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जेल में जन्मा एक और कन्हैया

    • डॉ. कपिल शर्मा
    • Updated: 04 मार्च, 2016 12:46 PM
  • 04 मार्च, 2016 12:46 PM
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कन्हैया कुमार भले ही छात्रसंघ का चुनाव लड़कर अध्यक्ष बन चुका था, सियासत का ककहरा सीख चुका था, लेकिन दुनियाभर में मशहूर जेल जाकर ही हुआ और अब कन्हैया देश की राजनीति में देशद्रोह और सरकार के विरोध के बीच की बहस का प्रतीक बन गया है.

जेल से जेएनयू पहुंचे कन्हैया को सुना. भाषण करता कन्हैया छात्र नहीं, छात्र नेता भी नहीं, बल्कि सिर्फ नेता के अंदाज में दिखा. सीधे, सपाट और सरल शब्द, लेकिन घेरे में देश के पीएम मोदी. जेल से रिहा होने के बाद जेएनयू पहुंचे छात्रसंघ के अध्यक्ष कन्हैया को 21 दिन की कैद ने नई पहचान दे दी है. वैसे कन्हैया का नाम और जेल का स्थान, इन शब्दों की जुगलबंदी भारतीय जनमानस में लंबे वक्त से है, द्वापर युग से. लेकिन किरदारों की तुलना का इरादा यहां कतई नहीं है, बस बात इतनी है कि कलियुग में भी एक कन्हैया का जन्म जेल में ही हुआ है, सियासत के गर्भ से. जन्म इसलिए क्योंकि कन्हैया कुमार भले ही छात्रसंघ का चुनाव लड़कर अध्यक्ष बन चुका था, सियासत का ककहरा सीख चुका था, लेकिन दुनियाभर में मशहूर जेल जाकर ही हुआ और अब कन्हैया देश की राजनीति में देशद्रोह और सरकार के विरोध के बीच की बहस का प्रतीक बन गया है.

कन्हैया को गिरफ्तार क्यों किया गया, क्या इसलिए कि उसने देशविरोधी नारे लगाए थे, या वो छात्र संघ का अध्यक्ष है या फिर कोई और वजह इसके पीछे रही? दरअसल इसी सवाल का जवाब है जेल में एक और कन्हैया का जन्म. क्योंकि जेएनयू में देश विरोधी नारे लगे थे, तो पुलिस ने 12 छात्रों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर ली. अब पुलिस को किसी को तो गिरफ्तार करना था. उमर खालिद वो शख्स था, जो उस कार्यक्रम का आयोजक था और नारे लगाने का आरोपी भी. लेकिन गिरफ्तारी कन्हैया की हुई. क्योंकि पुलिस किसे गिरफ्तार करे, इसके पहले सियासी हिसाब किताब हुआ था. क्योंकि जेएनयू के मुद्दे को राष्ट्रवाद का मुद्दा बनाने के लिए कन्हैया की गिरफ्तारी उतनी ज़रूरी नहीं थी, जितना कि उमर खालिद पर पहली पुलिसिया कार्यवाही से बचना. क्योंकि उमर खालिद को गिरफ्तार करते ही जेएनयू का मुद्दा मुसलमान छात्र पर कार्यवाही का बन जाता और अलगाववादियों को कश्मीर की लड़ाई को दिल्ली में भी हवा देने का मौका मिल जाता. फिर हंगामे के बहाने जेएनयू के लालगढ़ में 'भगवा' सैंध आसान नहीं होती. देशभर में देशप्रेम बनाम देशद्रोह की बहस नहीं छिड़ पाती. इसीलिए कन्हैया जेल पहुंच गया. लेकिन 21 दिन की जेल यात्रा के दौरान कोर्ट, सड़क, संसद और टीवी स्टुडियो में बहुत कुछ ऐसा हुआ, कि कन्हैया का खूब नाम भी हुआ और देशद्रोह के लिए बदनाम भी, लेकिन दोनों ही सूरत में नाम कन्हैया का ही हुआ. अब जब...

जेल से जेएनयू पहुंचे कन्हैया को सुना. भाषण करता कन्हैया छात्र नहीं, छात्र नेता भी नहीं, बल्कि सिर्फ नेता के अंदाज में दिखा. सीधे, सपाट और सरल शब्द, लेकिन घेरे में देश के पीएम मोदी. जेल से रिहा होने के बाद जेएनयू पहुंचे छात्रसंघ के अध्यक्ष कन्हैया को 21 दिन की कैद ने नई पहचान दे दी है. वैसे कन्हैया का नाम और जेल का स्थान, इन शब्दों की जुगलबंदी भारतीय जनमानस में लंबे वक्त से है, द्वापर युग से. लेकिन किरदारों की तुलना का इरादा यहां कतई नहीं है, बस बात इतनी है कि कलियुग में भी एक कन्हैया का जन्म जेल में ही हुआ है, सियासत के गर्भ से. जन्म इसलिए क्योंकि कन्हैया कुमार भले ही छात्रसंघ का चुनाव लड़कर अध्यक्ष बन चुका था, सियासत का ककहरा सीख चुका था, लेकिन दुनियाभर में मशहूर जेल जाकर ही हुआ और अब कन्हैया देश की राजनीति में देशद्रोह और सरकार के विरोध के बीच की बहस का प्रतीक बन गया है.

