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पाकिस्तानियों को परेशान करने के लिए इतना ही काफी है

    • मोहम्मद वक़ास
    • Updated: 27 सितम्बर, 2016 01:51 PM
  • 27 सितम्बर, 2016 01:51 PM
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हमारी कूटनीति का मकसद पाकिस्तान को साधना, उसे अपने ही में व्यस्त रखना है और यह काम एक भी गोली-गोला दागे बगैर बखूबी हो रहा है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोझिकोड में पाकिस्तान से जंग करने के उन्माद पर पानी फेर दिया. यह दीगर बात है कि इस उन्माद को उन्होंने, उनके मंत्रियों और पार्टी के नेताओं ने ही अपने बयानों से बढ़ाया था. टीवी चैनल, सोशल मीडिया और मध्य वर्ग के ड्राइंग रूम में पाकिस्तान पर हमले को अवश्यंभावी बताया जा रहा था. सर्जिकल स्ट्राइक से लेकर पोशीदा हमले तक तरह-तरह के तरीके सुझाए जा रहे थे. चूंकि मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए खुद ही पाकिस्तान को उसी की भाषा में समझाने के बयान दे चुके हैं, लिहाजा पाकिस्तान से युद्ध चाहने वालों की यह मांग बेजा नहीं थी. लेकिन मोदी ने प्रधानमंत्री बनने के बाद अपना रवैया बदल लिया और अब युद्धोन्मादियों को उकसाना नहीं चाहिए.

'पाकिस्तान को अलग-थलग कर देंगे'

मोदी ने राजनेताओं जैसी बात की: गरीबी से लड़ाई लड़ें और देखें कि पहले कौन जीतता है. साथ ही उन्होंने यह भी कह दिया कि पाकिस्तान को अलग-थलग कर देंगे. हालांकि पाकिस्तान को अलग-थलग करने की कोशिश बहुत पहले से जारी है और अब तक इसका खास असर नहीं हुआ है, लेकिन मोदी सरकार ने पिछले कुछ समय में ऐसे कदम उठाए हैं, जिससे कम से कम पाकिस्तान के अतिवादियों को कसमसाहट महसूस होने लगी है.

ये भी पढ़ें- मोदी की बातों से ज्यादा प्रभावित कौन- भारतीय मुसलमान या पाकिस्तानी अवाम ?

बलूचिस्तान पाकिस्तान की...

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोझिकोड में पाकिस्तान से जंग करने के उन्माद पर पानी फेर दिया. यह दीगर बात है कि इस उन्माद को उन्होंने, उनके मंत्रियों और पार्टी के नेताओं ने ही अपने बयानों से बढ़ाया था. टीवी चैनल, सोशल मीडिया और मध्य वर्ग के ड्राइंग रूम में पाकिस्तान पर हमले को अवश्यंभावी बताया जा रहा था. सर्जिकल स्ट्राइक से लेकर पोशीदा हमले तक तरह-तरह के तरीके सुझाए जा रहे थे. चूंकि मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए खुद ही पाकिस्तान को उसी की भाषा में समझाने के बयान दे चुके हैं, लिहाजा पाकिस्तान से युद्ध चाहने वालों की यह मांग बेजा नहीं थी. लेकिन मोदी ने प्रधानमंत्री बनने के बाद अपना रवैया बदल लिया और अब युद्धोन्मादियों को उकसाना नहीं चाहिए.

'पाकिस्तान को अलग-थलग कर देंगे'

मोदी ने राजनेताओं जैसी बात की: गरीबी से लड़ाई लड़ें और देखें कि पहले कौन जीतता है. साथ ही उन्होंने यह भी कह दिया कि पाकिस्तान को अलग-थलग कर देंगे. हालांकि पाकिस्तान को अलग-थलग करने की कोशिश बहुत पहले से जारी है और अब तक इसका खास असर नहीं हुआ है, लेकिन मोदी सरकार ने पिछले कुछ समय में ऐसे कदम उठाए हैं, जिससे कम से कम पाकिस्तान के अतिवादियों को कसमसाहट महसूस होने लगी है.

