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कश्मीर के अलगाववादियों को मोदी सरकार 2.0 का मैसेज बिलकुल सीधा है

    • आईचौक
    • Updated: 01 अगस्त, 2019 07:23 PM
  • 01 अगस्त, 2019 07:23 PM
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अब तक गिरिराज सिंह जैसे नेता ही लोगों को पाकिस्तान चले जाने की सलाह देते रहे हैं, लेकिन इस बार ये बात जम्मू-कश्मीर के गवर्नर सत्यपाल मलिक कह रहे हैं - क्योंकि अब मोदी सरकार भी ऐसा ही चाहती है.

मोदी सरकार 2.0 काफी बदली बदली सी लग रही है, बनिस्बत अपनी पिछली पारी के मुकाबले. खासकर जम्मू-कश्मीर के मामले में. अब जब कश्मीर को लेकर देश के लोगों से वादा किया है तो निभाना तो पड़ेगा ही.

वादों में तो जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 35A और 370 को भी हटाया जाना है. इसी वादे के साथ बीजेपी ने आम चुनाव में वोट मांगे थे, लोगों ने दिया भी. पहले की तुलना में दिया भी ज्यादा है. हाल फिलहाल जब सुरक्षा बलों की नयी खेप भेजी गयी तो सूबे में राजनीतिक दल एक्टिव हो गये और एकजुटता दिखाने लगे. बीजेपी नेता राम माधव ने जो बात कही है उससे लगता है कि 35A पर चर्चाएं कोरी अफवाह भी नहीं हैं, लेकिन अभी कुछ ठोस जानकारी भी नहीं दी गयी है, न ही कोई औपचारिक बयान आया है.

एक इशारा तो जरूर मिल रहा है कि राजनाथ सिंह के बाद गृह मंत्रालय देख रहे अमित शाह काफी आक्रामक तरीके से आगे बढ़ रहे हैं - और इस बात के सबूत गवर्नर सत्यपाल मलिक की बातें हैं.

आर्मी चीफ बिपिन रावत के बाद गवर्नर मलिक का बयान बता रहा है कि चुनावों में प्रचलित बीजेपी का स्लोगन 'मोदी है तो मुमकिन है', जम्मू-कश्मीर के मामले में थोड़ा बदला हुआ है - 'मैंडेट है तो मुमकिन है.'

मोदी सरकार से जो टकराएगा... नेस्त नाबूत हो जाएगा!

राज्य सभा में बहुमत न होना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के लिए सबसे बड़ी मुसीबत साबित होता आया है. मगर, मुसीबत से निबटना भी अब शायद टीम मोदी ने सीख लिया है, भले ही उसके लिए कुछ एक्स्ट्रा कोशिश करनी क्यों न पड़े. तीन तलाक पर राज्य सभा में बीजेपी नेताओं का प्रदर्शन राजनीतिक हिसाब से उम्दा माना जाएगा. अब लोकतांत्रिक और गैरपेशेवर तरीकों की कोई बात करे तो उसका क्या. सत्ता प्रतिष्ठान कोई संन्यास आश्रम थोड़े ही होता है, जब तक देश की सुरक्षा और नागरिकों के लिए कुछ खतरनाक न हो.

कश्मीर में आतंकवाद को कुचलने में जितनी भूमिका सेना और सुरक्षा बलों की है, अलगाववाद पर नकेल कसने में NIA का भी वैसा ही रोल दिखाई देने लगा है. आम चुनाव से पहले...

मोदी सरकार 2.0 काफी बदली बदली सी लग रही है, बनिस्बत अपनी पिछली पारी के मुकाबले. खासकर जम्मू-कश्मीर के मामले में. अब जब कश्मीर को लेकर देश के लोगों से वादा किया है तो निभाना तो पड़ेगा ही.

वादों में तो जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 35A और 370 को भी हटाया जाना है. इसी वादे के साथ बीजेपी ने आम चुनाव में वोट मांगे थे, लोगों ने दिया भी. पहले की तुलना में दिया भी ज्यादा है. हाल फिलहाल जब सुरक्षा बलों की नयी खेप भेजी गयी तो सूबे में राजनीतिक दल एक्टिव हो गये और एकजुटता दिखाने लगे. बीजेपी नेता राम माधव ने जो बात कही है उससे लगता है कि 35A पर चर्चाएं कोरी अफवाह भी नहीं हैं, लेकिन अभी कुछ ठोस जानकारी भी नहीं दी गयी है, न ही कोई औपचारिक बयान आया है.

एक इशारा तो जरूर मिल रहा है कि राजनाथ सिंह के बाद गृह मंत्रालय देख रहे अमित शाह काफी आक्रामक तरीके से आगे बढ़ रहे हैं - और इस बात के सबूत गवर्नर सत्यपाल मलिक की बातें हैं.

