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शिवराज कैबिनेट में सिंधिया का असर दिखा लेकिन विभागों के बंटवारे में साइड इफेक्ट

    • आईचौक
    • Updated: 11 जुलाई, 2020 01:37 PM
  • 11 जुलाई, 2020 01:37 PM
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ज्योतिरादित्य सिंधिया (Jyotiraditya Scindia) के खिलाफ बीजेपी (Madhya Pradesh BJP) में विरोध के स्वर धीरे धीरे ही सही मगर फूटने शुरू हो गये हैं. मंत्रिमंडल में तो शिवराज सिंह चौहान (Shivraj Singh Chauhan) की चली नहीं, विभागों का बंटवारा भी दिल्ली से ही होना है - ये सिंधिया का असर है या कुछ और?

ज्योतिरादित्य सिंधिया (Jyotiraditya Scindia) के चलते शिवराज सिंह चौहान (Shivraj Singh Chauhan) फिर से मध्य प्रदेश की मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठ तो गये, लेकिन उसके साथ ही नये सिरे से संघर्ष शुरू हो गया है. शिवराज सिंह चौहान ने मुख्यमंत्री पद की शपथ तो लॉकडाउन से पहले ही ले ली लेकिन कुल जमा पांच लोगों से काम चल नहीं रहा था, इसलिए मंत्रिमंडल विस्तार जरूरी था. तीन महीने बाद ये भी हो गया लेकिन अब विभागों के बंटवारे में पेंच फंसा हुआ है.

शिवराज सिंह चौहान अपने मंत्रिमंडल में कहने भर को ही मुख्यमंत्री हैं, दबदबा तो सिंधिया का ही महसूस किया जा रहा है. हालत ये है कि अपनों को मंत्री न बनवा पाने को लेकर शिवराज सिंह चौहान के साथ साथ नरेंद्र सिंह तोमर, कैलाश विजयवर्गीय और नरोत्तम मिश्रा तक सारे क्षत्रप मन ही मन नाराज हैं.

भोपाल से जो खबरें आ रही हैं, उससे तो यही लगता है कि विभागों के बंटवारे में देर सिंधिया के जिद पर अड़े होने के कारण हो रही है, लिहाजा राज्य बीजेपी (MP BJP) में भी खलबली शुरू हो गयी है. एक नयी बात ये भी देखने को मिल रही है कि राज्य बीजेपी के कुछ कुछ नेता सिंधिया को लेकर तंज भी कसने लगे हैं - ऐसा लगता है कि कैबिनेट विस्तार में सिंधिया ने जो अपना असर दिखाया है उसके साइड इफेक्ट भी सामने आने लगे हैं.

'महाराज, नाराज और शिवराज!'

शत्रुघ्न सिन्हा बीजेपी छोड़ कर भले ही कांग्रेस के टिकट पर चुनाव भी लड़ चुके हों, लेकिन पुरानी पार्टी पर पूरी नजर टिकी हुई है. मध्य प्रदेश बीजेपी में फिलहाल जो कुछ चल रहा है, उस पर शत्रुघ्न सिन्हा ने एक तंज भरा ट्वीट किया है - और समझाने की कोशिश की है कि राज्य बीजेपी का इन दिनों क्या हाल है.

कटाक्ष ही सही, लेकिन मध्य प्रदेश बीजेपी के मौजूदा माहौल में शत्रुघ्न सिन्हा की टिप्पणी बड़े आराम से फिट हो जा रही है. मध्य प्रदेश में ग्वालियर...

ज्योतिरादित्य सिंधिया (Jyotiraditya Scindia) के चलते शिवराज सिंह चौहान (Shivraj Singh Chauhan) फिर से मध्य प्रदेश की मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठ तो गये, लेकिन उसके साथ ही नये सिरे से संघर्ष शुरू हो गया है. शिवराज सिंह चौहान ने मुख्यमंत्री पद की शपथ तो लॉकडाउन से पहले ही ले ली लेकिन कुल जमा पांच लोगों से काम चल नहीं रहा था, इसलिए मंत्रिमंडल विस्तार जरूरी था. तीन महीने बाद ये भी हो गया लेकिन अब विभागों के बंटवारे में पेंच फंसा हुआ है.

