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कारगिल विजय दिवस: क्या हमने 20 वर्षों में कोई सबक नहीं सीखा?

    • प्रवीण शेखर
    • Updated: 26 जुलाई, 2019 09:37 PM
  • 26 जुलाई, 2019 09:35 PM
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कारगिल पर हमला हुए 20 साल हो चुके हैं और इन 20 सालों में ऐसे बहुत से सबक हैं जो हमें इसलिए भी सीखने चाहिए क्योंकि यदि हमारी सरकार उन सबकों पर ध्यान देती है तो उसका सीधा फायदा हमारी सेना को होगा और वो मजबूत बनेगी.

आज देश कारगिल विजय दिवस की बीसवीं सालगिरह मना रहा है. 20 साल पहले कारगिल की चोटी पर पाकिस्तान को परास्त कर हमारे वीर जवानों ने करगिल की पहाड़ियों पर तिरंगा लहराया था. 1999 में दुश्मन देश को धूल चटाकर अपने प्राण न्योछावर करने वाले वीर शहीदों की याद में देश विजय दिवस मना रहा है.

कुछ बातें कारगिल युद्ध के बारे में

3 मई 1999 को एक चरवाहे ने भारतीय सेना को कारगिल में पाकिस्तान सेना के घुसपैठ कर कब्जा जमा लेने की सूचना दी थी. तब कारगिल सेक्टर की पहाड़ियों में संघर्ष हुआ. भारत ने एलओसी (LoC ) से पाकिस्‍तानी सैनिकों को खदेड़ने के लिए कारगिल सेक्टर में ऑपरेशन विजय (Operation Vijay) अभियान चलाया था. 26 जुलाई को भारत ने कारगिल युद्ध में जीत हासिल की थी. यह युद्ध 18 हजार फीट की ऊंचाई पर लड़ा गया था.

कारगिल में हुए हमले के 20 साल बाद भी ऐसा बहुत कुछ है जिसे हम अपनी सेना में लागू नहीं कर पाए हैं

लगभग तीन महीने के 'ऑपरेशन विजय' में भारत के 527 जवान शहीद और 1363 जवान घायल हुए. वहीं भारतीय सेना ने पाकिस्तान के 3 हजार सैनिकों को मार गिराया था. कारगिल युद्ध के समय अटल बिहारी वाजपेयी देश के प्रधानमंत्री थे. कारगिल युद्ध की जीत की घोषणा तत्कालीन पीएम अटल बिहारी वाजेपयी ने 14 जुलाई को की थी, लेकिन आधिकारिक तौर पर 26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस की घोषणा की गई थी. भारतीय सेना प्रमुख वेद प्रकाश मालिक थे.

भारतीय सेना की विफलताएं (कारगिल रिव्यू कमेटी रिपोर्ट)

कारगिल युद्ध समाप्त होने के तुरंत बाद, तत्कालीन अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने कारगिल घुसपैठ के विभिन्न पहलुओं पर गौर करने के लिए के सुब्रह्मण्यम की अध्यक्षता में कारगिल रिव्यू कमेटी (KRV) गठित की थी. इस समिति के तीन अन्य सदस्य लेफ्टिनेंट जनरल (retd)...

आज देश कारगिल विजय दिवस की बीसवीं सालगिरह मना रहा है. 20 साल पहले कारगिल की चोटी पर पाकिस्तान को परास्त कर हमारे वीर जवानों ने करगिल की पहाड़ियों पर तिरंगा लहराया था. 1999 में दुश्मन देश को धूल चटाकर अपने प्राण न्योछावर करने वाले वीर शहीदों की याद में देश विजय दिवस मना रहा है.

कुछ बातें कारगिल युद्ध के बारे में

3 मई 1999 को एक चरवाहे ने भारतीय सेना को कारगिल में पाकिस्तान सेना के घुसपैठ कर कब्जा जमा लेने की सूचना दी थी. तब कारगिल सेक्टर की पहाड़ियों में संघर्ष हुआ. भारत ने एलओसी (LoC ) से पाकिस्‍तानी सैनिकों को खदेड़ने के लिए कारगिल सेक्टर में ऑपरेशन विजय (Operation Vijay) अभियान चलाया था. 26 जुलाई को भारत ने कारगिल युद्ध में जीत हासिल की थी. यह युद्ध 18 हजार फीट की ऊंचाई पर लड़ा गया था.

कारगिल में हुए हमले के 20 साल बाद भी ऐसा बहुत कुछ है जिसे हम अपनी सेना में लागू नहीं कर पाए हैं

लगभग तीन महीने के 'ऑपरेशन विजय' में भारत के 527 जवान शहीद और 1363 जवान घायल हुए. वहीं भारतीय सेना ने पाकिस्तान के 3 हजार सैनिकों को मार गिराया था. कारगिल युद्ध के समय अटल बिहारी वाजपेयी देश के प्रधानमंत्री थे. कारगिल युद्ध की जीत की घोषणा तत्कालीन पीएम अटल बिहारी वाजेपयी ने 14 जुलाई को की थी, लेकिन आधिकारिक तौर पर 26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस की घोषणा की गई थी. भारतीय सेना प्रमुख वेद प्रकाश मालिक थे.