कन्हैया को गिरफ्तार क्यों किया गया, क्या इसलिए कि उसने देशविरोधी नारे लगाए थे, या वो छात्र संघ का अध्यक्ष है या फिर कोई और वजह इसके पीछे रही? दरअसल इसी सवाल का जवाब है जेल में एक और कन्हैया का जन्म. क्योंकि जेएनयू में देश विरोधी नारे लगे थे, तो पुलिस ने 12 छात्रों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर ली. अब पुलिस को किसी को तो गिरफ्तार करना था. उमर खालिद वो शख्स था, जो उस कार्यक्रम का आयोजक था और नारे लगाने का आरोपी भी. लेकिन गिरफ्तारी कन्हैया की हुई. क्योंकि पुलिस किसे गिरफ्तार करे, इसके पहले सियासी हिसाब किताब हुआ था. क्योंकि जेएनयू के मुद्दे को राष्ट्रवाद का मुद्दा बनाने के लिए कन्हैया की गिरफ्तारी उतनी ज़रूरी नहीं थी, जितना कि उमर खालिद पर पहली पुलिसिया कार्यवाही से बचना. क्योंकि उमर खालिद को गिरफ्तार करते ही जेएनयू का मुद्दा मुसलमान छात्र पर कार्यवाही का बन जाता और अलगाववादियों को कश्मीर की लड़ाई को दिल्ली में भी हवा देने का मौका मिल जाता. फिर हंगामे के बहाने जेएनयू के लालगढ़ में 'भगवा' सैंध आसान नहीं होती. देशभर में देशप्रेम बनाम देशद्रोह की बहस नहीं छिड़ पाती. इसीलिए कन्हैया जेल पहुंच गया. लेकिन 21 दिन की जेल यात्रा के दौरान कोर्ट, सड़क, संसद और टीवी स्टुडियो में बहुत कुछ ऐसा हुआ, कि कन्हैया का खूब नाम भी हुआ और देशद्रोह के लिए बदनाम भी, लेकिन दोनों ही सूरत में नाम कन्हैया का ही हुआ. अब जब कन्हैया जेल से वापस जेएनयू पहुंचा, तो न सिर्फ उसके पीछे भीड़, बढ़ गई थी, बल्कि उसे सुनने वाले और सुनाने वाले भी बढ़ चुके थे. जब इतना इन्फास्ट्रक्चर तैयार मिला, तो कन्हैया ने नेता बनने में चूक नहीं की.

यूं तो जेएनयू छात्र संघ के ज़रिए निकले कई नेता देश की मुख्यधारा की राजनीति में अपना मुकाम हासिल कर चुके हैं, लेकिन कन्हैया का केस थोड़ा अलग है. जेएनयू छात्र संघ के चुनाव में दिल्ली यूनिवर्सिटी जैसा शोर शराबा नहीं होता, न प्रचार से पूरी दिल्ली को पाट दिया जाता है. न ही चुनाव लड़ने वालों के पोस्टर शहर में कहीं दिखते हैं, जो होता है, कैंपस के भीतर ही रह जाता है. कन्हैया की कहानी भी जेएनयू की चाहरदीवारी के भीतर ही तक सीमित थी. लेकिन अब कन्हैया अब देश की राजनीति में विरोध का प्रतीक बन गया है. कन्हैया को जेल,  देशद्रोह के आरोप में हुई, कन्हैया को लेकर आम जनमानस में गुस्सा भी है और उसने कथित तौर पर जो किया, उसे लेकर विरोध भी. विरोध भी इस हद तक कि कोर्ट में पेशी के लिेए ले जाते वक्त उसकी पिटाई भी कर दी गई. देशद्रोह का मुकदमा कई वीडियो क्लिप के आधार पर किया गया और हाईकोर्ट ने कन्हैया के लिए सख्त टिप्पणियां भी कीं, लेकिन ज़मानत दे दी. खैर ये सब कानून और नियमों से जुड़े मामले हैं, दोषी है या नहीं है, देश और समाज के लिए खतरा है या नहीं है, कोर्ट तय करेगी. लेकिन जेल में एक नए कन्हैया का जन्म हो चुका है.

सरकार यानी पुलिस कन्हैया को देशद्रोही बता रही है, केस भी यही किया है. लेकिन जो इस बात से सहमत नहीं है, उन्हें कन्हैया सरकारद्रोही लगता है और ये भी लगता है कि सरकार का विरोध करने पर कन्हैया के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया है. कन्हैया के समर्थन में राजनीति ही नहीं बंटी, मीडिया और समाज भी बंट गया है, जिसमें देशभर के तमाम शिक्षा परिसर भी शामिल हैं. हो सकता है कि विरोधी राजनीतिक दल बहती गंगा में हाथ धो रहे हों और सरकार के विरोध का एक मौका कन्हैया का समर्थन करने से उन्हें मिल गया हो, लेकिन अगर ऐसा है भी तो इसके केंद्र में भी कन्हैया ही है और कन्हैया को पीछे खड़ी होने वाली भीड़ मिल गई है. कन्हैया फिलहाल आरोपी है, दोषी नहीं. मतलब कन्हैया पर देशद्रोह की धाराओं में मुकदमा दर्ज किया गया है, कोर्ट ने उसे दोषी करार नहीं दिया है. यही वो एक बात है, जो राजनीतिक रूप से तटस्थ छात्रों के बीच देशभर के शिक्षा परिसरों में कन्हैया को पहचान दे रही है.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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