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सोनिया गांधी का पुत्र मोह ही है ज्योतिरादित्य के इस्तीफे का कारण!

    • श्यामवीर सिंह झझोरिया
    • Updated: 11 मार्च, 2020 04:15 PM
  • 11 मार्च, 2020 04:15 PM
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मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) से ज्योतिरादित्य सिंधिया (Jyotiraditya Scindia) के जाने के बाद ये साबित हो गया है कि कांग्रेस (Congress) का सूरज धीरे धीरे कसके अस्त हो रहा है. पार्टी की इस बुरी हालत की जिम्मेदार सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) हैं जो व्यर्थ में राहुल गांधी (Rahul Gandhi) से उम्मीद लगाए बैठी हैं कि वो पार्टी को आगे ले जाएंगे.

गुरु द्रोणाचार्य का अश्वत्थामा के प्रति पुत्र मोह अंत में विनाशकारी सिद्ध हुआ. जबकि अर्जुन एक कुशल योद्धा साबित हुए, बावजूद इसके कि गुरु द्रोण ने शिक्षा देते समय अपने बेटे के लिए चालाकियां की थीं. एक बार द्रोण ने शिष्यों को नदी से घड़ा भरकर लाने को कहा और जल्दी आने वाले को पुरूस्कार देने का कहा. द्रोण ने अपने पुत्र अश्वत्थामा को छोटा घड़ा दिया ताकि वह उसको भरकर जल्दी आ सके. लेकिन अपनी काबिलियत के बल पर अर्जुन जल्दी लौट आया. ऐसा ही कुछ ब्रह्मास्त्र को चलाने की शिक्षा देते समय हुए. अश्वत्थामा ने ब्रह्मास्त्र चलाने की शिक्षा पूरी तरह मन से नहीं ली और सोचा कि पिता से बाद में ले लूंगा लेकिन अर्जुन ने ब्रह्मास्त्र चलाने की शिक्षा पूरे मन से ली. चक्रव्यूह रचने और निकलने की शिक्षा के मामले में भी द्रोण का पुत्र मोह उसके बेटे के लिए घातक सिद्ध हुआ. पिछले लगभग एक दशक से आधुनिक भारत की राजनीति में हम एक और ऐसा उदाहरण देखते हैं सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) और राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के रूप में. पिछले दस साल के अनुभव से यह ज्ञात हो चुका है कि राहुल गांधी राजनीति के लिए नहीं बने हैं. वो आजकल की राजनीति में फिट नहीं बैठते. चूंकि वो गांधी परिवार (Gandhi Family) के इकलौते बीज हैं जिन्हें भारतीय राजनीति में वृक्ष बनाए जाने की कोशिश की जा रही है जबकि वो बार - बार ये संदेश देते रहें हैं कि वो ऐसा बन पाने में सक्षम नहीं है.

कांग्रेस की वर्तमान स्थिति की सबसे बड़ी जिम्मेदार और कोई नहीं बल्कि सोनिया गांधी हैं

राहुल को हिंदी से ज्यादा इंग्लिश आती है. भारतीय संस्कृति से ज्यादा वो अंग्रेज दिखते हैं. जितना उन्होंने विदेश घूमा है उतना अपना भारत नहीं घूमा. जितनी किताबें उन्होंने इंग्लिश में पढ़ी हैं उतनी हिंदी में नहीं. जितने भी लोग उनके इर्द-...

गुरु द्रोणाचार्य का अश्वत्थामा के प्रति पुत्र मोह अंत में विनाशकारी सिद्ध हुआ. जबकि अर्जुन एक कुशल योद्धा साबित हुए, बावजूद इसके कि गुरु द्रोण ने शिक्षा देते समय अपने बेटे के लिए चालाकियां की थीं. एक बार द्रोण ने शिष्यों को नदी से घड़ा भरकर लाने को कहा और जल्दी आने वाले को पुरूस्कार देने का कहा. द्रोण ने अपने पुत्र अश्वत्थामा को छोटा घड़ा दिया ताकि वह उसको भरकर जल्दी आ सके. लेकिन अपनी काबिलियत के बल पर अर्जुन जल्दी लौट आया. ऐसा ही कुछ ब्रह्मास्त्र को चलाने की शिक्षा देते समय हुए. अश्वत्थामा ने ब्रह्मास्त्र चलाने की शिक्षा पूरी तरह मन से नहीं ली और सोचा कि पिता से बाद में ले लूंगा लेकिन अर्जुन ने ब्रह्मास्त्र चलाने की शिक्षा पूरे मन से ली. चक्रव्यूह रचने और निकलने की शिक्षा के मामले में भी द्रोण का पुत्र मोह उसके बेटे के लिए घातक सिद्ध हुआ. पिछले लगभग एक दशक से आधुनिक भारत की राजनीति में हम एक और ऐसा उदाहरण देखते हैं सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) और राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के रूप में. पिछले दस साल के अनुभव से यह ज्ञात हो चुका है कि राहुल गांधी राजनीति के लिए नहीं बने हैं. वो आजकल की राजनीति में फिट नहीं बैठते. चूंकि वो गांधी परिवार (Gandhi Family) के इकलौते बीज हैं जिन्हें भारतीय राजनीति में वृक्ष बनाए जाने की कोशिश की जा रही है जबकि वो बार - बार ये संदेश देते रहें हैं कि वो ऐसा बन पाने में सक्षम नहीं है.