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बलूचिस्तान पाकिस्तान की दुखती रग है. वहां विद्रोह को भारत का गुप्त समर्थन बहुत पहले से था लेकिन मोदी ने इसे सार्वजनिक कर दिया. आकाशवाणी की बलूच सेवा के अलावा ऐप बनाने में माहिर हमारी सरकार ने बलूच लोगों के लिए भी मोबाइल ऐप तैयार कर दी है. विद्रोही नेताओं- मीर सलमान दाऊद, खाने कलात, ब्रहमदाग बुग्तीव और मीर बलोच मरी को समर्थन दिया जा रहा है. कलात ने तो भारत और इस्राइल के सहयोग से बलूचिस्तान को आजाद कराने की भी बात कही है. प्रधानमंत्री ने पख्तूनों को उकसाने के लिए पख्तूनिस्तान का भी नाम लिया. पाकिस्तान के लोगों का मानना है कि तहरीक-ए तालिबान पाकिस्तान को भारतीय मदद मिलती है. इसी तरह गिलगित-बलतिस्तान के बागियों को और कुछ नहीं तो नैतिक समर्थन हासिल ही है.

पाकिस्तान ने भले ही 30 लाख अफगानियों को शरण दी हो, उसकी सरहद मिलती हो लेकिन भारत ने अफगानियों का दिल जीता है. अब हालत यह है कि अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी और चीफ एग्जीक्यूटिव अब्दुल्लाह अब्दुल्लाह अपने देश में दहशतर्गी की लगभग हर घटना के लिए पाकिस्तान को जिम्मेदार मानते हैं. पाकिस्तानियों को इस बात का मलाल है कि अफगानिस्तान में बलूचिस्तान का परचम फहराया जाता है, सरहद पर स्थित बाब-ए दोस्ती (दोस्ती का दरवाजा) पर अफगानियों ने हमला किया और पाकिस्तान के खिलाफ जुलूस निकालते हैं.

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अफगानिस्तान और पाकिस्तान से सटे ईरान के साथ भारत के पुराने रिश्ते रहे हैं. चाबहार बंदरगाह के बहाने भारत ने उससे कई तरह के समझौते किए हैं, जो पाकिस्तान के भारत विरोधी हरकतों को लगाम देते हैं. अमेरिका और ईरान के संबंध बेहतर होने के बाद भारत-अमेरिका परमाणु समझौते के कारण ईरान के साथ कड़वाहट भी दूर हो गई है.

मध्य एशिया के मुस्लिम देशों के साथ भी भारत के रिश्ते अच्छे हैं और कम से कम अपनी जमीन से वे भारत विरोधी किसी भी तरह की आतंकवादी गतिविधि की इजाजत नहीं देते. इसके अलावा, उनमें कई देशों के साथ भारत ने कई महत्वपूर्ण समझौते कर रखे हैं.

सबसे मजेदार बात यह है कि भारत ने ईरान, सऊदी अरब और इस्राइल, तीनों से दोस्ती गांठ रखी है. ईरान हिज्बुल्ला और फलस्तीन का समर्थक है, और महमूद अहमदीनेजाद इस्राइल को दुनिया के मानचित्र से खत्म करना चाहते थे. सीरिया के बशार अल असद, यमन के हूसी बागियों को समर्थन की वजह से सऊदी अरब समेत खाड़ी के अरब देश उससे खार खाए बैठे हैं. यमन में हूसी बागियों के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए अरब देशों ने पिछले साल पाकिस्तान से अपनी फौज भेजने को कहा था. पाकिस्तान की राष्ट्रीय एसेंबली ने अपनी फौज भेजने से साफ इनकार कर दिया. यमन से लेकर लीबिया तक अरब देशों की सुरक्षा में पाकिस्तान की निष्पक्षता पर यूएई के विदेश मंत्री डॉ. अनवर मोहम्मद गरगश इतना नाराज हो गए कि उन्होंने पाकिस्तान को इसकी महंगी कीमत चुकाने की धमकी दे दी. उन्होंने कहा कि इस्लामाबाद के लिए तेहरान ज्यादा महत्वपूर्ण हो गया. दरअसल, पाकिस्तान की फौज में करीब 30 फीसदी शिया हैं, और वह ईरान समर्थित हूसियों के खिलाफ फौज खड़ी करके अपनी मुसीबत नहीं बढ़ाना चाहता था.

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ऐसे में भारत को सही मौका मिल गया. मोदी ने यूएई और सऊदी अरब का दौरा किया. यूएई ने भारत में साढ़े चार लाख करोड़ रुपए के निवेश का आश्वासन दिया और सऊदी अरब के बादशाह सलमान ने मोदी को अपने देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान दिया. पश्चिम एशिया के हालात ने मोदी को अपनी पैठ बनाने का मौका दिया और पाकिस्तान से उसके दोस्तों को छीन लिया. पाकिस्तानी हाथ मलते रह गए. मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फतेह अल सीसी ने भी भारत दौरे के समय स्पष्ट कर दिया कि वे आतंकवाद के खिलाफ भारत की मुहिम में साथ हैं. इन सबसे पाकिस्तानियों के दिल पर सांप लोट रहा है.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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