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मंदिरों की शरण में कुमारस्वामी, भगवान भरोसे कर्नाटक

    • आईचौक
    • Updated: 31 अगस्त, 2018 07:54 PM
  • 31 अगस्त, 2018 07:54 PM
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मुख्‍यमंत्री कुमारस्वामी अपने कार्यकाल के पहले 100 दिनों में 47 मंदिरों, एक दरगाह, एक मस्जिद और एक चर्च का सजदा कर चुके हैं. और जिस दिशा में कर्नाटक जा रहा है वो भगवान भरोसे है.

राजनीति के सारे दांव-पेच को आजमाने के बाद कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार बनी. भारतीय लोकतंत्र की खूबसूरती का इससे बड़ा उदाहरण क्या हो सकता है कि चुनाव में तीसरे नंबर की पार्टी के रूप में उभरी जेडीएस के नेता कुमारस्वामी मुख्यमंत्री बने. नरेंद्र मोदी और अमित शाह की सबसे चतुर राजनीतिक जोड़ी को मुंह चिढ़ाते हुए राज्य की सत्ता में काबिज हुए कुमारस्वामी ने हाल ही में अपने कार्यकाल के 100 दिन पूरे किये हैं. सत्ता में काबिज होने के बाद कुमारस्वामी ने भक्तिभाव के सारे रिकॉर्ड को ध्वस्त करते हुए 100 दिनों में 47 मंदिरों, एक दरगाह और एक मस्जिद के दर्शन कर चुके हैं. धार्मिक स्थलों पर जाने में उनकी सक्रियता कर्नाटक के सियासी हलकों में चर्चा का विषय बनी हुई है.

कुमारस्वामी ने भक्ति भाव के सारे रिकॉर्ड ध्वस्त कर दिए हैं.

भगवान में आस्था या सत्ता छिनने का डर

ऐसा कम ही देखा गया है कि चुनाव में सबसे कम सीटें जीतने वाली पार्टी के नेता को मुख्यमंत्री बनने का अवसर मिला हो. ऐसा नहीं है कि मुख्यमंत्री धार्मिक स्थलों का दौरा नहीं कर सकते लेकिन किसी राजनेता की आस्था तूफानी रूप तब ही धारण करती है जब उसे किसी राजनीतिक अनहोनी का डर सता रहा होता है. जब किसी इंसान का भविष्य अनिश्चित होता है तो देवी-देवताओं में उसका यकीन बहुत ज्यादा बढ़ जाता है. लेकिन सबसे बड़ा सवाल यही है कि हाल ही में मुख्यमंत्री बने कुमारस्वामी को वो कौन सी दुविधा है जिसके कारण उनकी आस्था हिलोरे मार रहीं हैं.

सिद्दारमैया की बेवफाई

कर्नाटक के मुख्यमंत्री के रूप में जब कुमारस्वामी ने शपथ लिया तो सबसे ज्यादा विचलित पूर्व मुख्यमंत्री सिद्दारमैया हुए. सिद्दारमैया और कुमारस्वामी के राजनीतिक दुश्मनी के किस्से पूरे राज्य में प्रसिद्ध है. कुमारस्वामी के धार्मिक तड़प के बढ़ने के पीछे...

राजनीति के सारे दांव-पेच को आजमाने के बाद कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार बनी. भारतीय लोकतंत्र की खूबसूरती का इससे बड़ा उदाहरण क्या हो सकता है कि चुनाव में तीसरे नंबर की पार्टी के रूप में उभरी जेडीएस के नेता कुमारस्वामी मुख्यमंत्री बने. नरेंद्र मोदी और अमित शाह की सबसे चतुर राजनीतिक जोड़ी को मुंह चिढ़ाते हुए राज्य की सत्ता में काबिज हुए कुमारस्वामी ने हाल ही में अपने कार्यकाल के 100 दिन पूरे किये हैं. सत्ता में काबिज होने के बाद कुमारस्वामी ने भक्तिभाव के सारे रिकॉर्ड को ध्वस्त करते हुए 100 दिनों में 47 मंदिरों, एक दरगाह और एक मस्जिद के दर्शन कर चुके हैं. धार्मिक स्थलों पर जाने में उनकी सक्रियता कर्नाटक के सियासी हलकों में चर्चा का विषय बनी हुई है.

कुमारस्वामी ने भक्ति भाव के सारे रिकॉर्ड ध्वस्त कर दिए हैं.

