए अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया और फिर उनके बाद एक-एक कर के बहुत सारे कांग्रेस के नेताओं ने पार्टी का हाथ छोड़ दिया है. लोकसभा चुनाव के बाद से ही कर्नाटक की राजनीति में भी उठापटक जारी है. हाल ही में 2 विधायकों ने इस्तीफा देकर सियासी गलियारे में एक नई बहस छेड़ दी है. बहस इस बात की कि क्या अब कर्नाटक की सरकार गिरने के कगार पर है? वैसे कर्नाटक का गणित है ही कुछ ऐसा कि ये सवाल तभी से लोगों के जेहन में घूम रहा है, जब से भाजपा ने लोकसभा चुनाव में प्रचंड बहुमत से जीत हासिल की है.

कर्नाटक में 78 सीटें कांग्रेस ने जीती थीं, जबकि 37 सीटें जेडीएस ने जीतीं. वहीं भाजपा के पास 105 सीटें हैं. राज्य की 2 सीटें निर्दलीयों ने जीतीं, जिन्होंने जेडीएस के नेतृत्व वाली कुमारस्वामी सरकार को अपना समर्थन दिया हुआ है. इसके अलावा एक सीट बसपा ने जीती है और एक अन्य के खाते में गई है. कर्नाटक चुनाव तो सभी पार्टियों ने अलग-अलग ही लड़ा था, लेकिन भाजपा को रोकने के लिए चुनाव के बाद कांग्रेस और जेडीएस ने हाथ मिला लिया. यही वजह थी कि सबसे बड़ी पार्टी की रूप में उभरने के बावजूद बहुमत के जादुई आंकड़े 113 से पीछे रही भाजपा सरकार नहीं बना सकी. खैर, अब कांग्रेस के दो विधायक इस्तीफा दे चुके हैं और गठबंधन के पास अब दो निर्दलीय विधायकों समेत कुल 115 सीटें हैं. यानी बहुमत से महज 2 अधिक, वो भी निर्दलीयों की बदौलत.

कर्नाटक में कांग्रेस के विधायक रमेश जरकीहोली और आनंद सिंह ने इस्तीफा दे दिया है.

क्यों दिया इन 2 विधायकों ने इस्तीफा?

यूं तो लोकसभा चुनाव के बाद से ही कर्नाटक में सियासी हलचल तेज हो गई है, लेकिन अब कांग्रेस के दो विधायकों रमेश जरकीहोली और आनंद सिंह ने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया है. महज 2 इस्तीफों से कर्नाटक की राजनीति में हलचल इसलिए पैदा हो गई है, क्योंकि अब कर्नाटक सरकार के पास बहुमत से सिर्फ 2 सीटें अधिक हैं. जरकीहोली ने शिकायत की है कि पिछले साल उन्हें मंत्रिमंडल से बाहर कर के उनकी वरिष्ठता की अनदेखी की गई. वहीं आनंद सिंह ने कहा है कि राज्य सरकार ने 3,667 एकड़ जमीन जेएसडब्ल्यू स्टील लिमिटेड को बेची है, जिससे वह नाराज हैं, इसलिए इस्तीफा दिया है. अब उम्मीद की जा रही है कि ये दोनों नेता भाजपा में शामिल हो सकते हैं, जिसके बाद भाजपा के पास कुल 107 सीटें हो जाएंगी. यानी बहुमत से आंकड़े से सिर्फ 6 सीटें दूर.

कर्नाटक सरकार में उठापटक हुई तेज

जहां एक ओर 2 विधायकों के इस्तीफे के बीच राज्य के मुख्यमंत्री कुमारस्वामी अमेरिका में छुट्टियां मना रहे हैं, वहीं दूसरी ओर, कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता सिद्धारमैया ने अपने बेंगलुरु आवास पर एक बैठक बुलाई. इस बैठक में क्या फैसला लिया गया ये देखना दिलचस्प होगा. हो सकता है कि इन दोनों को वापस पार्टी में लाने के लिए कुछ प्रलोभन देना पड़े, वरना राज्य की सबसे बड़ी पार्टी भाजपा में इनका शामिल होना तय ही समझिए. वैसे अगर बात करें कुमारस्वामी की तो वह पहले भी कह चुके हैं और इस बार भी यही कहेंगे कि उनकी सरकार मजबूत है, जो पूरा 5 साल सत्ता में रहेगी. आपको बता दें कि इससे पहले भी दो निर्दलीय विधायकों ने अपना समर्थन वापस ले लिया था, जिसके बाद कुमारस्वामी ने प्रलोभन देकर उन्हें वापस बुलाया था. हो सकता है अपनी सरकार को सुरक्षित बनाए रखने के लिए सरकार इस बार भी कोई बड़ा फैसला ले.

पहले भी दो विधायकों ने दिया था इस्तीफा, फिर बन गए मंत्री

ये बात इसी बात जनवरी महीने की है, जब 2 निर्दलीय विधायकों एच नागेश और आर शंकर ने पार्टी से अपना समर्थन वापस लेने का ऐलान कर दिया था. हालांकि, बाद में कुमारस्वामी सरकार ने उन्हें मना लिया और हाल ही में दोनों को मंत्रिमंडल में भी शामिल कर लिया. वैसे, लोकसभा चुनाव के बाद कर्नाटक सरकार गिरने का खतरा मंडरा रहा था, जिससे निपटने के लिए कुमारस्वामी सरकार का ये कदम सही साबित हुआ. अब इस बात पार्टी छोड़कर गए विधायकों को कैसे वापस लाया जाता है, लाया जाता है भी या नहीं, ये देखना दिलचस्प होगा.

एच नागेश और आर शंकर ने कर्नाटक सरकार से अपना समर्थन वापस लेने की घोषणा कर दी थी.

लोकसभा चुनाव के बाद सरकार गिरने के डर से कुमारस्वामी ने दोनों विधायकों को मनाकर मंत्रिमंडल में शामिल कर लिया.

कांग्रेस विधायकों के इस्तीफे को कुमारस्वामी सरकार 'ऑपरेशन कमल' कह रही है. उनका मानना है कि भाजपा कर्नाटक की सरकार गिराने के लिए पार्टी में सेंध लगा रही है. वैसे देखा जाए तो भाजपा पर इस तरह के आरोप अक्सर ही लगते हैं, क्योंकि कई बार ऐसा हुआ है कि गठबंधन की सरकार गिर गई है और फिर भाजपा के गठबंधन की सरकार बनी है. बिहार इसका सबसे बड़ा उदाहरण है. खैर, भले ही इस बार कांग्रेस विधायकों का इस्तीफा देना ऑपरेशन कमल हो या नहीं, लेकिन अगर 3 विधायक और कांग्रेस का हाथ छोड़कर गए तो सरकार का गिरना तय है और महज 6 विधायक भाजपा की दहलीज पर पहुंचे कर्नाटक में भी भाजपा की सरकार बन जाएगी. वैसे अगर ये दोनों विधायक वापस सरकार में आ जाएं और कोई पद पा लें, तो इसमें हैरानी की बात नहीं होगी. वैसे भी दो निर्दलीय विधायकों की समर्थन वापस लेने की धमकी के बाद उनका मंत्री बना दिया जाना बाकी नाराज विधायकों के लिए रास्ते पहले ही खोल चुका है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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