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लड़कियों की शादी की उम्र बढ़ाए जाने से मुस्लिम पर्सनल लॉ का टकराव कैसा?

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 19 दिसम्बर, 2021 02:23 PM
  • 19 दिसम्बर, 2021 02:23 PM
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इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (आईयूएमएल) ने संसद में लड़कियों की शादी की उम्र 18 से 21 साल करने के सरकार के प्रस्ताव का विरोध करते हुए स्थगन प्रस्ताव का नोटिस दिया था. IUML ने तर्क दिया है कि यह मुस्लिम पर्सनल लॉ में अतिक्रमण है. वहीं खुद मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड भी सरकार के इस फैसले के खिलाफ है.

बीते कुछ सालों से जैसा देश के मुसलामानों और मुस्लिम इदारों का रवैया अजीब है. उन्होंने कसम खा ली है कि केंद्र अगर कुछ भी अच्छा करे या सामाजिक बदलाव के लिए कोई बड़ी पहल करे तो उसमें मीन मेख निकालनी है, और उसका कलेक्टिव विरोध करना है. CAA का मामला तो विदेशी नागरिकों से जुड़ा था, लेकिन उसे स्‍थानीय मुसलमानों का मुद्दा बनाकर बवाल काट दिया गया. अब बारी आई है लड़कियों की शादी की उम्र को लेकर. मोदी सरकार ने जब से लड़कियों की शादी की न्यूनतम उम्र 21 साल करने का मन बनाया है, एक मुस्लिम धड़े के पेट में मरोड़ उठना शुरू हो गए हैं. समाजवादी पार्टी के ही दो मुस्लिम दानिश्‍वरों ने इस पर अजीबोगरीब बयान दिया था. एक सपा सांसद कहते हैं कि शादी उम्र बढ़ा देने से लड़कियों को आवारगी का मौका मिलेगा. जबकि एक अन्‍य सपा सांसद ने कहा कि 16 साल की उम्र में लड़कियां सबसे ज्‍यादा फर्टाइल होती हैं. अब इन दो जुमलों के बाद तो यही लगा कि लड़कियां न हुईं, सिर्फ मर्दों की जिम्‍मेदारी हो गईं या बच्चा पैदा करने की मशीन.

खैर, अब मुस्लिम पर्सनल लॉ भी इस मुद्दे पर अपनी उपस्थिति जताना चाहता है. उसने कह दिया है कि मोदी सरकार का ये फैसला मुस्लिम रीति रिवाजों, उनके पर्सनल लॉ में दखलंदाजी है. दरअसल हुआ कुछ यूं है कि अभी बीते दिनों ही इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (आईयूएमएल) ने संसद में लड़कियों की शादी की उम्र 18 से 21 साल करने के सरकार के प्रस्ताव का विरोध करते हुए स्थगन प्रस्ताव का नोटिस दिया था. IML ने तर्क दिया है कि यह मुस्लिम पर्सनल लॉ में अतिक्रमण है.

लड़कियों की शादी की उम्र के मसले ने अब मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड को भी आहत कर दिया है

IML के नेता और राज्यसभा सांसद अब्दुल वहाब का मानना है कि, 'लड़कियों की शादी की उम्र 18 से बढ़ाकर 21 साल...

बीते कुछ सालों से जैसा देश के मुसलामानों और मुस्लिम इदारों का रवैया अजीब है. उन्होंने कसम खा ली है कि केंद्र अगर कुछ भी अच्छा करे या सामाजिक बदलाव के लिए कोई बड़ी पहल करे तो उसमें मीन मेख निकालनी है, और उसका कलेक्टिव विरोध करना है. CAA का मामला तो विदेशी नागरिकों से जुड़ा था, लेकिन उसे स्‍थानीय मुसलमानों का मुद्दा बनाकर बवाल काट दिया गया. अब बारी आई है लड़कियों की शादी की उम्र को लेकर. मोदी सरकार ने जब से लड़कियों की शादी की न्यूनतम उम्र 21 साल करने का मन बनाया है, एक मुस्लिम धड़े के पेट में मरोड़ उठना शुरू हो गए हैं. समाजवादी पार्टी के ही दो मुस्लिम दानिश्‍वरों ने इस पर अजीबोगरीब बयान दिया था. एक सपा सांसद कहते हैं कि शादी उम्र बढ़ा देने से लड़कियों को आवारगी का मौका मिलेगा. जबकि एक अन्‍य सपा सांसद ने कहा कि 16 साल की उम्र में लड़कियां सबसे ज्‍यादा फर्टाइल होती हैं. अब इन दो जुमलों के बाद तो यही लगा कि लड़कियां न हुईं, सिर्फ मर्दों की जिम्‍मेदारी हो गईं या बच्चा पैदा करने की मशीन.

