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माफी से केजरीवाल को कितना नफा, कितना नुकसान?

    • आशुतोष मिश्रा
    • Updated: 17 मार्च, 2018 12:16 PM
  • 17 मार्च, 2018 12:13 PM
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दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल बिक्रम सिंह मजीठिया से माफ़ी मांग चुके हैं मगर इसपर आलोचकों का तर्क है कि इस माफ़ी के पीछे भी राजनीति है और भविष्य में केजरीवाल कभी भी धमाका कर सियासी गलियारों में हड़कंप मचा सकते हैं.

आमतौर पर यह कहा समझा जाता है कि माफी मांगने वाला छोटा नहीं होता और माफी मांगने के लिए बड़ा दिल और बड़ी हिम्मत चाहिए. लेकिन किस तरह के मामलों में माफी के पर ऐसे विचार लागू होते हैं? कम से कम दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने जिन मामलों को लेकर माफी मांगने शुरू की है क्या उसके पीछे ऐसे तक फिट बैठते हैं? ऐसा लगता नहीं है. अगर आप कोई गलती करते हैं और फिर उसके लिए माफी मांग लेते हैं तो भारत जैसा महान देश ग़लतियों को हमेशा माफ कर देता है.

49 दिन की सरकार छोड़ अपनी राष्ट्रीय महत्वकांक्षा पूरी करने निकले केजरीवाल जब दोबारा दिल्ली के चुनाव में प्रचार के लिए वापस आए तो उन्होंने अपनी पिछली गलती के लिए माफी को सबसे बड़ा हथियार बनाया. केजरीवाल की माफी पर पिघली दिल्ली की जनता ने उन्हें फिर सर आंखों पर बिठाया और भारत के इतिहास में पहले कभी ना हुआ हो ऐसा जनादेश लेकर दिल्ली की सत्ता पर बिठाया. लेकिन अब अकाली नेता और पंजाब के पूर्व मंत्री बिक्रम सिंह मजीठिया से मांगी गई केजरीवाल की माफी किसी को पच नहीं रही है.

कह सकते हैं कि माफ़ी मांगकर केजरीवाल ने अपनी मुसीबत कम करने का काम किया है

न पार्टी के नेता उसका बचाव कर पा रहे हैं ना कार्यकर्ता फैसले के साथ खड़े दिखाई दे रहे हैं. आम आदमी पार्टी की ओर से आ रही खबरों को माने तो जल्दी ही केजरीवाल बीजेपी नेता और वित्त मंत्री अरुण जेटली, नितिन गडकरी, बीजेपी सांसद रमेश बिधूड़ी जैसे उन तमाम नेताओं से माफी मांग सकते हैं जिन्होंने केजरीवाल पर मानहानि का मुकदमा दायर किया है. वहीं केजरीवाल की माफी पर आम आदमी पार्टी की पंजाब यूनिट में दो फाड हो गई है.

प्रदेश अध्यक्ष और पंजाब का सबसे बड़ा चेहरा भगवंत मान पर से इस्तीफा दे चुके हैं. बैंस ब्रदर्स की पार्टी के साथ आम आदमी पार्टी का गठबंधन टूट चुका है....

आमतौर पर यह कहा समझा जाता है कि माफी मांगने वाला छोटा नहीं होता और माफी मांगने के लिए बड़ा दिल और बड़ी हिम्मत चाहिए. लेकिन किस तरह के मामलों में माफी के पर ऐसे विचार लागू होते हैं? कम से कम दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने जिन मामलों को लेकर माफी मांगने शुरू की है क्या उसके पीछे ऐसे तक फिट बैठते हैं? ऐसा लगता नहीं है. अगर आप कोई गलती करते हैं और फिर उसके लिए माफी मांग लेते हैं तो भारत जैसा महान देश ग़लतियों को हमेशा माफ कर देता है.

49 दिन की सरकार छोड़ अपनी राष्ट्रीय महत्वकांक्षा पूरी करने निकले केजरीवाल जब दोबारा दिल्ली के चुनाव में प्रचार के लिए वापस आए तो उन्होंने अपनी पिछली गलती के लिए माफी को सबसे बड़ा हथियार बनाया. केजरीवाल की माफी पर पिघली दिल्ली की जनता ने उन्हें फिर सर आंखों पर बिठाया और भारत के इतिहास में पहले कभी ना हुआ हो ऐसा जनादेश लेकर दिल्ली की सत्ता पर बिठाया. लेकिन अब अकाली नेता और पंजाब के पूर्व मंत्री बिक्रम सिंह मजीठिया से मांगी गई केजरीवाल की माफी किसी को पच नहीं रही है.

