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Congress छोड़ BJP आए गुलाम नबी आजाद के भतीजे मुबशर आजाद की टाइमिंग के तो कहने ही क्या!

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 01 मार्च, 2022 01:22 PM
  • 01 मार्च, 2022 01:22 PM
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जम्मू और कश्मीर विधानसभा चुनावों में भले ही अभी वक़्त हो लेकिन घाटी में सियासी सरगर्मियां और दल बदल जोरों पर है. इसी क्रम में कश्मीर में कांग्रेस पार्टी को बड़ा झटका लगा है. कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं में शुमार गुलाम नबी आजाद के भतीजे, मुबशर आजाद ने राहुल गांधी का हाथ छोड़ भाजपा का साथ चुना है और चाचा की बेकद्री को कांग्रेस छोड़ने की वजह बताया है.

भारतीय राजनीति में दल बदल के दौरान बहानों की परंपरा कोई आज की नहीं है. ये एक पुरानी स्ट्रेटर्जी है जो नेताओं के लिए हमेशा ही फायदेमंद साबित हुई है. इससे वर्चस्व बना रहता है. हालिया दौर में भी हमने अलग अलग बहानों का हवाला देकर नेताओं को दल बदल करते देखा है. तो क्या किसी साधारण 'बात' को मुद्दा बनाकर नेताओं का एक दल से दूसरे दल में जाना अचानक होता है? नहीं. नेता द्वारा इसके लिए अच्छा खासा होमवर्क होता है. प्लानिंग को अंजाम दिया जाता है. राय मश्वरे के बाद सही मौका खोजा जाता है और मौका देखकर चौका बिल्कुल मुबशर आज़ाद की तरह जड़ा जाता है जिन्होंने कांग्रेस का दामन छोड़ भाजपा से हाथ मिलाया है. मुबशर आज़ाद के विषय में दिलचस्प ये कि उन्होंने दल बदल से पहले कांग्रेस पार्टी में अपने चाचा के सम्मान को मुद्दा बनाया है.

कम लोग होंगे जो मुबशर आज़ाद से वाकिफ होंगे. बहुतों ने तो नाम भी शायद पहली बार सुना हो. और जिक्र चूंकि चाचा का भी हो ही गया है तो ऐसे में ये बताना भी बहुत जरूरी हो जाता है कि मुबशर आज़ाद, जम्मू कश्मीर से हैं और कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेताओं में शुमार गुलाब नबी आजाद के भतीजे हैं. चूंकि भतीजा भगवा रंग में रंग चुका है इसलिए सवाल होने शुरू हो गए हैं कि क्या चाचा भी भाजपा में आएंगे?

मुबशर आज़ाद का कांग्रेस छोड़ भाजपा जॉइन करना राहुल गांधी के लिए एक बड़ा झटका है

ये और इस तरह के मिलते जुलते सवाल तब और विस्तृत हो जाते हैं जब हम ये देखते हैं कि कांग्रेस, विशेषकर राहुल गांधी से नाराज चल रहे गुलाम नबी को अभी बीते दिनों ही सरकार ने पद्म सम्मान से नवाजा. मुबशर आज़ाद के भाजपा जॉइन करने या घाटी के इस बड़े दल बदल पर विस्तृत चर्चा करने से पहले हमारे लिए ये बता देना बहुत जरूरी हो जाता है कि सरकार द्वारा गुलाम नबी आजाद को पद्म सम्मान...

भारतीय राजनीति में दल बदल के दौरान बहानों की परंपरा कोई आज की नहीं है. ये एक पुरानी स्ट्रेटर्जी है जो नेताओं के लिए हमेशा ही फायदेमंद साबित हुई है. इससे वर्चस्व बना रहता है. हालिया दौर में भी हमने अलग अलग बहानों का हवाला देकर नेताओं को दल बदल करते देखा है. तो क्या किसी साधारण 'बात' को मुद्दा बनाकर नेताओं का एक दल से दूसरे दल में जाना अचानक होता है? नहीं. नेता द्वारा इसके लिए अच्छा खासा होमवर्क होता है. प्लानिंग को अंजाम दिया जाता है. राय मश्वरे के बाद सही मौका खोजा जाता है और मौका देखकर चौका बिल्कुल मुबशर आज़ाद की तरह जड़ा जाता है जिन्होंने कांग्रेस का दामन छोड़ भाजपा से हाथ मिलाया है. मुबशर आज़ाद के विषय में दिलचस्प ये कि उन्होंने दल बदल से पहले कांग्रेस पार्टी में अपने चाचा के सम्मान को मुद्दा बनाया है.

कम लोग होंगे जो मुबशर आज़ाद से वाकिफ होंगे. बहुतों ने तो नाम भी शायद पहली बार सुना हो. और जिक्र चूंकि चाचा का भी हो ही गया है तो ऐसे में ये बताना भी बहुत जरूरी हो जाता है कि मुबशर आज़ाद, जम्मू कश्मीर से हैं और कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेताओं में शुमार गुलाब नबी आजाद के भतीजे हैं. चूंकि भतीजा भगवा रंग में रंग चुका है इसलिए सवाल होने शुरू हो गए हैं कि क्या चाचा भी भाजपा में आएंगे?