आर्मी चीफ बिपिन रावत के बाद गवर्नर मलिक का बयान बता रहा है कि चुनावों में प्रचलित बीजेपी का स्लोगन 'मोदी है तो मुमकिन है', जम्मू-कश्मीर के मामले में थोड़ा बदला हुआ है - 'मैंडेट है तो मुमकिन है.'

मोदी सरकार से जो टकराएगा... नेस्त नाबूत हो जाएगा!

राज्य सभा में बहुमत न होना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के लिए सबसे बड़ी मुसीबत साबित होता आया है. मगर, मुसीबत से निबटना भी अब शायद टीम मोदी ने सीख लिया है, भले ही उसके लिए कुछ एक्स्ट्रा कोशिश करनी क्यों न पड़े. तीन तलाक पर राज्य सभा में बीजेपी नेताओं का प्रदर्शन राजनीतिक हिसाब से उम्दा माना जाएगा. अब लोकतांत्रिक और गैरपेशेवर तरीकों की कोई बात करे तो उसका क्या. सत्ता प्रतिष्ठान कोई संन्यास आश्रम थोड़े ही होता है, जब तक देश की सुरक्षा और नागरिकों के लिए कुछ खतरनाक न हो.

कश्मीर में आतंकवाद को कुचलने में जितनी भूमिका सेना और सुरक्षा बलों की है, अलगाववाद पर नकेल कसने में NIA का भी वैसा ही रोल दिखाई देने लगा है. आम चुनाव से पहले अलगाववादी नेताओं के खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी का एक्शन रंग दिखाने लगा है.

अब तो ‘राष्ट्रीय अन्वेषण अधिकरण संशोधन विधेयक- 2019’ के पास हो जाने के बाद एजेंसी को खासा ताकतवर भी बना दिया गया है. अब तो देश के किसी भी हिस्से ही नहीं विदेशों में ये एजेंसी अपराधों की जांच कर सकेगी - और पाकिस्तान भी तो उसी कैटेगरी में आता है.

जम्मू-कश्मीर के गवर्नर सत्यपाल मलिक घाटी में सक्रिय अलगाववादियों को जिस सख्त लहजे में आगाह किया है, कारगिल विजय दिवस के मौके पर आर्मी चीफ जनरल बिपिन रावत की भी चेतावनी का वैसा ही कड़ा अंदाज रहा. बिपिन रावत ने बड़े ही साफ लफ्जों में स्पष्ट कर दिया था, 'सुरक्षाबलों के खिलाफ जो कोई भी स्थानीय आतंकी बंदूक उठा रहा है, वो आतंकवादी नहीं रहेगा... एक ही रणनीति है कि सेना के खिलाफ बंदूक उठाने वाला कोई भी आतंकवादी नहीं रह पाएगा... बंदूक और उस शख्स के साथ अलग-अलग बर्ताव किया जाएगा... वो शख्स कब्र में जाएगा और बंदूक हमारे साथ.'

जनरल रावत ने, हालांकि, ये भी कहा था कि ये एकमात्र हल नहीं है - 'हमारी कोशिश है कि युवा रोजगार की तरफ बढ़ें. अपने सुनहरे भविष्य का रास्ता अपनाएं'

अगर ऐसा नहीं हुआ तो जो होगा वो पहले से ही निश्चित मान कर चलना चाहिये, लगे हाथ जनरल रावत ने ये भी समझाने की कोशिश की, '...गलतियां आम तौर पर दोहराई नहीं जाती हैं. आपको अगली बार खून से सनी हुई नाक मिलेगी.'

कश्मीर पर सबसे सख्त पॉलिसी के साथ आयी है मोदी सरकार!

JK गवर्नर सत्यपाल मलिक भी अलगाववादियों, खासकर गुमराह युवाओें को यही समझाने की कोशिश कर रहे हैं - सरकार से टकराकर बड़े से बड़े आतंकी संगठन मिट्टी में मिल गये. श्रीलंका बहुत दूर नहीं है, जहां कभी लिट्टे के खूंखार किस्से हर जबान पर हुआ करते थे.

स्कूली बच्चों के एक कार्यक्रम में गवर्नर सत्यपाल मलिक ने अलगाववादियों के साथ साथ उनके कारनामों में आकर्षित होने वाले कश्मीरी युवाओं को भी सलाहियत देने की कोशिश की. अंदाज और लहजा बेहद सख्त रहा. हिंदुस्तान जैसे सुपर पॉवर से तुम कुछ छीन सकते हो, सोचना भी मत. आतंकवाद से से कुछ भी हासिल नहीं होने वाला क्योंकि दुनिया में अब तक ऐसा कहीं नहीं हुआ है. अगर कुछ भी संभव है तो उसकी गुंजाइश सिर्फ बातचीत है, कुछ और तो बिलकुल नहीं.