भारतीय सेना की विफलताएं (कारगिल रिव्यू कमेटी रिपोर्ट)

कारगिल युद्ध समाप्त होने के तुरंत बाद, तत्कालीन अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने कारगिल घुसपैठ के विभिन्न पहलुओं पर गौर करने के लिए के सुब्रह्मण्यम की अध्यक्षता में कारगिल रिव्यू कमेटी (KRV) गठित की थी. इस समिति के तीन अन्य सदस्य लेफ्टिनेंट जनरल (retd) के.के. हजारी, बीजी वर्गीज और सतीश चंद्र, सचिव, राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सचिवालय (NSCS) थे.

कारगिल रिव्यू (KRV) कमेटी रिपोर्ट

समिति ने अपनी रिपोर्ट में इस बात को बड़ी ही प्रमुखता से बल दिया कि -

1- देश की सुरक्षा प्रबंधन प्रणाली में गंभीर कमियों के कारण कारगिल संकट पैदा हुआ.

2- रिपोर्ट ने खुफिया तंत्र और संसाधनों और समन्वय की कमी को जिम्मेदार ठहराया.

3- इसने पाकिस्तानी सेना के गतिविधियों का पता लगाने में विफल रहने के लिए RAW को दोषी ठहराया.

4- रिपोर्ट ने “एक युवा और फिट सेना” की आवश्यकता पर भी प्रकाश डाला था.

क्या 20 साल बाद भारतीय सेना को कारगिल युद्ध से सीख मिली है?

KRV समिति रिपोर्ट को लागू करना भारतीय सेना के लिए बेहद फायदेमंद साबित हुआ. KRV रिपोर्ट के पेश किए जाने के कुछ महीनों बाद राष्ट्रीय सुरक्षा पर मंत्रियों का समूह (GoM) का गठन किया गया जिसने खुफिया तंत्र को मजबूत करने की आवश्यकता पर सहमति जतायी थी. सेना के पूर्व अधिकारियों ने कहा कि कारगिल सेक्टर में 1999 तक बहुत कम सेना के जवान थे, लेकिन युद्ध के बाद, बहुत कुछ बदल गया. ब्रिगेडियर (रिटायर्ड) कुशकल ठाकुर, जो 18 ग्रेनेडियर्स के कमांडिंग ऑफिसर थे. साथ ही जो टॉलोलिंग और टाइगर हिल पर कब्जा करने में शामिल थे, ने भी कहा कि, 'कारगिल में पाकिस्तानी घुसपैठ के पीछे खुफिया विफलता मुख्य कारण थी. लेकिन पिछले 20 वर्षों में, बहुत कुछ बदल गया है. हमारे पास अब बेहतर हथियार, टेक्नोलॉजी, खुफिया तंत्र हैं जिससे भविष्य में कारगिल-2संभव नहीं है.

लेफ्टिनेंट जनरल (रिटायर्ड) अमर औल, जो ब्रिगेड कमांडर के रूप में टॉलोलिंग और टाइगर हिल पर फिर से कब्जा करने के अभियानों में शामिल थे, ने कहा कि, जी हां, हमने अपने सबक सीखे. हमारे पास 1999 में कारगिल में LoC की रक्षा के लिए एक बटालियन थी. आज हमारे पास कारगिल LoC की रक्षा के लिए एक डिवीजन के कमांड के तहत तीन ब्रिगेड हैं.

KRV रिपोर्ट ने एक युवा और फिट सेना का जिक्र किया था. आज हमारी सेना में पहले की तुलना में कमांडिंग यूनिट जवान (30 वर्ष) अधिकारी हैं. यह एक बहुत महत्वपूर्ण परिवर्तन है. 2002 में डिफेंस इंटेलिजेंस एजेंसी और 2004 में राष्ट्रीय तकनीकी अनुसंधान संगठन (NTRO) का निर्माण, कवर रिपोर्ट के कुछ प्रमुख परिणाम थे. लेकिन कुछ महत्वपूर्ण सिफारिशें, जैसे कि चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) का पद बनाना अधूरा रह गया है. चिंताजनक यह है कि इस विषय पर कई सरकारें राजनीतिक सहमति बनाने में विफल रहीं.

KVR रिपोर्ट ने काउंटर-इंसर्जेन्सी में सेना की भूमिका को कम करने की भी सिफारिश की थी, लेकिन इसे अभी तक लागू नहीं किया गया है. 1999-2001 में सरकार द्वारा संसाधित फास्ट-ट्रैक अधिग्रहण को कभी भी दोहराया नहीं गया और भारतीय सैनिकों ने अभी तक उन्हीं राइफलों से लड़ाई लड़ी जिसके साथ उन्होंने 1999 में लड़ी थी. इसलिए कारगिल युद्ध की 20 वीं सालगिरह का जश्न मनाने का सबसे अच्छा तरीका होगा की KRV और GoM रिपोर्ट की समीक्षा करके लंबे समय से लंबित राष्ट्रीय सुरक्षा सुधारों को पूरा किया जाए. विशेष रूप से चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ की नियुक्ति, फास्ट-ट्रैक रक्षा सुधार और उनके समय पर कार्यान्वयन किये जाएं. हमे ये नहीं भूलना चाहिए कि बालाकोट के बाद, पाकिस्तान को ठीक करना भारत के सामने अब भी एक बहुत बड़ी चुनौती है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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