कांग्रेस की वर्तमान स्थिति की सबसे बड़ी जिम्मेदार और कोई नहीं बल्कि सोनिया गांधी हैं

राहुल को हिंदी से ज्यादा इंग्लिश आती है. भारतीय संस्कृति से ज्यादा वो अंग्रेज दिखते हैं. जितना उन्होंने विदेश घूमा है उतना अपना भारत नहीं घूमा. जितनी किताबें उन्होंने इंग्लिश में पढ़ी हैं उतनी हिंदी में नहीं. जितने भी लोग उनके इर्द- गिर्द रहते हैं वो भी ज़मीनी कम हैं. एलीट लोगों का जाल उनके इर्द- गिर्द है जो उन्हें धक्के खाने नहीं देते. सड़क पर नहीं आने देते. जेल जाने, डंडे खाने और लोट-पोट हो जाने की सारी संभावनाओं को खत्म करते हैं. ऐसा जब तक नहीं होगा तब तक वे भारतीय आम जानता के दिल में नहीं उतर पाएंगे.

अब ऐसा बिलकुल नहीं हो सकता कि वो नेहरू, इंदिरा गांधी और अपने पिता राजीव गांधी के नाम पर लोगों को जोड़ पाएं. क्योंकि अब नई पीढ़ी भारत की राजनीति में आ चुकी है और आज़ादी एवं स्वतंत्रता के समय जन्मे लोगों का दौर जा चुका है. वे लोग गांधी परिवार से जुड़े लोग थे. लेकिन अब नया वोट बैंक है जो आपकी योग्यता और आपका काम देखता है और काम के नाम पर राहुल के पास क्या है? कुछ भी नहीं. उनके पास है बस 'गांधी' का सरनेम, जो अब नहीं चल सकता.

आज नया वोटर और राजनीति के जानकार कहते हैं कि राहुल के बजाय प्रियंका गांधी में स्पार्क ज्यादा है, जो लोगों को आकर्षित करता है. जानकारी ज्यादा है. लोगों को खींचने का हुनर भी है. संवाद क्षमता राहुल की अपेक्षा कहीं ज्यादा है. वो बोलती हैं तो नजर नहीं हटती, न ही वो फम्बल करती हैं. हाज़िर जवाबी भी हैं. और अन्य नेताओं द्वारा दिए गए स्टेटमेंट्स का मुंहतोड़ जबाव भी देती हैं. लेकिन सोनिया गांधी पुत्र मोह में उलझी हैं तो बहन प्रियंका, भाई को आगे करना चाहती हैं. प्रियंका गांधी अपने भाई का कैरियर खराब नहीं करना चाहती हैं. सबकी मांग के खिलाफ जाकर प्रियंका गांधी, राहुल गांधी के पीछे ही रहती हैं. चाहती हैं कि भाई ही भारत की राजनीति में आगे बढ़े.

भाई राहुल को आगे करने के लिए प्रियंका जोकि उनसे काबिल हैं कई मौकों पर पीछे हो चुकी हैं

लेकिन सोनिया गांधी का पुत्र मोह और बहन प्रियंका का अपने आप को पीछे रखना उन लोगों के लिए रास्ता तैयार कर रहा है जिन लोगों को भारतीय राजनीति में पीछे रहना चाहिए था. विपक्ष में एक मजबूत नेता का न होना, कमजोर विपक्ष को मजबूत बनाता जा रहा है. दिल्ली का हाल का चुनाव देखिए. मजबूत विपक्ष मिला तो जनता ने भाजपा को आइना दिखा दिया. जहां- जहां मजबूत विकल्प और नेता नहीं वहां जानता क्या करे? मजबूरन ज्यादा गलत को चुनना पड़ रहा है. केंद्रीय राजनीति घोर विकल्पहीनता के दौर से गुजर रही है जिसका लाभ एक ऐसे दल को मिल रहा है जिसके सिद्धांत हमारे अतीत और वर्तमान समय के आदर्शों के विपरीत है.