शिवराज सिंह चौहान अपने मंत्रिमंडल में कहने भर को ही मुख्यमंत्री हैं, दबदबा तो सिंधिया का ही महसूस किया जा रहा है. हालत ये है कि अपनों को मंत्री न बनवा पाने को लेकर शिवराज सिंह चौहान के साथ साथ नरेंद्र सिंह तोमर, कैलाश विजयवर्गीय और नरोत्तम मिश्रा तक सारे क्षत्रप मन ही मन नाराज हैं.

भोपाल से जो खबरें आ रही हैं, उससे तो यही लगता है कि विभागों के बंटवारे में देर सिंधिया के जिद पर अड़े होने के कारण हो रही है, लिहाजा राज्य बीजेपी (MP BJP) में भी खलबली शुरू हो गयी है. एक नयी बात ये भी देखने को मिल रही है कि राज्य बीजेपी के कुछ कुछ नेता सिंधिया को लेकर तंज भी कसने लगे हैं - ऐसा लगता है कि कैबिनेट विस्तार में सिंधिया ने जो अपना असर दिखाया है उसके साइड इफेक्ट भी सामने आने लगे हैं.

'महाराज, नाराज और शिवराज!'

शत्रुघ्न सिन्हा बीजेपी छोड़ कर भले ही कांग्रेस के टिकट पर चुनाव भी लड़ चुके हों, लेकिन पुरानी पार्टी पर पूरी नजर टिकी हुई है. मध्य प्रदेश बीजेपी में फिलहाल जो कुछ चल रहा है, उस पर शत्रुघ्न सिन्हा ने एक तंज भरा ट्वीट किया है - और समझाने की कोशिश की है कि राज्य बीजेपी का इन दिनों क्या हाल है.

कटाक्ष ही सही, लेकिन मध्य प्रदेश बीजेपी के मौजूदा माहौल में शत्रुघ्न सिन्हा की टिप्पणी बड़े आराम से फिट हो जा रही है. मध्य प्रदेश में ग्वालियर राजघराने से होने के कारण ज्योतिरादित्य सिंधिया को महाराज कह कर ही संबोधित किया जाता है. शत्रुघ्न सिन्हा ने जिस तरफ इशारा किया है उसके सबूत भी मिल रहे हैं.

विभागों के बंटवारे को लेकर मध्य प्रदेश बीजेपी के वरिष्ठ नेता सतना से सांसद गणेश सिंह का कहना है कि गैरजरूरी तौर पर देरी हो रही है और इससे लोगों के बीच अच्छा संदेश नहीं जा रहा है. गणेश सिंह ने कहा है कि शिवराज सिंह ने मध्य प्रदेश को विकास की राह दिखायी है, इसलिए उन पर विश्वास करना चाहिये. साथ ही, सिंधिया को सलाह भी दे डाली है कि पोर्टफोलियो मुख्यमंत्री का अधिकार है और उसमें किसी को दखल नहीं देनी चाहिये.

गणेश सिंह ने अपने बयान में कहा है, 'सिंधिया का राज्य की राजनीति में बड़ा कद है और पार्टी के वरिष्ठ नेता भी उनका सम्मान करते हैं. उन्हें इस बात पर गंभीरता से विचार करना चाहिए कि कहीं उनके चलते पोर्टफोलियो बंटने में देरी तो नहीं हो रही है. लोग शिवराज के नेतृ्त्व में एक अच्छी सरकार देखना चाहते हैं.'

सिंधिया कहीं शिवराज सिंह के लिए सिरदर्द तो नहीं बनने जा रहे हैं?

