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हरियाणा में प्रभावितों का जीवन पटरी पर कब लौटेगा?

    • सुनीता मिश्रा
    • Updated: 06 मार्च, 2016 06:31 PM
  • 06 मार्च, 2016 06:31 PM
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जेएनयू प्रकरण और जाट आंदोलन ने एक बार फिर सोचने पर विवश कर दिया कि लोग अपने फायदे की राजनीति के लिए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का गलत इस्तेमाल करने से भी बाज नहीं आते हैं.

हरियाणा सरकार ने जाट आंदोलन प्रभावितों के लिए 20 करोड़ रुपये की अंतरिम सहायता राशि जारी कर दी है. बताया गया है कि अभी तक आंदोलन के दौरान संपत्तियों को नुकसान पहुंचाने समेत विभिन्न धाराओं के तहत उपद्रवी तत्वों के खिलाफ 1,957 प्राथमिकियां दर्ज की गई हैं. हरियाणा जाट आरक्षण की आग में कई मासूम स्वाहा हो गए और कई महिलाओं की अस्मत लूटी गई.

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और आरक्षण के नाम पर जिस तरह से हरियाणा में तोड़—फोड़ और गुंडागर्दी की गई वह बेहद शर्मनाक था. कितने लागों को मौत के घाट उतार दिया गया. उनकी दुकानें जला दी गई, वाहन जला दिए गए. क्या उनका प्रभावित जीवन एक बार फिर पटरी पर लौट पाएगा?

जेएनयू प्रकरण और जाट आंदोलन ने एक बार फिर सोचने पर विवश कर दिया कि लोग अपने फायदे की राजनीति के लिए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का गलत इस्तेमाल करने से भी बाज नहीं आते हैं. हरियाणा में आंदोलन की आड़ में जो वहशीपन हुआ, वह भयावह होने के साथ—साथ देश को झकझोर कर रख देने वाला रहा. इन उपद्रवियों ने हरियाणा के मुरथल नेशनल हाइवे पर सार्वजनिक सम्पत्ति को नुकसान पहुंचाने के साथ ही गाड़ियां रोककर महिलाओं के साथ सामूहिक बलात्कार कर बहुत ही घृणित कुकत्य को अंजाम दिया है.

वह अमरीक सुखदेव ढाबा, जो कभी मुरथल में अपने लाजवाब पराठों के लिए जाना जाता था, अब वह इस दरिदंगी के लिए जाना जाएगा. इन जाटों ने अपने फायदे के लिए न केवल देश को 35,000 करोड़ का नुकसान पहुंचाया, बल्कि निर्दोषों को बेवजह परेशान भी किया और दहशत पैदा की. इतने दिन दहशत में रहने के बाद आखिरकार कुछ चश्मदीद गवाह सामने आए और उन्होंने उस काली रात का सच उजागर किया.

उन्होंने बताया कि उस रात लड़कियों को उन दरिंदों से बचाने के लिए ढाबे वालों ने उन्हें पानी की टंकियों में डालकर लाइट बुझा दी थी और उन्होंने उस डरावनी रात में तीन से चार घंटे टंकी के अंदर ही रहकर गुजारे, लेकिन इन सबके बावजूद कई मासूमों की अस्मत लुटने से नहीं बचाया जा सका. उन दरिंदों ने हैवानियत का ऐसा नंगा नाच खेला कि...

हरियाणा सरकार ने जाट आंदोलन प्रभावितों के लिए 20 करोड़ रुपये की अंतरिम सहायता राशि जारी कर दी है. बताया गया है कि अभी तक आंदोलन के दौरान संपत्तियों को नुकसान पहुंचाने समेत विभिन्न धाराओं के तहत उपद्रवी तत्वों के खिलाफ 1,957 प्राथमिकियां दर्ज की गई हैं. हरियाणा जाट आरक्षण की आग में कई मासूम स्वाहा हो गए और कई महिलाओं की अस्मत लूटी गई.

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और आरक्षण के नाम पर जिस तरह से हरियाणा में तोड़—फोड़ और गुंडागर्दी की गई वह बेहद शर्मनाक था. कितने लागों को मौत के घाट उतार दिया गया. उनकी दुकानें जला दी गई, वाहन जला दिए गए. क्या उनका प्रभावित जीवन एक बार फिर पटरी पर लौट पाएगा?

जेएनयू प्रकरण और जाट आंदोलन ने एक बार फिर सोचने पर विवश कर दिया कि लोग अपने फायदे की राजनीति के लिए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का गलत इस्तेमाल करने से भी बाज नहीं आते हैं. हरियाणा में आंदोलन की आड़ में जो वहशीपन हुआ, वह भयावह होने के साथ—साथ देश को झकझोर कर रख देने वाला रहा. इन उपद्रवियों ने हरियाणा के मुरथल नेशनल हाइवे पर सार्वजनिक सम्पत्ति को नुकसान पहुंचाने के साथ ही गाड़ियां रोककर महिलाओं के साथ सामूहिक बलात्कार कर बहुत ही घृणित कुकत्य को अंजाम दिया है.