दरअसल, यही मोदी सरकार 2.0 का मैसेज है जो हर किसी के लिए है. कश्मीरी अलगाववादियों से लेकर पाकिस्तान तक, सभी के लिए. सुन रहे हो न वजीर-ए-आजम - पाकिस्तान वाले. मौजूदा पाक PM इमरान खान!

...तो तुम पाकिस्तान चले जाओ!

अब तक बीजेपी के बड़बोले नेताओं से ही एक सलाह सुनने को मिलती रही - '...तो पाकिस्तान चले जाओ!'

ऐसी ही जबान इस बार जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक से सुनने को मिली है - लेकिन दोनों में बहुत बड़ा फर्क है. बीजेपी नेताओं के मुंह से निकली बातों में सांप्रदायिकता का पुट हुआ करता है, लेकिन मलिक की बातें देशभक्ति से सराबोर हैं और पूरी तरह आतंकवाद के खिलाफ हैं. सत्यपाल मलिक भी कह रहे हैं कि जिन्हें 'वो वाली आजादी' चाहिये जिसमें पाकिस्तान वाली फीलिंग है, तो वे आराम से सरहद पार कर चले जायें रोक कौन रहा है.

बच्चों से संवाद करते हुए सत्यपाल मलिक ने कश्मीर के एक शॉल वाले का किस्सा सुनाया है. ये शॉल वाला एक साल तक उनसे पूछता रहा - 'साहब हम आजाद हो जाएंगे क्या?'

शॉल वाले की बात सुन कर गवर्नर मलिक बोले, 'मैंने कहा तुम तो आजाद ही हो.'

शॉलवाले के कहानी सुनाते हुए गवर्नर मलिक ने कहा - 'अगर पाकिस्तान के साथ जाना आजादी समझते हो तो चले जाओ... पल्ली तरफ जाने से कौन रोक रहा है - लेकिन हिंदुस्तान को तोड़ कर तो कोई आजादी नहीं मिलने वाली है.'

एक बात और, सत्यपाल मलिक ने कहा, पाकिस्तान अपना ही नहीं संभाल पा रहा है, तुम्हारा क्या करेगा?

मान कर चलना होगा, ये मोदी सरकार का नया मैसेज है. ये मैसेज हर उस शख्स और तंजीमों के लिए है जो हिंदुस्तान से अलग होकर आजादी के ख्यालात पाले हुए है. ऐसे सभी लोगों के लिए मोदी सरकार का मैसेज कि न तो वे किसी मुगालते में रहें और न ही किसी के बहकावे में आयें - कश्मीर अगर धरती पर जन्नत समझा गया है, तो बिलकुल सही समझा गया है और आगे भी ऐसा ही रहेगा.

जन्नत को कुछ हुआ नहीं, 'बस, रखना संभाल के'

ऐसा भी नहीं लगता कि मोदी सरकार की कश्मीर पॉलिसी में सिर्फ गोली और चेतावनी ही है, तारीफ के शब्द भी हैं. वेलफेयर प्रोग्राम भी है और सूबे में एक लोकतांत्रिक सरकार भी. मोदी कैबिनेट की जम्मू-कश्मीर के लिए भी आरक्षण को मंजूरी दिये जाने का भी संदेश तो यही है. है कि नहीं?

सत्यपाल मलिक का ये भी मानना है कि एक बार कश्मीर के लोगों को बात समझ में आ जाये तो कश्मीर देश का सबसे विकसित और बेहतरीन राज्य हो सकता है.

बकौल गवर्नर मलिक जम्मू-कश्मीर के 22 हजार बच्चे बाहर पढ़ते हैं और ये बच्चे बेहद काबिल हैं. कश्मीर की बेटियां, मलिक के ही शब्दों में, दुनिया में बेहतरीन डॉक्टर कहलाती हैं.

सही बात है अगर इतना कुछ है तो बाहर झांकने और किसी ऐरे-गैरे के झांसे में आने की जरूरत क्या है? कश्मीर आज भी जन्नत है, जरूरत है तो बस उसे संभाल कर रखने की. प्रधानमंत्री मोदी खुद भी अपने घाटी दौरों में ये बातें समझाने की कोशिश करते रहे हैं. मोदी सरकार का यही मैसेज है और महामहिम ये ही समझाने की कोशिश भी कर रहे हैं - है तो ये मोदी सरकार ही, लेकिन वो वाली नहीं, ये नयी वाली है. अवाम जब मैंडेट देता है तो ऐसे सियासी हुनर भी आ ही जाते हैं - 'मैंडेट है तो मुमकिन है!'

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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