भगवान में आस्था या सत्ता छिनने का डर

ऐसा कम ही देखा गया है कि चुनाव में सबसे कम सीटें जीतने वाली पार्टी के नेता को मुख्यमंत्री बनने का अवसर मिला हो. ऐसा नहीं है कि मुख्यमंत्री धार्मिक स्थलों का दौरा नहीं कर सकते लेकिन किसी राजनेता की आस्था तूफानी रूप तब ही धारण करती है जब उसे किसी राजनीतिक अनहोनी का डर सता रहा होता है. जब किसी इंसान का भविष्य अनिश्चित होता है तो देवी-देवताओं में उसका यकीन बहुत ज्यादा बढ़ जाता है. लेकिन सबसे बड़ा सवाल यही है कि हाल ही में मुख्यमंत्री बने कुमारस्वामी को वो कौन सी दुविधा है जिसके कारण उनकी आस्था हिलोरे मार रहीं हैं.

सिद्दारमैया की बेवफाई

कर्नाटक के मुख्यमंत्री के रूप में जब कुमारस्वामी ने शपथ लिया तो सबसे ज्यादा विचलित पूर्व मुख्यमंत्री सिद्दारमैया हुए. सिद्दारमैया और कुमारस्वामी के राजनीतिक दुश्मनी के किस्से पूरे राज्य में प्रसिद्ध है. कुमारस्वामी के धार्मिक तड़प के बढ़ने के पीछे सिद्दारमैया का वो बयान भी है जिसमें उन्होंने फिर से मुख्यमंत्री बनने का एलान किया था. कर्नाटक के हासन में एक रैली के दौरान उन्होंने कहा, ‘मैं मुख्यमंत्री बनना चाहता हूं और बनूंगा भी. 2018 के विधानसभा चुनाव के बाद विरोधी मेरे खिलाफ एकजुट हो गए थे इसलिए मुझे यह पद नहीं मिल पाया... लेकिन राजनीति हमेशा एक-सी नहीं रहती.’ बस फिर क्या था कुमारस्वामी को अपना भविष्य अधर में दिखने लगा और उन्होंने भी मीडिया में अपने मन की बात कही.

कुमारस्वामी के मुताबिक, ‘मुझे मीडिया से पता चल रहा है कि सितंबर तक राज्य में नई सरकार बनेगी और एक व्यक्ति मुख्यमंत्री बनने के लिए तैयार बैठा है. लेकिन मैं अपनी कुर्सी बचाने का प्रयास नहीं करूंगा. मैं जब तक इस पद पर हूं अच्छा काम करता रहूंगा.’ कर्नाटक में सरकार वर्सेज सरकार का खेल लगातार जारी है और कभी भी व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं के बाढ़ में बह सकता है.

राहुल गांधी की धार्मिक यात्रा

कुमारस्वामी अपनी सरकार के 100 दिन पूरे करने के बाद कांग्रेस अध्यक्ष को फीडबैक देने दिल्ली आये थे. आस्था के दो चैम्पियनों की मुलाकात अपने आप में दिलचस्प रही होगी. कुमारस्वामी और राहुल गांधी, एक उत्तर भारतीय मंदिर राजनीति का चमकता सितारा तो दूसरा दक्षिण भारत के मंदिरों का नया राजनीतिक श्रद्धालु. दोनों ने अपने-अपने क्षेत्रों में राजनीतिक आस्था के नई कीर्तिमान स्थापित किये हैं. राहुल गांधी के सामने विशाल लक्ष्य है, उन्हें केंद्र में आसीन मोदी सरकार को केंद्रीय सत्ता से बेदखल करना है वहीँ कुमारस्वामी को राज्य की सत्ता पे अपना मालिकाना हक़ बरक़रार रखना है. इनके मकसदों की विशालता को देखते हुए इन्हें मंदिर जाने की पूरी छूट होनी चाहिए.

राहुल गांधी भारत के सबसे बड़े धार्मिक यात्रा कैलाश मानसरोवर के लिए प्रस्थान कर रहे हैं. आदियोगी शिवा व्यक्तिगत रूप से इनके मन्नतों का संज्ञान लेने वाले हैं. किसी भी राजनेता के आध्यात्मिक यात्रा के पीछे का कारण राजनीतिक ही होता है. अपनी राजनीति को चमकाने के लिए भगवान के दर पर हाजिरी लगाना भारतीय राजनेताओं का पुराना फैशन रहा है. कुमारस्वामी और राहुल गांधी राजनीतिक समुद्र मंथन के दो खिलाड़ी मात्र हैं.

कंटेंट- विकास कुमार (इंटर्न- आईचौक) 

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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