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कमलनाथ ने अहमद पटेल बनने के रिहर्सल का मौका तो ठीक ही चुना है!

    • आईचौक
    • Updated: 18 दिसम्बर, 2020 08:15 PM
  • 18 दिसम्बर, 2020 08:15 PM
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कमलनाथ (Kamal Nath) ने अहमद पटेल की जगह लेने की रेस में आगे होने के लिए बेहतरीन मौका खोजा है - सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) से G-23 नेताओं की मुलाकात कराने के साथ ही वो राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के रास्ते के रोड़े हटा रहे हैं.

कमलनाथ (Kamal Nath) ने छिंदवाड़ा में लोगों के सामने एक शिगूफा छोड़ा था - संन्यास लेने जैसा. शर्त भी रख दी, अगर छिंदवाड़ा के लोग चाहें. वे लोग जो नौ बार वोट देकर उनको लोक सभा पहुंचाये और उनके बाद उनके बेटे नकुलनाथ को भी जिता दिया. वो भी तब जब मोदी लहर की आंच में कांग्रेस के टिकट पर ज्योतिरादित्य सिंधिया भी झुलस गये और अपने गढ़ में चुनाव हारने वाले पहले सिंधिया बने.

असल बात तो ये रही कि कमलनाथ मध्य प्रदेश में अब तक डेप्युटेशन पर रहे और जब उनके दिल्ली लौटने का रास्ता खुल गया तो संन्यास लेने और आराम करने का मूड होने जैसी बातें करने लगे. वरना, मुख्यमंत्री होने के साथ साथ वो मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष पद छोड़ने तक को तैयार न थे.

कोरोना वायरस के चलते देश में लॉकडाउन लागू होने से पहले कमलनाथ ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देते वक्त कहा था - आज के बाद कल आता है और कल के परसों भी आता है. कमलनाथ के बयान के कई तरीके से राजनीतिक मतलब निकाले गये थे, लेकिन उपचुनावों में कोई कमाल नहीं दिखा पाये, लिहाजा वो 'कल' तो आया नहीं, शायद इसीलिए अब 'परसों' की तैयारी में लग गये हैं.

कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) के बरसों राजनीतिक सचिव रहे अहमद पटेल के निधन के बाद पार्टी को शिद्दत से उनके उत्तराधिकारी की तलाश है. जब अहमद पटेल के बाद कांग्रेस का कोषाध्यक्ष बनाये जाने की बात चली, तो भी कमलनाथ का नाम संभावित लिस्ट में आया था, लेकिन फिर पवन कुमार बंसल की कुछ खासियतों के चलते फिलहाल उनको अंतरिम कोषाध्यक्ष बना दिया गया. मतलब, कमलनाथ के सामने अब भी खुला मैदान है और वो चाहें तो मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री की कुर्सी की ही तरह अपने राजनीतिक प्रतिद्वंदियों को पछाड़ कर अहमद पटेल की जगह ले सकते हैं.

सुनने में आया है कि सोनिया गांधी और कांग्रेस नेताओं की मीटिंग के अघोषित संयोजक कमलनाथ ही हैं - और ये मीटिंग ही कमलनाथ के आगे का राजनीतिक भविष्य तय करने वाली है. सोनिया गांधी ने मीटिंग के दौरान राहुल गांधी (Rahul Gandhi)...

कमलनाथ (Kamal Nath) ने छिंदवाड़ा में लोगों के सामने एक शिगूफा छोड़ा था - संन्यास लेने जैसा. शर्त भी रख दी, अगर छिंदवाड़ा के लोग चाहें. वे लोग जो नौ बार वोट देकर उनको लोक सभा पहुंचाये और उनके बाद उनके बेटे नकुलनाथ को भी जिता दिया. वो भी तब जब मोदी लहर की आंच में कांग्रेस के टिकट पर ज्योतिरादित्य सिंधिया भी झुलस गये और अपने गढ़ में चुनाव हारने वाले पहले सिंधिया बने.

असल बात तो ये रही कि कमलनाथ मध्य प्रदेश में अब तक डेप्युटेशन पर रहे और जब उनके दिल्ली लौटने का रास्ता खुल गया तो संन्यास लेने और आराम करने का मूड होने जैसी बातें करने लगे. वरना, मुख्यमंत्री होने के साथ साथ वो मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष पद छोड़ने तक को तैयार न थे.