बीजेपी की पूर्व विधायक पारुल साहू तो गणेश सिंह से दो कदम आगे ही नजर आ रही हैं - और एक तरीके से सिंधिया को हद में रहने की चेतावनी देती नजर आ रही हैं. अपने फेसबुक पेज पर एक अखबार की क्लिप के साथ पारुल साहू ने एक हैशटैग का भी इस्तेमाल किया है - #political_divorce

पारुल साहू लिखती हैं - ये राजनीतिक दहेज़ प्रताड़ना कहीं तलाक का कारण ना बन जाये, मेरा शीर्ष नेतृत्व से निवेदन है कि जननायक मुख्यमंत्री शिवराज जी के प्रति आम जन में लगाव और सम्मान को इस तरह धूमिल नहीं किया जाये. उनके अनुभव, पार्टी के प्रति निष्ठा और कार्यकर्ताओं की भावना अनुरूप कोई भी निर्णय लेने के लिये आदरणीय मुख्यमंत्री जी को पूर्ण स्वतंत्रता दी जाये.'

बीजेपी विधायक अजय विश्नोई के ट्वीट में भी निशाने पर ज्योतिरादित्य सिंधिया ही हैं - और धमकी तो करीब करीब वैसी ही है जैसी पूर्व विधायक पारुल साहू दे रही हैं.

भले ही सिंधिया के आने से ही शिवराज सिंह चौहान मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बन पाये हों, लेकिन बीजेपी के भीतर एक नाराजगी तो है ही. सबसे ज्यादा नाराज तो 2018 में विधानसभा का चुनाव हार चुके बीजेपी के नेता हैं जिनका टिकट कटना तय माना जा रहा है. चूंकि उनको हराकर ही कांग्रेस विधायक बन कर इस्तीफा देने वाले नेताओं से बीजेपी नेतृत्व ने वादा किया है, निभाएगी भी. इस बात के मजबूत संकेत तब भी मिले जब प्रदेश बीजेपी की तरफ से भेजी गयी संभावित मंत्रियों की सूची ये कहते हुए ही खारिज कर दी गयी कि सिंधिया समर्थक विधायकों से जो वादे किये गये हैं उसमें कोई समझौता नहीं होना है. पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ बगावत का मन बना चुके बीजेपी नेताओं को कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ाने के फिराक में हैं. कमलनाथ और उनके समर्थक ऐसे दावे तो कई बार कर चुके हैं, लेकिन अभी तक कोई स्पष्ट चीज सामने तो नहीं आ पायी है.

ये सिंधिया का ही असर है या कुछ और

सुना है विभागों के बंटवारे को लेकर सिंधिया और शिवराज सिंह के बीच कोई बातचीत नहीं हो रही है. बल्कि ये बातचीत दिल्ली में बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा और संगठन महासचिव बीएल संतोष के साथ हो रही है.

सूत्रों के हवाले से प्रकाशित मीडिया रिपोर्ट की मानें तो ज्योतिरादित्य सिंधिया चाहते हैं कि उनके मंत्रियों को आबकारी, परिवहन, राजस्व, वाणिज्य कर और जल संसाधन जैसे विभाग दिये जायें. मगर, बीजेपी नेतृत्व चाहता है कि कमलनाथ सरकार में जो विभाग सिंधिया के समर्थक मंत्रियों के पास रहे, वे उसी पर मान जायें. कांग्रेस की कमलनाथ सरकार में ज्योतिरादित्य सिंधिया खेमे के मंत्रियों के पास स्वास्थ्य, राजस्व, महिला और बाल विकास, स्कूल शिक्षा, परिवहन, श्रम और खाद्य विभाग थे. बीजेपी के रिजर्वेशन अपनी जगह हो सकते हैं, लेकिन ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थकों को जो विभाग मिले थे उनसे वो संतुष्ट तो थे नहीं और कांग्रेस छोड़ने की वजहों में से एक ये भी तो रहा.

बहरहाल, मंत्रिमंडल विस्तार में दबदबे और विभागों के बंटवारे को लेकर अड़ियल रूख की चर्चा पर ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपनी तरफ से सफाई भी पहले से ही पेश कर दी है. जैसे पहले कांग्रेस का सिपाही बताते रहे, ठीक वैसे ही सिंधिया अब खुद को बीजेपी परिवार का हिस्सा बता रहे हैं.