तिरंगे की जगह उनका अलग झंडा है. शिक्षा से उन्हें दिक्कत है. समाज के बहुधर्मी होने से उन्हें दिक्कत है. समभाव से जिन्हें दिक्कत है. एक देश, एक धर्म, एक भाषा,एक नियम, एक रीति - रिवाज सुनने में चाहे कितने भी आकर्षक हो किन्तु व्यावहारिक तौर पर बड़े विनाशकारी विचार हैं. दुनिया का इतिहास उठाकर देख लें, जिस-जिसने ऐसा प्रत्यन किया है उसने तबाही मचाई है. मानवता को बड़ा नुकसान पहुंचाया है. मुझे उदाहरण लेने की आश्यकता नहीं है.

सोनिया गांधी का पुत्र मोह न केवल कांग्रेस पार्टी का नुकसान कर रहा है. बल्कि भारत की राजनीति को भी गहरा नुकसान पहुंचा रहा है. देश का नुकसान हुआ जा रहा है. क्योंकि कांग्रेस पार्टी के पास जो विचारधारा और नीतियों की शक्ति और पूंजी है उसे संभालने के लिए राहुल के कंधे कमजोर साबित ही रहे हैं. और पुत्र मोह किसी और नेता को सामने आने नहीं दे रहा है. इसकी सबसे बड़ी मिसाल हमें गत विधान सभा चुनावों में देखने को मिली है.

राजस्थान में भाजपा सरकार को हर मोर्चे पर सचिन पायलेट पांच साल तक घेरते रहे. हर मुद्दे को जमीन पर आकर लड़ा. मोदी की चल रही लहर में भी स्थानीय मुद्दों में घेरकर भाजपा सरकार को बैकफुट पर सचिन पायलेट लेकर आए. कांग्रेस पार्टी की वापसी के लिए एक बड़े राज्य को तैयार किया. लेकिन जब चुनाव में विजयश्री हुई तो गहलोत को सीएम के रूप में सामने का कर दिया गया. सभी जानते हैं कि सोनिया गांधी कभी नहीं चाहती हैं कि कोई और युवा चेहरा कांग्रेस में राहुल के सामने केंद्रीय स्तर पर खड़ा हो. वो हर उस चेहरे को पीछे रखेंगी जो राहुल का विकल्प बन सकता है. यह सोनिया गांधी को हरगिज़ मंजूर नहीं है.

राजस्थान का हाल भी मध्य प्रदेश से मिलता जुलता है, गहलोत को मुख्यमंत्री बनाए जाने के बाद से ही पायलट के समर्थक राहुल गांधी से नाराज हैं

ऐसा ही मामला मध्यप्रदेश का है. सिंधिया को आगे नहीं लाया गया जबकि बूढ़े नेता को आगे किया जाता रहा. कमलनाथ बेशक अनुभव और जीतने वाले नेता हैं लेकिन सोनिया गांधी की  राजनीतिक सूझ- बूझ में ज्योतिरादित्य सिंधिया प्रमुखता नहीं पाते हैं. जब वो अपनी बेटी प्रियंका को राहुल से पीछे रख सकती हैं सब कुछ जानकार तो फिर अन्य लोग क्या हैं? ज्योतिरादित्य सिंधिया के शुभचिंतकों ने लगातार उनसे कांग्रेस छोड़ने का प्रयास किया होगा, वे खुद भी लगातार मंथन कर रहे होंगे. और अंततः इस्तीफ़ा देकर प्राथमिक सदस्यता से मुक्ति पा ली.

सचिन पायलेट का मामला हो या फिर सिंधिया का मामला, ऐसे मामले हैं जो धीरे - धीरे असंतोष और नाराजगी को जन्म देते हैं. राजस्थान में साफ-साफ दो धड़े नजर आते हैं, वो तो सचिन पायलेट संजीदा व्यक्ति हैं जो कभी खुलकर मनमुटाव को आगे नहीं आने देते हैं जबकि असंतोष गहरा है राजस्थान की राजनीति में.

धृतराष्ट्र को दुर्योधन के अयोग्य होने का पूरा भान था मगर पुत्र मोह के आगे वह बेबस था.कौरव पांडव की लड़ाई के लिए जिम्मेदार बहुत से कारण थे मगर एक कारण पुत्र मोह भी था. महाभारत सही और गलत की लड़ाई बनी और विजय सत्य की हुई. सोनिया गांधी को समझ लेना चाहिए कि जीत अंत में उसी के साथ जाती है जो हकदार होता है. जो विकल्प हैं उनमें से बेहतरीन के हाथों विजय पताका फहराई जाती है.

जब तक इस बात को वो नहीं समझ जाती हैं तब तक वो एक मां तो रह पाती हैं मगर देश के लिए एक मजबूत विपक्ष न बनने देने की भी गुनेहगार हैं. राहुल गांधी अच्छे व्यक्ति हैं मगर सिर्फ अच्छा व्यक्ति होना राजनीतिज्ञ नहीं बनाता है. राजनीतिज्ञ बनने के लिए उससे भी जरूरी हैं सोच, व्यक्तित्व, उपलब्धियां, अपील और आपका जुड़ाव. जो उनमें न के बराबर है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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