कह सकते हैं कि माफ़ी मांगकर केजरीवाल ने अपनी मुसीबत कम करने का काम किया है

न पार्टी के नेता उसका बचाव कर पा रहे हैं ना कार्यकर्ता फैसले के साथ खड़े दिखाई दे रहे हैं. आम आदमी पार्टी की ओर से आ रही खबरों को माने तो जल्दी ही केजरीवाल बीजेपी नेता और वित्त मंत्री अरुण जेटली, नितिन गडकरी, बीजेपी सांसद रमेश बिधूड़ी जैसे उन तमाम नेताओं से माफी मांग सकते हैं जिन्होंने केजरीवाल पर मानहानि का मुकदमा दायर किया है. वहीं केजरीवाल की माफी पर आम आदमी पार्टी की पंजाब यूनिट में दो फाड हो गई है.

प्रदेश अध्यक्ष और पंजाब का सबसे बड़ा चेहरा भगवंत मान पर से इस्तीफा दे चुके हैं. बैंस ब्रदर्स की पार्टी के साथ आम आदमी पार्टी का गठबंधन टूट चुका है. पार्टी के ज्यादातर विधायक केजरीवाल के फैसले से नाराज हैं और कहा यह भी जा रहा है कि वह कहीं अपना एक अलग दल ना बना लें. कुल मिलाकर यह लगता है कि पंजाब चुनाव में मजीठिया पर आरोप लगाने के बाद केजरीवाल को इतना नुकसान नहीं उठाना पड़ा जितना उन्हें चुनावों के 1 साल बाद मजीठिया से माफी मांगने के बाद उठाना पड़ रहा है.

बिक्रम सिंह मजीठिया के खिलाफ पंजाब की कांग्रेस सरकार भले कुछ न कर पाई हो लेकिन सिद्धू जैसे इस सरकार के मंत्री और अब कांग्रेस के नेता भी इस माफीनामे को लेकर केजरीवाल पर हमला करने से नहीं चूके. जाहिर है जब ऐसे मौकों पर पार्टी के अपने ही विद्रोह कर दे तो बाहर वालों के लिए यह सुनहरा मौका क्यों ना बने?

केजरीवाल के माफ़ी मांगने से उनके आलोचक बेचैन हो गए हैं

सवाल यह है कि केजरीवाल को इस माफीनामे से आखिर हासिल क्या होगा? आम आदमी पार्टी की ओर से दलील दी गई है ऐसे राजनीतिक मुकदमों के चलते दिल्ली के मुख्यमंत्री का समय व्यर्थ हो रहा है और उन्हें ज्यादा से ज्यादा अदालतों के चक्कर लगाने पड़ रहे हैं. आप का कहना है कि अदालतों के चक्कर अगर सूबे का मुख्यमंत्री लगाएगा तो उससे राज्य का काम प्रभावित होगा. आम आदमी पार्टी ने दलील दी है कि जो मामले राजनीतिक हैं उन्हें जनता के बीच निपटाया जाए ना की अदालत में.

तब यह सवाल उठता है कि क्या अरविंद केजरीवाल को इस बात का एहसास तब नहीं था जब उन्होंने अपने विरोधियों पर तमाम आरोप लगाए और राजनीतिक हमले किए बिक्रम सिंह मजीठिया पर अंतरराष्ट्रीय ड्रग तस्करी में शामिल होने का आरोप केजरीवाल ने तब लगाया जब वह दिल्ली के मुख्यमंत्री थे. मानहानि का केस होने के बाद केजरीवाल ने सवाल के जवाब में यह कहा था कि वह किसी मुकदमे से नहीं डरेंगे.

