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कर्नाटक में धोखाधड़ी की नई घड़ी!

    • अभिनव पंचोली
    • Updated: 02 मार्च, 2016 09:30 PM
  • 02 मार्च, 2016 09:30 PM
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हमारे राजनीतिज्ञ भले नीति से जुड़े मुद्दों और उनसे सरकारी खजाने को होने वाले नुकसान पर मतभेद रखें लेकिन जब मामला निजी स्तर पर हो रहे छोटे-छोटे भ्रष्टाचार का आता है तो आमतौर में उनमें एक आदर्श सहमति देखने को मिलती है.

हमारे देश में वोटर की सबसे खास विशेषता है कि वह अपने चुने हुए प्रतिनिधि से कोई उम्मीद नहीं रखता. नेताओं से धोखाधड़ी की उम्मीद रहते हुए भी उन्हें बर्दाश्त करने में दिख रही उनकी सहिष्णुता का भी जवाब नहीं है. शायद आम आदमी की यही जन्मजात विनम्रता ही हमारे नेताओं को कुछ जनसेवा करने के लिए बाध्य कर देती है और उन्हें बेइमानी करने से रोकती है.

हमारे राजनीतिज्ञ भले नीति से जुड़े मुद्दों और उनसे सरकारी खजाने को होने वाले नुकसान पर मतभेद रखें लेकिन जब मामला निजी स्तर पर हो रहे छोटे-छोटे भ्रष्टाचार का आता है तो आमतौर में उनमें एक आदर्श सहमति देखने को मिलती है. देश में विपक्ष, शाषक और जनता के बीच इस सहमति को उस वक्त धक्का लगा जब नेता विपक्ष ने कर्नाटक के चहेते मुख्यमंत्री पर कुछ संगीन आरोप मढ़ दिए.

नेता विपक्ष ने आरोप लगाया कि मुख्यमंत्री की कलाई की शोभा बढ़ा रही घड़ी की कीमत 50 लाख रुपये है. फिर नेता विपक्ष ने सवाल खड़ा किया कि क्या मुख्यमंत्री ने पूरी तरफ से अपने समाजवादी भूत से मुंह मोड़ लिया है और किसी राज्य के मुखिया के तौर पर अब उनकी गरिमा महज सामंती प्रवृत्तियों को दर्शाने से बढ़ेगी. मुख्यमंत्री ने नेता विपक्ष के आरोपों को मजाक में टालने की कोशिश करते हुए नेता विपक्ष को वह घड़ी महज 10 लाख रुपये में बेच देने का प्रस्ताव दे दिया. जाहिर है नेता विपक्ष को यह प्रस्ताव ठुकराना पड़ा क्योंकि उन्होंने दावा किया कि वह बिके हुए पुराने समानों में डील नहीं करते.

यह आरोप और प्रस्ताव का सिलसिला यहीं खत्म नहीं हुआ. नेता विपक्ष ने एक बार फिर मुख्यमंत्री को नायाब हीरों से जड़ी इस घड़ी हबलौट की सही कीमत बता दी. नेता विपक्ष ने दावा किया कि मुख्यमंत्री की कलाई पर बंधी घड़ी की कीमत 70 लाख रुपये है. इसके जवाब में पलटवार करते हुए मुख्यमंत्री ने ऐलान कर दिया कि चूंकि नेता विपक्ष चालबाज, झूठे और दगाबाज हैं उनकी बातों को तरजीह नहीं दी जानी चाहिए.

इन आरोपों की सफाई में अपनी स्थिति को और मजबूत करने के लिए मुख्यमंत्री ने यह भी घोषणा कर दी...

हमारे देश में वोटर की सबसे खास विशेषता है कि वह अपने चुने हुए प्रतिनिधि से कोई उम्मीद नहीं रखता. नेताओं से धोखाधड़ी की उम्मीद रहते हुए भी उन्हें बर्दाश्त करने में दिख रही उनकी सहिष्णुता का भी जवाब नहीं है. शायद आम आदमी की यही जन्मजात विनम्रता ही हमारे नेताओं को कुछ जनसेवा करने के लिए बाध्य कर देती है और उन्हें बेइमानी करने से रोकती है.

हमारे राजनीतिज्ञ भले नीति से जुड़े मुद्दों और उनसे सरकारी खजाने को होने वाले नुकसान पर मतभेद रखें लेकिन जब मामला निजी स्तर पर हो रहे छोटे-छोटे भ्रष्टाचार का आता है तो आमतौर में उनमें एक आदर्श सहमति देखने को मिलती है. देश में विपक्ष, शाषक और जनता के बीच इस सहमति को उस वक्त धक्का लगा जब नेता विपक्ष ने कर्नाटक के चहेते मुख्यमंत्री पर कुछ संगीन आरोप मढ़ दिए.

नेता विपक्ष ने आरोप लगाया कि मुख्यमंत्री की कलाई की शोभा बढ़ा रही घड़ी की कीमत 50 लाख रुपये है. फिर नेता विपक्ष ने सवाल खड़ा किया कि क्या मुख्यमंत्री ने पूरी तरफ से अपने समाजवादी भूत से मुंह मोड़ लिया है और किसी राज्य के मुखिया के तौर पर अब उनकी गरिमा महज सामंती प्रवृत्तियों को दर्शाने से बढ़ेगी. मुख्यमंत्री ने नेता विपक्ष के आरोपों को मजाक में टालने की कोशिश करते हुए नेता विपक्ष को वह घड़ी महज 10 लाख रुपये में बेच देने का प्रस्ताव दे दिया. जाहिर है नेता विपक्ष को यह प्रस्ताव ठुकराना पड़ा क्योंकि उन्होंने दावा किया कि वह बिके हुए पुराने समानों में डील नहीं करते.