अब तक तो यही देखने को मिल रहा है कि सिंधिया को हाथों हाथ लिया जा रहा है. भरी सभा में जेपी नड्डा सिंधिया के जिगरा की तारीफ करते हैं. मंत्रिमंडल में शिवराज सिंह जैसे नेताओं को साफ कर दिया जाता है कि जो वादे किये गये हैं उनको लेकर कोई समझौता नहीं होगा. विभागों के बंटवारे में भी शिवराज सिंह के अधिकार क्षेत्र में सीधी दखल समझ में आ रही है - ये सब देख कर सवाल उठता है कि क्या सब कुछ सिंधिया की जिद के चलते ही हो रहा है या फिर कोई और बात भी है?

ऐसा क्यों लग रहा है जैसे सिंधिया के नाम पर शिवराज सिंह को कोई मैसेज देने की कोशिश हो रही है - कुछ ऐसा मैसेज कि वो बस अपनी हद में रहें!

चुनावी हार हर नेता पर भारी पड़ती है और उसे उसकी भारी कीमत भी चुकानी पड़ती है. शिवराज सिंह के साथ भी ऐसा ही हो रहा है. 2018 का विधानसभा चुनाव हार जाने के बाद से शिवराज सिंह को मौजूदा बीजेपी नेतृत्व मध्य प्रदेश में टिकने नहीं दिया. सत्ता हाथ से फिसल जाने के कुछ दिन बाद ही शिवराज सिंह चौहान को बीजेपी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाकर भोपाल से दूर करने की कोशिश की गयी - और उनकी मर्जी के खिलाफ राज्य में नेताओं को कमान सौंपी गयी. लोक सभा चुनाव में टिकटों के बंटवारे में भी शिवराज सिंह चौहान की नहीं के बराबर ही चली, फिर भी बीजेपी का प्रदर्शन बेहतरीन रहा. कमलनाथ जैसे तैसे बेटे को अपनी छिंदवाड़ा सीट पक्की कराने में कामयाब रहे, लेकिन बाकी कुछ हाथ नहीं लगा.

क्या मौजूदा बीजेपी नेतृत्व की पुरानी रंजिशें हैं जिनका सिंधिया की वजह से साफ असर देखने को मिल रहा है? समझना आसान तब होगा जब 2013 की बीजेपी को याद किया जाये. जब नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का बीजेपी का उम्मीदवार नहीं घोषित किया गया था. लालकृष्ण आडवाणी के नेपथ्य में चले जाने के बाद जब नीतीश कुमार एनडीए के प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किये जाने की मांग कर रहे थे तो शिवराज सिंह मजबूत दावेदार के तौर पर निकल कर आ रहे थे. बदलते वक्त के साथ शिवराज सिंह ने समझौता करना सीख लिया. 2014 में भी जरा याद कीजिये लालकृष्ण आडवाणी मध्य प्रदेश की ही किसी सीट से चुनाव लड़ना चाह रहे थे, लेकिन तब तक मोदी-शाह का दखल बढ़ चुका था और उनको गांधीनगर से ही उम्मीदवार बने रहने को कह दिया गया जो कालांतर में अमित शाह का इलाका बन गया. दरअसल, शिवराज सिंह चौहान आडवाणी खेमे वाले ही हैं, लेकिन संघ में गहरी जड़ों के चलते मौजूदा बीजेपी नेतृत्व कुछ बिगाड़ नहीं पा रहा था.

मध्य प्रदेश में कमलनाथ के तख्तापलट के बाद बीजेपी कोई जोखिम मोल नहीं लेना चाहती थी, इसीलिए अनुभवी शिवराज सिंह चौहान पर ही भरोसा करना पड़ा, लेकिन अब तो ऐसा लग रहा है जैसे शिवराज सिंह चौहान मुखौटा भर हों!

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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