वह अमरीक सुखदेव ढाबा, जो कभी मुरथल में अपने लाजवाब पराठों के लिए जाना जाता था, अब वह इस दरिदंगी के लिए जाना जाएगा. इन जाटों ने अपने फायदे के लिए न केवल देश को 35,000 करोड़ का नुकसान पहुंचाया, बल्कि निर्दोषों को बेवजह परेशान भी किया और दहशत पैदा की. इतने दिन दहशत में रहने के बाद आखिरकार कुछ चश्मदीद गवाह सामने आए और उन्होंने उस काली रात का सच उजागर किया.

उन्होंने बताया कि उस रात लड़कियों को उन दरिंदों से बचाने के लिए ढाबे वालों ने उन्हें पानी की टंकियों में डालकर लाइट बुझा दी थी और उन्होंने उस डरावनी रात में तीन से चार घंटे टंकी के अंदर ही रहकर गुजारे, लेकिन इन सबके बावजूद कई मासूमों की अस्मत लुटने से नहीं बचाया जा सका. उन दरिंदों ने हैवानियत का ऐसा नंगा नाच खेला कि इंसानियत भी शर्मसार हो जाए.

वहीं राज्य पुलिस ने पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में अपनी स्थिति रिपोर्ट (स्टेटस रिपोर्ट) दायर करते हुए कहा कि इस तरह की कोई घटना नहीं हुई है. स्टेट्स रिपोर्ट न्यायमूर्ति एसके मित्तल और न्यायमूर्ति एचएस सिद्धू की पीठ के समक्ष दायर की गई. पुलिस द्वारा दायर स्टेट्स रिपोर्ट में 'सोनीपत जिले के मुरथल में 22-23 फरवरी की रात छेड़छाड़ और सामूहिक बलात्कार के आरोपों को खारिज किया गया.' खंडपीठ ने मामले में सुनवाई की अगली तारीख 14 मार्च को रखी है.

गौरतलब है कि इन आंदोनलकारियों द्वारा हरियाणा की मुनक नहर को क्षतिग्रस्त कर देने की वजह से दिल्लीवासियों को पानी की समस्या से दो—चार होना पड़ा था. सवाल उठता है कि क्या सरकार द्वारा 20 करोड़ की सहायता राशि देने पर उन मासूमों की जिंदगी एक बार फिर पटरी पर आ सकेगी? क्या वह आंदोलन की आड़ में किए गए दंगे को भूल पाएंगे? क्या नंबर वन हरियाणा की धूमिल हुई छवि फिर से साफ—सुथरी हो पाएगी?

इस पूरे मामले का जमकर राजनीतिकरण हुआ, हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपिंदर सिंह हुड्डा के राजनीतिक सलाहकार और कांग्रेस नेता प्रोफेसर वीरेंद्र सिंह के खिलाफ वारंट जारी किया गया है. वीरेंद्र सिंह पर जाट आरक्षण आंदोलन के दौरान भीड़ को भड़काने और देशद्रोह का मामला दर्ज किया गया है. दरअसल, आंदोलन के दौरान ही एक ऑडियो टेप सामने आया था, जिसमें प्रोफेसर वीरेंद्र सिंह की आवाज थी.

टेप में प्रोफेसर वीरेंद्र किसी से ये बातें करते सुने जा सकते हैं कि रोहतक जैसा असर दूसरी जगह पर देखने को नहीं मिल रहा है. वीरेंद्र सिंह ने भी माना था कि टेप में उनकी आवाज है, लेकिन उन्होंने भीड़ को भड़काने के आरोप से इनकार किया था. इस प्रकरण में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अशोक तंवर ने थोड़े समय पहले कहा था कि हमने उनसे (प्रो. वीरेंद्र) से सफाई मांगी है. वहीं इसमें कई जगह पुलिस का भी लचीला रवैया सामने आया. कई दिनों तक कार्रवाई के नाम पर पुलिस प्रशासन और केंद्र सरकार एकदम चुप रही. पुलिस तर्क दे रही है कि कोई रेप पीड़िता बयान देने सामने नहीं आ रही और केन्द्रीय गृह मंत्रालय इसलिए चुप रही कि कानून-व्यवस्था राज्य की जिम्मेदारी है.

उस घटना में ज्यादातर मुसाफिर महिलाएं थीं, जो अब अपने—अपने शहर पहुंच चुकी हैं. इसलिए उनमें से कोई भी महिला किस तरह से हरियाणा पुलिस तक पहुंचेगी? इस तरह के मामलों में जल्द से जल्द करवाई करने की जरूरत होती है, ताकि उपद्रवियों को कड़ा संदेश देने के साथ ही उनमें खौफ पैदा किया जा सके कि देश की सम्पत्ति को नुकसान पहंचाने वाले को नहीं बक्शा जाएगा. कार्रवाई निचले और ऊपरी स्तर पर बैठे दोनों लोगों पर होनी चाहिए. राज्य में सुदृढ़ कानून व्यवस्था लाना हरियाणा सरकार का काम है, लेकिन उसे अमल में लाना सबका कर्तव्य है.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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