यह आरोप और प्रस्ताव का सिलसिला यहीं खत्म नहीं हुआ. नेता विपक्ष ने एक बार फिर मुख्यमंत्री को नायाब हीरों से जड़ी इस घड़ी हबलौट की सही कीमत बता दी. नेता विपक्ष ने दावा किया कि मुख्यमंत्री की कलाई पर बंधी घड़ी की कीमत 70 लाख रुपये है. इसके जवाब में पलटवार करते हुए मुख्यमंत्री ने ऐलान कर दिया कि चूंकि नेता विपक्ष चालबाज, झूठे और दगाबाज हैं उनकी बातों को तरजीह नहीं दी जानी चाहिए.

इन आरोपों की सफाई में अपनी स्थिति को और मजबूत करने के लिए मुख्यमंत्री ने यह भी घोषणा कर दी दरअसल जिस घड़ी पर नेता विपक्ष सवाल उठा रहे हैं वह उनकों किसी से भेट में मिली है. इस सफाई पर नेता विपक्ष ने दूसरा सवाल दाग दिया कि क्या प्रदेश के चहेते मुख्यमंत्री ने इस घड़ी का जिक्र अपनी वार्षिक लोकआयुक्त रिपोर्ट और इंकम टैक्स रिटर्न में किया है. इसके साथ ही मुख्यमंत्री से यह खुलासा करने की अपील की गई कि राज्य के लोगों को बिना गुमराह किए बताएं कि वह घड़ी उन्हें भेंट में किससे मिली है.

इस अपील के एक हफ्ते बाद तक राजनीतिक पुलाव पकता रहा और मुख्यमंत्री ने बड़ा खुलासा किया कि यह घड़ी हबलौट उन्हें उनके एक दुबई में रहने वाले सर्जन मित्र में भेट में दिया था. मुख्यमंत्री ने यह भी वादा किया कि वह इस महंगी घड़ी के लिए कस्टम ड्यूटी का भुगतान कर देंगे. वहीं एक दूसरी विपक्षी पार्टी ने उसी समय एनफोर्समेंट निदेशालय को पूरे मामले की जांच करने के लिए चिट्ठी लिख दी. मुख्यमंत्री ने अपनी सफाई में बताया कि दुबई में रहने वाले डॉक्टर मित्र उनके बेहद करीबी हैं जिसके कारण इस निजी गिफ्ट को स्वीकार करने से वह मना नहीं कर सके. साथ ही यह भी बताया कि यह घड़ी जुलाई 2015 में ही उन्हें दी गई लिहाजा मौजूदा वर्ष के आईटी रिटर्न और लोकआयुक्त रिपोर्ट में वह इसका जिक्र करेंगे. मुख्यमंत्री ने यह इच्छा भी जाहिर की कि यह घड़ी राज्य की संपत्ति है और वह उसे कैबिनेट रूम में रखवाना चाहते हैं. अपनी इस सफाई से मुख्यमंत्री आश्वस्त थे कि उन्होंने अपना पक्ष मजबूती के साथ रखा है और अनौपचारिक तौर पर मान भी रहे थे कि पूरे मामले में उनके हाथों कुछ कानूनों की अनदेखी जरूर हुई है.

मुख्यमंत्री की इस सफाई के बाद मामला ठंडा होने लगा लेकिन फिर नेता विपक्ष ने मुख्यमंत्री की सफाई को सिर के बल खड़ा कर दिया और पूरी कहानी को एक नया एंगल दे दिया. नेता विपक्ष ने दावा किया कि मुख्यमंत्री की कलाई में बंधी हबलौट घड़ी दरअसल चोरी की है जिसे राज्य के एक बड़े पुलिस अधिकारी ने उन्हें भेंट में दिया है. नेता विपक्ष ने यह भी दावा किया राज्य की राजधानी में स्थित एक डॉक्टर के घर से तीन हबलौट घड़ी चोरी हुई थी और मुख्यमंत्री की कलाई में बंधी घड़ी भी उन तीन घड़ियों में से एक है. इन नए आरोपों के बाद तथाकथित डॉक्टर 24 घंटों के लिए कहीं गायब हो गया और फिर सबके सामने आकर उसने कबूल किया कि पिछले साल उसके घर से तीन हबलौट घड़ियां चोरी हुई थी. इस डॉक्टर ने यह भी दावा किया कि जिस घड़ी पर राजनीति हो रही है वह उसकी नहीं है हालांकि चोरी हुई तीन घड़ियों में एक घड़ी टीक उसी मॉडल की थी.

नेता विपक्ष अब पूरे मामले की सीबीआई से जांच कराने की मांग कर रहे हैं. वहीं विवाद में बुरी तरह घिर जाने के बाद मुख्यमंत्री दलील दे रहे हैं कि पिछड़ी जाति का होने के कारण वे विपक्ष का आंख की किरकिरी बन रहे हैं.

इस राजनीतिक ड्रामे की गुत्थी इतनी आसानी से नहीं सुलझने वाली है. मुख्यमंत्री के घड़ी की हकीकत पर से पर्दा शायद कभी नहीं उठेगा और शायद इस मामले की पूरी जांच नहीं की जाएगी. लेकिन इतना साफ है कि इस मामले ने राजनीतिक विद्वेश को और भी गहरा कर दिया है जिससे कई कानूनी और नैतिक सवाल उठ रहे हैं. हालांकि इन सवालों के जवाब मिलने की उम्मीद भी नहीं है. मेरे जैसा आम आदमी की रुचि यह जानने में ज्यादा रहेगी कि आखिर क्यों कोई किसी को इतनी महंगी भेंट देगा या फिर कोई क्यों इतनी महंगी घड़ियों को खरीदता ही है.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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