मुबशर आज़ाद का कांग्रेस छोड़ भाजपा जॉइन करना राहुल गांधी के लिए एक बड़ा झटका है

ये और इस तरह के मिलते जुलते सवाल तब और विस्तृत हो जाते हैं जब हम ये देखते हैं कि कांग्रेस, विशेषकर राहुल गांधी से नाराज चल रहे गुलाम नबी को अभी बीते दिनों ही सरकार ने पद्म सम्मान से नवाजा. मुबशर आज़ाद के भाजपा जॉइन करने या घाटी के इस बड़े दल बदल पर विस्तृत चर्चा करने से पहले हमारे लिए ये बता देना बहुत जरूरी हो जाता है कि सरकार द्वारा गुलाम नबी आजाद को पद्म सम्मान दिए जाने के बाद कांग्रेस पार्टी दो धड़ों में बंट गई है.

शशि थरूर और राज बब्बर जैसे लोगों ने गुलाम नबी आजाद की शान में कसीदे रचे तो वहीं पार्टी में जयराम रमेश जैसे नेता भी हैं जिन्होंने पद्म सम्मान को लेकर गुलाम नबी पर निशाना साधा है. जिक्र क्योंकि मुबशर आज़ाद का हुआ है तो बताते चलें कि कांग्रेस के दिग्गज नेताओं में शुमार गुलाम नबी आजाद के भतीजे मुबशर आजाद जम्मू में भाजपा में शामिल हुए.

मुबशर आज़ाद के बारे में रोचक तथ्य ये भी है कि जहां एक तरफ इनका शुमार डोडा के युवा नेताओं में है तो वहीं दूसरी तरफ मुबशर काफी लंबे समय तक कांग्रेस पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी की टीम का हिस्सा थे. मुबशर आजाद का भाजपा से जुड़ना घाटी की सियासत के लिहाज से भाजपा के लिए एक बड़ी जीत है. इससे भाजपा की जम्मू कश्मीर इकाई के अध्यक्ष रविंदर रैना भी खासे उत्साहित हैं.

पार्टी में नए लोगों का स्वागत करते हुए, रविंदर रैना ने तमाम तरह की बातें की हैं और आरोप लगाया है कि कांग्रेस, नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी जैसी पार्टियों ने सत्ता की विलासिता का आनंद लेने के अलावा घाटी के लिए कुछ नहीं किया. रैना ने कहा कि यह केवल प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार थी जिसने यह सुनिश्चित करने के लिए "पर्याप्त कदम" उठाए कि जम्मू-कश्मीर में बुनियादी स्तर पर लोकतंत्र को मजबूत किया जाए और यहां रहने वाले हर समुदाय को अधिकार दिया जाए.

रैना भाजपा नेतृत्व की नीतियों की सभी सराहना कर रहे हैं और कह रहे हैं कि यही वह कारण है जिसके चलते हर रोज़ कोई न कोई बड़ी शख्सियत भाजपा के खेमे का रुख कर रही है. चूंकि मुबशर आजाद के साथ और लोग भी भाजपा में आए हैं. रैना ने कहा कि मुबशर आजाद के नेतृत्व में नए सदस्य न केवल डोडा, किश्तवाड़, रामबन और अन्य क्षेत्रों में पार्टी को मजबूत करेंगे बल्कि जम्मू-कश्मीर के पूरे क्षेत्र के युवाओं को राष्ट्र और समाज के लिए काम करने के लिए प्रोत्साहित करेंगे.

वहीं कांग्रेस और राहुल गांधी का साथ छोड़ भाजपा आने वाले मुबशर आजाद ने कहा है कि वह जम्मू-कश्मीर और केंद्र में वर्तमान कांग्रेस नेतृत्व द्वारा अपने चाचा, पूर्व मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद के अपमान से बहुत आहत हैं.

उन्होंने कहा कि जिस तरह से कांग्रेस पार्टी ने गुलाम नबी आजाद के साथ व्यवहार किया, उससे आम जनता की भावनाओं को ठेस पहुंची है. मुबशर ने इस बात पर भी बल दिया कि पीएम मोदी ने पूर्व सीएम जम्मू कश्मीर गुलाम नबी आजाद के प्रयासों को मान्यता दी है. साथ ही उन्होंने ये भी कहा कि कांग्रेस पार्टी के भीतर पूरी तरह से स्वार्थी अंतर्कलह है.

बहरहाल, जल्द ही कश्मीर में चुनाव होने हैं जिन्हें लेकर राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी रणनीति बनाए उससे पहले ही मुबशर आजाद के हाथ का साथ छोड़कर भाजपा में जाने ने सारा समीकरण बिगाड़ दिया है. क्योंकि भाजपा ज्वाइन करते वक़्त मुबशर आजाद ने चाचा गुलाम नबी आजाद का हवाला दिया है. साफ़ है कि ये चीज भी वोटर्स को प्रभावित करेगी और फिर शायद ही चुनाव के दौरान वोट कांग्रेस के पक्ष में पड़ें.

अंत में हम बस ये कहकर अपनी बातों को विराम देंगे कि चूंकि मुबशर आजाद घाटी से हैं. कांग्रेस पार्टी और राहुल गांधी की नीतियों से आहत चल रहे गुलाम नबी आजाद के भतीजे हैं तो जाहिर हैं कश्मीर की सियासत के मद्देनजर भाजपा उन्हें कोई बड़ा पद दे देगी. कुल मिलाकर जैसा वक़्त अभी है मुबशर की पांचों अंगुलियां घी और सिर कड़ाई में है. मुबशर आजाद ने सही फैसला लेने के लिए बिल्कुल सही वक़्त चुना है और साथ ही जो बहाना उनका है वो भी खासा दमदार और उसमें वजन है.

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