खैर, अब मुस्लिम पर्सनल लॉ भी इस मुद्दे पर अपनी उपस्थिति जताना चाहता है. उसने कह दिया है कि मोदी सरकार का ये फैसला मुस्लिम रीति रिवाजों, उनके पर्सनल लॉ में दखलंदाजी है. दरअसल हुआ कुछ यूं है कि अभी बीते दिनों ही इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (आईयूएमएल) ने संसद में लड़कियों की शादी की उम्र 18 से 21 साल करने के सरकार के प्रस्ताव का विरोध करते हुए स्थगन प्रस्ताव का नोटिस दिया था. IML ने तर्क दिया है कि यह मुस्लिम पर्सनल लॉ में अतिक्रमण है.

लड़कियों की शादी की उम्र के मसले ने अब मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड को भी आहत कर दिया है

IML के नेता और राज्यसभा सांसद अब्दुल वहाब का मानना है कि, 'लड़कियों की शादी की उम्र 18 से बढ़ाकर 21 साल करने का प्रस्ताव, जिसे कैबिनेट ने मंज़ूरी दे दी है, उसका मक़सद मुस्लिम पर्सनल लॉ में अतिक्रमण करना भी है.' बात विरोध की चल रही है तो चाहे वो यूपी के संभल से सपा के सांसद शफीकुर्रहमान बर्क हों या एआईएमआईएम चीफ असदुद्दीन ओवैसी, जिस तरह ये तमाम नेतागण एक जायज चीज यानी लड़कियों की शादी की उम्र को व्यर्थ का मुद्दा बना रहे हैं साफ है कि मुस्लिम इदारों में खलबली मच गई है. शायद उनको ये डर सता रहा हो कि इस फैसले के बाद अब लड़कियां ज्यादा लिखेंगी पढ़ेगी जो कहीं न कहीं उनकी सत्ता को प्रभावित करेगा. यानी आज जो लड़कियों की शादी की उम्र 18 से 21 किये जाने पर विरोध हो रहा है उसकी एक बड़ी वजह उस सत्ता को बचाना है जिसपर ये लोग, इनके संगठन बरसों से कुंडली मारे बैठे हैं. मामले पर मुस्लिम नेताओं का क्या रवैया है गर जो इसका अंदाजा लगाना हो तो कहीं दूर क्या ही जाना केरल का ही रुख कर लीजिये जहां ग़लतबयानी एक बार फिर मुस्लिम समाज के पतन की वजह बनती नजर आ रही है.

ध्यान रहे अभी बीते दिनों ही मुस्लिम लीग के नेता ईटी मोहम्मद बशीर ने लोकसभा में लड़कियों की शादी की उम्र बढ़ाने के ख़िलाफ़ स्थगन प्रस्ताव का नोटिस देते हुए कहा था कि यह फ़ैसला मुस्लिम पर्सनल लॉ के ख़िलाफ़ है और यूनिफॉर्म सिविल कोड की तरफ़ सरकार ने एक और क़दम बढ़ा दिया है.

सवाल ये है कि जब खुद मुस्लिम महिलाएं भी सरकार के साथ हैं तो फिर ये व्यर्थ का तमाशा क्यों हो रहा है? जवाब सीधा, स्पष्ट और शायद चुभने वाला है. चूंकि शरिया के अनुसार पीरियड आने के बाद लड़कियां विवाह योग्य हो जाती हैं तो ज्यादातर मुस्लिम उनके हाथ पीले कर देते हैं. फायदा ये होता है कि परिवार का वो खर्च बच जाता है जो उनकी लिखे पढ़ाई में व्यय होता है.

अब जबकि सरकार ने नियम बना दिया है. तो होगा ये कि अब मुस्लिम परिवारों की मज़बूरी रहेगी उन्हें घर में रखना. और जाहिर है समाज को दिखाने के लिए ही सही उसे स्कूल, कॉलेज, यूनिवर्सिटी भेजना होगा. जहां लड़की को उसके अधिकार तो पता चलेंगे ही साथ ही वो रौशन ख्याल होगी और गलत चीजों, कुरीतियों और आडंबरों का विरोध करेगी. अब आप खुद बताइये हर बात पर विरोध करने वाली या 'बागी' लड़कियां किसी को पसंद होती हैं क्या?

साफ़ है कि भले ही मॉडर्न बनने की बड़ी बड़ी बातें कितनी भी क्यों न हो जाएं. आज आजादी के 70 दशकों बाद भी मुस्लिम समाज औरतों को अंधकार में रखना चाहता है. सरकार ने मुस्लिम महिलाओं को मौका दे दिया है. नियम का विरोध कर रहे मुस्लिम इंटीलेक्चुअल्स को लग यही रहा है कि यदि मुस्लिम महिलाएं जागरूक हो गईं तो फिर क्या होगा? जिक्र मुस्लिम मुस्लिम लॉ और मुस्लिम लॉ बोर्ड का हुआ है तो कहना गलत नहीं है कि लड़कियों की शादी की उम्र 18 से 21 साल कर मोदी सरकार ने मुस्लिम कटटरपंथियों की सोच को चुनौती दे दी है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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