आज एक साल बाद आखिर केजरीवाल के व्यक्तित्व में इतना परिवर्तन कैसे हो गया? अगर आम आदमी पार्टी की दलीलों को मान लें कि केजरीवाल बतौर मुख्य मंत्री होने के नाते अपना वक्त दिल्ली को देना चाहते हैं ना की अदालतों में तो भी यह सवाल उठता है कि क्या अब वह अपनी राजनीति के सबसे बड़े हथियार को त्याग देंगे?

माना जा रहा है कि इस माफ़ी से केजरीवाल की क्रेडिबिलिटी पर फर्क पड़ा है

अन्ना आंदोलन से निकले अरविंद केजरीवाल की राजनीति दरअसल इसी तरह के हमलों के लिए जानी जाती रही. रॉबर्ट वाड्रा से लेकर मुकेश अंबानी तक, केजरीवाल ने हर किसी के खिलाफ मोर्चा खोला. भारत जैसे देश में निचला तबका तभी खुश होता है जब कोई नेता बड़े लोगों पर हमला करता है.  जनता ऐसे नेताओं को अपने करीब महसूस करती है. जनता की नब्ज को केजरीवाल बखूबी समझते थे और उसी को उन्होंने अपना राजनीतिक हथियार बनाया. अब अपने 5 साल के राजनीतिक कैरियर में केजरीवाल का वो हथियार टूटता नजर आ रहा है.

केजरीवाल के माफी नामों की श्रृंखला से आखिर उन्हें हासिल क्या होगा? हो सकता है माफीनामे से वह तमाम लोग केजरीवाल को माफ कर दें जिन्होंने उन पर मानहानि के मुकदमे दायर किए हैं और रोज-रोज अदालतों के चक्कर लगाने से इन्हें छुट्टी भी मिल जाए.  हो सकता है माफी नामों से केजरीवाल कानूनी अड़चनों से बच जाएं और उन्हें दिल्ली के लिए पूरा वक्त मिल जाए. लेकिन इस छोटे से फायदे के लिए उन्हें अपनी राजनीति में अब तक का सबसे बड़ा नुकसान उठाना पड़ेगा. वह नुकसान है उनकी अपनी छवि का और उनकी राजनीतिक क्रेडिबिलिटी का.

बीजेपी सांसद रमेश बिधूड़ी से लेकर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक पर केजरीवाल राजनीतिक हमले कर चुके हैं. हर तरह के आरोप लगा चुके हैं. जाहिर है इन माफ़ी नामों के बाद अब केजरीवाल के आरोपों पर कोई गंभीरता नहीं दिखाएगा. जाहिर है केजरीवाल की छवि आप आरोप लगाओ और भाग जाओ जैसे नेता की बन सकती है. राजनीति में किसी भी हस्ती के लिए उसकी छवि और उसकी क्रेडिबिलिटी सबसे बड़ी ढाल होती है. केजरीवाल ने अपनी हमलावर राजनीति के हथियार के साथ अपनी ढाल को भी खुद से तोड़ दिया है. 

हो सकता है इस माफ़ी के पीछे भी केजरीवाल की एक बड़ी राजनीति हो

हो सकता है कि वह किसी शातिर शिकारी की तरह ज्यादा बड़े हमले करने के लिए एक कदम पीछे खींच रहे हों. हो सकता है कि वह इन माफी नामों के पीछे एक बड़ी रणनीति या कूटनीतिक तैयारियां कर रहे हों. लेकिन मौजूदा हालात में उन नेताओं से माफी मांगने के चलते केजरीवाल की जबरदस्त किरकिरी हुई है जिन पर उन्होंने एक से बढ़कर एक गंभीर आरोप लगाए थे.

अगर गूगल की मदद ना लें तो केजरीवाल शायद भारत की राजनीतिक इतिहास में ऐसे पहले मुख्यमंत्री होंगे जिन्होंने पद पर रहते हुए अपने उस विरोधी से सरेआम लिखित रूप से माफी मांगी है जिस पर उन्होंने गंभीर आरोपों के तीर चलाए थे. राजनीति में केजरीवाल का आना भी ऐतिहासिक था, उन का सरकार बनाना और चलाना भी ऐतिहासिक था, सरकार छोड़कर जाना और फिर चुनकर आने का दौर भी ऐतिहासिक था, विरोधियों पर हमले करने का तरीका भी ऐतिहासिक था और अब सरेआम उनकी ऐसी माफी भी इतिहास में दर्ज हो चुकी है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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