कोरोना वायरस के चलते देश में लॉकडाउन लागू होने से पहले कमलनाथ ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देते वक्त कहा था - आज के बाद कल आता है और कल के परसों भी आता है. कमलनाथ के बयान के कई तरीके से राजनीतिक मतलब निकाले गये थे, लेकिन उपचुनावों में कोई कमाल नहीं दिखा पाये, लिहाजा वो 'कल' तो आया नहीं, शायद इसीलिए अब 'परसों' की तैयारी में लग गये हैं.

कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) के बरसों राजनीतिक सचिव रहे अहमद पटेल के निधन के बाद पार्टी को शिद्दत से उनके उत्तराधिकारी की तलाश है. जब अहमद पटेल के बाद कांग्रेस का कोषाध्यक्ष बनाये जाने की बात चली, तो भी कमलनाथ का नाम संभावित लिस्ट में आया था, लेकिन फिर पवन कुमार बंसल की कुछ खासियतों के चलते फिलहाल उनको अंतरिम कोषाध्यक्ष बना दिया गया. मतलब, कमलनाथ के सामने अब भी खुला मैदान है और वो चाहें तो मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री की कुर्सी की ही तरह अपने राजनीतिक प्रतिद्वंदियों को पछाड़ कर अहमद पटेल की जगह ले सकते हैं.

सुनने में आया है कि सोनिया गांधी और कांग्रेस नेताओं की मीटिंग के अघोषित संयोजक कमलनाथ ही हैं - और ये मीटिंग ही कमलनाथ के आगे का राजनीतिक भविष्य तय करने वाली है. सोनिया गांधी ने मीटिंग के दौरान राहुल गांधी (Rahul Gandhi) को लेकर कमलनाथ को एक बहुत ही मुश्किल टास्क दे रखा है.

कमलनाथ की ये पहल कम से कम इस हिसाब से तो ठीक ही लगती है कि इसी बहाने अहमद पटेल की जगह लेने की कोशिशों में ये मीटिंग रिहर्सल का मौका मुहैया करा रही है - और बाकी सब ठीक रहा, फिर तो कमलनाथ की बल्ले बल्ले ही है.

सोनिया गांधी और 23 नेताओं की पहली मीटिंग

सोनिया गांधी और कांग्रेस नेताओं की एक अति महत्वपूर्ण बैठक ऐसे वक्त बुलायी गयी है, जब कुछ बातें पहले से तय और निश्चित हैं - एक, कांग्रेस के लिए नये अध्यक्ष का चुनाव, दो, सोनिया गांधी का यूपीए चेयरपर्सन पद भी छोड़ना - और तीन, यूपीए के लिए नये चेयरमैन का चुनाव. हाल ही में यूपीए के नये चेयरमैन को लेकर शरद पवार का नाम उछला था जो एनसीपी के इंकार और शिवसेना प्रवक्ता संजय राउत के सस्पेंस खड़ा करने के बीच गायब भी हो गया.

कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के करीब हफ्ता भर गोवा में बिताने के बाद दिल्ली लौटने पर ये मीटिंग बुलायी गयी है. दिल्ली में प्रदूषण के चलते डॉक्टरों ने सोनिया गांधी को कुछ दिन के लिए कहीं बाहर जाने की सलाह दी थी. जाने से पहले सोनिया गांधी ने कांग्रेस में कामकाज को सुचारू बनाने के लिए कुछ कमेटियां भी बनायी थीं जिनमें चिट्ठी लिखने वाले G-23 नेताओं को भी जगह दी गयी थी - और अब होने जा रही मीटिंग में करीब आधा दर्जन ऐसे नेताओं के शामिल होने की भी संभावाना जतायी जा रही है.

सोनिया गांधी के दिल्ली लौटने के बाद कमलनाथ दो बार उनसे मिल चुके हैं - और राहुल गांधी की नये सिरे से संभावित ताजपोशी से पहले रास्ते की अड़चनों को दूर करने का दावा करते हुए कुछ करने की पहल की है. सुना है सोनिया गांधी से मुलाकात के बाद कमलनाथ कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी से भी मिल चुके हैं.

सोनिया गांधी को लगने लगा है कि जिस तरीके से G-23 नेता सक्रिय हैं, कहीं ऐसा न हो राहुल गांधी के अध्यक्ष चुनाव के दौरान जितेंद्र प्रसाद जैसा वाकया न हो जाये. सोनिया गांधी के अध्यक्ष बनने पर जब आम सहमति बनाने की कोशिश की जा रही थी तो जितेंद्र प्रसाद ने बगावत कर चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी थी.

कमलनाथ को सोनिया गांधी का भरोसा जीतने के साथ ही कांग्रेस के बागियों की उम्मीद भी बनने की चुनौती है

अगर जितेंद्र प्रसाद जैसा विरोधी रुख अपनाते हुए किसी ने राहुल गांधी को चैलेंज किया तो नयी मुसीबत खड़ी हो जाएगी. ध्यान रहे जब जितेंद्र प्रसाद ने चैलेंज किया था, सोनिया गांधी के पक्ष में सारे कांग्रेसी खड़े हो गये थे और वो अकेले पड़ गये. ऐसा ही तब भी हुआ था जब शरद पवार के साथ कुछ नेताओें ने सोनिया गांधी के विदेशी मूल के होने को मुद्दा बनाकर बगावत कर डाली थी - तब भी सोनिया गांधी का जादू चला और विरोध आसानी से दब गया.

मौजूदा माहौल काफी अलग है. सोनिया गांधी को लेकर तो कांग्रेस में अब भी कोई ऐसी वैसी बात नहीं है, लेकिन राहुल गांधी के नाम पर आम सहमति नहीं है. ये सही है कि राहुल गांधी के नाम पर कांग्रेस में खासी एकजुटता है, लेकिन सच तो ये भी है कि वो आम सहमति जैसी तो कतई नहीं है.

हाल फिलहाल, G-23 के चिट्ठी लिखने वाले नेताओं को काफी सक्रिय देखा गया है. बिहार चुनाव के बाद कुछ सीनियर नेताओं के बीच कई दौर की मीटिंग हुई है. गुलाम नबी आजाद G-23 के सर्वमान्य नेता बने हुए हैं और कपिल सिब्बल झंडा लेकर आगे आगे चल रहे हैं. ऐसे कुछ नेताओं और कमलनाथ के बीच भी, बताते हैं, संवाद हुआ था - और फिर सोनिया गांधी से मुलाकात में कमलनाथ ने असंतुष्ट नेताओं का संदेश भी पहुंचाने की कोशिश की. कमलनाथ ने अपनी तरफ से ऐसे नेताओं को बुलाकर उनकी बात सुनने की सोनिया गांधी को सलाह दी तो वो तैयार हो गयीं.

कमलनाथ की वफादारी पर सोनिया गांधी को अहमद पटेल जैसा भरोसा भले न हो, लेकिन मौजूदा दौर में उनकी नजर में जो भी ऐसे नेता होंगे उनमें कम भी नहीं है. लगता है यही सब सोच कर सोनिया गांधी ने कमलनाथ के सामने उनको नये संकटमोचक की भूमिका में आने और कुछ ठोस नतीजे हासिल करने का काम सौंपा है - और इन कामों में सबसे ज्यादा अहम है राहुल गांधी के रास्ते की बाधाओं को खत्म करना.

राहुल गांधी के राजनीतिक राह की बाधायें भी बला की तरह हैं जो बगैर बताये किसी भी तरफ से आ धमकती हैं. कभी अमेरिका से बराक ओबामा किताब लिख कर उनकी कमजोरियां बताने लगते हैं तो कभी महाराष्ट्र की गठबंधन सरकार में हिस्सेदार एनसीपी नेता शरद पवार निरंतरता की कमी बताने लगते हैं. बड़ी मुश्किल ये नहीं है कि राजनीतिक विरोधी बीजेपी नेता ऐसी बातों को लेकर हमलावर हो जाते हैं, मुश्किल ये है कि कांग्रेस के भीतर ही राहुल गांधी को नाकाबिल मानने वाले नेता भी ऐसी बातों को खूब हवा देते हैं.

कमलनाथ को ऐसी ही मुश्किलों का हल निकाल कर कांग्रेस नेतृत्व के दिल और दल में भी बराबर मजबूत जगह बनाने की चुनौती है - और यही वजह है कि सोनिया गांधी और कांग्रेस नेताओं की इस मीटिंग को मनमाफिक नतीजे पर ले जाना भी कमलनाथ के लिए तलवार की धार पर चलने जैसा ही है.

ये कमलनाथ का इम्तिहान है

कमलनाथ के लिए कांग्रेस में अब तक की राजनीति स्कूल टाइम जैसी ही रही है - ये पहला मौका लगता है जब उनको इम्तिहान देकर कुछ हासिल करना पड़ रहा है. कमलनाथ, इंदिरा गांधी के छोटे बेटे संजय गांधी के साथ पढ़े हुए हैं और वही दोस्ती अब तक कांग्रेस में उनकी राजनीति को कायम रखे हुए है. इंदिरा गांधी उनको तीसरे बेटे की तरह मानती थीं - और वो रिश्ता राजीव गांधी से होते हुए सोनिया गांधी के जमाने तक चला आ रहा है. हालांकि, आगे का सफर तय करने के लिए कमलनाथ को साबित करना है कि वो अहमद पटेल जैसे तो नहीं लेकिन बाकियों से बेहतर संकटमोचक बन सकते हैं - और यही उनके लिए सबसे बड़ा इम्तिहान है.

कमलनाथ को अहमद पटेल जैसे नेता का उत्तराधिकारी बनना है जो गांधी परिवार के मौजूदा तीनों शक्ति केंद्रों सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा को कभी भी उनके मोबाइल का नंबर डायल करने के मैंडेट हासिल किये हुए था. जो तीनों गांधियों - इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और सोनिया गांधी के साथ तब भी बेहद करीबी बना रहा जब कांग्रेस का केंद्र की सत्ता पर कब्जा रहा.

मगर, कुदरत के कुछ नियम ऐसे होते हैं कि कभी भी मंजिल की कोई राह आसान नहीं होती. कमलनाथ के लिए मुश्किल वाली बात ये है कि सोनिया गांधी से कांग्रेस नेताओं की मुलाकात के लिए जो मीटिंग बुलायी गयी है उसमें राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भी पहुंच रहे हैं - जब दोनों नेताओं के मुख्यमंत्री बनने की राह में युवा नेताओं की चुनौती आयी तो दोनों ही गांधी परिवार के करीबी होने का फायदा उठाते हुए अपनी अपनी बात मनवा ली - तब क्या होगा जब दोनों इस रेस में जुट जायें? राजनीति की जिस पगडंडी से फिलहाल कमलनाथ गुजर रहे हैं, अशोक गहलोत भी उसी पर आगे बढ़ रहे हैं. कमलनाथ ने तो अपने बेटे को छिंदवाड़ा में स्थापित भी कर दिया, अशोक गहलोत का बेटा तो चुनाव भी हार गया और सचिन पायलट से झगड़ा थमने के बाद रैलियों और दूसरे कार्यक्रमों से फिर से कदम खींचने को मजबूर होना पड़ा.

अशोक गहलोत जानते हैं कि मुख्यमंत्री की कुर्सी तभी तक बरकरार है, जब तक बीजेपी नेतृत्व की नजर टेढ़ी नहीं हो रही है. वरना, पहले तो ऐसे मामलों में अमित शाह की ही दिलचस्पी समझी जाती रही, लेकिन अब तो बीजेपी महासचिव के भाषण में ये भी सुना गया कि कमलनाथ सरकार गिराने में सबसे बड़ा रोल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का रहा - हालांकि, इतनी बड़ी जानकारी देने के बाद कैलाश विजयवर्गीय ने ये भी बोल दिया है कि वो तो बस हंसी मजाक कर रहे थे. कितनी अजीब बात है - ऐसी गंभीर और खतरनाक बातें भी सियासी मजाक में आसानी से पिरो दी जाती हैं.

राहुल गांधी ने भी जब कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी पर गांधी परिवार से अलग किसी नेता को बिठाने की जिद छोड़ दी है, तो भी उनके रास्ते में चुनौतियों का नया अंबार खड़ा हो गया है - अब कमलनाथ को राहुल गांधी को लेकर कांग्रेस में सर्व सम्मति बनाने के साथ साथ, G-23 नेताओं को भी भरोसा नहीं तक कम से कम तार्किक दिलासा दिलाने की जिम्मेदारी है कि उनकी बात सुनी जा रही है. चाहे चिट्ठी के जरिये या बयानबाजी करके जो भी चिंतायें ऐसे नेताओं ने जाहिर की है, चार महीने बाद ही सही - कांग्रेस नेतृत्व उन पर बात करने और उस दिशा में कुछ करने को राजी हो चुका है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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